किरकेट का वर्ल्ड कप जीतने के बाद पूरा देस में किरकेट का हवा बह रहा है. फाइनल वाले रोज, हम पटना से चल दिए थे दिल्ली के लिए अऊर गाडी में बईठकर अपने मोबाइल पर मैच का मजा ले रहे थे. बाकी कसर चंडीगढ़ से चैतन्य जी अऊर दिल्ली से हमारी सुपुत्री पूरा कर रही थी. किरकेट का नसा हइयो है अजीब. जब भारत जीता तब हमारा गाडी इलाहबाद से पाहिले जमुना जी के पुल पर से गुजर रहा था. जैसहीं धोनी का छक्का लगा अऊर भारत जीता, पूरा गाडी में इतना जोर का हल्ला हुआ कि पूछिये मत. हमको बुझाया कि केतना सुतल आदमी डरे गिर गया होगा अपना बर्थ पर से. हमरा गाडी जमुना पार करके दारागंज इलाका से गुजर रहा था. देखकर लगा कि कोनो त्यौहार मनाया जा रहा है. सच्चो कहता है लोग कि आज देस में किरकेट धर्म बन गया है. फेसबुक पर भी ओही हंगामा था. मोबाइल से जेतना लिख सकते थे लिखे.
किरकेट का खेल के बारे में ई कहना कि हम दीवाना हैं ई खेल के, ओइसहीं है जईसे कहना कि लता मंगेशकर का आवाज़ बहुत मधुर है, सचिन बहुत अच्छा किरकेटर है, धोनी बेजोड़ कप्तान है, महाभारत कालजयी महाकाब्य है, अमिताभ बच्चन के आवाज में जादू है अऊर सेक्सपियर बहुत बड़ा नाटककार थे. मगर ई सच है कि खेल से दूर रहने के बावजूद भी किरकेट हम खेलते, देखते अऊर समझते थे. पिताजी फुटबाल के सौखीन थे अऊर ओही गुण उनकी पोती में समाया है. आर्सेनल का मैच देखते देखते इतना पगला जाती है कि लगता है कि टीवी में घुसकर खेलने लगेगी. देर रात अकेले मैच देखते हुए जोर जोर से चिल्लाते हुए गलती पर गुस्साती है. गुरुदेव के. पी. सक्सेना के इस्टाईल में हम बोल भी देते हैं कि टीवी के पीछे जाकर कान में काहे नहीं बोलती हो फाबरेगास को कि ठीक से गोल करे. हमको तो बुझाता है कि हमरे स्वर्गीय पिताजी का आत्मा उसके अन्दर परवेस कर गया है फुटबाल के मामला में.
खैर, खेल से तनी परहेज रहा है हमको. मगर खेल में केतना मौक़ा ऐसा आया है जो हमरे दिमाग में आज भी फोटो का जइसा बस गया है. १५ मार्च १९७५ का दिन था. मैट्रिक का आखरी पर्चा था हमारा, सब्जेक्ट याद नहीं. पिताजी इम्तिहान दिलवाने ले जाते थे अऊर दिन भर इस्कूल के मैदान में बैठकर किताब पढ़ते रहते थे, ट्रांजिस्टर पर गाना सुनते अऊर बाकी लोग से बातचीत करते रहते थे. उस दिन ऊ कमेंट्री सुन रहे थे. हम इम्तिहान देकर निकले तो असोक राजपथ पर टी.के. घोष एकेडेमी से पैदल चल दिए. पिताजी कान से ट्रांजिस्टर सटाए हुए कमेंटरी सुन रहे थे. कुआलालम्पुर में हॉकी का बिस्व कप फाइनल मैच चल रहा था, भारत अऊर पाकिस्तान के बीच. घमासान मचा हुआ था. अऊर जब हमलोग एलिफिसटन सिनेमा के पास पहुंचे, तो भारत पाकिस्तान को २-१ से हराकर विश्वविजयी बन गया. आझो तक अजित पाल सिंह, असोक कुमार, सुरजीत सिंह, असलम सेर खान, फिलिप्स का नाम याद है हमको. पिताजी के चेहरा पर जो खुसी हम देखे ऊ आज भी हमको याद है. मगर अफ़सोस एही बात का है कि उसके बाद भारत अऊर पाकिस्तान हॉकी के दुनिया से धीरे धीरे गायब हो गए.
