अगर गिरिजेश राव
जी का आह्वान नहीं होता त सायद हम ई पोस्ट नहीं लिख रहे होते. अभी साल २०१२ के
जाते-जाते जउन घटना घटा है, उसके बाद नया साल का बधाई अऊर सुभकामना देने का मन
नहीं किया. एही सुभकामना २०१२ के जनवरी में भी दिए होंगे अऊर ऊ बेचारी को भी दोस्त
लोग बोला होगा – हैप्पी न्यू ईयर!! मगर उसके लिए नरक का तकलीफ से बढकर हो गया ई
साल. का फायदा ई सुभकामना का. सब बिधाता का लिक्खा है त उसी के हाथ में छोड़ कर
अपना काम करते हैं, जब ओही आकर सुभकामना देगा त मानेंगे कि सब सुभ होगा.
खैर, २०१२ जाते
जाते सरकार के सम्बेदनहीनता का नमूना देखा गया, नेता लोग के मुँह पर कोनो कंट्रोल
नहीं है ई बता गया, हमरा संबिधान का मौलिक अधिकार केतना खोखला है ई समझा गया अऊर
देस का अदालत कइसे घोंघा के चाल से इन्साफ करता है, इहो समझ में आया. सवाल उठा कि
हमारा न्याय ब्यबस्था कइसा होना चाहिए अऊर तत्काल एगो कमीसन बना दिया गया. सरकार
अब तान कर सो सकता है अऊर कमीसन अपना काम करेगा. आमीन बोलिए, चाहे इंसा अल्लाह!!
जब हो जाए तब एकीन करेंगे.
सबसे पहिला बात
जो हमरे जइसा साधारण आदमी के मन में आता है, ऊ ई है कि क़ानून एतना कम्प्लिकेटेड
काहे है भाई. हमरे ऊपर होने वाला अत्याचार को प्रोक्सी के माध्यम से कोनो आदमी
कइसे समझा सकता है. हमको चोट लगा हो तो हमरा दर्द महसूस कराने के लिए हमको एगो
ओकील चाहिए!! जब ऊ समझायेगा कि हमको दफा फलाना के अंतरगत चोट लगा है तब
न्यायमूर्ति को समझ में आएगा कि चोट का इंटेंसिटी केतना है!! कमाल है. जब हम क़ानून
के बिद्यार्थी हुआ करते थे, तब एक रोज किलास में एही बात अपना प्रोफ़ेसर साहब को
बोल दिए. नतीजा आप सोचिये सकते हैं कि हमको किलास से बाहर निकाल दिया गया.
अमेरिका में कोनो
आदमी को गिरफ्तार करने के समय उसको बताया जाता है कि कउन जुर्म में, कउन धारा के
अंतर्गत गिरफ्तार किया जा रहा है. हमरे इहाँ त पहिले धरा जाता है तब धारा लगाया
जाता है. कारन खाली एतना है कि साधारण आदमी के अधिकार का रक्छा के लिए बना हुआ
क़ानून उसके भासा में हइये नहीं है. इहाँ तक कि पढ़ा लिखा आदमी के समझ से भी बाहर
है. अब क़ानून बांचने के लिए गिद्ध लोगों के पास जाइए, जहाँ दुनो तरफ से गिद्ध लोग
आपको नोचना सुरू करेगा. अऊर कहीं गलती से पीड़ित बलात्कार का सिकार हो तो बस समझिए
हर सुनवाई में उसके साथ बलात्कार होना तय है. कभी कोनो न्याय ब्यबस्था को ई ध्यान
नहीं आया कि महिला पुलिस इस्टेसन के तर्ज पर महिला अदालत बनाया जाय, जहाँ औरत
न्यायाधीस, औरत वकील हो, जो कम से कम बयान को संतुलित रख सके अऊर बे-इज्जत होने वाला
औरत के इज्जत का ख्याल कर सके.
क़ानून के बारे
में बचपन से दू गो मोहावरा सुनते आ रहे हैं. सौ अपराधी भले छूट जाए, मगर एगो
निरपराध को सजा नहीं मिलना चाहिए. निरपराध का त पता नहीं अपराधी को छोडने का काम
का मालूम कब से चल रहा है. एगो आदमी को तो सारा जिन्नगी जेल में बिताने के बाद
बताया गया कि ऊ केस जीत गया है अऊर ऊ निरपराधी है. बाह, कमाल का इन्साफ है. जेल से
आजाद करने के बाद उसका जवानी, उसका परिबार से छूटा हुआ प्रेम कउन वापस करेगा, मी
लॉर्ड!!
