रविवार की सुबह मेरे लिए अमूमन दोपहर को होती है. सोकर उठा तो घर में मेहमानों की संख्या अधिक होने के कारण दोनों गुसलखाने बंद थे. लैपटॉप खोलकर बैठ गया और फेसबुक पर सबसे पहली खबर जो मिली वह थी - अदम गोंडवी नहीं रहे. यहीं से कुछ समय पूर्व किसी ने उनकी बीमारी, साधनों का अभाव और प्रशासन द्वारा उपेक्षा का समाचार मिला था. आज वो घड़ी भी आ गयी जिसे टाला नहीं जा सकता था. एक पुरानी कहावत है कि मनुष्य मृत्यु से नहीं – मृत्यु के प्रकार से डरता है. अदम गोंडवी साहब के साथ भी ऐसा ही हुआ. लेकिन वो एक स्वाभिमानी इंसान थे, जब बुलावा आया तभी गए “खुदा के घर भी न जायेंगे बिन बुलाये हुए” वाले अंदाज़ में.
इनसे मेरा पहला परिचय १९८६-८७ में हुआ था. पत्रिकाओं में दो रचनाओं के बीच छोटे से कॉलम में कोइ कविता या गज़ल छापने का रिवाज़ तब भी था. ऐसे ही एक कॉलम में अदम गोंडवी साहब की गज़ल मैंने पहली बार पढ़ी
काजू भुनी पिलेट में, ह्विस्की गिलास में,
उतरा है रामराज विधायक निवास में!
और बाद के शेर ऐसे कि जैसे हाथ में लें तो फफोले निकल आयें और ज़ुबान पर रखें तो मुंह जल जाए. तब तक दुष्यंत कुमार की गज़लें नसों में खून की गर्दिश तेज कर देती थी. लेकिन इस एक गज़ल ने जैसे आग लगा दी. तब इंटरनेट वगैरह की सुविधा न थी. न शायर के बारे में जान सका – उसके रचना संसार के बारे में. लेकिन दिमाग के किसी कोने में यह शायर घर कर गया.
घुटने तक मटमैली धोती, बिना प्रेस किया मुचड़ा कुर्ता-बंडी और गले में मफलर... यह हुलिया कतई एक शायर का नहीं हो सकता. और अगर यह कहें कि यह हुलिया एक मुशायरे के रोज एक शायर का है तो आपको ताज्जुब होगा. ऐसे शख्स थे जनाब राम नाथ सिंह उर्फ अदम गोंडवी. मुशायरों में इनकी शायरी पर जितनी वाह-वाह होती रहे, उनके चहरे से कभी ऐसा नहीं लगा कि उन्होंने कोइ बड़ी बात कह दी हो. आज जब किसी शायर को, शेर के वज़न से ज़्यादा, खुद की एक्टिंग से शेर में असर पैदा करते देखता/सुनता हूँ, तो लगता है कि अदम साहब की सादगी ही उनका बयान थी. जो शख्स भूख पर शायरी करता हो, उसने भूखे रहकर वो दर्द महसूस किया है, जो उसके बयान में है.
सही मायने में कहा जाए तो उनकी पूरी शायरी उनका अपना अनुभव था. साहिर साहब ने कभी खुद के लिए कहा था कि
दुनिया ने तजुर्बात-ओ-हवादिस की शक्ल में,
जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूँ मैं.
और अदम साहब की शायरी में भी वही दिखता था. साहिर साहब को तो रूमानियात के भी अनुभव होंगे, इसलिए रूमानी शायरी भी कर लेते थे, लेकिन अदम गोंडवी साहब के लिए तो शायद वह भी अनुभव न रहा होगा. उनका तो कहना था कि
ज़ुल्फ़, अंगडाई, तबस्सुम, चाँद, आईना, गुलाब,
भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इनका शबाब.
