रविवार, 24 नवंबर 2013

तुझे ज़मीं पे बुलाया गया है मेरे लिये

अपना प्यारी-प्यारी बेटी के लिये... दूर अकेले रहते हुए बीमार होने पर जिसका इयाद हमको सबसे जादा कल आया. बस लगा कि उससे मिलना है, एक दिन का भी इंतज़ार नहीं हो पा रहा था. बस उसी को इयाद करते हुए पहिला बार एतना लंबा नज़्म लिखने का कोसिस किये हैं. अब नज़्म का है, ई त बस हमरे मन का बात है. हम कोई पंडित नेहरू त हैं नहीं कि हमरा बात भी लोग ‘पिता का पत्र पुत्री के नाम’ मानकर पढेगा. मगर बाप-बेटी के प्यार पर त कोनो खानदान बिसेस का अधिकार नहीं होता है न. त आपलोग के सामने एगो बाप का “बापता” हाजिर है.



दूब की फैली हरी चादर पे
जैसे बिखरी हो नर्म सुबह की ओस
सुनहरी धूप मे वैसा ही चमकता चेहरा
और मासूम हँसी, कूकती कोयल जैसे
मुझको जब देखती है आके लिपट जाती है
चूम लेता हूँ मै फिर उसका दमकता माथा
गोद में बैठ के बतियाती है दुनिया की बात
कौन सी फ़िल्म, कौन गाना, कौन टीवी सिरीज़
कोई भी हिन्दी नहीं और हिन्दुस्तानी नहीं
कुछ भी मेरी समझ में आता नहीं
फिर भी मैं हाँ में हाँ मिलाता हूँ
मेरी अम्मा की तरह कितनी ही बातें मुझको
वो बताती है जो मालूम भी नहीं मुझको
उसकी अम्मा को चिढाते भी हैं मिलकर हमलोग
उसकी नासमझी पे हँसते हैं मिलके आपस में.
जब कभी प्यार से कह देता हूँ बिटिया रानी
मैं किसी दूसरे को, तब बड़ा चिढ जाती है
उसको लगता है कि इस जुमले के
सारे जुमला हुकूक उसके हैं
बैठ जाती है कभी पास मेरे
हाथ में देके वो कंघा मुझको
ठीक से बाल झाड़ दो मेरे
और कहती है कि चोटी भी बना दो मेरी
ज़िद कभी करती नहीं याद दिला देती है
ये घड़ी टूट गयी है मेरी, दिलवा दो नई!
स्टडी टेबल कब दिलाओगे?
एक स्कूटी दिला दो, तो ज़रा राहत हो!
अगले हफ्ते जो तुम आओगे तो पढना है बहुत
मुझको बस तुमसे समझना है सारे फाइनल अकाउण्ट्स
कैसे ड्रा करते हैं मुझको बताओ बैलेंस-शीट
प्रॉफिट ऐण्ड लॉस भला ट्रेडिंग से डिफरेण्ट क्यों है.
एक एंट्री मुझे बिल्कुल नहीं आती है समझ
कल मेरा टेस्ट है बस फोन पे बता दो मुझे!
अपनी अम्मा से झगडती भी है, रखती है ख्याल
डैडी! मम्मा का ब्लड-प्रेशर अभी लिया मैने
एक सौ चौंसठ बटा एक सौ दस आया है
ये बताओ मुझे ज़्यादा है कि कम
मम्मा बेचैन दिख रही है मुझे
रात छत पे टहलते देखते तारों को मैं
जोड़कर देखता हूँ शक्ल कोई बन जाये
मेष या वृष या मिथुन, कर्क, सिंह. कन्या तुला,
हो वृश्चिक या धनु, मकर कुम्भ या हो मीन
मुझको बस एक शक्ल दिखती है हर रोज़ मगर
मेरी प्यारी सी, बड़ी प्यारी सी बिटिया रानी
चाँद सी देखके मुस्काती हुई, तारों में
रात के दस बजे हैं फोन बस आने को है
अब ये मोबाइल की घण्टी मेरी बजेगी अभी
और वो बोलेगी – गुड नाइट डैडी!
एक मामूल है कि जिसके बिना
ना वो सोती है वहाँ और न मैं सो पाता हूँ
बेटियाँ भी अजीब शै हैं, खुशनसीब हूँ बिटिया रानी
मैंने ख़ुद तुझको इंतिख़ाब किया अपने लिये

अबसे पहले तू सितारों में बस रही थी कहीं
तुझे ज़मीं पे बुलाया गया है मेरे लिये!