सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

मेरे भैया - एक लघु-कथा

रामलाल के रिटायर होने के बाद, उसके सामने दो सबसे बड़ी ज़िम्मेवारी थी, सिर पर एक मुकम्मल छत और बेटी का ब्याह. रिटायरमेण्ट के पैसों से वो सिर पर पक्की छत का तो इंतज़ाम कर सका, ताकि इज़्ज़त से मकान में नहीं घर में रह सके. लेकिन ईमानदारी की नौकरी में उसने कोई जमा-पूँजी नहीं इकट्ठा की इसलिए रजनी की शादी की उसे बड़ी चिंता रहती थी. कहने को तो वो बड़े फ़ख्र से कहता था कि उसकी असली जमा पूँजी तो उसकी औलाद हैं, बेटा रमेश और बेटी रजनी. उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाकर इस क़ाबिल बना दिया है कि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें.

रमेश अच्छी नौकरी पर लग गया और उसने पिछले साल दिल्ली में अपने साथ काम करने वाली एक लड़की से शादी कर ली. लड़की वाले जल्दी शादी करने पर इतना ज़ोर दे रहे थे कि समय कम होने के कारण रामलाल और रजनी शादी में शामिल नहीं हो पाए. हालाँकि शादी के महीने भर बाद वो अपनी पत्नी को उनसे मिलवाने ले गया. बहू की जमकर आवभगत हुई और फिर एक सप्ताह के बाद दोनों काम पर लौट गए. हर हफ्ते नियम से फ़ोन करते हैं दोनों.

रामलाल जब भी कभी रजनी की शादी की बात रमेश से करता है तो वो अपनी मजबूरी बता देता है कि नई नौकरी है, समय की कमी है, दिल्ली में उसकी बिरादरी के लड़के कहाँ मिलते हैं. घुमाफिराकर रामलाल को उसने यह भी कह दिया कि अब आप रिटायर हो चुके हैं तो बिरादरी में ढूँढिए, परिवार में देखिए, रिश्तेदारों को कहिए... ज़रूर अच्छा रिश्ता मिल जाएगा साथ यह भी जता दिया था कि उसने अभी नया घर बसाया है इसलिए पैसों की तंगी लगी रहती है.

रजनी पढ़ी लिखी लड़की थी, नौकरी की तैयारी भी कर रही थी. यह भी समझती थी वो कि उसका भाई उसके लिए कोई रिश्ता नहीं ढूँढेगा और बूढे बाप के लिए इधर उधर भटकना मुश्किल था. उसे किसी से प्यार भी तो नहीं था कि लव मैरिज का ही सन्योग बन जाता. उसकी शिक्षा और आत्मसम्मान ने उसके चरित्र को इतना मज़बूत तो बना ही दिया था कि वो किसी पर डोरे डालने जैसे स्तर तक भी नहीं जा सकती थी.

एक दिन रजनी की पक्की सहेली ने किसी से उसका परिचय करवाया. उसका व्यवहार बिल्कुल खुली किताब की तरह था. एक खुली खिड़की की तरह कोई भी उसके अन्दर झाँक सकता था. उसमें कोई भी ऐसा ऐब रजनी को नहीं दिखा, जिससे वो उससे दूर हो सके. उसने रामलाल को भी उससे मिलवाया. बूढ़ा बाप... उसे तो यूँ लगा मानो उसका रमेश उसे मिल गया हो.

जल्दी ही उसने रजनी के लिये बिरादरी  के अन्दर कुछ रिश्ते सुझाए.  उनमें से कुछ वाहियात लोग निकले, कुछ लड़के लोफर निकले.. लेकिन वो तो पता चल ही जाता है. शादी कोई गुड्डे-गुड़ियों का खेल नहीं. फिर भी रजनी ने उसपर भरोसा नहीं खोया. रामलाल को भी बस उसपर ही भरोसा था. उसने रजनी से कहा कि वो बस अपने शहर या उसके आस-पास ही रिश्ता चाहती है ताकि बाबा को जब चाहे आकर देख ले, मिल ले. अगर वो कहे तो किसी और शहर में भी अच्छे लड़के मिल सकते हैं. रजनी ने बाबा से बात की और बनारस या उसके पास लड़का देखने की बात बताई. सोचा बनारस में रजनी की बुआ रहती हैं, इसलिए लड़के के घर-परिवार का पता लगाने में सहूलियत रहेगी.

