जेफरी आर्चर का एगो कहानी संकलन है जिसका नाम है “ट्विस्ट इन द टेल” माने
कहानी में पेंच! ई बात त मुहावरा के तरह इस्तेमाल होने लगा है अऊर खासकर फ़िल्मी
दुनिया में त बिना इसके कोनो कहानी बन ही नहीं सकता. कहानी में कोनो न कोनो पेंच
होना ही चाहिए, चाहे बचपन का बिछडा हुआ भाई का पेंच, चाहे पैदा होते ही बदला गया
बच्चा का पेंच, चाहे पति/पत्नी के मरकर अचानक ज़िंदा सामने आ जाने का पेंच!
पेंच नहीं त कहानी नहीं. मगर कोनो घटना को पेंच बनाकर कहानी लिखने वाले कथाकार
के बारे में कभी सोचे हैं! ऐसा पेंच जो कहानी के अंत में अचानक आपके सामने आता है
अऊर आपको एकदम अबाक कर देता है. आँख से आंसू निकलने लगता है कभी कभी. अइसा कहानी
लिखने वाले महान कथाकार हैं ओ. हेनरी! उनका कहानी The last leaf, Gift
of Magi, A service of love या Green Door एही बात को साबित करता है.
हमारे बेटा अनुभव
प्रिय को ई जिद था कि उनको ओ. हेनरी के एगो कहानी को नाटक में रूपांतरित करना
है और उसको अपनी बुआ अर्चना चावजी के साथ नाटक के रूप में पॉडकास्ट करना
है. एही नहीं हमको भी गेस्ट अपीयरेंस करना होगा. खैर सबकुछ ओही किया अऊर उसका
मेहनत और बुआ-भतीजा के अभिनय से सजा हुआ नाटक को जब ठाकुर पद्म सिंह जी ने
पार्श्व-संगीत से सजा दिया त नाटक जीवंत हो उठा.
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कथा: ओ. हेनरी की A Service of Love
पटकथा व संवाद: अनुभव प्रिय
संवाद-संपादन: सलिल वर्मा
पार्श्व-संगीत संयोजन: ठाकुर पद्म सिंह
पात्र – परिचय
(जिस क्रम में वे नाटक में प्रकट होते हैं)
मकान मालिक: सलिल वर्मानलिनी: अर्चना चावजीअभिनव: अनुभव प्रिय
(कमरे की चौखट पर गुस्से में चिल्लाता हुआ मकान-मालिक किराए की माँग कर रहा
है और नलिनी घर के काम के बीच हाँफती हुई जवाब देती जा रही है, कुछ खीझती और कुछ
झल्लाती हुई)
मकानमालिक: (चीखकर) समझी कि नहीं? हम कह देते हैं हाँ? जनाब चित्तरकार हैं और आप मैडम, गायिका
हैं ना?!..हँ! बाकी देखिए, एक बात कान खोलकर सुन लीजिए, आपलोग का करते हैं और का नहीं,
हमको उससे कोई मतलब नहीं है!! हमको हमारा मकान का किराया पहिला तारीख को मिल जाना
चाहिए, समझीं मैडम? (रौब से) हम एकदम साफ़ बात करते हैं- बस! पतिदेव आयें तो बता दीजियेगा उनको भी...चलते
हैं| अऊर हाँ, एक बात नोट कर लीजिए, अगिला बार हम इहाँ आएँगे नहीं, आप लोग इहाँ से
जाएंगे!! जय राम जी की!!
नलिनी: (खिसियानी हँसी हंसते हुए) जी! मैं समझ गयी. आपको शिकायत का मौक़ा नहीं
मिलेगा. (उसे जाते
हुए देखती है और
कुछ गुस्से और अफसोस के साथ खुद से कहती है) उफ़!!! ये मकान-मालिक भी सिर पर
सवार हो जाता है|
मगर क्या करूँ. कुछ भी सही नहीं हो रहा. (गुनगुनाने लगती है)
न जाने क्यूँ/होता है ये ज़िंदगी के साथ
अचानक ये मन/ किसी के जाने के बाद
करे फिर उसकी याद/छोटी छोटी से बात
(गाने के स्वर गुनगुनाते हुए फेड आउट होते हैं. और तभी अभिनव कमरे में
प्रवेश करता है)
अभिनव: नलिनी! नलिनी!! ये क्या, तुमने दरवाज़ा खुला छोड़ रखा है! क्या बात है, कोई
आया था क्या?
(दरवाज़े के बंद होने की आवाज़-खटक!)