दोसरा मोहावरा है
क़ानून में देर है मगर अंधेर नहीं है. इहाँ भी फस्ट हाफ पर अमल होता है. न्याय एतना
न देर से होता है कि आदमी का सबर जवाब दे जाए. केतना बार त बेचारा फरियादी के मर
जाने के बाद उसको न्याय मिलता है. कोनो आदमी उसके कब्र पर जाकर बोल आता है कि
सत्यमेव जयते! अऊर बेचारा अपना कब्र में छाती ठोंक कर खुस हो जाता है कि हमारा
आस्था बहुत मजबूत हुआ है देस के न्याय बेवस्था पर.
सरकारी आंकड़ा पर
बिस्वास कीजियेगा त देस में पेंडिंग केस का संख्या कम से कम छौ अंकों में चला
जाएगा. एही नहीं पाकिटमारी से लेकर हत्या तक का मामला एक्के इस्पीड से निपटाया जा
रहा है. मी लॉर्ड, तनी सोचिये कि हस्पतालो में इमरजेंसी वार्ड होता है. सोचिए कि
मरने वाला मरिज को रात में बोला जाए कि सबेरे दस बजे ओ.पी.डी. में आना. हद्द है.
मी लॉर्ड! इस्पीड
बढ़ाइए. जउन बच्ची के साथ बर्बरतापूर्ण अत्याचार हुआ है, ऊ बेचारी त १०-१५ दिन भी
नहीं ज़िंदा बची, अऊर उसका देह नोचने वाला सिकारी जानवर धराने के बाद भी क़ानून के
कउन धारा के अंतर्गत सजा पायेगा ई सोचने में एतना टाइम लग रहा है, तब त बेचारी को
अगिला जनम लेकर फिर से आना पडेगा इन्साफ के लिए.
फिलिम “इन्साफ का
तराजू” में एही समस्या को बहुत बढ़िया से देखाया गया था. इहो बताया गया था कि
मुजरिम को छोड़ देने के कारण ऊ दोबारा बलात्कार का कुकर्म किया. अब क़ानून ई बताए कि
दोबारा वाला बलात्कार के लिए कउन दोसी है???
जब आदमी को भूख
लगा होता है तब्बे खाना खाने संतोस होता है. न्याय जब देरी से होता है त भूख मर
जाता है. मी लॉर्ड, माना के आपके आँख पर पत्ती बंधा हुआ है अऊर माथा पर नकली बाल
लगाकर आप अपना चेहरा छिपाए हुए हैं.. मगर ऊ सब के नीचे देखिये कि आपके कान में रुई
नहीं भरा हुआ है. आप बयान सुनते हैं, दलील सुनते हैं, मगर माई-बाप कभी उस लडकी का
चीख आपको नहीं सुनाई देता है बैकग्राउंड में? देस में उठने वाला लाखों जनता का
पुकार नहीं सुनायी देता है?
सायद खिस्सा रहा होगा कि
एही देस में कोनो राजा खाली जंजीर हिलाने का आवाज सुनकर सुतला में उठकर चला आता
था, ई सोचकर उसके परजा में से किसी को कोनो तकलीफ हुआ है अऊर उसको न्याय चाहिए!!