इसे संजोग कहें या रजनी की किस्मत. उसने तीन-चार रिश्ते बनारस, लखनऊ के बताए. बनारस के एक परिवार में बात आगे बढ़ी और उन्होंने साफ कह दिया कि उन्हें बस लड़की के गुण और व्यवहार की गारण्टी चाहिए, वे बिना दहेज शादी करने को तैयार हैं. रजनी की बुआ ने बताया कि उस परिवार में उनके ससुराल की रिश्तेदारी है. लड़का बड़ा सुशील है, कोई ऐब नहीं, अच्छी नौकरी है और रमेश से अच्छा कमाता है.

अगले ही हफ्ते रजनी रामलाल के साथ बनारस अपनी बुआ के पास चली गई. लड़के वालों को लड़की बहुत पसन्द आई. उन्होंने रजनी के पढ़ने या नौकरी करने से कोई ऐतराज़ नहीं जताया. शादी पक्की और सगाई की तारीख हफ्ते भर बाद की तय हो गई. बैंक से पैसे निकालकर, जल्दी-जल्दी रामलाल ने सारी तैयारियाँ की.

आज रजनी की सगाई है और वो जितना खुश अपनी सगाई से नहीं है, उससे ज़्यादा खुशी उसे इस बात की है कि उसके बाबा खुश हैं. रमेश भैया को ख़बर कर दी गई, लेकिन उसके पास कोई ज़रूरी प्रोजेक्ट था इसलिए वो नहीं आ सका. हाँ उसने ये वादा किया कि वो शादी पर ज़रूर आएगा भाभी के साथ.

इस खुशी और जश्न के माहौल में वो उसे कैसे भूल सकती थी, जिसकी वज़ह से ये खुशियाँ उसके जीवन में आई थीं. उसे इतना अच्छा रिश्ता मिला. उसने वो किया जो उसका सगा बड़ा भाई भी नहीं कर पाया. ख़ैर ये समय कड़वाहट का नहीं. उसने सोचा कि अपने इस "अनोखे भाई" को एकबार धन्यवाद तो कह दे.

उसने लैपटॉप ऑन किया और टाइप किया डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू. जोडियाँस्वर्गमेंबनतीहैं.कॉम. साइट के खुलते ही उसने मुस्कुराकर कहा – मेरे भैया! तुम्हें शुक्रिया कहते हुए शर्म आ रही है! तुम्हारी वज़ह से आज ये दिन नसीब हुआ है. लव यू भैया!!

42 टिप्‍पणियां:

  1. अक्सर आभासी दुनिया के वास्तविक रिश्ते ... वास्तविक दुनिया के आभासी रिश्तों से बढ़ कर निकलते है |

    है न दादा !?

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  2. अब रिश्‍ते नेट के द्वारा ही ढूंढे जा रहे हैं, किसी को किसी के लिए समय नहीं है।

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  3. मेरा निजी अनुभव इन साईट ज्यादा अच्छा नहीं रहा है , जब तक आप पेय नहीं करते है आप के सामने ऐसे ऐसे आप के पसंद के ( आप उनके फार्म में लिख चुके होते है कि आप को कैसा लड़का या लड़की चाहिए ) रिश्तो की लाईन लगा देते है की आप का दिल खुश हो जाता है फिर आप से कहा जता है कि पैसे भरिये तब जानकारी दी जायेगी जैसे ही आप पैसे भरते है अचानक से सारे रिश्ते गायब हो जाते है या आप की बातो का जवाब ही नहीं दिया जाता है , क्योकि वो साईट वाले खुद नकली प्रोफाइल बना कर आप को भेजते है , जो असली है उनमे से जैसा की आप ने कहा कि ज्यादातर लोफर लफंगे टाइम पास करने वाले मिलेंगे , कुछ अच्छे मिल भी गए तो वही कुंडली , जाति , दहेज़ का , सुंदरता आदि आदि का चक्कर जो बाहर की दुनिया में है । असल में ये विवाह की नहीं डेटिंग की साईट ज्यादा लगी जहां लडके और लडकिया जो निजी जीवन में कोई साथी नहीं खोज पाते या उनकी करनी से मिलते नहीं है , वो यहाँ आते है कई लोगो से मिलते है डेटिंग करते है उसके बाद पसंद आये तो विवाह नहीं तो अगले की खोज ।

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    1. अंशुमाला जी! मुझे भी बहुत भरोसा नहीं होता था इन साइट्स पर! लेकिन यह कहानी एक सत्यकथा पर आधारित है! और ऐसा एक भी उदाहरण अन्धेरे में रोशनी की किरण की तरह है!