नलिनी: (‘सब कुछ ठीक हो जाएगा’ वाला भाव लेकर थोड़ा गर्म जोशी से और हंस कर) और कौन आएगा! वही
‘यमराज’ आया था, किराया मांगने, लगता है यमलोक में भी मंदी छाई है!
अभिनव: ओह! कल ही तो उससे बात की थी
मैंने. हद्द करता है (गंभीर और परेशान होकर) अच्छा, तुम्हारे उस इश्तहार का
क्या हुआ? कोई जवाब आया??
नलिनी: (सकपकाती सी) इश्श...इश्तहार? अरे हाँ हुआ ना! एक जगह से बुलावा आया था... और मैं तो हो
भी आई वहाँ से|
अभिनव: कहाँ से?
नलिनी: हैं एक कर्नल जे. डब्ल्यू. एन. सिंह. (थोड़े जोश से) यहीं, पास में ही
रहते हैं. उनकी बेटी को संगीत सिखाना है.
अभिनव: (थोड़ा गुम-सा होकर) क्या नाम बताया तुमने? कर्नल..
नलिनी: जे-डब्ल्यू-एन सिंह! और उनकी बेटी प्रभा | नीलिमा नाम है वैसे, पर घर में
सब उसे प्रभा ही बुलाते हैं. अभी-अभी पन्द्रह की हुई है|... जानते हो, बड़ी ही
अच्छी लड़की है| शालीन और सुशील...
अभिनव: (थोड़ी चिंता में) पर नलिनी! मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा कि कि
मेरी आर्ट् की पढाई के लिए, तुम अपने म्यूजिक का शौक छोडकर, सौ दो सौ रुपयों की
ट्यूशन के लिए भाग-दौड़ करो.. तुम भी तो आगे म्यूजिक जारी रखना चाहती थी ना? और अब मेरे
लिए तुम..
अभिनव: (गर्मजोशी से) फिर वही बात, अभि! (पास आकार बैठती है) क्या मैं तुम्हारे लिये
इतना भी नहीं कर सकती? पत्नी हूँ तुम्हारी! Your better half! और ये सब मैं तुम्हारे
बेटरमेंट के लिए ही कर रही हूँ... एक बार पैसे आने लगें तो फिर सारी मुश्किलें
खत्म हो जायेंगी... और जानते हो, कर्नल सा’ब मुझे तीन हज़ार देने को राजी हो गए हैं!
अभिनव: तीन हज़ार!!
नलिनी: हाँ अभिनव हाँ!.. अब ज़्यादा सोचो मत. फिलहाल तुम शंकर पिल्लै
की क्लासेज में अपने आर्ट को निखारने पर ध्यान दो... अच्छा जल्दी से हाथ-मुँह धो
लो, मैं खाना लगाती हूँ!
(बैकग्राउंड में बजने वाला संगीत अचानक तेज हो जाता है और धीरे धीरे फेड
आउट होता है)
अभिनव: नलिनी! (अचानक खुशी से) एक खुशखबरी दूं तुम्हें!! पता है, शंकर सर को
मेरी पार्क-वाली पेंटिंग बहुत अच्छी लगी. उनके कहने पर राजेन ने उसे
अपनी दूकान के लिए ले लिया है. कहता है वो पेंटिंग तुरत
बिक जायेगी. उसके बिकने पर मुझे ज़रूर मिलेगा.. पैसा भी और मौक़ा भी!
नलिनी: (खुशी से) अरे वाह! ये तो बड़ी अच्छी बात है!! कितनी रोटियां दूं?
अभिनव: दो-तीन दे दो... और हाँ! कल सुबह-सुबह ही निकालना होगा मुझे| शंकर सर ने
सनराइज़ की पेंटिंग बनाने को कहा है|
नलिनी: सनराइज़? हाउ रोमांटिक!! वैसे मुझे भी कर्नल सा’ब के बंगले पर जाना होगा,
कल से ही. उनका घर जानते हो,
कित्ता बडा है? बाप रे! और बंगले के आगे लॉन.. और (बीच ही में टोकता है)
अभिनव: ज़िंदगी नें ये कैसी करवट ली है, नलिनी! हमारे सपनों की नाव जैसे मझधार में
ही अटक के रह गयी है.. पता नहीं हम उस पार कैसे जायेंगे?
नलिनी: (शान्ति से) अभि तुम भी ना...!! भूल गए.. ‘जो अपने हुनर को चाहता है, उसे ज़िंदगी में कोई रोक नहीं पाता!’