एगो पत्रिका आता था “स्पोर्ट्सवीक”. इसलिए भी पसंद था कि इसका बिग्यापन हमरे हीरो फारुक इंजीनियर करते थे रेडियो पर. "एंड द बॉल इज ब्रिलियंटली हिट बाय फारुक इंजिनियर.' अऊर तब उनका आवाज आता था. 'वेल! आय एम् फारुख इंजिनियर. आय रीड स्पोर्ट्सवीक. डु यू?" जेतना हम उनके स्मार्टनेस के दीवाने थे, ओतने उनके खेल अऊर विकेट कीपिंग के. बस आने लगा घर पर स्पोर्ट्सवीक. अऊर हमरा परिचय हुआ खेल के दुनिया से. ओही साल विम्बलडन टूर्नामेंट में भी दिलचस्पी सुरू हुआ. १९७५ में आर्थर ऐश पुरुषों के अऊर बिली-जीन किंग महिलाओं के सिंगल्स की चैम्पियन बनी. जैसे वर्ल्ड कप हॉकी जीतने के बाद मैदान पर बेहोश होकर गिरने वाले वी. जे. फिलिप्स का फोटो हमारे दिमाग में बसा है, ओइसहीं आर्थर ऐश अऊर बिली-जीन किंग का ट्रॉफी लिए हुए फोटो आज भी याद है.
कलकत्ता में हमारे ऑफिस के बगल में टेनिस का मशहूर “साउथ क्लब” था. रईस लोग का खेल कहा जाने वाला टेनिस खेलने के लिए प्रैक्टिस करने रोज हम बहुत सा साधारण घर का बच्चा लोग को देखते थे. एही मैदान पर प्रेमजीत लाल , जोयदीप मुकर्जी, रामनाथन कृष्णन, अमृतराज बन्धु, लेंडर पेस, महेश भूपति खेलते रहे अऊर केतना डेविस कप का टूर्नामेंट आयोजित हुआ. टेनिस खेलने वाला हर बच्चा एही सपना लिए खेलता कि एक दिन ऊ भी विजय अमृतराज या लेंडर पेस बनेगा. भगवान ऊ सपना पूरा करे.
आज भी जहां नोएडा में हम रहते हैं, हमारे घर के पीछे क्लब में लोग को टेनिस खेलते हुए देखते हैं. लेकिन कभी हाथ आजमाने का मौक़ा नहीं मिला. मगर पिछ्ला एक महीना से टेनिस ऐसा लगा है हमरे हाथ से कि जाने का नाम नहीं ले रहा है. डॉक्टर का कहना है कि “टेनिस एल्बो” हो गया है. इस बीमारी से तो हमरा परिचय सचिन के माध्यम से था, अपना सचिन तेंदुलकर. मगर कहाँ ऊ, कहाँ हम. दर्द जब बर्दास्त से बाहर हो जाता है तो हम सोचते हैं कि ई कस्ट हमको काहे दिए भगवान्. अऊर जवाब में आर्थर ऐश याद आते है. जिनको एच.आई.वी. संक्रमित खून दिए जाने के कारण एड्स का बीमारी हो गया था और उनका मौत हो गया. कोई उनसे चिट्ठी लिखकर पूछा कि भगवान् आपको ही इस बीमारी के लिए क्यों चुने तो उनका जवाब था-
"दुनिया में ५० मिलियन बच्चे टेनिस खेलना शुरू करते हैं. उनमें से सिर्फ ५ मिलियन खेलना सीख पाते हैं. केवल ५ लाख प्रोफेशनल टेनिस के स्तर तक पहुँचते हैं और ५० हज़ार सर्किट में आते हैं. ५००० खिलाड़ियों को ग्रैंड स्लैम खेलने ला मौक़ा मिलता है और सिर्फ ५० विम्बलडन तक पहुंचते हैं. आठ क्वार्टर फाइनल, चार सेमी फाइनल और सिर्फ २ फाइनल तक पहुंचते हैं. जब मैंने हाथ में विबल्दन ट्रॉफी उठा राखी थी तब कभी नहीं पूछा कि भगवान सिर्फ मैं ही क्यों!! तो फिर आज इस असहनीय तकलीफ में क्यों पूछूं कि मैं ही क्यों!!”
खेल खेल में बदिया संस्मरण लिख गए......
