मंगलवार, 1 जनवरी 2013

इन्साफ का तराजू


अगर गिरिजेश राव जी का आह्वान नहीं होता त सायद हम ई पोस्ट नहीं लिख रहे होते. अभी साल २०१२ के जाते-जाते जउन घटना घटा है, उसके बाद नया साल का बधाई अऊर सुभकामना देने का मन नहीं किया. एही सुभकामना २०१२ के जनवरी में भी दिए होंगे अऊर ऊ बेचारी को भी दोस्त लोग बोला होगा – हैप्पी न्यू ईयर!! मगर उसके लिए नरक का तकलीफ से बढकर हो गया ई साल. का फायदा ई सुभकामना का. सब बिधाता का लिक्खा है त उसी के हाथ में छोड़ कर अपना काम करते हैं, जब ओही आकर सुभकामना देगा त मानेंगे कि सब सुभ होगा.

खैर, २०१२ जाते जाते सरकार के सम्बेदनहीनता का नमूना देखा गया, नेता लोग के मुँह पर कोनो कंट्रोल नहीं है ई बता गया, हमरा संबिधान का मौलिक अधिकार केतना खोखला है ई समझा गया अऊर देस का अदालत कइसे घोंघा के चाल से इन्साफ करता है, इहो समझ में आया. सवाल उठा कि हमारा न्याय ब्यबस्था कइसा होना चाहिए अऊर तत्काल एगो कमीसन बना दिया गया. सरकार अब तान कर सो सकता है अऊर कमीसन अपना काम करेगा. आमीन बोलिए, चाहे इंसा अल्लाह!! जब हो जाए तब एकीन करेंगे.

सबसे पहिला बात जो हमरे जइसा साधारण आदमी के मन में आता है, ऊ ई है कि क़ानून एतना कम्प्लिकेटेड काहे है भाई. हमरे ऊपर होने वाला अत्याचार को प्रोक्सी के माध्यम से कोनो आदमी कइसे समझा सकता है. हमको चोट लगा हो तो हमरा दर्द महसूस कराने के लिए हमको एगो ओकील चाहिए!! जब ऊ समझायेगा कि हमको दफा फलाना के अंतरगत चोट लगा है तब न्यायमूर्ति को समझ में आएगा कि चोट का इंटेंसिटी केतना है!! कमाल है. जब हम क़ानून के बिद्यार्थी हुआ करते थे, तब एक रोज किलास में एही बात अपना प्रोफ़ेसर साहब को बोल दिए. नतीजा आप सोचिये सकते हैं कि हमको किलास से बाहर निकाल दिया गया.

अमेरिका में कोनो आदमी को गिरफ्तार करने के समय उसको बताया जाता है कि कउन जुर्म में, कउन धारा के अंतर्गत गिरफ्तार किया जा रहा है. हमरे इहाँ त पहिले धरा जाता है तब धारा लगाया जाता है. कारन खाली एतना है कि साधारण आदमी के अधिकार का रक्छा के लिए बना हुआ क़ानून उसके भासा में हइये नहीं है. इहाँ तक कि पढ़ा लिखा आदमी के समझ से भी बाहर है. अब क़ानून बांचने के लिए गिद्ध लोगों के पास जाइए, जहाँ दुनो तरफ से गिद्ध लोग आपको नोचना सुरू करेगा. अऊर कहीं गलती से पीड़ित बलात्कार का सिकार हो तो बस समझिए हर सुनवाई में उसके साथ बलात्कार होना तय है. कभी कोनो न्याय ब्यबस्था को ई ध्यान नहीं आया कि महिला पुलिस इस्टेसन के तर्ज पर महिला अदालत बनाया जाय, जहाँ औरत न्यायाधीस, औरत वकील हो, जो कम से कम बयान को संतुलित रख सके अऊर बे-इज्जत होने वाला औरत के इज्जत का ख्याल कर सके.

क़ानून के बारे में बचपन से दू गो मोहावरा सुनते आ रहे हैं. सौ अपराधी भले छूट जाए, मगर एगो निरपराध को सजा नहीं मिलना चाहिए. निरपराध का त पता नहीं अपराधी को छोडने का काम का मालूम कब से चल रहा है. एगो आदमी को तो सारा जिन्नगी जेल में बिताने के बाद बताया गया कि ऊ केस जीत गया है अऊर ऊ निरपराधी है. बाह, कमाल का इन्साफ है. जेल से आजाद करने के बाद उसका जवानी, उसका परिबार से छूटा हुआ प्रेम कउन वापस करेगा, मी लॉर्ड!!

दोसरा मोहावरा है क़ानून में देर है मगर अंधेर नहीं है. इहाँ भी फस्ट हाफ पर अमल होता है. न्याय एतना न देर से होता है कि आदमी का सबर जवाब दे जाए. केतना बार त बेचारा फरियादी के मर जाने के बाद उसको न्याय मिलता है. कोनो आदमी उसके कब्र पर जाकर बोल आता है कि सत्यमेव जयते! अऊर बेचारा अपना कब्र में छाती ठोंक कर खुस हो जाता है कि हमारा आस्था बहुत मजबूत हुआ है देस के न्याय बेवस्था पर.

सरकारी आंकड़ा पर बिस्वास कीजियेगा त देस में पेंडिंग केस का संख्या कम से कम छौ अंकों में चला जाएगा. एही नहीं पाकिटमारी से लेकर हत्या तक का मामला एक्के इस्पीड से निपटाया जा रहा है. मी लॉर्ड, तनी सोचिये कि हस्पतालो में इमरजेंसी वार्ड होता है. सोचिए कि मरने वाला मरिज को रात में बोला जाए कि सबेरे दस बजे ओ.पी.डी. में आना. हद्द है.

मी लॉर्ड! इस्पीड बढ़ाइए. जउन बच्ची के साथ बर्बरतापूर्ण अत्याचार हुआ है, ऊ बेचारी त १०-१५ दिन भी नहीं ज़िंदा बची, अऊर उसका देह नोचने वाला सिकारी जानवर धराने के बाद भी क़ानून के कउन धारा के अंतर्गत सजा पायेगा ई सोचने में एतना टाइम लग रहा है, तब त बेचारी को अगिला जनम लेकर फिर से आना पडेगा इन्साफ के लिए.

फिलिम “इन्साफ का तराजू” में एही समस्या को बहुत बढ़िया से देखाया गया था. इहो बताया गया था कि मुजरिम को छोड़ देने के कारण ऊ दोबारा बलात्कार का कुकर्म किया. अब क़ानून ई बताए कि दोबारा वाला बलात्कार के लिए कउन दोसी है???

जब आदमी को भूख लगा होता है तब्बे खाना खाने संतोस होता है. न्याय जब देरी से होता है त भूख मर जाता है. मी लॉर्ड, माना के आपके आँख पर पत्ती बंधा हुआ है अऊर माथा पर नकली बाल लगाकर आप अपना चेहरा छिपाए हुए हैं.. मगर ऊ सब के नीचे देखिये कि आपके कान में रुई नहीं भरा हुआ है. आप बयान सुनते हैं, दलील सुनते हैं, मगर माई-बाप कभी उस लडकी का चीख आपको नहीं सुनाई देता है बैकग्राउंड में? देस में उठने वाला लाखों जनता का पुकार नहीं सुनायी देता है?

सायद खिस्सा रहा होगा कि एही देस में कोनो राजा खाली जंजीर हिलाने का आवाज सुनकर सुतला में उठकर चला आता था, ई सोचकर उसके परजा में से किसी को कोनो तकलीफ हुआ है अऊर उसको न्याय चाहिए!!