शनिवार, 29 मई 2010

कीचड़ में कमल - चरन कमल

हमरा त आदत है देर से सोकर उठने का. लेकिन जईसहीं हमरा नींद खुला, देखे कि राजू आँख बंद किए चला जा रहा है. घबड़ा गए हम कि इसको नींद में चलने का बीमारी है, ई त हमको पते नहीं था. हमरा एतना अच्छा दोस्त अऊर ई बीमारी… कभी बोलबे नहीं किया. हमरा सोच तनी थम गया, जब हम देखे कि राजू बाहर से भीतर आ रहा है, एकदम दुनो आँख खोले. चकरा गए हम कि ई का तमाशा है.
अभी हम आँख मट्मटा रहे थे कि ऊ हमरा दसा समझ कर बोल दिया, “देखो बाबू! हम सबेरे सबेरे सबसे पहिले अपना माँ बाप का चरन का दर्सन करते हैं, तब आँख खोलते हैं.”
हमरा मन भर गया. ऊ समय हमरा उमर 15-16 साल था, अऊर हमको ई राजू का घर छोड़कर कहीं भी रात भर रुकने का इजाजत नहीं था. राजू संगीतकार घर का लड़का था, अऊर हमरे अंदर तब तक साहित्त का कैंसर घर बना लिया था. हम जानते थे कि ई साहित्त हमरे जान के साथे जाएगा. राजू गजल गाता था, लेकिन कौन सा गजल गाना है, ई हमरा चोएस होता था. उसका धुन जब तक हम फाईनल नहीं कर देते थे, तब तक ऊ फाईनल नहीं होता था. इसी चक्कर में अगर कभी उसको रात में 10 बजे कोई धुन सूझ गया त ऊ भाग कर हमरे पास आता, हमरी माँ से परमिसन लेकर हमको ले जाता.
लेकिन ऊ दिन उसके अंदर का एक अच्छा संस्कारी अदमी हमको देखाई दिया. दू कमरा का छोटा सा घर में चार भाई बहन और माता पिता, छः लोगों का परिवार बहुत प्रेम से रहता था, एक सदस्य हम भी थे ऊ परिवार के.
*****
हम दूनो एक साथ नौकरी सुरू किए, ऊ पटना में, अऊर हम बाहर. हम नौकरी करते रहे, ऊ नौकरी के साथ गजल गायक बनने का तैयारी में लगा रहा. खबर मिलता रहा, मिलना कुछ कम हो गया.एक दिन ऊ बताया कि हिंदुस्तान के उस समय का एक मसहूर गजल गायक (नाम जानकर नहीं लिख रहे हैं) का साली के साथ ऊ सादी करने जा रहा है. हम सादी में नहीं जा पाए.
कुछ टाइम के बाद हम भी पटना आ गए. मिलना तबो कमे रहा. गुरु पूर्णिमा के प्रोग्राम में हम ऐंकरिंग कर रहे थे, अऊर राजू अपना पत्नी के साथ डुएट गजल गा रहा था. पत्नी के जैसा, गजल का चोएस भी उसी का था.
एक रोज रविवार के दिन, भोरे भोरे ऊ हमरे घर पहुँचा. हम घबड़ा गए कि का हुआ. ऊ हमरे हाथ में कागज पर एगो पता लिख कर दिया, अऊर कहा, “हमरे घर चले जाओ. वहाँ हमरा कुछ समान है. सब एगो बक्सा में डाल कर ई पता पर पहूँच जाओ.”
हम बोले, “बात का है?”
“कुछ नहीं .हम आजकल अपना पत्नी के साथ इसी पता पर रहते हैं, घर से अलग.”
हमरे लिए त सब खबर हैरान करने वाला था. जो मकान में छः आदमी एकट्ठा रह सकता है, उसमें पाँच आदमी (दुनो बहिन बिआह कर ससुराल चल गई थी) को का दिक्कत हो सकता है! लेकिन मामला पर्सनल था, अऊर हम दूनो के बीच समय का दीवार भी आ गया था, त हम चुप लगा गए. लेकिन उसका घर में जाकर, उसका माँ बाप के सामने से, उसका सामान लेकर आना, हमको बहुते अजीब लग रहा था. मन नहीं मान रहा था.
हम राजू को समझाए, “ ठीक है! तुम अलग रह रहे हो, तुमरा अपना फैसला है. लेकिन घरे जाकर समनवा ले आने में का दिक्कत है?”
“हम अपना माँ बाप का सूरत नहीं देखना चाहते हैं. अगर तुम नहीं जाना चाहते हो त हम प्रदीप से बोल देते हैं.”
हम मना कर दिए. उस दिन के बाद ऊ अपना माँ बाप के साथ हमरा सूरत भी देखने से परहेज करने लगा. अऊर हम त उसका सूरत देखे भी नहीं उसके बाद.
दोस्त लोग से पता चला कि सायद नौकरी छोड़कर इधर उधर गजल का प्रोग्राम देते हैं राजू बाबू. उनके साढू, जो एक समय भरत के मसहूर गजल गायक में से एक थे अऊर फिल्मों में पार्श्व गायक थे, आज गजल का अध्याय खतम होने के साथ खुद खतम हो गए लगते हैं.
हमरे कान में अभी भी राजू का बात गूँजता है कि “हम अपना माँ बाप का सूरत नहीं देखना चाहते हैं” अऊर ई बात ऊ बोल रहा था जो अपना माँ बाप का चरन देखकर आँख खोलता था.

