बुधवार, 19 नवंबर 2014

साँप और सीढ़ी

जिन्नगी का रस्ता अगर सीधा-सादा एक्के लाइन में चलने जइसा होता, त जिन्नगी आसान होता चाहे नहीं होता, बाकी नीरस जरूर हो जाता. एही से भगवान भी हर अदमी के लाइफ़ का स्क्रिप्ट एकदम अलगे लिखता है. हमलोग समझते हैं कि हम अपना मेहनत से अपना कहानी लिख लेते हैं, चाहे ई मान लेते हैं कि हर इंसान का कहानी, उसका हाथ का लकीर में लिखा हुआ है, जिसको ऊ चाहे त अपना कोसिस से बदल सकता है... नहीं त होइहैं ओहि जे राम रचि राखा...! अपना सफलता के पीछे अपना मेहनत अऊर दोस्त लोग का साथ अऊर असफलता के पीछे किस्मत चाहे भगवान को दोस देकर छुटकारा पा लिये!

बिचित्र रचना है परमात्मा का जिसको समझने का दावा करने वाला लोग त बहुत मिल जाता है, लेकिन समझने वाला सायद कोई नहीं. जिसको समझ आ गया ऊ आनन्द से एतना ना सराबोर रहता है कि उसको बखान करने का सब्द मिलना मोस्किल हो जाता है. असल में एतना कॉनट्रास्ट पसरा हुआ है उसका हर रचना में कि सिवा आस्चर्ज करने अऊर आनन्द उठाने के हमलोग कुछ करियो नहीं सकते हैं. दिन के साथ रात, खुसी के पीछे-पीछे गम, आँसू के परदा में मुस्कान अऊर उजाला का दुस्मन अन्धेरा.

ओइसहिं हर अदमी के जीवन में बहुत बार ऐसनो मौका आता है जब ऊ अपने आप को दोराहा पर खड़ा पाता है. फैसला तुरत लेना होता है जिसको पलटना मोस्किल ही नहीं, नामुमकिन होता है. अब ऊ रास्ता कहाँ लेकर जाएगा, ई त पहुँचने के बादे बुझाता है. अऊर तब्बे कोई कहता है कि उसका फैसला गलत था कि सही. बहुत कम लोग गुलज़ार साहब के तरह आनन्द लेते हैं, ई कहते हुए कि
ये जीना है , अंगूर का दाना,
कुछ खट्टा है, कुछ मीठा है
जितना पाया मीठा था
जो हाथ न आया खट्टा है!
हमरे साथ अइसा पसोपेस का मौका न जाने केतना बार आया. कभी दिल का सुने, कभी दिमाग से सोचे, कभी दोस्त से सलाह लिये, कभी डर गये... अऊर एगो रास्ता पर आगे बढ गये. मगर इस मामला में हमारा रेकॉर्ड 100% रहा है. कभी भी सही जगह पर नहीं पहुँचे. गलतियो से हमरा चुना हुआ रास्ता कभी सही नहीं हुआ.

एक बार गर्मी में अपने घर से दूर साइकिल चलाकर कोनो परीक्षा देने गये थे. जब परीक्षा देकर निकले त आराम से साइकिल पर बढ चले. गर्मी में साइकिल का सवारी नरक  का भट्ठी से कम नहीं था. जब करीब बीस पच्चीस मिनट साइकिल चल गया त हमको लगा कि अभी तक सचिवालय नहीं देखाई दे रहा है, रेलवे इस्टेसन भी नहीं आया. सोचे कि हो सकता है पीछे के जगह पर आगे वाला रास्ता धरा गया है. मगर फिर देखे कि सब नया नया दिरिस देखाई दे रहा है. मन घबराया, त मने मन कोई बेकूफ नहीं समझे इसलिये एगो अदमी से पूछे – ए चचा! खगौल केतना दूर हई! अऊर चचा का जवाब सुनकर गोड़ के नीचे से पैडिल खिसक गया. चचा का जवाब था, “बस दस मिनट में पहुँच जएबा बबुआ!” हम साइकिल मोड़े अऊर उलटा रास्ता से लौटे. का हाल हुआ होगा ई कहने सुनने का बात नहीं है.

अपने ऑफिस के जीवन में भी भगवान का ई नाटक हमरा पीछा नहीं छोड़ा कभी. हर बार हमरे हाथ में दू गो पोस्टिंग मिला. कम से कम तीन बार हमको दू गो पोस्टिंग में से एगो चुनने का मौका मिला. लोग सोचते होंगे कि बहुत किस्मत वाला है अइसा मौका किसको मिलता है.. ऊ भी तीन बार! मगर हमरा निर्नय जो भी रहा, का मालूम काहे हमको बाद में पछताना पड़ा कि हम जो रस्ता चुने ऊ भूल हो गया. सायद इसका कारन ई भी हो सकता है कि अदमी का सोभाव है कि उसको हमेसा दोसरा साइड का घास जादा हरा बुझाता है. बहुत सा लोग अइसा भी मिला जो बोला कि हमलोग एक साथ ई दोराहा से अलग हुए थे, आज तुम कहाँ रह गए और हम कहाँ पहुँच गये. मगर अपना फैसला के लिये कोनो अऊर को काहे दोस देना. अऊर ऊपरवाले के स्क्रिप्ट में दखलन्दाजी करने का हमरा औकात कहाँ!

आज जब पीछे पलट कर देखते हैं त एगो अऊर दोराहा इयाद आता है. आम तौर पर कभी ऊ मोड़ का जिकिर हम नहीं करते हैं. मगर ऊ कहते हैं कि अंतिम समय में याददास्त साफ हो जाता है. ऊ दोराहा पर खड़ा होकर हम अपने दिल का बात अनसुना करके एगो रस्ता पर आगे बढ गये थे. एतना आगे कि जब पीछे मुडकर देखे त बुझाया कि हम अकेले हैं.

एक बार कोई हमरा हाथ देखकर बोला था कि आपके हाथ की रेखाएँ इतनी कटी हुई हैं कि लगता ही नहीं कुछ भी सीधा हुआ होगा आपकी ज़िन्दगी में!
हम भी हँसकर बोले – “भाई! हमारी हथेली साँप-सीढी के बोर्ड से कम थोड़े ही न है! ध्यान से देखिये तो कुछ सीढ़ियाँ और बहुत से साँप नज़र आएँगे. इतना डँसा है इन साँपों ने कि अब तो इनके काटने से गुदगुदी सी होती है.”