शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

हाथों में तेरे मेरा हाथ रहे

साल 1984:
अच्छा नौकरी मिल जाने अऊर दू बरिस नौकरी कर लेने के बाद घर में सादी का बारे में लोग सीरिअस हो जाता है अऊर घर का लोग से जादा समाज का लोग. एक से एक रिस्ता का रेकमेण्डेसन. लड़की का बिआह जेतना मोस्किल होता था ऊ टाइम में, ओतने मोस्किल लड़का का भी बिआह करना होता था. उसको भी नौकरी करते हुए दू बरिस हो चुका था. रिस्ता का बात भी सुरू हो गया था अऊर दोस्त लोग भी पूछने लगा था कि कहो तो एकाध गो रिस्ता हम भी भेजवाते हैं. कहो त लड़की देखा देते हैं चुपके से, दूर से देखकर पसन्द कर लो. अऊर तुम तो भाई बहुत इस्मार्ट हो, लड़की भी तुम्हारे टक्कर का सुन्दर है. मगर ऊ बहुत सांत लड़का था. हँसकर टाल जाता था.

दू-चार रोज छुट्टी के बाद एक रोज जब ऊ आया त उसका हुलिया बदला हुआ था. हाथ में सोना का अंगूठी, नया-नया सर्ट-पैण्ट, हाथ में नया एच.एम.टी. का घड़ी, नया सैण्डिल के अन्दर आलता से रंगा हुआ गोड़. मतलब मुर्गा हलाल हो चुका था. हम सब लोग उसका खूब क्लास लिए कि बिना दोस्त लोग को बताए ऊ कब सादी कर लिया. ऊ भी एतना चट-पट! खैर, हमको ऊ एतवार के रोज अपने घर पर बोलाया.

गिफ़्ट लेकर जब हम पहुँचे, त ऊ अपना रूम में ले गया, जहाँ नया दुल्हिन माथा पर आँचल रखकर बैठी हुई थी. हम दुल्ह्न को गिफ़्ट पकड़ाए, त ऊ हमको बैठने के लिए बोलकर चाय-नास्ता लाने चली गई. लड़की का चेहरा देखकर हमको बहुत अजीब लगा. उसके साथ कोनो मेल नहीं था लड़की का. एकदम साधारन लड़की.

मगर ऊ बहुत खुस था. चाय-नास्ता के साथ लड़की से बात-चीत हुआ, त हमको लगा कि चेहरा मन का आईना जरूर होता है, मगर बहुत बार धोखा भी दे जाता है. कुल मिलाकर हमको लगा कि ऊ दुनो का जोड़ी एकदम “मेड फ़ॉर ईच अदर” था.
लौटते समय ऊ हमरे साथ बस स्टैण्ड तक आया, तब बातचीत सुरू हुआ.
“क्यों! हैरान हो ना?”
”हाँ यार! एक तो इतनी गुपचुप शादी और उसपर...!”
“तो तुम भी सोचते होगे कि मैंने दहेज के लालच में एक ऑर्डिनरी लड़की से शादी कर ली?”
“....”
”तुम्हें दिखा मेरे घर में ऐसा कुछ?”
”मैं किसी लड़की को बुरा नहीं कहता. लेकिन ऐसा हुआ क्या?”
”कुछ नहीं. बस हुआ वही जो शायद लिखा था पहले से. जोड़ियाँ स्वर्ग में ही बनती हैं. घर में शादी की बात चल ही रही थी. एक दिन मुझे माँ ने कहा कि मेरी बुआ की जानपहचान की एक लड़की है. बुआ की ज़िद है कि मैं जाकर उसे देख लूँ! पसन्द ना आए तो बेशक मना कर दूँ.”
“और तुम देखते ही रीझ गए?”
”नहीं! देखते ही नहीं, सुनते ही रीझ गया!”
”क्या मतलब?”
”मैं ड्राइंग रूम में बैठा था, तो वो चाय लेकर आई. घरेलू कपड़े पहने हुए, बालों में तेल लगाए, न कोई मेक-अप, न साज सिंगार. नॉर्मली लड़की चाहे जैसी भी हो ऐसे मौकों पर सजती ज़रूर हैं! वो चाय रखकर बैठ गई. मेरे कुछ कहने के पहले ही वो बोल पड़ी कि आप चौंकिए मत. अपनी बुआ को मना कर दीजिए. उनकी ज़िद के कारण कई लोग मुझे देखने आते हैं और रिजेक्ट करके चले जाते हैं. अब मैं अपनी शक्ल सूरत तो बदल नहीं सकती. तंग आ गई हूँ. आप भी वही करेंगे!”
”क्या बात कर रहे हो!! फिर तुमने क्या कहा?”
”कहना क्या था. मैंने तुरत कह दिया कि वो मुझे पसन्द है. उसका चेहरा सुन्दर भले न हो, लेकिन उसकी ईमानदारी मुझे पसन्द आई. और तुम्हें तो पता है कि मेरे परिवार के लिए बस ऐसी ही लड़की चाहिए.”
”और तुम्हारी फ़ैमिली?”
”मियाँ बीवी राज़ी तो क़ाज़ी साहब को तो बस ‘क़ुबूल है’ ही रिकॉर्ड करना होता है ना!”