शुक्रवार, 28 मई 2010

दुःख ने दुःख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार




आज हमरी एकलौती बेटी सुबहे से बहुत उदास है.
अभी पीछे जे हम पटना गए थे, त ऊ ऊहाँ हमरा बेटा (हमरा भाई का बेटा - हमरा संजुक्त परिवार में हम लोग भतीजा नहीं बोलते हैं) यानि अपना भाई से मिलकर बहुत खुस थी. बगले में हमरा भगिना अऊर भगिनी रहता है सब. एक जगह, एक साथ मिलकर सब बच्चा लोग बहुत खुस था.
एक दिन दोपहर में चारों बच्चा सब जोर से चिल्लाया त हम सब लोग डरा गए कि का हुआ. लेकिन तुरते समझ में आया कि ई एक्साइट्मेंट में चिल्लाया था सब. हुआ ई कि सब बईठ के एक साथे सिनेमा देख रहा था टीवी पर, त अचानके ऊपर से एगो गिलहरी का जलमाउत (नवजात) बच्चा ऊ लोग के बिछौना पर गिरा. पहिले त सब डरे चिल्लाया, फिर उसका माँ को खोजने इधर उधर गया. जऊन छज्जा से ऊ गिरा था ओहाँ चढकर देखने पर भी कोनो गिलहरी देखाई नहीं दिया.
जब उसका माँ नहीं मिला, त सब बच्चा ऊ गिलहरी का सेवा में लग गया. सबसे पहिले त उसका नाम धराया जेरी (टॉम जेरी वाला). एक बच्चा भाग के रूई का बंडल लेकर आया अऊर महादेवी जी के गिल्लू के जईसा उसको दूध पिलाने का इंतजाम करने लगा. दुसरा तुरत उसके लिए जूता के डिब्बा से उसका घर बनाया, अऊर उसको गर्मी से बचाने के लिए उसका घर में ठंडा हवा का इंतजाम कर दिया. तीसरा उसका बिछावन ले आया.
अभी बच्चा का आंखो नहीं खुला था. सारा दिन उसका सेवा हुआ. जेरी भी खूब आराम से सो गया. फैसला हुआ कि जेरी को हमरा भगिना अपने घर ले जाएगा, अऊर तय हुआ कि रोज हमरे घर ऊ उसको लेकर आएगा, अऊर सब लोग बारी बारी से उसका सेवा करेंगे.
पहिला दिन बीत गया, दोसरा तीसरा दिन से हमरी बेटी उसका फोटो खींचने अऊर विडियो बनाने में लग गई. काहे कि बेचारी को तो वापस चले आना था. ऊ सोच ली थी कि जेरी को हर तरह से कैमेरा में बंद करके लेते आएगी. आने वाला दिन जेरी भी सबके साथ हम लोग को इस्टेसन पर सी ऑफ करने आया.
यहाँ आकर भी रोज फोन से उसका हाल चाल पूछना अऊर हमको बताना कि आज उसका आँख खुल गया. अब ऊ अपने से दूध पी लेता है.
आज सुबह सुबह फोन आया हमरा बेटा का पटना से कि जेरी चल बसा, अचानक। कल रात ठीक ठाक था, सबेरे सब खतम. उधर हमरा बेटा पटना में उदास है, इधर हमरी बेटी दिल्ली में. निदा फाज़ली साहब के दोहा के हिसाब से ‘दुःख ने दुःख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार’।

बुधवार, 26 मई 2010

हमरा पहिला कबिता !!


अचानक हमरे अंदर छिपा हुआ कबि जाग उठा, अऊर हमको लगा कि हम एही भासा में लिखें... लेकिन फिर लगा कि नहीं कबिता को कबिता रहने देते हैं, अऊर सब लोग के खातिर हिंदिये में लिखने का कोसिस किए हैं॥ आपलोग का आसिरवाद चाहिए...

भयाक्रांत मन पिशाच
क्यों रहा है नाच!!
जीवन के स्वर्णिम मुहाने पर
कैसा है झंझावात!!

चलो बादलों को हटा दो
हम अपना घर ढूंढ लेंगें कहीं
पत्तो को रोक लो पीला होने से
दहलीज़ पर कौन ठिठक कर बैठ गया
हाँक लो सारी गायें
चलो अब फिर जी जायें!

रविवार, 23 मई 2010

असर नहीं त पैसा वापिस!!!


एगो आदमी था। रिटायर होने के बाद एक दिन अचानक, बेचारा बहुते बीमार पड़ गया।
बिमारी भी अइसन-वइसन नहीं, सीरिअस !! सब टेस्ट ठीक-ठाक, कोनों रिपोर्ट गड़बड़ नहीं, लेकिन बाबू साहेब का हालत जो बिगड़ा, सुधरने का नामे नहीं ले रहा था. देखते देखते एकदम कमजोर देखाई देने लगे. लोग हैरान, डॉक्टर परेसान, बाकी बिमारी कोई नहीं धर पा रहा था. एक रोज एगो ऑफ़ीस का अदमी आया, उनको देखने के लिए. हालत देखकर बहुत घबरा गया. उनके सिरीमती जी को बगल वाला कमरा में ले जाकर कान में धीरे से एगो दवाई बताया.
उसके बाद त कमाले हो गया. एक हफ्ता के अंदर उ साहेब इतना तंदरुस्त हो गए कि लगा जइसे दोबारा नौकरी सुरू कर देंगे. सब लोग टोला-मोहल्ला का औरत उनका पत्नी से दवाई का नाम पूछने लगी. ऊहो बेचारी बहुते सीधी औरत थीं. बताइये दिहिन दवाई का नाम, अउर हमारा सिरीमती जी के मार्फ़त जो भेद हमको पता जला ऊ आप लोग को भी बताते हैं. समाज का काम आए ऊ दवाई, त इससे अच्छा का होगा.
दवाई दू तरह का है- पहिला है ‘तारीफ़’ अउर दोसरा ‘बुराई’. खोराकवा भी नोट कर लीजिए. सबेरे दू चम्मच मरीज का तारीफ़- नाश्ता के साथ, फिर खाना के बाद- किसी का बुराई का चार चम्मच अउर रात को खाना खाने के बाद फिर से दू चम्मच उनका तारीफ का पिलाते रहिये. दवाई का असर एक हफ्ता के अंदर देखाई देने लगेगा. कमाल त ई बात का है कि ई दवाई का कोनों साइड एफेक्ट नहीं है, अउर ओभरडोज का भी कोनों खतरा नहीं है.
केतना बार त ई दवाई आपको घर में, ऑफिस में लोग चुपचाप पिलाता रहता है, अउर आपको पतो नहीं चलता. एही से त ई दवाई पिलाने वाला को लोग चमचा कहने लगा. आदि काल से ई दवाई का परयोग भगवान अउर इंसान बराबर रूप से करते आ रहा है. ‘को नहीं जानत है जग में’ बोले बिना त ऊहो समुन्दर लांघने को तैयार नहीं हुए. कभी ध्यान से भजन का लाइन पर गौर कीजिएगा तो पता चलेगा कि सब ओही दवाई का पुड़िया है. अरे भाई जब ऊ परमपिता हैं, त उनको दवाई खिलाने का का जरुरत है. एगो सायर लिखे थे बहुत दिन पहले:
जानकार ये खुदा से कुछ न कहा
वो मेरा हाल जानता होगा.
लेकिन अब कोनों फायदा नहीं है, अब त ई दवइयो नशा बन गया है. अउर कोई भी अदमी ई नशा से अछूता नहीं है. एही ब्लोग्वे पर देखिये. बस ई पोस्टवा के बाद से, हर दस-दस मिनट पर देखने का मन करते रहता है कि का-का टिपिआया है लोग. जैसे जैसे नंबर बढ़ता जाता है, मन हरियर होता जाता है, अउर नमबरवा नहीं बढ़ा त बस तबियत खराब होने लगता है.
अब त आप ही लोग का आसरा है। बचा सकते हैं त बचा लीजिए. ज़िंदा रहेंगे त हमरी सिरीमती जी, आपको उनका सोहाग बचाने के लिए आसिरबाद देंगी, हमरी बचिया आपका एहसानमंद रहेगी, अउर हम आप लोगों का अइसहीं मनोगंजन... माफ कीजिए मनोरंजन करते रहेंगे. जय राम जी की!!