मौजूदा दौर मे जो हाल है कहीं ऐसा न हो कि कानून पर से भरोसा ही उठ जाये जनता का ... :(
जवाब देंहटाएंसमस्या के विभिन्न पहलु पर आपने गंभीरता से चिंतन किया है और हमारे सामने कुछ शाश्वत प्रश्न रखा है, जिसका हल जितनी जल्दी हो सके उतना अच्छा है इस लोकतंत्र के लिए, वरना देर तो सच मे बहुत हो ही चुकी है।
जवाब देंहटाएंसलिल भइया जी!अस्थिती बहुत गम्भीर है, न्याय का त मज़ाक बना दिये हैं माई-बाप लोग। जेतना बात आप कहे हैं ऊ सब कानून बाला लोग को नहीएं बुझाता है। कानून का भासा जनता का भासा नहीं है कइसे बूझेगा कोई? परक्रिया अतना जटिल बना दिये हैं कि न्याय ओही के नीचे चपका गया है। बेबस्था पूरा सड़-गल गया है ...कोनो बात अइसा नहीं बचा जिस पर गरब किया जा सके। 2013 के पहिला दिन हम बहुत उदास हैं फ़ुनवा भी बन्द कर दिये हैं ....सुभकामना का बात बहुत बनावटी लगता है। जब पूरा देस एक-दूसरे को सुभकामना दे रहा है त अभी तक असुभ का झड़ी बन्द काहे नहीं हुआ? लोग कहेगा के हम निरासाबादी हो गये हैं ...कहने दीजिये ....नकली आसा कहाँ से लाइयेगा ...आ काहे के लिये लाइयेगा? हमको सुभकामना का कोनो ज़रूरत नहीं है। कोनो का असुभ न हो एह ज़रूरत है पर कहाँ हो पायेगा अइसा?
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंगज़ब का लेख है सलिल ...
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत यह लेख, संग्रह करने लायक लेखों में से एक है !
कानून का व्यापक दुरूपयोग अधिक होता है फ़ायदा बहुत कम है ...
काश यह लेख, कानून विज्ञ एक्जामिन करें !!!!
मगर ब्लॉग जगत के बिहारी की भासा उन्हें समझ आएगी , संदेह है !
आम आदमी से शायद ही सरोकार होगा उन्हें ...
बधाई भैया ...
लोधी गार्डन में घूंस\घींस(बड़ा चूहा) के उत्पात की खबर पर माननीय अदालत ने suou motu संज्ञान लिया था, फ़िर भी हम आप संवेदनशीलता को नहीं समझते, क्या करियेगा?
जवाब देंहटाएंhttp://dnaofwords.blogspot.in/2012/10/sanskrit-relationship-of-latin-legal.html
bhawon ke utaar-chadhaw ke sath behad prabhawshali dhang se likhe hain bhai......
जवाब देंहटाएंहमने सोचा था कि आज घर रहेंगे..इस विषय में लिखेंगे..लेकिन सोचा धरा का धरा रह जाता है..आज का दिन सबसे व्यस्त निकला। :(
जवाब देंहटाएंआपने बतियाने वाले अंदाज में जितनी सरलता से न्याय व्यवस्था की विसंगतियों को उभारा है उसे पढ़कर तो हमारे जैसा आदमी बस खड़े होकर तालियाँ ही बजा सकता है। हाँ..ब्लॉग जगत में कानून के जानकार भी हैं..वे इसमें उठाये गये प्रश्नों का उत्तर दे पाते तो कुछ अपना भी ज्ञान बढ़ता।
एक रिक्शे वाले ने एक बार मुझसे यह कहा था..जिसे मैने ज्यों का त्यों कविता में ढाल दिया था..उसी का एक अंश..
ई देश में
सब कानून गरीबन बदे हौ
धनिक जौन करैं उहै कानून हौ
ईमानदार
भुक्कल मरें
चोट्टन कs चांदी हौ
कहत हउआ
सगरो सावन कs हरियाली हौ ?
रिक्शा खींचत के प्रान निकसत हौ बाबूssss
देखा....
कितनी खड़ी चढ़ाई हौ !
......
आगे पंद्रह अगस्त क लड़ाई हौ...
..................
एक गरीब रिक्शे वाला ..पंद्रह अगस्त..इन दो शब्दों को ही आजादी मान बैठा है और न्याय व्यवस्था ऐसी कि आजादी उससे कोसों दूर है। न्याय व्यवस्था में यह सुधार तो कितना जरूरी है उसका अंदाजा आपकी इस पोस्ट को पढ़कर आसानी से हो जाता है।
देवेन्द्र भाई! बहुत मन लगाकर एल-एल.बी. किया था. मगर लगा कि समय बर्बाद हुआ. क़ानून को जितना गहरे से मैंने समझा है, क्या कोई कानूनवेत्ता इन सवालों के जवाब देगा.. न्याय कोई एच टू ओ नहीं है देवेन्द्र भाई! जिसे दो हाइड्रोजन और एक ओक्सीजन के माध्यम से कोई समझा दे.. उसके लिए तो उस बनारसी रिक्शेवाले का "करेजा" चाहिए जिसे "जराकर" उसने मौलिक अधिकार को आसानी से डिफ़ाइन किया है!