जवाब देंहटाएंशिकायत का हक उसी को है जिसके हाथ बार बार उसके धन्यवाद में उठें हों।
जवाब देंहटाएंचिंता न करे सलिल भाई, फिज़ियोथैरेपी चालू रखिये,ये काम करेगी।
चैतन्य आलोक
रोचक संस्मरण.
जवाब देंहटाएंआर्थर ऐश की कही बात ज़िन्दगी का सार है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बातें बतलाते हो सलिल भाई.
ब्लॉग पर कोइ गूंद बूँद चिपका रखा है आपने क्या?
माऊस आगे ही नहीं बढ़ता.
badhiyaa sansmaran
जवाब देंहटाएंयादों के गलियारे से निकाल कर शब्द खूबसूरती से यहाँ बिछा दिए हैं आपने बहुत ही अच्छा लगा पढ़ना. इतना खूबसूरत लिखने वाले हाथ जल्दी ही स्वस्थ हो जाएँ यही कामना है.और हमें ऐसे संस्मरण पढ़ने को मिलते रहें.
जवाब देंहटाएंhaya.....ye desi sansmaran hai........
जवाब देंहटाएंarthar aesh....ki sikh.....bhoolnewali nahi hai...
kafi gap kar diye hain aaj kal........
pranam.
वाह मेरे ब्लॉग रत्न ...
जवाब देंहटाएंअब सरकार सचिन को भारत रत्न दे ना दे वो जाने ... हमारे लिए तो आप है ब्लॉग रत्न !!
मुबारक हो !!
अपना ख्याल रखिये ... अभी बहुत लम्बी पारी खेलनी है आपको ...
अपने अंदाज़ में बढ़िया संस्मरण लिखा है...
जवाब देंहटाएंआर्थर ऐश का ये कथन पढ़ा था कहीं...और मन श्रद्धा से भर गया था...अगर सबके सोचने का तरीका ऐसा ही हो...फिर हर तकलीफ छोटी लगे.
आपके एल्बो के शीघ्र ठीक होने की शुभकामनाएं
किरकिट के बार में आपजो लिखें हैं समझिये हमरे दिल की बात लिख दिए हैं....हम दुई दिन याने जब भारत और पकिस्तान का खेला था और भारत और श्री लंका का फायनल मैच था...अपने आपको घर का कमरा बंद कर लिया ना कोई टीवी ना कोई नेट ना फोन...चुपचाप कमरा में बंद कुछ पढ़ते रहे और दोनों बार कोलोनी में चले पटाकों के चलने के बाद ही हँसते नाचते कमरे के बाहर निकले.....फिर सब के साथ मिल के नाचे और रात तीन बजे तक हाई लाईट देखते रहे...दोस्त लोग बोले भाई लगता है तुम मेंटल हो गए हो.. .अब क्या बताये हरकत तो हमारी मेंटल जैसी ही थी...लेकिन हम सोचे थे के अगर हम ऐसा किये तो भारत जरूर जीतेगा...कभी कभी किसी बात का कोई लाजिक नहीं होता बस हो जाता है सो हो गया...
जवाब देंहटाएंकिरकेट से हमरा घनघोर प्रेम है अब साठ साल की उम्र में भी कोलोनी के क्रिकेट क्लब में बच्चों के साथ टेनिस बाल से क्रिकेट खेलते हैं...दुई बार हाथ की ऊँगली में फ्रेक्चर करवा बैठे हैं और न जाने कितनी बार घुटने रगड़वा बैठे हैं लेकिन फिर भी रोज सुबह सात बजे मैदान पहुँच जाते हैं और साढ़े आठ बजे तक खेलते हैं...रविवार को तो बारह बजे तक...जिस दिन किरकिट नहीं होता लगता है जैसे कुछ कमी रह गयी जीवन में...ई खेल पूरा भारत को एक सूत्र में पिरो दिया है...और कोई ऐसा करिश्मा नहीं है जिसमें देश का हर नागरिक इतनी शिद्दत से जुड़ता हो...ई बहुत बड़ी बात है...
टेनिस एल्बो की पीड़ा क्या होती है हम जानते हैं...हम बिना टेनिस खेले ही इस पीड़ा से गुज़र चुके हैं...सिर्फ हड्डी में इंजेक्शन खाना से बच गए वर्ना बाकी सब तकलीफ उठा लिए हैं इसके कारन...इस के दर्द से आपको तुरंत निजात मिले येही प्रार्थना करते हैं इश्वर से...