गुरुवार, 20 मई 2010

धन्यवाद!!

अब का बताएँ, इ पोस्टवा लिखला के बाद तुरते हमको पटना जाना पडेगा मालूमे नहीं था। और आप लोग का इतना प्यार मिलेगा इहो हम नहीं सोचे थे। सबसे पहले एक बार फिर सुमन जी से माफ़ी माँगते हैं की उनको हमारे कारण कोई तकलीफ उठाना पडा हो इसके लिए। काहे से कि कोई भी आदमी कोई व्रत लेता है तो उसको तोड़ना बहुते कठिन काम होता है। लेकिन हमको ख़ुशी है कि सुमन जी हमको इज्जत दिए और हमारे खातिर अपना व्रत तोड़ दिए।
आज एगो बात तो समझ में आइये गया है कि ईमान दारी का बहुते कदर है ज़माना में। हमको बिहारी का नाम से भी कुछ लोग इज्जत देता था, पहचानता था। लेकिन जब से हम अपना असली परिचय दिए तब से त हमारा इमानदारी के कारन भी लोग हमसे जुड़ गया है।
हम पटना में बैठ कर एकदम आदिम जुग में चले गए हैं। गर्मी चरम सीमा पे है, और बिजली नदारद। बस एकदम आदिम जुग का आदमी हो गए हैं। बस इ गर्मी में एक बतिया का ख्याल हमेशा आता है कि हमको तो घरवा में बैठकर भी गर्मी लगता है और हम एयर कंडीशन में आराम कर लेते हैं। का मालूम केतना मजूर रास्ता पर बोझा ढोता है, रिक्सा चलाता है और खेत में काम करता है।
चलिए आते हैं इतवार को तो जम के बतियाएंगे।

शनिवार, 15 मई 2010

N I C E

बचपन में एगो कहानी पढे थे, कि एगो राजा अपना मंत्री के साथ जंगल में सिकार खेलने जा रहा था. सिकार त नहीं मिला, राजा का कोनो तेज पत्थर स गोड़ कट गया. बेचारा राजा बहुते कस्ट में था. मंत्री पूछा, “का हुआ महाराज?”
राजा कस्ट से बोला, “अरे ! हमारा गोड़ कट गया है, अऊर एतना खून बह रहा है. तुमको देखाई नहीं देता है!”
मंत्री बोला, “NICE.”
अब त राजा का गुस्सा सातवाँ असमान पर पहुँच गया. गुस्सा में बोला, “ तुम अभी हमरा साथ छोड़कर चले जाओ, अऊर हमको कभी अपना मुँह मत देखाना.”
मंत्री बोला, “ NICE.” राजा को नमस्कार किया, अऊर चला गया.
अभी मंत्री गएबे किया था कि ओन्ने से जंगली लोग का झुंड आकर राजा को घेर लिया अऊर बोला कि ले चलो इसका बलि अपना देवी माँ को चढाएंगे. राजा परेसान. जब बलि देने का तैयारी पूरा हो गया त अचानक ऊ लोग देखा कि राजा का गोड़ कटा हुआ है. तब त बलि दूसित हो गया, ई सोचकर सब राजा को छोड़ दिया.
राजा जान बचाकर भागा त उसको मंत्री से भेंट हो गया. ऊ बोला, “ हमसे गलती हो गया भाई. चलो हम लोग महल चलते हैं. हमरे साथ त बहुत अनिस्ट होने से बच गया.”
मंत्री हँसकर बोला, “ एही से हम आपका गोड़ कटने पर NICE बोले थे.”
राजा पूछा, “ लेकिन जब तुमको हम निकाल दिए तबो तुम NICE काहे बोला ?”
मंत्री बोल, “ NICE इसलिए कि आपके साथे हम रहते त हमरा बलि पड़ गया होता.”