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  4. बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति । आभासी दुनिया का एक खुशनुमा पहलू। excellent …

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  5. कहानी का अंत पढ़कर अचानक से ढेर सारा आनंद आ आता है। अच्छा लगता है। ईश्वर मदद करना चाहता है तो किसी न किसी बहाने कर ही देता है।

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  6. संसार में परिवर्तन नहीं बदलाव आ रहा है। मनुष्य यंत्र और यंत्र मानवीय! संवेदना से ओत-प्रोत कथा प्रभावित करती है।

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  7. ऐसे झटके तो मंटो साहब भी नहीं देते थे :)

    लिखते रहिये।

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  8. सच कहा आपने अँधेरे में एक रौशनी की किरण ही है
    वैसे इंटरनेट के माध्यम से सच्चा जीवनसाथी मिलना बड़ी किस्मत की बात है ....

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  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति ...!! आज कल इंटरनेट शादी ज्यादा कर रहे हैं और सफल भी रहे हैं ......

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  10. हम तो शौट के बाद बॉल को देखते जा रहे थे चौका होगा सोचा भी पर आपने तो पूरे स्टेडियम के बाहर पहुचाँ दी :)

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  11. खून के रिस्तों का एक कडवा सच । उसकी तुलना में अक्सर दूसरे लोग ज्यादा करीब होजाते हैं क्योंकि वे स्वार्थ से परे होते हैं लेकिन यहाँ तो कोई और ही अपनापन निभा गया । अन्त एकदम अप्रत्याशित निकला ।

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  12. संवेदना पूर्ण, प्रभावित करती लाजबाब प्रस्तुति...!
    RECENT POST -: पिता

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  13. सिक्के के दो पहलू की तरह ही ये साइट भी हैं..अंशूमाला जी बात भी काफी हद तक ठीक है....खासकर दूर दराज में रिश्तों में तो तबतक नहीं विश्वास किया जा सकता जबतक कोई विश्वासी उसकी जानकारी न दे दे..हालांकि अब तो रिलेशनशिप मैनेजर भी होने लगे हैं जो चार्ज लेकर परिवार की गारंटी देते हैं...

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  14. जहाँ सब अपने-अपने में व्यस्त हों वहाँ ऐसी सहायता की उपयोगिता है . यों तो दूर-दराज़ के संबंधों में भी अक्सर धोखे हो जाते हैं .

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  15. बदलते समय के बदलते रिश्ते, जो निभाये वही असली रिश्तेदार।

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  16. जो साथ दें वही प्रियतम, विकल्प देती है तकनीक।

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  17. हर तरह के अनुभव ,मिलते हैं इन साइटों के बारे में ... अगर सही तरीके से इनका उपयोग हो और सही रिसल्ट आ जाए तो ये एक अच्छी बात है ...
    अच्छी लगी सस्पेंस भरी कहानी ...

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  18. बहुत रोचक और आज के हालात का सटीक चित्रण...आखिर तक सुस्पेंस बनाये रखना कहानी का सबसे सशक्त पक्ष है....

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  19. गज्ज़ब का अंत....! लेकिन मज़ा आ गया चाचा...
    वैसे अगर जैसा अभी नज़र आ रहा है, वैसे में मेरे दोस्त प्रभात की कहानी भी कुछ ऐसे ही होने वाली है....इन साइट्स के मेहरबानी से !! :) :)

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  20. :-) बहुत प्यारी कथा.....
    पूरी कहानी का बोझ आख़री की दो पंक्तियों ने हल्का कर दिया !!

    दादा मेरी तरफ से जन्मदिन की शुभकामनाएं स्वीकारें.....fb पर भी पोस्ट किया मगर आप acknowledge न करें तो मन उदास रहता है...
    wish you all the happiness of this world.
    love-
    anu

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  21. अच्छी कहानी!
    ***

    जन्मदिन की शुभकामनाएं!
    सादर!

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  22. तीरथ अंतर्जाल का, स्रोत सलिल-सुर-सत्व,
    अनुभूतिज अनुबंध-सा, अविकारी अपनत्व।

    सस्नेह !

