रोम में एक
सम्राट बीमार पड़ा हुआ था. वह इतना बीमार था कि चिकित्सकों ने अंतत: इंकार कर दिया
कि वह नहीं बच सकेगा. सम्राट और उसके प्रियजन बहुत चिंतित हो आए और अब एक-एक घड़ी
उसकी मृत्यु की प्रतीक्षा ही करनी थी और तभी रोम में यह ख़बर आई कि एक फकीर आया है
जो मुर्दों को भी जिला सकता है. सम्राट की आँखों में आशा वापस लौट आई. उसने अपने
वज़ीरों को भेजा उस फ़कीर को लाने को.
वह फ़कीर आया और
फ़कीर ने आकर उस सम्राट को कहा कि कौन कहता है कि तुम मर जाओगे... तुम्हें तो कोई
बड़ी बीमारी भी नहीं है. तुम उठ कर बैठ जाओ, तुम ठीक हो सकोगे. एक छोटा सा ईलाज कर
लो.
सम्राट जो महीनों
से लेटा हुआ था, उठा नहीं था, उठकर बैठ गया. उसने कहा – कौन सा ईलाज, जल्दी बताओ,
उसके पहले कि समाप्त न हो जाऊँ. क्योंकि चिकित्सक कहते हैं कि मेरा बचना मुश्किल
है. वह फकीर बोला कि क्या तुम्हारी इस राजधानी में एकाध ऐसा आदमी नहीं मिल सकेगा
जो सुखी भी हो और समृद्ध भी. अगर मिल सके तो उसके कपड़े ले आओ और उसके कपड़े तुम पहन
लो. तुम बच जाओगे. तुम्हारी मौत पास नहीं.
वज़ीर बोले – यह
तो बहुत आसान सी बात है. इतनी बड़ी राजधानी है, इतने सुखी, इतने समृद्ध लोग हैं..
महलों से आकाश छू रहे हैं महल. आपको दिखाई नहीं पड़ता. यह वस्त्र हम अभी ले आते
हैं. फ़कीर हँसने लगा. उसने कहा – अगर तुम वस्त्र ले आओ तो सम्राट बच जाएगा.
वे वज़ीर भागे. वह
उस फकीर की हँसी को कोई भी न समझ सका. वे गए नगर के सबसे बड़े धनपति के पास और
उन्होंने जाकर कहा कि सम्राट मरण शय्या पर है और किसी फ़कीर ने कहा है कि वह बच
जाएगा... किसी सुखी और समृद्ध आदमी के वस्त्र चाहिये. आप अपने वस्त्र दे दें.
नगरसेठ की आँखों में आँसू आ गये. उसने कहा – मैं अपने वस्त्र ही नहीं अपने प्राण
भी दे सकता हूँ, अगर सम्राट बचते हों. लेकिन मेरे वस्त्र काम नहीं आ सकेंगे. मैं
समृद्ध तो हूँ लेकिन सुखी मैं नहीं हूँ. सुख की खोज में मैंने समृद्धि इकट्ठी कर
ली, लेकिन सुख से अब तक नहीं मिलन हो सका. और अब तो मेरी आशा भी टूटती जाती है.
क्योंकि जितनी समृद्धि सम्भव थी, मेरे पास आ गयी है और अब तक सुख के कोई दर्शन
नहीं हुए. मेरे वस्त्र काम नहीं आ सकेंगे. मैं दुखी हूँ... मैं क्षमा चाहता हूँ.
वज़ीर तो बहुत
हैरान हुये. उन्हें फ़कीर की हँसी याद आई. लेकिन और लोगों के पास जाकर पूछ लेना
उचित था. वे नगर के और धनपतियों के पास गये. और साँझ होने लगी. और जिसके पास गये
उसी ने कहा कि समृद्धि तो बहुत है, लेकिन सुख से हमारी कोई पहचान नहीं. वस्त्र
हमारे... काम नहीं आ सकेंगे. फिर तो वे बहुत घबराए कि सम्राट को क्या मुँह
दिखाएँगे. सम्राट खुश हो गया और यह ईलाज हमने समझा था कि सस्ता है. यह तो बहुत
मँहगा मालूम पड़ता है... बहुत कठिन.
तभी उनके पीछे
दौड़ता हुआ सम्राट का बूढा नौकर हँसने लगा और उसने कहा कि जब फकीर हँसा था तभी
मैं समझ गया था. और जब तुम सम्राट के सबसे बड़े वज़ीर भी अपने वस्त्र देने का ख़्याल
तुम्हारे मन में न उठा और दूसरों के वस्त्र माँगने चले, तभी मैं समझ गया था कि यह
ईलाज मुश्किल है.
फिर जब सूरज ढल
गया तो वे सम्राट के महल के पास पहुँचे. महल के पीछे ही गाँव की नदी बहती थी.