नीरज
ट्रेन और क्रिकेट, गजबै कॉम्बिनेशन है।
जवाब देंहटाएंbato bato me gahree baat .......ye hee andaaj hai aapka .Chaitnya kee
जवाब देंहटाएंsalaah par gour farmaiyega.......
हमें तो लगता है आपको यह टेनिस खेलने से नहीं ब्लाग पर टेनिस खेलने से हुआ है। खैर जो भी है जल्दी ही उससे छुटकारा पा लें।
जवाब देंहटाएंकिरकिट के बहाने आपका खेल प्रेम पता चला।
रोचक उत्साह वर्णन!!
जवाब देंहटाएंलगता है सलिल भाई हर विद्या में निपुण है। शुभकामनाएँ!!
आपके आलेख की शैली और भाषा की मिठास एक से अधिक बार पढ़ने के लिए विवश कर देती है।
जवाब देंहटाएंआनंद आ जाता है आपको पढ़कर।
के.पी.सक्सेना जी का नाम पढ़कर अच्छा लगा।
आर्थर ऐश का जीवन चिंतन अनुकरणीय है. टेनिस एल्बो को कैसे भी करके ठीक करिए भाई ..
जवाब देंहटाएंक्या किसी चोट लगने के कारण यह समस्या हुई है ? अगर नहीं तो रस टोक्स- ३० रात को सोते समय लें ! अगर पास में कोई होमिओपैथ है तो उसे दिखाएँ एक सप्ताह में ठीक हो जाओगे !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
ऐसी रोचक याददाश्त कि बस वाह.
जवाब देंहटाएंखेल के साथ साथ आधुनिक जीवन शैली के खेल का भी कीमत है ये टेनिस एल्बो ... अब थोडा पारंपरिक जीवन शैली अपनाइए... कंप्यूटर पर कम समय बिताइए... शीघ्र ही आप स्वस्थ हो जायेंगे.... इन्ही कामना के साथ...
जवाब देंहटाएंरोचक संस्मरण
जवाब देंहटाएंअपनी सेहत का ख्याल रखिये अभी हमे बहुत काम है आपसे
लीजिये टेनिस एल्बो के बहाने तो असभी आप को ब्लॉग से दूर रहने की सलाह दे रहे है ये ठीक नहीं है हम लोगो के लिए इसलिए केवल चैतन्य जी की सलाह पर ध्यान दीजिये | क्रिकेट के दीवाने तो हम भी है हाई स्कुल के बोर्ड के इम्तहान के एक दिन पहले वार्ड कप का पूरा फ़ाइनल देखा किताब सामने रख कर जबकि उसमे भारत खेल ही नहीं रहा था | अब तो क्या कहा जाये बिटिया रानी के आगे सब चीजे दुसरे नंबर पर ही आती है पर हा उनको भी क्रिकेट का आधा दीवाना तो बना ही दिया है और चार साल की उम्र में ही सचिन और धोनी को पहचानती है और इम्पायर के सारे इशारो का मतलब भी समझती है | और कभी भी पूछिये की मैच कौन जीतेगा यदि बताये गए नाम में भारत है तो जवाब वही होगा |
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी बात कह दी \जितने एक जुट होकर विश्वकप की ख़ुशी मनाई भारतीयों ने यही एक जुटता अन्य क्षत्रो में भी बनी रहे तो बहुत साडी समस्याए हल हो सकती है |
जवाब देंहटाएंसुंदर पोस्ट सुन्दर संस्मरण के साथ |
khel khel men aap to aisa sab likh diye hain ki dehiye jhanjhna gaya...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत्ते बढियां हिसाब किताब लिख दिए आझ तो!!!!वैसे इस बार का बल्ड कप से हमरा भी दू थो याद तो जुड़िये गया है! पहला की हम बिदेशी धरती पर थी जीत के समय और दोसरा हम अपना दोस्त के साथ अमर्जेंसी में थी उसका अपेंडिक्स का आपरेशन कराने के लिए....अभी भी ऊ अस्पताले में है....जल्दी ठीक हो जाए हमरा दुआ है...बेचारा अपने घर परिबार से दूर है...