साल 1988:
अपना लड़की के रिस्ता के लिए एगो औरत लड़का वाला के घर गईं. पता चला लड़का का त सादी हो गया. ऊ औरत की ननद बोली कि काहे नहीं आप इनकी बेटी को अपना बेटा के लिए देख लेती हैं. बरसात का ई आलम था कि चारो तरफ पानी जमा हुआ था. लड़की एगो इस्कूल में काम करती थी. पता चला अभी आने वाली है अऊर एही रास्ता से जाएगी. थोड़ा देर में ऊ लड़की पानी में सलवार ठेहुना तक उठाकर चलते हुए सामने से अपना घर में जाने लगी. छोटा कद, साधारन चेहरा मोहरा... लड़का के माँ को लड़की कुछ खास पसन्द नहीं आई. इसलिए लड़का के सादी का बात आगे नहीं बढ़ सका.

दू महीना बाद, ओही लड़की के सादी के लिए लड़का के घर रिस्ता आया. घर में सबलोग एक सुर में बोला कि लड़की को देखकर पसन्द ना-पसन्द लड़का के अलावा कोई नहीं करेगा. खैर फैसला हुआ कि जाकर देख लो अऊर बात कर लो.

लड़की के चाचा के घर साम को लड़की देखने का तय हुआ. साम को इंतजार होने लगा लड़की का, मगर बहुत देरी हो रहा था उसको आने में. पता चला ऑफिस में कोई बहुत जरूरी काम आ गया है. लड़की जब आई, त उसको जल्दी-जल्दी में तैयार होने का टाइम नहीं मिला. जल्दी से कपड़ा बदल कर उसको चाय लेकर लड़का अऊर उसके भाई के सामने भेज दिया गया. लड़का देखा कि ब्लाउज का बाँह बिना आयरन किया हुआ है. ऊ मुस्कुरा दिया. अपना भाई से धीरे से पूछा कि तुमको लड़की पसन्द है? उसका भाई बोला – हाँ!


बस बात फाइनल हो गया. नवम्बर 1988 में सगाई अऊर 18 जनवरी 1989 को सादी. सादी का पच्चीस साल हो गया है. अऊर बिस्वास हो गया है कि जोड़ी सचमुच ऊपर से बनकर आता है! 

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

झाड़ू-मार इग्नेशियस

Jeffrey Archer के कथा-संग्रह Twist in the Tale से ली गयी कहानी  Clean Sweep Ignatius.