अब आप सोच रहे होंगे कि ई कहानी जे हर कोई पढा हुआ है, हम आपको काहे सुनाए. ऊ इसलिए कि आज का हमरा पोस्ट समर्पित है लोक संघर्ष के श्री सुमन को. हम त ई टी ट्वेंटी के नया खिलाड़ी हैं, एही से हमको मालूम नहीं कि कौन कारण से सुमन बाबू ई नाईस व्रत लिए बैठे हैं. लेकिन एक बात जो हमको समझ में आया है कि ऊ कानून के जानकार आदमी हैं, इसलिए ओही मंत्री का जैसा सोचते हैं.
पहिला बात, ई सराहना करना होगा कि ऊ कम से कम सभे पोस्टको देखते हैं. अऊर झुठो का बात लिखने से अच्छा ई समझते हैं कि नाईस लिख दें.
दुसरा बात, ई बाइनरी डिजिट्स का जमाना है. ‘जीरो’ चाहे ‘एक’. इनका भी एही सोचना होगा कि अच्छा लगेगा पोस्ट त नाईस लिखेंगे नहीं त बिना कमेंट दिए चले जाएंगे. बीच का त बतवे बनावटी है. असली चीज है NICE.बाकी सब बकवास..किलियर है!
तीसरा बात, कुछ लोग इनका ऊपर ई भी इल्जाम लगाया कि ऊ सीरिअस पोस्ट, चाहे दुःख का बात वाला पोस्ट पर भी NICE लिख देते हैं. ईहाँ पर NICE से उनका मतलब लिखने वाला का एक्स्प्रेसन अऊर कंटेंट से है.
चलिए ई त हमरा अनुमान है कि ऐसा नहीं त वैसा हुआ होगा. असली भेद त पता चलेगा ‘फ्रॉम हॉर्सेस माउथ’. अऊर उसके लिए हम सबको इंतज़ार करना पड़ेगा सुमन जी का NICE व्रत टूटने का.
आखिर में एगो अऊर कहानी बोलने दीजिए. एगो आदमी दिल्ली समझ कर इलाहाबाद में उतर गया अऊर सारा दिन लाल किला खोजते रहा. साँझ को एगो आदमी से पूछा कि भाई साहेब लाल किला कहाँ है, बताइएगा. जवाब में ऊ आदमी उल्टे पूछा, “ कब आए हो?” बेचारा नरभसा के बोला, “ आज सबेरे आए हैं.” बड़ा ठठा कर हँसा ऊ आदमी, अऊर बोला, “ हम एक महीना से कुतुब मिनार खोज रहे हैं मिलबे नहीं किया है. तुमको एक्के दिन में लाल किला देखना है.”
सहिए बात है, हम अभी जुमा जुमा आठ गो पोस्ट भी नहीं लिखे हैं अऊर चले हैं सुमन जी का NICE का अर्थ खोजने, जबकि बड़ा बड़ा टेस्ट प्लेयर लोग हार गया है. सुमन जी अब भेद खोलिए दीजिए. बहुत लोग आस लगाए है.

गुरुवार, 13 मई 2010

खुबसूरत अंधबिस्वास

जमाना चाहे केतना भी एड्भांस हो जाए, अंधबिस्वास खतम नहीं होता है. अऊर अंधबिस्वास भी अजीब अजीब तरह का पालता है लोग जिसका कोनो सिर पैर नहीं होता है. अब बताइए कि दही खाकर काम करने से ऊ काम सफल होता है, त सफलता में दही का हाथ है कि अदमी के मेहनत का! करिया बिलाई रस्ता काट दे त काम बिगड़ जाता है. अऊर कहीं बिलाइये का एक्सीडेण्ट हो जाए त कौन दोसी. घर से निकलते कोई छींक दिया त काम खराब. अऊर काम अच्छा हो गया तब?
अब केतना गिनाया जाए. जेतना समाज, ओतना अंधबिस्वास. कहाँ से सुरू हुआ, अऊर कब से चला आ रहा है ई सब, कोई नहीं जानता है. अब देखिए न, हम जोन अपार्टमेंट में रहते हैं, उसमें फ्लैट नं. 420 का नम्बर मिटा के भाई लोग 421 बना दिया है. अब सोचिए त, नम्बर 420 होने से कहीं अदमी दू नम्बरी हो जाता है का ? बाकी मन का भरम का कोनो ईलाज नहीं.
नम्बर से एगो अऊर बात याद आ गया. होस्पिटल में कभी देखे हैं 13 नम्बर बेड नहीं होता है. अरे भाई तेरह नम्बर का पावर एतना तगड़ा हो गया कि डाक्टर का काबलियत भी हार जाता है! कमाल है!! अब इम्तेहान में रोल नम्बर 13 हो गया,त पढाइए छोड़ कर बईठ थोड़े जाता है अदमी.
अब एगो मजेदार बात बताते हैं..सायद बहुत सा लोग को मालूम होगा. बाकी जो लोग नहीं जानता है उनको बताते हैं. चंडीगढ शहर में बहुत सेक्टर है, लेकिन 13 नम्बर सेक्टर नहीं है. इहो अंधबिस्वास का नतीजा है. लेकिन इसमें भी खूब सुंदर अंधबिस्वास छिपा है. जेतना सेक्टर है, उसका नम्बर एतना हिसाब से बइठाया हुआ है कि आप कोनो आमने सामने वाला दूगो सेक्टर का नम्बर जोड़िए त ऊ 13 का गुणक होगा. जैसे 44 सेक्टर का सामने 34 सेक्टर, दुनो का जोड़ हुआ 44+34=78 और 78= 13X6.
अब ई सब सेक्टर के नम्बर पर लागू होता है. केतना खूबसूरत गणित है...चाहे खूबसूरत अंधबिस्वास. 13 नम्बर सेक्टर नहीं है, मगर सभे सेक्टर के बीच मौजूद है.

सोमवार, 10 मई 2010

उत्तम बिद्या लीजिये...