अभिनव: अरे! ये क्या!! बुरे वक़्त ने तुम्हें भी शेरो-शायरी सिखा दी?(दोनों हंसने
लगते हैं) ये भी अच्छी बात है|
(संगीत तेज हो जाता है और आहिस्ता आहिस्ता बंद हो जाता है)
नलिनी: आ-ई-ये मेहर-बां..! बैठिये जाने जाँ! (गाते हुए स्वागत करती है अभिनव का)
अभिनव: इस गाने पर तो रुपये लुटाने का जी चाह रहा है!!
नलिनी: (बड़ी खुशी से) अरे-वाह! हज़ार रूपए?
अभिनव: हाँ! और सुनो, उस यमराज को भैसे के चारे के लिए पैसे दे आया हूँ!
नलिनी: मगर ये पैसे आये कहाँ से?? (मुस्कुराती हुई) ओह्हो!! वो पेंटिंग
बिक गयी क्या?
अभिनव: ठीक समझी. और जानती हो
खरीददार कौन था? जयपुर के राजघराने के एक राजा साहब.. घूमने आए हैं यहाँ.. बस रीझ
गए पेंटिंग पर.
नलिनी: (विस्मय से) ‘जयपुर’ के राजघराने से? यकीन नहीं आ रहा!! हे भगवान, तेरा लाख लाख शुक्र
है!
अभिनव: खैर, तुम बताओ, तुम्हारा दिन कैसा रहा?
नलिनी: ठीक ही था वैसे तो... लेकिन प्रभा सीख ही नहीं पाती है आसानी से.. और...और
ऊपर से उसे सर्दी भी हो गयी है, ऐसे में ना तो वो गा ही पाती है और ना ही प्रैक्टिस
कर पाती है|
अभिनव: कोई बात नहीं! अभी बीमार है.. सीख जायेगी धीरे-धीरे|
नलिनी: (एक छोटे से पौज़ के बाद) हे अभिनव!!! कहाँ खो गए तुम!!
अभिनव: हूँ....जानती हो, राजा सा’ब को एक और पेंटिंग चाहिए और वो भी फिर से वही
सनराइज़ वाली| (खीज कर) क्या करूँ अब!!
नलिनी: करना क्या है! सुबह सुबह निकल जाना.
अभिनव: सुबह तो निकालना ही पडेगा... सूरज तो सुबह को ही निकलता है|
(सीन चेंज के लिए एक संगीत)
अभिनव: (विस्मय से) ओफ्फोह नलिनी! आज तो बड़ी देर कर दी तुमने? आज तो मैं तुमसे भी पहले (तभी
उसकी नज़र नलिनी के हाथ पर बंधी पट्टी पर पडती है) अरे, ये क्या! ये हाथ पर पट्टी
क्यों बांधी रखी है? दिखाओ? (हडबडा कर उठता है. कुर्सी के पीछे खिसकने की आवाज़)
नलिनी: (दर्द में है मगर दिखाना नहीं चाहती, हालाँकि छुपा भी नहीं पा रही)
ओह! कुछ नहीं बस..ऐसे ही.. ठीक हो जाएगा..
अभिनव: उफ़!! आओ यहाँ बैठो! कोई दवाई लगाई है क्या? कैसे लगी ये चोट!
नलिनी: प्रभा के लिए पानी गर्म कर रही थी... उसे सर्दी लग गयी है ना और उस समय घर
पर कोई भी नहीं था तो मैंने सोचा मैं ही गर्म कर देती हूँ.. बस गर्म पानी हाथ पर
गिर पड़ा..
अभिनव: ओह्हो! नलिनी!! तुम भी ना...
नलिनी: अभिनव, मैं बिलकुल ठीक हूँ! प्रभा को बहुत अफसोस हो रहा था.. उसने तुरत
नीचे से ड्राइवर को आवाज़ लगाई और वो ड्राइवर भी देखो ना... बैंडेज की जगह गाड़ी साफ़
करने वाले डस्टर की पट्टी बाँध दी उसने. (हंसते हुए) भला डस्टर की पट्टी बांधता है
कोई..??
अभिनव: हाँ क्यों नहीं बांधता. बशर्ते कि वो तुमसे उतना ही प्यार करता हो, जितना
मैं.
नलिनी: मैं समझी नहीं!!
अभिनव: (उसकी बात पर ध्यान दिए बिना) सच सच बताओ! तुम दो हफ़्तों से कर क्या रही
हो..??
नलिनी: क्या कर रही हूँ? मतलब??
अभिनव: (इत्मिनान से) हाँ, क्या कर रही हो? प्रभा, कर्नल और म्यूजिक ट्यूशन???