जवाब देंहटाएंराउर भाषा-शैली हमार मन के तार के झंकृत कर जाला।
जवाब देंहटाएंऑफिस से आने के बाद फोन करता हूँ.
जवाब देंहटाएंवैसे, आर्थर ऐश ने जो बात कही थी उसे मैं पढ़ चूका था...कहीं किसे फेसबुक अपडेट में या कहीं और...:)
सेहत का खयाल रखिये भाई साहब!
जवाब देंहटाएंजो नबर वन होता है वह बड़ी बड़ी बाधाएं पार करके बड़े बड़े दर्द सह करके नम्बर वन बनता है।
जवाब देंहटाएंअब जो ब्लॉगिंग में भी नम्बर वन बने हैं त एतना त सहना ही पड़ेगा न बड़े भाई।
और ई किरकेट के रास्ते बहुत से गलियारे में घुसे और जब निकले तो दर्द से परेशान अपका सामना हुआ।
जवाब देंहटाएंहम तो शुभकामना ही कर सकते हैं कि जल्द से जल्द ठीक हो जाएं।
दो सलाह भी पढी, एक होम्योपथ और दूसरा फिजियोथेरापी की।
आजमा कर देखिए, शायद लाभ हो।
भगवान मैं ही क्यों ? उत्तम !
जवाब देंहटाएंbahut acchha sansmaran. apne dard ko jyada laad mat dijiyega aur uska swagat kuchh ilaz se karvaiyega varna jo mehmaan ban kar aaya hai sadasye ban kar baith jayega aur abhi jo aap kah rahe hain bhagwan me hi kyu ? tab kahenge...athithi tum kab jaoge ?
जवाब देंहटाएंbe careful.
क्या बड़े लोगों वाले शौक पाल लिये हैं आपने? जल्दी से ठीक होकर फ़िर से चौके छक्के मारिये मास्टर-ब्लास्टर की तरह से।
जवाब देंहटाएंअरे तभी... मैं सोचूँ कि ब्लाग सूना-सूना क्यों है ।आपकी रचनाएं व टिप्पणियाँ आती रहनी चाहिये ।
जवाब देंहटाएंसलिल भाई,
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य के प्रति सावधानी सहित, जब कायिक वेदना में समता भाव आता है तो मस्तिक्ष सूचनाएं देकर शारिरीक क्षमताएं बढा देता है। और हम चमत्कारिक रूप से स्वस्थ हो जाते है।
शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएँ॥
रोचक संस्मरण ...
जवाब देंहटाएंगंभीर जटिल असाध्य बीमारियों या एनी किसी तकलीफ का सामना करने वाले पीड़ितों के लिए aआर्थर का यह कथन बहुत प्रेरक साबित हुआ है ...
शीघ्र स्वस्थ्य लाभ करें !
रोचक संस्मरण
जवाब देंहटाएंअपनी सेहत का ख्याल रखिये
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंमाँ दुर्गा आपकी सभी मंगल कामनाएं पूर्ण करें
sportsweek की कुछ पुरानी प्रतियां पढ़ी हैं मैंने भी घर में। और आर्थर ऐश की बात को कौन खिलाडी/खेलप्रेमी नहीं जानता।
जवाब देंहटाएंसंस्मरण कितना कुछ पढने वाले के मन से बहा लाते हैं न, वरना खेल पर कभी कुछ नहीं ही बोलूं ये कोशिश रहती तो है। :)
आज सुबह ही ये देख रहा था, संभवतः आप देखना चाहें या देख ही रखा हो:
http://www.youtube.com/watch?v=EDgVske63cY
हाँ, शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करिए।
शुभकामनाएँ
Maza aata hai hamesha aapka likha padhke!! Bahutehee badhiya!
जवाब देंहटाएंTennis elbow zaroor theek hoga! Ye koyi migraine thode hee hai,jo gale pade to ta-umr saath nibhaye!
aadarniy bhai ji
जवाब देंहटाएंkya kamaal ka likhte hain aap.aur shbdo ka chnav to yun chun kar karte hain jise ma saraswati ne khud hi aapki kalam pakad rakkhi ho. bahut hi rochak avam behatreen sansmaran
hardik badhai
sadar dhanyvaad
poonam
बेहतरीन...आनन्द आ गया.
जवाब देंहटाएंचेचक के टीका का छापा और किरकेट दुनिया भर में फैले भारतीय लोगों की पह्चान है हमारी समझ में .