देश की आज़ादी के दो महीने बाद (२२ अक्टूबर १९४७) पैदा हुए राम नाथ सिंह को दिखा होगा कि मुल्क आज़ाद नहीं हुआ है. या जिसे हम आज़ादी कह रहे हैं वह एक ख्वाब है जो सारी जनता को दिखाया जा रहा है, जो एक अफीमी नींद में बेहोश सो रही है. एक जागा हुआ शख्स था वो जिसे दिखती थी भूख, बेरोजगारी, इंसानों-इंसानों में फर्क, हिंदू-मुसलमान के झगड़े, वोट की राजनीति, मजदूरों का दमन, औरतों पर अत्याचार, समाज में बढ़ता शोषण. ऐसे में राम नाथ सिंह सोये न रह पाए, नशा टूटा और वो अदम बनकर लोगों को बेहोशी के आलम से निकालने को गुहार लगाने लगे.
बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले आती है ऐसे मोड पर इंसान को.
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महल से झोपड़ी तक एकदम घुटती उदासी है,
किसी का पेट खाली है, किसी की रूह प्यासी है.
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वो जिसके हाथ में छाले हैं, पैरों में बिवाई है,
उसी के दम पे रौनक, आपके बंगलों में आई है.
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जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिज़ाज
उस युवा पीढ़ी के चहरे की हताशा देखिये.
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मज़हबी दंगों के शोलों में शराफत जल गयी,
फन के दोराहे पे नंगी द्रौपदी की लाश है.
जहां दुष्यंत की गज़लें एक मद्धिम आंच की तरह धीमे-धीमे सुलगती है, वहीं अदम गोंडवी साहब की गज़लें एक लपट की तरह हैं.
गांधी जी ने कहा था कि तुम कोइ भी निर्णय लेने से पहले देश के एक सबसे कमज़ोर व्यक्ति के विषय में सोचो कि इस निर्णय से उसका कितना फायदा हो पाएगा.
पता नहीं देश के रहनुमाओं ने उसपर गौर किया या नहीं, पर काश अदम गोंडवी साहब की ग़ज़लों का मजमुआ योजना आयोग के पास होता. आज जब वो अज़ीम शायर हमारे बीच नहीं है, उसकी जलाई हुई मशाल मौजूद है.
ताला लगाके आप हमारी ज़ुबान को,
कैदी न रख सकेंगे ज़ेहन की उड़ान को.
मौत ने भले ही उनकी ज़ुबान पर ताले डाल दिए हों, उनका सवाल कभी खामोश नहीं होगा.
आज उनकी मौत पर यह भी नहीं कह सकता कि परमात्मा उनकी आत्मा को शान्ति दे, क्योंकि उनकी आत्मा को शान्ति मिलनी होती तो इसी दुनिया में मिल गयी होती!
सलाम।
जवाब देंहटाएंverma ji,
जवाब देंहटाएंbahut sundar aur saarthak post, aabhaar sweekaaren.
काजू भुनी पिलेट में, ह्विस्की गिलास में,
जवाब देंहटाएंउतरा है रामराज विधायक निवास में!
बहुत पहले पढ़ा था यह, पर पता नहीं था कि गोंडवी साहब ने लिखा है, आज पत
ा चला है तो गोंडवी साहब नहीं हैं। विनम्र श्रद्धांजलि।
आपके पोस्ट से ही जान पाया। रामनाथ सिंह जैसे जनकवि बिरले ही होते हैं। सच्ची श्रद्धांजलि तो उनके लिखे को और पढ़कर, उनके बताये रास्ते पर चलकर ही दी जा सकती है।
जवाब देंहटाएंभूख है पर भूख में आक्रोश वो दिखता नहीं
सोचता हूँ आज कोई ऐसा क्यूँ लिखता नहीं!
..आपने संक्षेप में उनकी लेखनी से रू-ब-रू तो करा ही दिया। कविता कोष में भी उनको तत्काल पढ़ा जा सकता है।
कुछ लोग जहां कहीं भी रहें अपने अमिट निशान छोड़ते हैं ...वे भी ऐसे ही थे !
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि और इस पोस्ट के लिए आपका आभार सलिल भाई !
गोंडवी साहब की एक गज़ल जो मुझे बहुत अच्छी लगती है...
जवाब देंहटाएंचाँद है ज़ेरे क़दम. सूरज खिलौना हो गया
हाँ, मगर इस दौर में क़िरदार बौना हो गया
शहर के दंगों में जब भी मुफलिसों के घर जले
कोठियों की लॉन का मंज़र सलौना हो गया
ढो रहा है आदमी काँधे पे ख़ुद अपनी सलीब
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा जब बोझ ढोना हो गया
यूँ तो आदम के बदन पर भी था पत्तों का लिबास
रूह उरियाँ क्या हुई मौसम घिनौना हो गया
'अब किसी लैला को भी इक़रारे-महबूबी नहीं'
इस अहद में प्यार का सिम्बल तिकोना हो गया.