आज त एगो बहुते अजीब खिस्सा हो गया. साम को तनी जल्दी में हमको घरे पहुँचना था. तनी सिरीमती जी को सॉपिंग करवाने का वादा कर लिए थे. हम मेट्रो से उतरे अऊर घरे जाने के लिए एगो रिक्सा पर बैठ गए. रोज हम मेट्रो से उतर कर पैदले घर चल देते हैं, घरवा बगले में है. रिक्सा पर हम बहुते कम बैठते हैं, जब तक एमर्जेंसी नहीं हो. हम सुरुए से ई बात के खिलाफ हैं कि अदमी बईठे अऊर अदमी खींचे. एकदम मन खराब हो जाता है. फिर सोचते हैं कि अगर सभे कोई एही सोचने लगा, त ऊ बेचारा रिक्सा वाला का पेट कइसे भरेगा, अऊर उसका परिवार कइसे चलेगा. सोचते हैं कलकत्ता में त अदमीए रिक्सा खींच कर दौड़ता है, ओहाँ हम रहते त हमरा त करेजा फट जाता.
खैर, जाने दीजिए, हम असली बतिया से भटक गए थे. त हम का कह रहे थे... हाँ!! आज एगो अजीब खिस्सा हुआ. हम रिक्सा पर बईठ गए अऊर चल दिए. अभी तनिके आगे बढे थे कि अचानक मोबाईल का रिंग सुनाई दिया. रिंगवा का अवजवो बदला हुआ था, अऊर हमरा पॉकेट में कोनो थरथराहट भी नहीं हुआ.
अभी हम एही सोचिए रहे थे कि आवाज सुनाई दिया, “हेल्लो”. तब हमको बुझाया कि ई हमरा नहीं, रिक्सा वाला का मोबाईल का अवाज था. हम मने मन मुस्कुरा दिए. बाकि इसके बाद जो बतिया ऊ रिक्सा वाला बोला, ऊ सुनकर त हमरा मुँह से हँसी छूट गया. रिक्सावाला बोला, “अभी रखो फोन. हम ड्राइभ कर रहे हैं. बाद में बात करेंगे.”
मगर तुरते हमको एहसास हुआ कि ई हम किसके ऊपर हँस रहे हैं. कहीं हमरा ई हँसी, खुद अपने ऊपर त नहीं है! अऊर ई बिचार आने के साथे हमरा माथा ऊ रिक्सावाला के आगे झुक गया. एतना सर्मिंदगी हमको जिन्नगी में कभी नहीं हुआ था. अऊर ई सर्मिंदगी अकेले हमरा नहीं था, सब पढा लिखा सभ्य अदमी का था.
ऊ रिक्सा वाला का दिमाग में ई बात था कि ड्राइभ करने के टाईम पर मोबाईल पर बात नहीं करना चाहिए. एकदम अनपढ अदमी था ऊ रिक्सावाला. लेकिन आज सड़क पर केतना पढालिखा लोग गाड़ी चलाते टाईम, मोबाईल पर बात करता है. कानून का दुहाई त सभे देता है, मगर जब कानून का पालन करने का बारी आता है, त पलायन कर जाता है.
आज एतना बढिया सिक्षा हमको मिला है कि हम जिन्नगी भर के लिए ऊ रिक्सावाला को गुरु मान लिए. अऊर एक मिनट में ऊ बड़ा बड़ा गाड़ी में घूमने वाला बड़ा अदमी से भी बड़ा हो गया.

शनिवार, 8 मई 2010

राजीब सुक्ला का दुख भरा दास्तान!!