बहुत कम लोगों ने इस बात में दिलचस्पी दिखाई कि इग्नेशियस को नाइजीरिया का वित्त-मंत्री नियुक्त किया गया. विरोधियों ने भी कहा कि इसमें ख़ास बात तो कुछ है नहीं. वैसे भी सतरह सालों में वो सतरहवाँ वित्त-मंत्री था.
संसद में अपना पहला भाषण देते हुए इग्नेशियस ने मतदाताओं से यह वादा किया कि वो सार्वजनिक जीवन में फैले भ्रष्टाचार और घूसखोरी को समाप्त करके रहेगा. उसने तमाम जनता तक साफ शब्दों में यह बात पहुँचाई कि कोई भी व्यक्ति, जो किसी भी सरकारी ओहदे पर तैनात है, तब तक सुरक्षित नहीं, जबतक वो बेदाग़ नहीं है. उसने अपने पहले भाषण की समाप्ति इन शब्दों के साथ की - मैं नाइजिरिया की गन्दगी की सफ़ाई झाड़ू लेकर करने निकला हूँ!
किसी भी अख़बार ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया. इससे पहले भी सोलह मंत्रियों ने यही सब कहा है और दोहराया है.
इग्नेशियस इन बातों से हताश नहीं हुआ. उसके मज़बूत इरादों, दृढ़ निश्चय और काम करने की लगन को सरकारी तंत्र के असहयोग से कोई अंतर नहीं पड़ा. परिणाम जल्दी ही दिखाई देने लगे. अनाज के आयात से सम्बन्धित दस्तावेजों में हेर-फेर करने वाले खाद्य मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी को कारावास झेलना पड़ा. इग्नेशियस के झाड़ू का अगला शिकार एक लेबनानी व्यापारी था जिसे विदेशी मुद्रा नियमों की अनदेखी करने के आरोप में अपने देश वापस भेज दिया गया. और एक महीने बाद एक बड़ी घटना सामने आई. पुलिस-प्रमुख को रिश्वत लेने के आरोप में सस्पेण्ड कर दिया गया, जिसे लोग एक दस्तूर समझते थे. चार महीने के बाद पुलिस-प्रमुख को अठारह महीने की जेल हो गयी.
अब जाकर इग्नेशियस को हर अख़बार के मुखपृष्ठ पर स्थान मिला. सुर्खियाँ थी – “झाड़ू-मार इग्नेशियस... एक झाड़ू जिससे हर अपराधी काँपता है.” इसके बाद जाँच, गिरफ़्तारी और धर-पकड़ का दौर चला. लोगों में तो यहाँ तक अफ़वाहें फैल रही थीं कि वो जनरल ओटोबी, नाइजीरिया के राष्ट्राध्यक्ष, तक पर नज़र रखता है. सैकड़ों मिलियन डॉलर के सारे वाणिज्य करार और विदेशी सौदों की वह व्यक्तिगत रूप से जाँच, परख करके ही मंज़ूरी देता था. हो भी क्यों नहीं, उसके विरोधी उसकी हर गतिविधि को माइक्रोस्कोप से देख रहे थे. और पहला साल बिना किसी घटना, घोटाले और भ्रष्टाचार की ख़बर के निकल गया. यहाँ तक कि दबी ज़ुबान से उसके विरोधी भी उसकी तारीफ करते हुये सुने गये.
जनरल ओटोबी ने एक दिन उसे अपने ऑफिस में बुलाया. यह मीटिंग किसी विशेष मुद्दे पर बातचीत के लिये बुलाई गई थी.
”इग्नेशियस! मैंने अभी-अभी ताज़ा बजट-रिपोर्ट देखी. और मैं हैरान हूँ कि हमारी आय का एक बड़ा हिस्सा अभी-भी विदेशी कम्पनियों द्वारा बिचौलियों को दी गई रिश्वत के रूप में ग़ायब हो जाता है और हमें कई मिलियन डॉलर के रेवेन्यू से हाथ धोना पड़ रहा है. तुम्हें कोई अनुमान है कि यह पैसा किसकी जेब में जा रहा है? वास्तव में यही जानने के लिये मैंने तुम्हें यहाँ बुलाया है.
इग्नेशियस तनकर बैठा था और शासनाध्यक्ष की आँखों में आँखें डालकर देख रहा था.
मुझे शक़ है कि इस राशि का एक बड़ा हिस्सा स्विस बैंकों के प्रायवेट अकाउण्ट में जा रहा है. लेकिन मैं अभी इसे साबित नहीं कर सकता.
तो मैं तुम्हें जो भी ऑथॉरिटी चाहिये देने को तैयार हूँ जिससे तुम इसका पता लगा सको. मेरे कैबिनेट के सदस्यों से तुम जाँच की शुरुआत कर सकते हो. किसी के साथ किसी रियायत की आवश्यकता नहीं चाहे वो किसी भी ओहदे पर क्यों न हो!
इसके लिये मुझे आपकी स्पेशल लेटर ऑफ ऑथॉरिटी चाहिए और मेरे विदेशी दौरे पर विशेष राजदूत का ओहदा!
ओ.के.! सारे कग़ज़ात शाम तक तुम्हारे टेबल पर होंगे!