कई दिनों से अदम गोंडवी जी के बारे में और उनके शेर फ़िर से पढ़ रहे थे। आज सुबह खबर आई थी कि उनकी तबियत में सुधार हो रहा है। दोपहर को पता चला कि उनका निधन हो गया।
जवाब देंहटाएंस्व.अदम गोंडवी को विनम्र श्रद्धांजलि।
:( chacha...wo mere bhi bhut priy shayar the...
जवाब देंहटाएंकल ही मैंने अपने एक IAS मित्र से बात की थी कि अदम साहब को कुछ सरकारी अनुदान मिल सके तो उनका इलाज बहेतर तरीके से संभव हो सकेगा ... पर इस से पहले कि वो या कोई और कुछ कर पाता ... सब कुछ ख़त्म हो गया !
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रधांजलि ...
अदम गोंडवी जी को विनम्र श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंअदम गोंडवी जी को विनम्र श्रद्धांजलि.....
जवाब देंहटाएंसन 2011 बहुत कीमत लेकर जा रहा है, कितने ही लीजेंड नाता तुड़ाकर चले गये।
जवाब देंहटाएंअभी कल परसों पढ़ा था कि गोंडवी साहब के गाँव तक की सड़क बन रही है, लेकिन उन्हें उस सड़क पर थोड़े ही जाना था। आम आदमी के दर्द को अपने लफ़्ज़ों के जरिये बयान करने वाले उस हरदिल अजीज शायर को विनम्र श्रद्धांजलि।
अदम गोंडवी साहब को हार्दिक श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंउनके चहरे से कभी ऐसा नहीं लगा कि उन्होंने कोइ बड़ी बात कह दी हो. आज जब किसी शायर को, शेर के वज़न से ज़्यादा, खुद की एक्टिंग से शेर में असर पैदा करते देखता/सुनता हूँ, तो लगता है कि अदम साहब की सादगी ही उनका बयान थी.
जवाब देंहटाएंअदम नाम में ही इसका रहस्य छुपा लगता है, सलिल भाई !
विनम्र श्रद्धांजलि.....
जनाब राम नाथ सिंह उर्फ अदम गोंडवी को विनम्र श्रद्धांजलि!!!
जवाब देंहटाएंक्या हम और हमारी सरकार ऐसी आत्माओं को शांति दिलाने वाले काम करेंगे???
वाक़ई शायर मा आग है! इस आग को सलाम!!
जवाब देंहटाएं@ देश की आज़ादी के दो महीने बाद (२२ अक्टूबर १९४७) पैदा हुए राम नाथ सिंह को दिखा होगा कि मुल्क आज़ाद नहीं हुआ है.
जवाब देंहटाएंएक शे’र अदम गोंदवी साहब क याद आ गया।
आज़ादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह,
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में।
***
बहुत अच्छे शायर और बहुत अच्छे इंसान को खो देना बहुत दुखदायी है।
कैसे-कैसे लोग रुख़सत कारवां से हो गये
कुछ फ़रिश्ते चल रहे थे जैसे इंसानों के साथ।
श्रद्धांजलि !!!
जवाब देंहटाएंगोंडवी साहब को श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंहत्यारी सा लग रहा है भैया..
जवाब देंहटाएंआज सुबह ही अखबार से उनका एकाउंट नंबर नोट किया और सोचा था, कल पैसे डलवाउंगी ...
क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आ रहा...
अदम गोंडवी जी का असली नाम आज आपकी पोस्ट से पता चला .. सार्थक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंउनके लिए विनम्र श्रद्धांजलि
दुखद खबर है, श्रद्धांजलि। उनके शब्दों से प्रभावित रहा हूँ। आज आपके द्वारा उनके जीवन के कुछ अन्य पक्ष जानने को मिले, आभार!
जवाब देंहटाएंअदम गोंडवी को विनम्र श्रद्धांजलि!!!