हटाएंसलाम उस रिक्शेवाले को और आपकी कविता की ईमानदारी को!!
बडी दुखद स्थिति है, मायावियोँ ने न्याय के मंदिर को भी शुद्ध रहने नहीँ दिया.
जवाब देंहटाएंi have no faith on indian judiciary system. if i will need justice ever in my life, i'll get it on my own... otherwise better to forget abt justice....
जवाब देंहटाएंaabhaar salil ji - is post ke liye...
जवाब देंहटाएंgirijesh ji ke aahvaan ko mera poora samarthan hai, aapki post se bhi sahmat hoon....
न्याय में देर भी अंधेर का ही एक रूप है - उस पर जब देर के बावजूद अंधेर भी हो तब तो कोढ़ में खाज!
जवाब देंहटाएंयदि हमारी अदालते ही न्याय त्वरित करने लगे तो शायद जुर्म का प्रतिशत बहुत कम हो जाए।
जवाब देंहटाएंकारन खाली एतना है कि साधारण आदमी के अधिकार का रक्छा के लिए बना हुआ क़ानून उसके भासा में हइये नहीं है.
जवाब देंहटाएंअक्षरश: सही कहा आपने इस आलेख में
सादर
bade bhaiya, mujhe to lagta hai, hamari nyay vyavastha hi charmara gayee hai... ham sab samvedansheelta ki baat karte hain, par shayad iss nyayik dhanche me aisa kuchh nahi hai... pata nahi kab badlega sab...
जवाब देंहटाएंकुछ लोग की कलम खरी होती है,क्योंकि विचार द्वन्द से परे होते हैं , वही सलिल भाई की कलम है !.... नया साल्र पुराना साल - क्या फर्क होता है। कहो ना कहो, जो होता है,वह स्तबद्ध कर जाता है ! कानून और कहावत - घर की दो रोटी के लिए कई निरपराधी सज़ा पाते हैं ... ना पायें सज़ा तो मार दिए जायेंगे . अपराधी तो खुलेआम घूमते हैं - सब जानते ,पहचानते हैं - पर कहने की हिम्मत ही नहीं परिवार की सलामती के लिए
जवाब देंहटाएंओर नहीं बस ओर नहीं ...
जवाब देंहटाएंसच लिखा है आपने ... अगर न्याय समय पर नहीं हवा तो लोगों का विश्वास उठने लगेगा ... फिर हर कोई अपने जुल्म का हिसाब खुद ही लेने निकलेगा ... ऐसे समाज की कल्पना ही भयावह है ...
नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट 3-1-2013 को चर्चा मंच पर चर्चा का विषय है
कृपया पधारें
दोसरा मोहावरा है क़ानून में देर है मगर अंधेर नहीं है. इहाँ भी फस्ट हाफ पर अमल होता है. न्याय एतना न देर से होता है कि आदमी का सबर जवाब दे जाए. केतना बार त बेचारा फरियादी के मर जाने के बाद उसको न्याय मिलता है. कोनो आदमी उसके कब्र पर जाकर बोल आता है कि सत्यमेव जयते! अऊर बेचारा अपना कब्र में छाती ठोंक कर खुस हो जाता है कि हमारा आस्था बहुत मजबूत हुआ है देस के न्याय बेवस्था पर.
जवाब देंहटाएंsalil bhai sahab pranam swikar karen jaan bujhakar de raha hun .ASHA SE SANSAAR
अभी इस राख में चिन्गारियाँ आराम करती हैं - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसच में चचा, जो स्थिति है उससे तो लगता है की कोर्ट कानून पर से विश्वास लोग का उठ ही जाएगा...और सही कहें तो लोग को अब ज्यादा विश्वास भी नहीं रह गया कानून पर.....
जवाब देंहटाएंaajkal to dimag men bas yahi sab chal raha hai ..kya Karen
जवाब देंहटाएंमौजू सवाल -सवाल दर सवाल!