आज भोरे भोरे जब हमरी सिरीमती जी हमरे लिए चाह बनाकर लाईं, त हाथ में “दैनिक जागरण” धरा कर चली गईं. चाह का चुस्की के साथ, हम अखबारो चाटने लगे, खासकर बिचलका पन्ना. ई पन्ना पर बड़ा बड़ा लोग का छोटा छोटा आर्टिकिल छपता है, जिसको पढकर असली खबर मालूम होता है. माने बाकी खबर त खबरे है, लेकिन अंदर का बतिया त एही बड़ा लोग बताता है. फलाना एग्रीमेंट भारत अऊर अमरीका के बीच हो गया – ई खबर है; अब ई बड़ा लोग, अखबार का बीच वाला पन्ना में बताता है कि ई एग्रीमेंट में केतना फायदा है केतना नोकसान.
आज का अखबार में बिचलका पन्ना पर परम आदरनीय राजीब सुक्ला जी का आर्टिकिल पढने के बाद त हमरा आँख में लोर भर गया. हमरी सिरीमती बोलीं, “ए जी! कल मदर्स डे है, एही से का आप माता जी को याद करके सेंटीमेंटल हो गए. कल बतिया लिजिएगा फोन से.”
हम बोले, “दुर् बुड़बक! हम त अपना माई को रोजे याद करते हैं अऊर रोजे मदर्स दे मनाते हैं. ई त राजीब भाई जे सांसद लोग का दुर्दसा बयान किए हैं, ऊ पढ़कर दुःख हो रहा है. अब समझ में आया भारत माता काहे एतना दुःखी है. जिसका बाल बच्चा एतना कस्ट में होगा, ऊ माई को कइसे खुसी हो सकता है.”
तनी आप लोग भी बिचारिए कि हमरा नेता लोग केतना तकलीफ में हैं,हम एक एक करके गिनाते हैं राजीब सुक्ला जी के सौजन्य से:
  • बेचारा एम्पी लोग को मात्र 16000 रुपया तनखा मिलता है, ई सरकारी किरानी से भी कम है- भला आम आदमी का तनखा आम आदमी का सेवक से बेसी कइसे! बहुत बेइंसाफी है!!
  • जब एम्पी लोग का बेतन का बात होता है त मीडिया आलोचना सुरू कर देता है – एकदम गलत बात है, कम से कम ई मुद्दा पर सब लोग पार्टी का भेद भूल कर एक सुर में बोलता है. सब लोग को ई बात का स्वागत करना चाहिए.
  • सन 1954 में खाली स्वतंत्रता सेनानी लोग एम्पी बनता था, त ऊ लोग कभी माँगे नहीं किया कि बेतन बढाइए, इसमें उनका कोनो रुचि नहीं था – सब जनता सुखी था, इसलिए नेतवन आलसी था. जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया.
  • मैथिली शरण गुप्त झांसी से एक हफ्ता का पूरी लेकर आते थे, ओही खाते थे अऊर रसोइया नहीं रखते थे – बासी पूरी खाकर कहीं देस सेवा होता है. जब तक मुर्गा नहीं खाकर सोचिएगा तब तक देस का भलाई का आइडिया कइसे आएगा दिमाग में. कबिता लिखने अऊर जनता का भलाई करने में फरक होता है.
  • एम्पी को कम से कम चार पाँच ठो गाड़ी चाहिए, बहुत भाग दौड़ करना पड़ता है – एकदम जायज बात। मेम साहेब को खान मार्केट, बेबी को दिल्लि हाट, बाबा को डिस्को जाने के लिए त गड़िया अलगे अलगे चाहिए, सब पर लाल बत्तीयो जरूरी है.
  • इसके आगे त राजीब भाई बहुत जेनुईन खर्चा गिनाए हैं, जइसे आने वाला लोग को चाह पिलाना, गरीब का ईलाज करवाना, बिआह सादी में आसिर्बादी देना – जेब्बात! जनता के सेवक होने का माने मुफत में सेवा करना त नहिंए है.
  • डेढ़ लाख फोन कॉल फिरी का है, बाकी लोग बाग एम्पी के घरे में जाकर फोन करता है, त ई लिमिटवो खतम हो जाता है अउर उपर से पइसो देना पड़ता है – ई त अन्याय है. दुनिया भर का पब्लिक फोन छोड़कर सारा जनता एम्पी साहेब के घर चला जाता है, त ऊ काहे भरे बिल. एही से त करोड़ों रुपया बकाया रहता है उनका उपर. ई पइसा जनता से बसुलिए, बेचारा नेता जी को काहे दोस देते हैं कि ऊ बिल नहीं भरते हैं.
  • नेता लोग को केवल 34 हवाई जात्रा साल भर में मिलता है, चुनाव छेत्र का दौरा में ऊ कब खतम हो जाता है पते नहीं चलता है. रेल जात्रा भी है,लेकिन उसके लिए सफर करना जरूरी है – तबो जनता चिल्लाता रहता है कि नेता जी खाली भोटे लेने आते हैं. 365 दिन में 34 हवाई जात्रा,माने हर दस दिन पर नेता जी अपना जनता का दुख देख आते हैं, अऊर लोग कहता है अएबे नहीं करते हैं नेता जी. रेल में सफर करना जरूरी है, ई बात का मतलब समझ में नहीं आया.पूछ कर बताएंगे.
  • नेता जी का इस्टाफ का बेतन भी इस्टाफे के हाथ में मिल जाता है, नेता जी का हाथ में नहीं मिलता है – बताइए जिसको जनता चुन के भेजा है उसका करेक्टर का ऊपर सक. नेताजी का हाथ में मिलेगा त ऊ खा जाएंगे का. उहो त इस्टाफे को देंगे, ऊ चोरा लेंगे ???
  • सांसद निधि का दू करोड़ रुपएवो जिलाधिकारी को मिलता है। नेता जी खाली बताते हैं कि कऊन जोजना में कइसे देना है – ई त हद्दे हो गया अबिस्वास का। जनता का पइसा, जनता का सेवक के हाथ में देने में का हरज है. अल्टिमेटली त ओही बताएंगे कि किसको देना है. अब ई लाठी से घोड़ा को घास काहे खिला रहे हैं जिलाधिकारी को देकर. सीधा नेता जी के कर कमल के द्वारा खिलाने दीजिए.

हमरा त करेजा फट गया उनका दुख भरा कहानी सुनकर. आँख खुल गया. आज तक हम का, सारा देस एही समझता था कि नेताजी बहुत ऐसो आराम में रहते हैं,करोड़ों रुपया डिक्लियर कर देते हैं एलेक्सन का टाईम में, लेकिन अपना पसीना का पइसा के लिए केतना बिनती करना पड़ता है. हम त बोले कि जाने दीजिए ई नेतागिरी, एतना कम तनखा में कोई खाक जनता का सेवा करेगा! अभिए रिजाईन करिए, अऊर कान पकड़िए कि कहिओ एम्पी का चुनाव नहीं लड़िएगा.
नेताजी बोले, “रिजाईन त हम करिए देते, लेकिन हमसे जनता का दुख देखा नहीं जाता.तनखा त हम बढवा लेंगे, लेकिन सेवा करने का भावना के साथ कम्प्रोमाईज नहीं किया जाता.”
हमरा मन एकदम से उनके चरनों में बिछ गया. आइए! सब लोग मिलकर प्रार्थना कीजिए कि उनका सुनवाई हो अऊर उनका बेतन बढ जाए. तबे भगवान करे, ऊ किसान जिसका आमदनी सालाना तीन हजार बताए थे (सम्वेदना के स्वर) नेता जी बढवा दें, नहीं त ऊ नरेगा वाला मजदूर साल में सौ दिन का 100 रुपया रोज का आमदनी से बेसी कमा सकेगा अऊर छः अदमी का परिवार पाल सकेगा. कम से कम ई बात त मानना पड़ेगा कि राजीब बाबू का मन में टीस है, तबे ई बात बोले हैं. नहीं त उनको का फरक पड़ता है, ई सब बेतन बढाने से..उनका त अपने उद्योग है, चैनेल है, अऊर बीसीसीआई का बोझ भी ढो रहे हैं बेचारे. सच्चो नाइंसाफी है... सोलह हजार रुपया महीना देकर, जनता का सेवा भी करवाइएगा, अऊर खून भी चूसिएगा. हाथ जोड़िए अऊर भगवान से बिनती कीजिए कि जईसे सात घर दुस्मन का दिन बहुरा, वैसे ई नेता जी का दिन भी बहुरे. जनता का दिन त अपने बहुर जाएगा.