जवाब देंहटाएंअदम गोंडवी साहब को विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का नया रूप महसूस किया।
उनके शब्द हमेशा चिंगारी की तरह रहेंगे.
जवाब देंहटाएंगोंडवी जी को विनर्म श्रद्धांजलि.
कहर बन के टूटा है ये साल,दाऊ ! ऐसी चोट दी है इसने कि अदाकारी शायरी और मौसिकी को संभलने में मुद्दत बीत जायेगी ! अदम जी के शेरों में आदम की ज़िंदगी के सबसे तीखे रंग दिखते हैं !
जवाब देंहटाएंवो खाका जो उन्होने 'मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको' में खींचा था… जेहन में चिपका हुआ सा रहा करता है…।
अदम को नमन !
अदम जी से हम लोगों के बहुत घनिष्ट सम्बन्ध रहे हैं.....वे मेरे पतिदेव के अभिन्न मित्रों में रहे हैं.....बहुत बार सुना है कवि सम्मेलनों से ले कर अपने घर में हुई बहुत आत्मीय गोष्ठियों तक में......बहुत पीड़ा हुई जान कर की इस तरह उन्हें जाना पड़ा.....बहुत बहुत श्रध्धान्जलियाँ उन्हें अर्पित हैं.....
जवाब देंहटाएंVinamr shaddhanjali.
जवाब देंहटाएंAalekh bahut prabhavi hai.
ऐसे व्यक्तित्व को नमन।
जवाब देंहटाएंऐसे शायर को मेरी भी विन्रम श्रधांजलि ..
जवाब देंहटाएंshradhanjli arpit karti hoon......jankari dene ke liye dhanybad.
जवाब देंहटाएंसलिल जी ,आज तो शब्द भी नही हैं कुछ कहने को । इस पोस्ट के लिये जितना भी आभार व्यक्त करूँ कम होगा ।
जवाब देंहटाएंअदम गोंदवी साहब के बारे में जानकारी के लिए धन्यवाद । उन पर आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट खुशवंत सिंह पर आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी । उनका एक शेर बहुत अच्छा लगता है ।
जवाब देंहटाएंरहे मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तजरबे से
बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में।
धन्यवाद ।
ऐसे महान व्यक्ति के बारे में जानकर अच्छा लगा! विनम्र श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंअदम गोडवी साहब पर आपकी यह ओबिच्यूरी मन को छू गयी
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंअदम गोंडवी जी को विनम्र श्रद्धांजलि.....
जवाब देंहटाएंइस माटी के लाल को शत शत नमन
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि.....
जवाब देंहटाएंअदम साहब जो खुद एक आग की लपट थे .... ऐसी अग्नि जलाना आसान नहीं होता ... आग को जीते जी झेलना पढता है और अदम साहब ने इसे जीवन भर झेला है ... इतिहास में ऐसे ही रचनाकार और उनकी रचनाएं साक्ष्य बनती हैं ... माटी पुत्र को नमन है और भावभीनी श्रधांजलि है ...
जवाब देंहटाएंक्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
ये २०११ कितने महापुरुषों को हम से छीन ले गया
जवाब देंहटाएंसाहित्य का क्षेत्र हो,कला का क्षेत्र या संगीत का जो अपूर्णीय क्षति हमारी हुई है उस का कोई बदल नहीं
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा
तो अदम साहब जैसा कोई और शायर शायद ही कभी समाज को मिल पाएगा
आप का लेख भावुक कर गया
ताला लगाके आप हमारी ज़ुबान को,
जवाब देंहटाएंकैदी न रख सकेंगे ज़ेहन की उड़ान को.
ज़ुल्फ़, अंगडाई, तबस्सुम, चाँद, आईना, गुलाब,
भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इनका शबाब.
vinamr shruddhaanjalee . Aur aapka bhee aabhar aisee shakhsiyat se milvane ke liye .
विनम्र श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंउनके शेर हमेशा जेहन में रहेंगे।
विनम्र श्रद्धांजलि ,
जवाब देंहटाएंकहीं से भी उनके शेर दुष्यंत कुमार या कि साहिर लुधियानवी से कमतर नहीं लगे |
इनमे से कुछ शेर मैंने पहले भी सुने थे लेकिन अज्ञानता के चलते शायर का नाम याद नहीं था :(
सादर