धन्यवाद, जनरल! इग्नेशियस चलने को था कि पीछे से जनरल ने उसे आवाज़ दी, तुम्हें इसकी भी आवश्यकता हो सकती है. और जनरल ने उसके हाथों में एक छोटी सी ऑटोमेटिक पिस्टल थमा दी, मुझे शक़ है कि अब तो तुम्हारे भी उतने ही दुश्मन बन गए होंगे, जितने मेरे!
इग्नेशियस ने पिस्टल जेब के हवाले की और धन्यवाद कहकर निकल गया.
तीन महीने तक रात-दिन वो रिसर्च करता रहा बिना किसी की मदद के और बिना नाइजीरियाई केन्द्रीय बैंक की सहायता लिये.
तीन महीने बाद, अगस्त के महीने में इग्नेशियस ने अपने परिवार के साथ छुट्टियाँ बिताने का कार्यक्रम बनाया. फ्लोरिडा तक की सारी टिकटें उसने अपने निजी खाते से खरीदीं. फ्लोरिडा में वह अपने परिवार के साथ मैरियट होटेल में रुका. उसने अपनी पत्नी को बताया कि उसे दो दिन के लिए न्यु यॉर्क में कुछ काम है और काम निपटाकर बाकी की छुट्टियाँ वो उनके साथ बिताएगा.
अगले दिन वो न्यु यॉर्क पहुँचा और वहाँ से नगद में टिकट लेकर वो स्विस एयर की फ्लाइट से जेनेवा को रवाना हो गया. जेनेवा पहुँचकर उसने एक सस्ते होटल में आठ घण्टे की अच्छी नीन्द ली. नाश्ते के साथ उसने उन बैंकों की लिस्ट का मुआयना किया जिनके बारे में उसने नाइजीरिया में रिसर्च की थी.
दोपहर में इग्नेशियस वहाँ के सबसे बड़े बैंक के चेयरमैन के सामने था. प्राथमिक औपचारिकता के बाद उनमें बातचीत शुरू हुई.
”मुझे मेरे राष्ट्राध्यक्ष ने आपके पास यह जानने को भेजा है कि आपके बैंक में हमारे देश के किन-किन लोगों के खाते हैं.”
”क्षमा चाहता हूँ, लेकिन इसमें मैं आपकी कोई मदद नहीं कर पाउँगा!”
”मुझे अपनी बात कहने का एक मौक़ा दीजिये. मैं अपने देश का वित्त मंत्री हूँ और मेरी सरकार ने मुझे पूरी अथॉरिटी के साथ यहाँ इस मिशन पर भेजा है.”
इग्नेशियस ने अपने फ़ोल्डर से जनरल का पत्र चेयरमैन के सामने रखा. उन्होंने पत्र पर नज़र डाली और उसे वापस लौटा दिया. “इस पत्र की हमारे देश में कोई मान्यता नहीं है. मुझे कोई सन्देह नहीं कि आपके देश ने आपको सारे अधिकार दिए हैं – एक मंत्री के नाते और एक विशेष राजदूत की हैसियत से भी. लेकिन हमारे बैंक की गोपनीयता का नियम इस कारण नहीं बदल सकता है.”
”मेरे देश ने मुझे यह अधिकार दिया है कि मैं चाहूँ तो अपने देश के भविष्य में होने वाले सभी व्यापारिक समझौते आपके देश के साथ कर सकता हूँ.”
”आपका बहुत बहुत धन्यवाद श्रीमान इग्नेशियस! लेकिन हमारी मजबूरी है!”
”मैं आपके बैंक के ख़िलाफ़ एक सरकारी विज्ञप्ति जारी कर असहयोग की बात कह सकता हूँ! यही नहीं, हमारा वणिज्य मंत्रालय इस देश के साथ सारे व्यापारिक समझौते रद्द कर सकता है. हो सकता है कि हमारे राजनयिक रिश्ते भी समाप्त हो जाएँ और हमारा दूतावास बन्द करना पड़े. नाइजीरिया में आपके राजदूत को गिरफ्तार भी किया जा सकता है!”
”महाशय! यह सब आपके हाथ है! लेकिन हमारे हाथ बँधे हैं!”
तभी इग्नेशियस का हाथ अपने जैकेट की जेब में गया और उसने पिस्टल निकाल ली. चेयरमैन के माथे से पिस्टल लगाकर उसने कहा, “मुझे उन सभी नाइजीरियाई नागरिकों के नाम चाहिए जिनके यहाँ खाते हैं. वर्ना तुम्हारा भेजा यहाँ कालीन पर बिखरा मिलेगा! ये मत कहना कि मैंने तुम्हें मौक़ा नहीं दिया!”
चेयरमैन डर से काँप रहा था और उसके माथे से पसीना टपक रहा था. फिर भी उसने गिड़गिड़ाते हुये कहा, “क्षमा कीजिये मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता!”
”बहुत ख़ूब!” कहते हुए इग्नेशियस ने पिस्टल चेयरमैन की कनपटी से हटा ली. चेयरमैन अभी भी काँप रहा था.
इग्नेशियस ने अटैची उठाकर टेबुल पर रखी और बटन दबाते ही खटाक की आवाज़ के साथ वो खुल गयी. बहुत करीने से सजाकर उसमें सौ-सौ डॉलर के नोट भरे थे. चेयरमैन की नज़रों ने अन्दाज़ा लगाया कि रकम करीब पाँच मिलियन डॉलर होगी.
इग्नेशियस ने कहा, “क्षमा चाहता हूँ! लेकिन आपके यहाँ अकाउण्ट खोलने के लिये क्या करना होगा मुझे?”