शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

छः महीने का बच्चा !

हमरे परिवार में बहुत सा लोग को सिकायत रहता है कि हम किसी का छोटा बच्चा गोद में लेकर नहीं खेलाते हैं. जबकि बच्चा अगर बिछावन पर लेटा रहे तो हम उसके साथ बोल बतिया लेते हैं, लेकिन कोई बोले कि उसको गोदी में ले लो, हमरा पसीना छूट जाता है. कारन हमको भी नहीं मालूम, लेकिन एतना बात सहिये है कि हमको डर लगता है. बहुत सा लोग हमरा आदत का बुरा मान जाते हैं. कोई कोई तो सिकायतो कर दिये हमरे सिरीमती जी से कि हमरा बच्चा को प्यार नहीं करते हैं. गोदी में देने लगे मना कर दिये.
हमरी सिरीमती जी समझाईं कि इसमें बुरा मानने वाला कोई बात नहीं है. जब आपका बच्चा छः महीना का हो जाएगा बिना आपसे पूछे सारा दिन खेलाएंगे, मगर उससे पहिले तो दुनिया इधर का उधर हो जाए, नहीं ले सकते हैं. धीरे धीरे बात हमरे परिवार, दोस्त अऊर जानने वाला सब लोग को पता चल गया. भगवान के दया से भरा पूरा परिवार है, लेकिन अब कोई बुरा नहीं मानता बात का.
अब जब कारन सोचने लगते हैं, बचपन का एगो घटना याद आता है. हमरे चाचा जी का पहिला बच्चा हुआ था. तब हम रहे होंगे करीब दस साल के. संजुक्त परिवार था, हमरी माता जी हमको आलथी पालथी मारकर जमीन में बईठा देती थीं अऊर बच्चा हमरे गोदी में दे देती थीं. अब हम सम्भाल के उसको पकड़े रहते थे ठीक ओईसहीं जईसे हमरे हाथ में बचवा धराया जाता था. मगर अजीब संजोग था कि जब हम बचवा को वापस माता जी या फूआ या चाची के हाथ में देते, तो बच्चा जोर जोर से रोने लगता. तब हमरे घर में काम करने वाली बूढी दाई बताती कि बच्चा को हँसुली लग गया है (कॉलर बोन सरक जाना). ऐसा इसलिए होता था कि हमको ठीक से गर्दन के नीचे हाथ लगाने नहीं आता था, या बच्चा को लेने या देने के समय हाथ हट जाता अऊर गर्दन लचक जाता था.
बच्चा का रोना तब तक बंद नहीं होता, जब तक पियरिया दाई (जो हमरे पड़ोस में रहती थीं) आकर उसका गर्दन नहीं बईठा देती. तब तक बच्चा रोता रहता. पियरिया दाई के हाथ में जादू था. कोनो रोता हुआ बच्चा उनके पास ले जाइये, बस अपना पैर पसारकर बच्चा को पैर पर लेटा देती थीं अऊर सरसों तेल लेकर मालिस सुरू. उसके बाद गर्दन के पास हाथ ले जाकर धीरे धीरे मालिस करती अऊर रोने वाला बच्चा चुप हो जाता. उसको उलट कर, पलटकर तेल लगाते लगाते बच्चा गहरा नींद में सो जाता अऊर घण्टा भर से पहिले नहीं जगता था. काम का कोई पईसा नहीं लेती थीं. कोनो रोता हुआ बच्चा को सुलाकर सायद भगवान का सबसे पबित्र पूजा कर रही थीं.
खैर, डर हमरे दिमाग में अईसा बैठा कि आजतक कोनो बच्चा को गोद में लेने में डर जाते हैं हम. छः महीना का बच्चा बड़ा हो  जाता है अऊर ओतना कोमल भी नहीं होता है. बतियाने वाले आदमी को गौर से देखता भी है अऊर उसका बात पर किलकारी मारकर हँसता भी है. उलटना पलटना, खेलना, खिलौना पकड़ना सब कुछ करता है. बच्चा के मामला में कहा जाए एकदम मैच्योर बच्चा. हाथ में उठाने से भी लगता है कि बच्चा मजबूत है.  
आज  भी हमारे बिहार में जब कोई बड़ा बच्चा यानि दस बारह साल का बच्चा, माँ के गोदी में बईठ जाता है, चाहे माँ को कहता है कि अपने हाथ से खाना खिला दो तो प्यार से माँ कहती है कि छः महिनवा बच्चा बन गया है का!
अब बच्चा तो बच्चा होता है, चाहे दस साल का हो चाहे छः महीना का. देखिये , आज हमरा ब्लॉग भी खेल खेल में छः महीना का हो गया. एतना प्यार से आप लोग सम्भाल कर इसको रखे. अब जब आप लोग का एही स्नेह अऊर आसीर्बाद के बदौलत एतना लम्बा सफर हम कर पाए हैं, बस आप लोगों का एही स्नेह, सुभकामना अऊर आसीस चाहिये.


गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

ब्लॉग, बच्चे और बेचारा बिहारी ब्लॉगर


दिन ऑफिस से आए तनी मूड ऑफ था, काम के कारन. हमरे साथ एगो बहुत अच्छा बात है कि ऑफिस के दरवाज़ा से बाहर निकलते ही हम भुला जाते हैं कि अभी हमरे पीछे जो बिल्डिंग है, वहाँ हम दिन का आठ से दस घण्टा बिताकर निकले हैं. बस एक्के खयाल मन में रहता है कि घर पर हमरा कोई इंतजार कर रहा है. केतनो थकान हो दिन भर का, जब मुस्कुराते हुए दरवाजा खोलती हैं हमरे लिए अऊर जब बेटी गला में बाँह डालकर झूल जाती है, सब थकान गायब हो जाता है.
इसलिए जब हम मूड ऑफ किए हुए घर में घुसे सबको तुरते समझ में गया कि मामला सीरियस है. तुरते चली गईं किचन में चाय बनाने अऊर बेटी पानी लेकर गई सामने. हम चुप चाप जूता उतारने में लगे थे.
पानी पीने के बाद जब ग्लास बेटी को पकड़ाए हमसे पूछ बैठी, “क्या बात है डैडी, आज की पोस्ट पर कमेंट कम आए हैं क्या?” उसका सवाल सुनते ही हमरा हँसी छूट गया. भुला गए कि हम कौन परेसानी से परेसान थे. अऊर तब लगा कि हमरा ब्लॉग का पागलपन का असर पूरा परिवार पर हो गया है. अब एतना बड़ा घटना हो जाए अऊर हमरे चैतन्न बाबू को खबर नहीं हो होइए नहीं सकता था. अभी हम सोचिए रहे थे फोन मिलाने के लिए कि बेटी फिर बोल दी, “मुझे पता है! आप ये बात चैतन्य अंकल को फोन करके बताएँगे!
कमाल का सर्लॉक होम्स हमरे घर में पल रहा है अऊर हमको पते नहीं था. मन का बात भी जान जाता है. खैर, हम चैतन्न जी को फोन लगाए, बिटिया का बात बताने के लिए. अऊर बिस्वास नहीं कीजिएगा कि उधर से चैतन्न जी छूटते पूछ लिए, “कितने कमेंट आए थे उसपर?” अब हमरा हँसी रुकिए नहीं रहा था. काहे कि हम अगर उनको जवाब देते पाँच, बेटी को पाँच का मतलब समझने में देर नहीं लगता कि हम उनको कमेंट का गिनती बता रहे हैं.  
चैतन्न जी बोले, “क्या बात है, हँसे जा रहे हैं? कुछ कहिए भी.
अऊर हमरे बोलने के पहले ही हमको बैकग्राउण्ड में उनकी बिटिया आशी का आवाज सुनाई दिया कि अंकल हँस रहे हैं तो इसका मतलब है किसी ने कमेंट में पंगा नहीं किया है. उसके बाद हम दोनों आदमी फोन पर बस हँसते रहे,किसी को कुछ बताने का जरूरते नहीं रहा.
बच्चा लोग हम लोगों का बातचीत सुनकर इस आभासी दुनिया के बारे में बहुत कुछ जानने लगा है. जब कभी हम दोनों दोस्त कुछ उत्तेजित होकर तनी गरमी से बात करने लगते हैं, बच्चा लोग अपना अपना मम्मी को कहता है कि लगता है डैडी आज फलाने का पोस्ट के बारे में चर्चा कर रहे हैं. अरे जब पसंद नहीं है तो क्यों पढ़ते हैं उनका पोस्ट. पढ़ेंगे भी और बाद में बहस भी करेंगे.
उधर चंडीगढ़ में भासन चालू रहता है- “लगता है कि उसके पोस्ट पर किसी ने कमेंट कर दिया है. और आप गुस्से में हैं. ये उन दोनों के बीच का मामला है आप क्यों उलझ रहे हैं.
 अब हाल हो गया है कि फोन का घण्टी बजते ही बच्चा लोग दुनो तरफ सचेत हो जाता है अऊर ध्यान से सुनता है सब बात. एगो खराबी भी है हम लोग में कि छिपाकर बात करिये नहीं सकते हैं. सब टर्मिनोलोजी भी समझता है बच्चा लोग अऊर डाउट होने पर पूछ लेता है. एक रोज का सवाल सुनिये. हम सुबह चाय पी रहे थे कि हमरे सामने आकर बिटिया रानी खड़ी हो गईं. पूछने लगीं, “डैडी! ये मॉडरेशन क्या होता है?कल आप अंकल को कह रहे थे कि उसने मॉडरेशन लगा दिया है.
पहले हम घबरा गये कि कईसा सवाल है, फिर सम्भल कर जवाब दिए, “मॉडरेशन मतलब किसी के कमेंट को रोककर रखना और बाद में अप्रूव करके अपनी मर्ज़ी से छापना.
लोग ऐसा क्यों करते हैं?”
पता नहीं बेटा! हमलोग नहीं करते.
बिलकुल ग़लत! आपने भी तो मॉडरेशन लगा रखा है.
नहीं तो! हमारे दोनों ब्लॉग पर मॉडरेशन नहीं है. जो तुम चाहो लिख दो, तुरत छप जाएगा.
क्या बात करते हैं. पिछले दस दिन से कहा है आपको कि मुझे स्टेफ़नी मेयेर की बुक न्यू मूनदिलवा दीजिए, मगर मेरी यह फरमाइश आपने मॉडरेशन में डाल दी है. पता नहीं कब अप्रूव करेंगे.
हई देखिये, अबके हमसे मतलब पूछी अऊर तुरते हमरे ऊपर पोस्टर जईसा लगा भी दी. बेटी ताना मारकर चली गई, हम का करते. मुस्कुराते हुये बगल में पड़ा हुआ मोबाईल उठाये अऊर नम्बर मिलाने लगे.