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  23. आभास विश्वास बन जाता है इसका अनुपम उदाहरण है ये लघुकथा।

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  24. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  25. वैसे तो एक अच्छी शादी लॉटरी निकलने के बराबर ही मानी जाती है और उसका संयोग होने की संभावना महा-अनप्रेडिक्टेबल है । पहले इंटरनेट पर ये काम नहीं होता था क्योंकि स्वर्ग के एडमिनिस्ट्रेशन में इंटरनेट का प्रावधान नहीं था, भगवान् जी को इसके बारे में मालूम ही नहीं था, अभी कुछ साल पहिले ही वहाँ लगा है, तो अब इसका भी ऑप्शन दे दिया गया है :)

    विवाह जिस विधि भी तय तो, संपन्न हो, अगर जोड़ी जम गई तो डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू.जोडियाँस्वर्गमेंबनतीहैं.कॉम है वर्ना डब्ल्यू डब्ल्यू एफ़. मुझेइसनरकसेकबछुटकारामिलेगा.कॉम :)

    बढ़िया रहा आदि से अंत तक।

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  26. बहुत बढ़िया कहानी है आज के संदर्भ में
    लेकिन अंशुमाला जी की टिप्पणी भी गौर करने लायक है !
    बात अगर लड़कियों के विवाह की हो रही है तो इन साईट्स ज्यादा परिवार वालों की मर्जी से ज्यादा मै लड़कयों के स्वयं चुने हुए रिश्ते को ज्यादा पसंद करुँगी, इतना पढ़ लिखकर नौकरी करने वाली लड़कियों को आखिर उनके पसंद का लड़का चुनने अधिकार होना चाहिये ! पहले भी तो स्वयंवर होते थे, आखिर प्रेम विवाह में बुरा क्या है लेकिन माता-पिता को इस मामलें थोडा उदार दृष्टिकोण अपनाना चाहिए !

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  27. बहुत बढ़िया कहानी है आज के संदर्भ में
    लेकिन अंशुमाला जी की टिप्पणी भी गौर करने लायक है !
    बात अगर लड़कियों के विवाह की हो रही है तो इन साईट्स से ज्यादा, परिवार वालों की मर्जी से ज्यादा मै लड़कयों के स्वयं चुने हुए रिश्ते को ज्यादा पसंद करुँगी, इतना पढ़ लिखकर नौकरी करने वाली लड़कियों को आखिर उनके पसंद का लड़का चुनने अधिकार होना चाहिये ! पहले भी तो स्वयंवर होते थे, आखिर प्रेम विवाह में बुरा क्या है लेकिन माता-पिता को इस मामलें में थोडा उदार दृष्टिकोण अपनाना चाहिए !

    आपके ब्लॉग का अनुसरण कर रही हूँ अब आने में देर नहीं होगी !

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  28. बहुत बढ़िया प्रेरक कहानी ..अपनी सी ..
    अंत भला तो सब भला ..
    सच कहते हैं रिश्ते ऊपर से बनकर आते हैं ..हम सब तो माध्यम भर बनते हैं

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  29. ऐसी साईट का एक रोचक वाकया है ,मेरी एक फ्रेंड की बेटी ऊँची पोस्ट पर है, वेतन भी बहुत अच्छा है, उसने पहले बिहार में लड़का ढूंढा पर वहाँ लड़कों के लम्बे चौड़े दहेज़ की मांग पर हतप्रभ रह गयी ,बेटी भी दहेज़ वाली शादी के लिए तैयार नहीं थी . फिर उसने इस साइट पर लड़की की प्रोफ़ाइल डाली और उसे देखकर लड़की के साथ कॉलेज में पढने वाले एक लड़के ने संपर्क किया . वह भी अच्छी जॉब में है .उसने स्वीकार किया कि कॉलेज में इस लड़की पर उसका क्रश था पर कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया .दोनों जल्दी ही विवाह्सूत्र में बंधने वाले हैं.

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  30. आज अरेंज मैरिज में बहुत दिक्कत है और कर्तव्य से पलायन हो तब तो .... इस शादी के माध्यम से आपने एक सफल मार्ग भी दिखाया, वैसे यह एक जुए से कम नहीं

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  31. अपनेपन की गर्माहट से ओतप्रोत ......सुंदर कहानी ....

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  32. अच्छी लघुकथा है. आपके ब्लॉग पर खड़ी हिंदी में मैंने पहली बार कोई रचना पढ़ी है.

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  33. भावुक कर देती कथा!! कहते है कि जब एक खिड़की बन्द होती है तो दूसरी खुल जाती है।

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  34. भावनाओं का अनूठा संगम .... और प्रेरणात्‍मक भी

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