जवाब देंहटाएंमौजूदा कानून और कानूनी प्रक्रिया की ख़ामियों के विरुद्ध आपने उचित तर्क दिए हैं।
जवाब देंहटाएंकानून की अस्वाभाविकता को दूर करने का समय आ गया है, देश के ‘विधाताओं‘ तक ये विचार संचरित हो जाएं तो अच्छा हो ।
चिंता का विषय यह भी है कि ‘राजनीति का अपराधीकरण‘ अब ‘कानून का अपराधीकरण‘ में तब्दील होने लगा है।
Aam janta ka vishwas dagmagane laga hai.....kuchh samajh men nahi aata. Aap ne bahut sahi mudde uthaye hai.
जवाब देंहटाएंAam janta ka vishwas dagmagane laga hai.....kuchh samajh men nahi aata. Aap ne bahut sahi mudde uthaye hai.
जवाब देंहटाएंलगता है इंसाफ के तराजू में आम इंसान का पलड़ा गल-घोंटू बन गया है...और न्यायपालिका निरन्तर बड़े नामी लोगों से दूसरे पलड़े को भारी से भारी बनाती जा रही है...
जवाब देंहटाएं:-(
जवाब देंहटाएंआने वाला साल काश बेहतर हो...बहुत दर्द दिये इस २०१२ ने.
ऊपर वाले का इन्साफ भी अजब है..
सादर
अनु
न्याय व्यवस्था पता नहीं ये कब सोचेगी कि जिम्मेदारी क़ानून बनाने पर खत्म नहीं होती बल्कि वहाँ से शुरू होती है |
जवाब देंहटाएंलेकिन हमारा कानून हमें सच्चे अर्थों में सबर करना सिखाता है कि क़ानून पर भरोसा रखो इन्साफ मिलेगा |
मेरी देश के आला अधकारियों और कुर्सी तोडू नेताओं से सिर्फ इतनी सी गुजारिश है कि माई-बाप कानून पे पूरा भरोसा है लेकिन अब इस भरोसे की चादर इतनी पतली हो चुकी है कि कभी भी फट सकती है और अगर ये फटी तो सामने कानून नंगा खड़ा दिखेगा | हुजूर , आपकी इज्जत अब आपके हाथ में है |
.
उस दिन के बाद से न मेरा ब्लॉग लिखने का मन हो रहा है न कुछ और | इतना सा लिखा जरूर था -
मेरी माँ को मुझ पर फक्र है ,
मेरी बहन भी नाज करती है मुझ पर ,
वो भी तो किसी का बेटा था ,
शायद किसी का भाई भी रहा होगा ,
कोई होगा , जो उस पर भी फक्र करता होगा ,
अब खुद पर शर्म आती है ,
नजरें नहीं मिलाता खुद से ,
आईना देखता हूँ ,
तो कहीं उसका भी अक्स दिख जाता है |
सादर
बहुत गम्भीर स्थिती है पर आज के दौर में क़ानून से भरोसा उठने वाला है
जवाब देंहटाएं....नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं
देर है अंधेर नहीं वाली बात बिलकुल बेकार है, देर होते ही अंधेर हो जाता है।
जवाब देंहटाएंपूरी व्यवस्था ही चरमराई हुई है। आज भी पुलिस,कोर्ट का ऐसा खौफ है लोगो के मन में कि अन्याय सहते रहते हैं पर चुप रहते हैं .
आशा है इस नए साल में कुछ तो बदलेगा, उस बहादुर बिटिया का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा .
मन को उद्वेलित करने वाला लेख....
जवाब देंहटाएंबहुत गंभीरता से आपने सारी बातें कह दी .....काश यह आवाज सोये कानों तक रेंग जाती ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सामयिक चिंतन कर जागरूक करती प्रस्तुति ...
ऐसा साल न आये दुबारा,
जवाब देंहटाएंदुख ऐसा न छाये दुबारा।
काश कि कानून बनाने वाले कानून लागू करने वालों को आपकी दृष्टि मिली होती । बहुत से सार्थक प्रश्न उठाता है यह झिंझोड देने वाला आलेख ।
जवाब देंहटाएंचिरनिद्रा में सोकर खुद,आज बन गई कहानी,
जवाब देंहटाएंजाते-जाते जगा गई,बेकार नही जायगी कुर्बानी,,,,
recent post: किस्मत हिन्दुस्तान की,
Hi Dadu....aap vishwas nahin karoge par yaad aati hai aap sabki. Bas ab aana nahin hota...kaise ho aap
जवाब देंहटाएंजिंदा हूँ बेटू! मैं भी याद कर रहा था तुम्हें!!