नलिनी: अभिनव! मैं..मैं... अब नहीं छुपाऊँगी तुमसे!! दरअसल मेरे इश्तहार का कोई
जवाब नहीं आया और मैं ये भी नहीं चाहती थी कि तुम अपनी क्लासेज छोडो... बस मैंने
पास की लौंड्री में कपडे आयरन करने की नौकरी कर ली...
अभिनव: और कर्नल जे.डब्ल्यू.एन सिंह और प्रभा ?
नलिनी: (हंसती हुई) कर्नल जे.डब्ल्यू.एन सिंह को नहीं जानते? फिल्म ‘छोटी सी बात’ में अशोक
कुमार के किरदार का नाम था.. तुम्हारे सामने कहानी बनाते वक़्त यही नाम सबसे पहले
आया और प्रभा, उसी फिल्म की हिरोइन, विद्या सिन्हा का नाम.. (हंसने लगती है)
अभिनव: ( भाव शून्य) और ये हाथ कैसे जला?
नलिनी: (अनमने ढंग से) आयरन करते वक़्त गलती से... (प्यार जताते हुए) तुम नाराज़ तो नहीं हो
ना मुझपर? मैं करती ही क्या? बताओ...ये कहानी ना गढी होती तो क्या तुम जयपुर के
महाराजा को अपनी पेंटिंग बेच पाते?
अभिनव: वो जयपुर का था ही नहीं|
नलिनी: जहाँ का भी था!.. (अचानक चौंककर) एक मिनट, एक मिनट!! तुम्हें क्यूँ लगा
कि मैं प्रभा को म्यूजिक नहीं सिखा रही?
अभिनव: वो प्यार भरी पट्टी!! बैंडेज की जगह डस्टर की. उसी ने समझाया मुझे!! वरना मैं
कहाँ समझा था? और शायद समझ भी ना पाता, अगर खुद मैंने ये डस्टर की पट्टी लौंड्री से
ऊपर उस लड़की के लिए नहीं भेजी होती जिसने आयरन से अपना हाथ जला लिया था.
नलिनी: (अति विस्मय से) क्या! तुमने!! और तुम वहाँ कर क्या रहे थे??
अभिनव: मैं पिछले दो हफ़्तों से उसी लौंड्री में कपडे धो रहा हूँ|
(दोनों खूब जोर जोर से हंसने लगते हैं)
अभिनव: (हंस कर) जयपुर के महाराजा, कर्नल जूलियस विल्फ्रेड नागेन्द्रनाथ सिंह और प्रभा... कितनी
अजीब कलाकृतियां हैं|
नलिनी: (हंसते हुए) पर ये कला, ना तो संगीत है और ना ही चित्रकारी..
(दोनों मिलकर हँसते हैं)
अभिनव: सच है ना, जब कोई अपने हुनर को चाहता है...
नलिनी: ( हंस कर) अ-अ! यूं कहो कि जब कोई किसी को शिद्दत से चाहता है...
(दोनों की हँसी एक
मधुर संगीत में फेड आउट हो जाती है)
गज़ब! गज़ब का चमत्कार कर दिखाया आप लोगों ने। सुनते-सुनते पढ़ता रहा। सभी को ढेर सारी बधाई । यह सफलता निकट भविष्य में कुछ और भी बड़ा चमत्कार कर दे तो कुछ भी आश्चर्य नहीं।
जवाब देंहटाएंनाटक पढ़ते-पढ़ते ऐसा लगा कि केवल पढ़ना ही नहीं हो रहा है बल्कि दृश्य और ध्वनि भी साथ-साथ मन में उभरने-गूंजने लगे हैं।
जवाब देंहटाएंकथानक का यू-टर्न ...,जैसे सूर्यास्त होते-होते सूर्योदय हो गया हो...,मोहक !
मैं तो पठन से ही विस्मित-चकित हुआ हूं,...सुनुंगा..अवश्य।
बधाई आपको, आपकी टीम को।
गज़ब ... :)
जवाब देंहटाएंमजा आ गया पढ़कर, सुनने में और भी अच्छा लगेगा।
जवाब देंहटाएंबधाई आप सबको।
बेहतरीन !!
जवाब देंहटाएंसलिल भाई और अर्चना जी की शागिर्दी में अनुभव प्रिय बेहद प्रिय लगा ।
आपकी रचनाधर्मिता के फिर से कायल !!