शुक्रवार, 7 मई 2010

गुरु गोबिंद दोउ खड़े !!

हई देखिए! हम सोचिए रहे थे कि का लिखें… एगो कमेंटो आया था कि ई सब बतिया छोड़कर कुछ काम का बात लिखिए। लेकिन बुझाइए नहीं रहा था कि का लिखा जाए. हमरा गड़ियो फस्ट गेअर में चल रहा था. अचानके हमरे गुरुदेव आए, बगल में बइठ गए, अऊर ड्राइभिंग इंस्ट्रक्टर जईसा अपना साइड से गड़िया को टाप गेअर में ले गए. अब त हमरे सम्भाले पड़ेगा गाड़ी.

चलिए देखते हैं! आज का दुनिया में सतीस सक्सेना जी का जइसा अदमी बहुत कम पाया जाता है। सच पूछिए त ई साहेब आर. के. लक्ष्मण जइसन काम कर रहे हैं. एगो मामूली अदमी को पूरा देस में बिना बोले एगो पहचान देना मामूली बात नहीं है. हमरा जइसा लोग, जिसका न नाम, न ठेकाना, जे अपने को बेनामी डिक्लियर कर दिया है, का ऊपर पूरा एगो पोस्ट लिख देना अचरज का बात है. पहिले ऊ आम का फोटो वाला दूनो दोस्त का बारे में लिखे, अब हमरा बारे में. ऊ लोग के साथ भी हमरा कोनो मुकाबला नहीं है. हम त बस मन का बात लिखते हैं अऊर खरा बात लिखते हैं. अब पहचान बन रहा है कि नहीं, का पता. आप लोग जईसा पारखी अदमीए बता सकता है.

हमरा परसिद्धी का बारे में सतीस जी का बात सहिए है। लेकिन हम त साधारन लोग हैं, हमको न तो कमेंट का गिनती आता है, न स्थापित होने का लालच सताता है. जे दिन हमरा दोस्त लोग बोल देता है कि बेजोड़ लिखे हो, ऊ दिन हम अपने आप को गुलसन नंदा समझने लगते हैं. अ जे दिन कह दिया कि जमा नहीं, रात भर खाना छोड़कर गलती खोजने में लगा देते हैं.
एगो करेक्सन करना चाहेंगे। ई हमरा बोली को लोकप्रिय बनाने में लालू जी का बहुते बड़ा हाथ था. बाकी ई कमवा ऊ लोग को हँसाने के लिए, अऊर अपना लोकप्रियता के लिए करते थे. खैर, ऊ उनका सोच था, लेकिन इसी कारन ई बिहारी बोली को लोग जोकरई और हँसी का बिसय बना दिया. हम कोसिस कर रहे हैं कि इ बोली को अपना सही इज्जत मिल जाए, बस. लोकप्रिय का बात त हमरे मगजो में नहीं आता है कहियो. अब आप ही देखिए, ई बोली में हमरा बात पढकर, ओकरा बारे में कमेंटवा कोई नहीं देता है, बस मजाकिया बात कर के चला जाता है लोग.

अपनापन, सिस्टाचार और मधुरता का बात करके आप दिल छू लिए, हमरे नहीं दुनिया का सभ्भे बिहारी लोग का। कहबे किए थे हम कि पारखी अदमी चाहिए. अब ई त हमरा प्रदेस का दुर्भाग है कि नालंदा, वैशाली, पावापुरी, पटना साहिब, गया, मधुबनी जइसा जगह का होते हुए भी अशिक्षा का पर्याय बना हुआ है.

अंत में आप सिस्टाचार का बात किए हैं, जिसको सुनकर हमरा आँख में लोर भर गया है। सायद बहुते कम लोग होगा जो ई बात को स्वीकार करेगा. नहीं त आप सब लोग जानते हैं कि जो जगह hospitality के लिए जाना जाता है, उसको hostility के नाम से डिक्लियर कर दिया गया है. हम, अऊर हमरा जइसा न जाने केतना बिहारी दुनिया भर में एही कोसिस में लगा है कि हमरा मातृभूमि के माथा पर जो करिया टीका लगा है ऊ धो सकें.

हमरा पोस्ट पर कमेंट नहीं मिले, हमको तनिको दरद नहीं होता है। बाकी समाज में बिहारी लोग का ऊपर जेतना कमेंट होता है ओही करेजा पर बोझ मालूम होता है.

बुधवार, 5 मई 2010

गर्व से बोलो कि हम बेनामी हैं!!

आज कल ब्लॉग दुनिया में बड़ा बखेड़ा मचा हुआ है। लोग परेसान है कि बहुत लोग फर्जी ब्लोग बना लिया है। हमरो ब्लॉग पर पहिलके दिन कोई लिख गया था। हमको त बुझइबे नहीं करता है कि ई फर्जी का होता है. हम लोग त फर्जी माने दू नम्बरी बूझते हैं. त इसमें दू नम्बरी कहाँ से आ गया. अब हमको जो समझ में आया है, ऊ हम सूत जी महारज के मुखारबिंद से सुनकर आपको भी सुनाते हैं.

सबसे बड़ा खेला इहाँ नाम का है। जो आदमी अपना नाम लिख दिया, चाहे ऊ फर्जिये नाम काहे न हो, इमानदार माना जाता है. अऊर नाम न लिखला पर बेईमान और दू नम्बरी. अजीब हाल है. हम त समझते थे कि अपना मन का बात कहने के लिए ई जगह से बढ़िया कोनो जगहे नहीं है. लेकिन बतिया सब का कोनो मोले नहीं है. सब खेला है नाम का.