जवाब देंहटाएंआद. सलिल जी,
जवाब देंहटाएंसंस्मरण के बहाने बहुत कुछ कह जाते हैं आप और वो भी इस अंदाज़ में जिसका कोई ज़वाब नहीं !
आपके हाथ का दर्द जल्दी ठीक हो जाय,यही शुभकामना और ईश्वर से प्रार्थना है !
बढियां, मुला हम ता जब से हॉकी का मर्सिया सुना किरकेट भी छोड़ दिए !
जवाब देंहटाएंसलिल भाई, हम भी स्पोंडीलाइटिस के कारण दायें हाथ में दर्द से परेशान थे...अब जा कर राहत है. आप को भी जल्द राहत मिले और आप धुआंधार लिखते रहें...यही कामना.
जवाब देंहटाएंअरे जब भारत ने कप जीता हम भी चन्डीगढ मे थे। और ये जानकर अच्छा लगा कि आप नोयडा मे रहते हो मेरी बेटी ने भी नोयडा मे घर लिया है 2-3 माह तक शिफ्ट कर लेंगे तब आपसे भी मिलना होगा और अपने लिये तो क्रिकेट कप से कम नही होगा वो दिन। बस तैयार रहें मेहमानवाजी के लिये। बहुत बहुत शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंsalil aaj kahee comment me pada ki body dard ka godam banee huee hai...ab kaise ho.....?
जवाब देंहटाएंphysiotherapy bahut aur niymit tour par jarooree hai.
Take care.......
Wish you speedy recovery .
जवाब देंहटाएंअच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ,बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर आपका स्वागत है.
रामजन्म का भी सादर बुलावा है आपको.
आदरणीय सलिल सर,नमस्कार.देरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ. पिताजी काफी अस्वस्थ चल रहे थे सो उनके इलाज में काफी व्यस्त रहे.आपका आलेख पढ़ा.क्रिकेट विश्व-कप की जीत के जश्न का जो वर्णन आपने किया उसका हमने यहाँ दिल्ली में साक्षात् मजा लिया.आपने खेल-खेल में जो दर्द बयां किया उससे मन थोड़ा विचलित हो गया.इश्वर से कामना है कि आप सीघ्र स्वस्थ-लाभ करें.सदा की भांति इसबार भी काफी अनछुए पहलुओं से दो-चार होना बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंवर्ष भर वैचारिक विचरण की बधाई!!
जवाब देंहटाएं__________________________________
निरामिष: अहिंसा का शुभारंभ आहार से, अहिंसक आहार शाकाहार से
अउर भारत जीत गया बहुत मजा आया थोड़ी बहुत भोजपुरी समझ मे मुझे भी आती है और थोड़ा सा बोल भी लेता हूँ धन्यवाद अच्छी जानकारी के लिए
जवाब देंहटाएंहम तो रतिया मे काम करत हे तोहे तो सुत गईल हो काम एशन अहे कि सुतेक मिलत नाही 24 मे 4 ठो घटा सुतत हे तनीक हम मोबाइल वा से देखत हेन इसलिए पढ़ा ओर लिख दिया धन्यवाद भाई साब गुसा मत करना हमारी बात पे एसे मन मे आया तो लिख दिया है [राजस्थान ]
बचपन से छोटी जगह पर रहे हैं , ऊ जमाने मा किडनैपिंग का धंधा भी बहुत चलता था हमारे औरैया में , तो पिता जी घर से बाहर ज्यादा खेले खातिर जाये नहीं देते थे , लेकिन देख-देख के किरकेट का शौक हमको भी बहुत बुरा लगा , जाऊने दिन से सचिन खेलना कम किया है , हमरा तो देखना भी कम हुई गया ,
जवाब देंहटाएंआज भी कुछ मैच का मलाल रहता है , जैसे २००३ विश्व कप में पाकिस्तान के खिलाफ सचिन का ९८ पर आउट होना , उसी सीरीज में सचिन का फ़ाइनल में ४ रन पे आउट होना और इंडिया का हार जाना और २०१० में सचिन का ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ १७५(शानदार - मेरी याददाश्त में सचिन की दूसरी सर्वश्रेष्ठ पारी , पहली पाकिस्तान के खिलाफ ९८ रन) पर आउट होना और उही मैच माँ इंडिया का २ रन से हारना |
सादर