हटाएंअपना ख्याल रखो और मेरी गुडिया का भी!!
Qanoon badalne kee sakht zaroorat hai...kalka akhbaar padha...jisme likha tha,ki,SC ne ek aadmee ko isliye baree kiya,ki usne rape aur qatl karte samay( wo bhi do qatl) sharab pee rakhee thee...wo hosh me nahee tha! wah!
जवाब देंहटाएंसरकार और माननीय जी लोग बड़े जोरदार ढंग से फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की बात कर रहे है , अभी जानकारी मिली की राजेस्थान में एक केस फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में 14 सालो से चल रहा है, ये है फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की हकीकत , राजेस्थान में ही एक विदेश लड़की के साथ उड़ीसा के एक पुलिस आफिसर के बेटे ने रेप किया था हो हल्ला हुआ फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बना और कोर्ट ने दो तिन महीनो में सजा सुना दी , किन्तु एक दो साल बाद ही अपराधी पेरोल पर रिहा हुआ और फरार हो गया और पुलिस उसे आज तक पकड़ नहीं सकी , कौन पूछने वाला है , और बिहार के रेप और हत्या के केस में मिली फांसी की सजा को महिला राष्ट्रपति ने माफ़ कर आजीवन कारावास में बदल दिया , फांसी की सजा मिलने के बाद हो भी जाये इसके क्या गारंटी है , अभी अभी बेटी के स्कुल से आ रही हूँ घटना के बाद चिंतित थी सो बस के कर्मचारियों के बारे में पड़ताल करने गई थी प्रिंसपल ने कहा आप की चिंता से हम सहमत है आप पैनिक ??? न हो भले सरकार पर सिस्टम पर भरोषा न करे पर भगवान पर भरोषा करे , अब पता चला की स्कुल में हमारे बच्चे भगवान भरोसे है , ये सुनने के बाद अब किसके पास जाऊ ।
जवाब देंहटाएंजर्जर न्याय व्यवस्था सरकार की संवेदनहीनता के साथ साथ हमें अपने गिरेबान में भी झाकना होगा. हम अधिकार मांगने में पीछे नहीं रहते परन्तु क्या हम अपने कर्तव्यों का निर्बाह ठीक से कह रहे हैं. कुछ ताज़ा उदाहरणों को छोड कर हमें दुसरे के दुःख दर्द से कुछ लेना देना नहीं. हमें खुद भी दूसरों के प्रति संवेदनशीलता दिखानी पड़ेगी.
जवाब देंहटाएंलोहड़ी, मकर संक्रान्ति और माघ बिहू की शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंकोर्ट-कचहरी का चक्कर वास्तव में कितनी जानलेवा होती है,वो आपके लेख में स्पस्ट रूप से उजागर हुई है.दुनिया के पागलखाने में पागलों द्वारा स्थापित न्याय प्रणाली को देखकर हँसे या रोयें कुछ समझ में नहीं आता.
जवाब देंहटाएंयह लेख बहुत देर से पढ़ा .... आपने सटीक मुद्दे उठाए हैं .... न्याय व्यवस्था इतनी ढीली ढाली है कि अपराधी आराम से छूट जाते हैं ... यदि त्वरित गति से केस निपटाए जाएँ तो शायद कुछ व्यवस्था में परिवर्तन आए ।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर देर से आना हुआ .... सटीक मुद्दे उठाए हैं .... न्याय प्रक्रिया में थोड़ा जल्दी कि जाये तो अपराध कम हो सकते हैं ।
जवाब देंहटाएंजनम दिन की बहुत बहुत बधाई ओर शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंसलिल जी,इस बार थोडा लेट हो गया पर happy birthday !
जवाब देंहटाएंWaiting... :-/
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें!!!
जवाब देंहटाएंअद्भुत,अनन्य
जवाब देंहटाएं