ऊ कहनिया त सुनबे किए होंगे आप लोग बचपन में, एगो राजा का बाल काटते समय उसके माथा पर दूगो सिंग देखाई दे गया. अब ऊ बाल काटेवाला परेसान कि का करे. केकरो बोलेगा, अऊर राजा को खबर लग गया, त मूड़ी कटवा देगा. नहीं बोलता है त उसका पेटे फट जाएगा. बेचारा जंगल में जाके एगो पेड़ के आगे बक दिया.

हम सब एहाँ ओही बिसाल बरगद का पेड़ के नीचे हैं। जरूरी बात एही है कि राजा के माथा पर सिंग है. आदमी का नाम नहिंओ कहिएगा, त बतिया बेनामी नहीं होगा. पेड़ का लकड़ी सारंग़ी, तबला अऊर हरमुनिया के मार्फत भी बात राजा तक पहुँचा देगा.

अब बताइए बेनामी वाला त बतिए खतम हो गया। असली बखेड़ा त नामे से सुरू होता है. बिहार में त नाम बताने के बादे खेला चालू होता है. पूरा नाम बताइए. पूरा नाम बता दिए त धीरे से पूछेंगे कि घर कहाँ हुआ, कौन जात हैं. अब देखिए, एक बार बेनामी से बचने के लिए जो नाम बताया ऊ फँसा. जेतने नाम बताएगा, ओतने झंझट में पड़ेगा ससुरा.

जे आदमी ब्लॉग बनाता है, ऊ कोनो न कोनो आँख,नाक, कान वाला आदमिए होता है, त बेनामी कइसे हो गया, चाहे फर्जी कइसे हो गया! हम जब फर्राटे से अंगरेजी बोलें त हमरा नाम, अऊर बिहारी बोलते बदनाम,बेनामी अऊर फर्जी। बहुत बेइंसाफी है. हम त आज एहाँ से सभे पढने वाला से हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि अपना माँ बाप का देखभाल कीजिए, घर परिवार को समेटकर चलिए, कोई जरुरतमंद का मदद कीजिए... त हमरा बात आप खाली एही से नहीं मानिएगा कि हमरा ब्लॉग पर हमरा नाम नहीं है. हँसकर गरिया दीजिएगा कि फर्जी आदमी है ई बिहारी काहे मानें इसका बात.

अगर अईसन बात है त हम बेनामीए सही। एही हमरा पहचान है। कोनो दिन दस बजे दिल्ली का सड़क पर निकल कर देखिए अऊर हो सके त अपना एअर कंडीसन गाड़ी का सीसा उतार कर देखिए, आपको रोड पर ढेर सा बेनामी आदमी देखाई देगा. ओही के बीच में हमहूँ नजर आ जाएँगे. खाली देखने अऊर पहचानने वाला नजर चाहिए. प्रनाम!

सोमवार, 3 मई 2010

मन का टीस

अभी तक त मजाके चल रहा था. लोग भी सोचिए रहे होंगे कि का करेक्टर है. लेकिन ई सब मजाक के पीछे, एक बहुते बड़ा मजाक छिपा है, जो सायद कोई देख नहीं पाता है. बिहारी होना अपने आपे में बहुत बड़ा मजाक बन गया था हमरे लिए. किसी के सामने हम अंगरेजी में बतियाते हैं त ऊ अदमी बहुत इम्प्रेस होता है हमसे, हमरे बात करने का तरीका से, हमरा जानकारी से. जाते जाते पूछता है कि आप कहाँ के रहने वाले हैं (आजकल त भारतबासी हैं बोलने से अदमी को लोग बिदेसी समझ लेता है, लोग का पहचाने बिहारी, बंगाली, मराठी हो गया है). बस खेला खतम. जइसहीं हम कहते हैं ‘बिहार’, उनका एकदम से एक्स्प्रेसनवे बदल जाता है. एक बार त हम ढीठ बनकर पूछिए लिए, “का हुआ! आपको बिस्वास नहीं हुआ, झटका लगा कि निरासा हुआ?” साहेब लजा गए, उनको लगा कि उनका चोरी धरा गया है.
अब त आदत हो गया है. कोई पुछबो करता है त हम ई नहीं कहते हैं कि बिहार के रहने वाले हैं, एक दम साफे कहते हैं कि बिहारी हैं. हमको का फरक पड़ता है, बाकी लोग का नजरिया तुरते बदल जाता है. बिहारी माने अनपढ, देहाती, असभ्य. अगर पढा लिखा मिल गया त जरूर चोरी से पास किया होगा, नहीं त जाली डिग्री लेकर आया है. देस का राजधानी में त लगभग गालिए के तरह इस्तेमाल किया जाता है बिहारी शब्द.
अब ई त बताने का कोनो फायदा नहिए है कि इसी बुड़बक प्रदेस ने बाबू राजेंद्र प्रसाद, बाबू जगजीवन राम, सतरोहन सिन्हा,सेखर सुमन, चित्रगुप्त, मनोज बाजपेई, बाबा नागार्जुन, दिनकर, रेनू जईसा बिभूती पैदा किया है.
हमरा उद्देस अभी भी कोनो बिहारी असोसिएसन बनाने का नहीं है. हम ईहो नहीं चाहते हैं कि ई पढने के बाद बिहारी लोग हमरा सुर में सुर मिलाए. हमरा बात पसंद आता है त कोई भी वेल्कम है इहाँ पर, नहीं त खाली बिहार के नाम पर जय राम जी की.
चलते चलते, पिछलका पोस्ट में एगो अंजान भाई जी का टिप्पनी का खुलासा करना चाहते हैं। भाई जी! एगो बतिआ हम बता दें कि अजय कुमार झा जी को हम नहीं जानते हैं. एकाध बार पढे जरूर हैं. कहीं उनका धोखा में हमको मत गरिया दीजिएगा. अभी अभी दोकान लगएबे किए हैं, आपका किरपा से ठीक चल रहा है, कहीं बंद करा दिए त बाल बच्चा भुखे मर जाएगा. अपका गोड़ पड़ते हैं. आते रहिएगा त खुसिए होगा हमको. तब तक प्रनाम!!