वत्स अनुभव, अर्चना जी, पद्मसिंह जी और आप मिलकर जो काम करें उसे इतना उत्कृष्ट होना ही था| मज़ा आ गया| आशा है भविष्य में ऐसी अनेक प्रस्तुतियां सुनाने को मिलेंगी|
जवाब देंहटाएंआपका कमाल इस पटकथा को रोचक, गतिशील और संवेदनशील बनाता चला गया है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
यहाँ पढ़ लिया, वहाँ जाकर सुनते हैं।
जवाब देंहटाएंbahut achha
जवाब देंहटाएंकलाकार और धोबी? बेचारे को इतना तो मत गिराओ। कहीं तो उसकी इज्जत रख लो भाई। जयपुर राजघराने की बात आते ही मुझे खटका हुआ कि बात में कुछ पेच है। चलो प्रयास अच्छा है।
जवाब देंहटाएंआपको पढ़ने के बाद ... सुनने का आनंद दुगना हो जाएगा
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति
सादर
बहुत बढ़िया सलिल दा....
जवाब देंहटाएंबेटा तो सच्ची बड़ा काबिल है...हमारा आशीष पहुंचे.
बढ़िया टीम वर्क.
सभी को बधाई.
सादर
अनु
आपकी उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 27/11/12 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका चर्चा मंच पर स्वागत है!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया नाट्य रूपान्तरण .... बेटे को बधाई और आशीर्वाद
जवाब देंहटाएंहमने स्क्रिप्ट नहीं पढ़ी, अभी सुनते हैं,
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही प्रयास अच्छा होगा
Ek waqt me zyada der baith nahee pati hun...dhere,dheere padhungi.
जवाब देंहटाएंपढ़ने में तो गज़ब है, सुनने में भी कमतर न होगा, जाकर सुनते हैं.
जवाब देंहटाएंसमझ भी गए और बुझ भी ..... मजा आ गए। आपकी आवाज में कमाल है।अनुभव जी और अर्चना जी का जबाब नहीं। बहुत ही अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंसम्मलित प्रयास लाजवाब....
जवाब देंहटाएंकल ही सुने थे मकान मालिक की धमकी और बाकी का किस्सा। मजेदार नाटक किये। बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावनापूर्ण लेख़न,नाट्य रूपांतर और प्रभावशाली कला-संयोजन. सभी कलाकारों को इस सुंदर प्रयास के लिए बधाई!!!
जवाब देंहटाएंnatak padh kar to achchha laga ab agli fursat me sunege...sundar rupantaran..
जवाब देंहटाएंपहले ही सुन लिया था लेकिन कमेन्ट आज कर पा रहा हूँ , माफ़ी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी तरह से किया गया नाटक |
सादर
क्या कमाल की कोशिश है चचा...एकदम मजा आ गया !!
जवाब देंहटाएंऔर मकानमालिक का डायलोग तो और भी मस्त था....
प्रिय ब्लॉगर मित्र,
जवाब देंहटाएंहमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।
शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम
पुनश्च:
1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।
2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला।
[यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।
natak padha bhi aur suna bhi .laga ki vividh-bharti par hi havamahal sun rahi hun .anubhav ki aavaz kaphi paripakva hai aur sangeet-sanyoan ki lo jitni prashansa ki jae kam hai .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया नाट्य-रूपांतर
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रस्तुति के लिए आभार!
सभी कुछ इतना लाजवाब की एक एक को लिखना जरूरी नहीं ... आपकी आवाज भी सुन ली आज ... पूरा नाट्य बहुत कुशलता के साथ ... चुस्ती के साथ लिखा बोला गया है ...
जवाब देंहटाएंबधाई बधाई बधाई ...
बहुत सार्थक व सुंदर प्रयास ....बेटे को भी इस प्रयास पर बधाई ।
जवाब देंहटाएंसुंदर नाट्य रूपान्तर और सुनकर तो मैं इसमें खो गयी. आप और आपके बेटा दोनों को बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंaapka blog to hit ho gaya par mera char char blog flop ho rahen hai mai koun sa blog banau jo hat hoga ....kayoki mai bhi bihari hi hun bihari ka pitna ..koi nayi..batt..nahi hai..........
जवाब देंहटाएंअबे तू खान्ग्रेसी है क्या ?नहीं हैं तो यह पोस्ट पढ़ यदि हैं तो खिसक ले वर्ना अपनी पोल अपने आगे खुलता देखेगासनातन ब्लोगर्स वर्ल्डke rajniti par ki yah pahli post jarur padhen..
बहुत बढ़िया नाट्य-रूपांतर......मजेदार
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