अन्धेरे में नदी के उस पार से किसी की बाँसुरी की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी. वह संगीत
बड़ा मधुर था. वह संगीत बड़ी शांति की ख़बर लिये हुये था. उस संगीत की लहरों के साथ
आनन्द की भी कोई धुन थी. उसके संगीत में ही ऐसी कुछ बात थी कि उनके प्राण भी जो
निराशा और उदासी से भरे थे वे भी पुलक उठे. वे भी नाचने लगे. वे उस आदमी के पास
पहुँचे और उन्होंने कहा कि मित्र हम बहुत संकट में हैं, हमें बचाओ. सम्राट मरण
शय्या पर पड़ा है. हम तुमसे यह पूछने आए हैं कि तुम्हें जीवन में आनन्द मिला है? वह
आदमी कहने लगा – आनन्द मैंने पा लिया है. कहो मैं क्या कर सकता हूँ. वे खुशी से भर
गये और उन्होंने कहा कि तुम्हारे वस्त्रों की ज़रूरत है. वह आदमी हँसने लगा. उसने
कहा - मैं अपने प्राण दे दूँ अगर सम्राट को बचाना हो. लेकिन वस्त्र मेरे पास नहीं
है. मैं नंगा बैठा हुआ हूँ. अन्धेरे में आपको दिखाई नहीं पड़ रहा.
उस रात वह सम्राट
मर गया. क्योंकि समृद्ध लोग मिले जिनका सुख से कोई परिचय न था. एक सुखी आदमी मिला
जिसके वस्त्र भी न थे. अधूरे आदमी मिले, एक भी पूरा आदमी न मिला, जिसके पास वस्त्र
भी हो और जिसके पास आत्मा भी हो... ऐसा कोई आदमी न मिला. इसलिये सम्राट मर गया.
पता नहीं यह
कहानी कहाँ तक सच है. लेकिन आज तो पूरी मनुष्यता मरणशय्या पर पड़ी है और आज भी यही
सवाल है कि क्या हम ऐसा मनुष्य पैदा कर सकेंगे जो समृद्ध भी हो और शांत भी? जिसके
पास वस्त्र भी हो और आत्मा भी? जिसके पास सम्पदा हो बाहर की और भीतर की भी? जिसके
पास शरीर के सुख भी हों और आत्मा के आनंद भी?
(प्रिय ओशो के जन्म-दिवस पर उन्हीं के एक प्रवचन से उद्दृत )
(प्रिय ओशो के जन्म-दिवस पर उन्हीं के एक प्रवचन से उद्दृत )
कौन सोचता है इतना ! सबको अपनी-अपनी पड़ी है.सही या गलत किसी तरह से सब-कुछ पा लेने का लोभ जब विवेक हर लेता है तो सारा संतुलन बिगड़ जाता है .सुख के सारे साधन होते हुए भी संतुष्ट न हो इंसान, तो शान्ति कहाँ से आए?मनुष्यता के संस्कारों से हीन और भौतिक लालसाओं से उद्वेलित रह कर स्वस्थ-सुख की खोज व्यर्थ ,और अशांत मन को आनन्द कहाँ ?
जवाब देंहटाएंविचार और आचरण सही मार्ग पर आ जाये तो - शरीर का सुख और आत्मा के आनंद की बात असंभव नहीं.
ओशो के इस जन्म महोत्सव पर बहुत बहुत शुभकामनायें भाई,
जवाब देंहटाएंफिर से आउंगी आपके ब्लॉग पर !
जिस तरह चिकित्सा में प्लेसीबो का चलन है उसी तरह ज़िन्दगी में फ़ैलसी का चलन है ...बस इसीमें भगमभाग चल रही है ।
जवाब देंहटाएंऐसी कथाएं सदैव प्रासंगिक रहती हैं |
जवाब देंहटाएंपर हाँ जो देखने में आया है उसके हिसाब से कहूँ समृद्धि का आना और मानवीयता का जाना साथ साथ ही होता है
आपकी कलम की रवानगी देख कर दिल खुश हुआ और कहानी सुन कर हम मालामाल हुए!
जवाब देंहटाएंसंसार में पूर्णता की चाह रखना मरीचिका पालना है. यहाँ टुकड़ा-टुकड़ा सुख है, चुटकी-चुटकी सम्रद्धि है! कभी जमीन है, तो कभी आसमान है. जन्मा में अजन्मा भी है, और आखिर अजन्मा ही जन्मता है.
आपकी किस्सागोई आखिर तक बाँध कर रखती है, भगवान इस और भी परवान चढ़ाए!!
गुरुवर! यह ओशो के एक प्रवचन का एक अंश है, अत: अपने हिस्से की प्रशंसा प्रिय ओशो के चरणों में समर्पित कर रहा हूँ!
हटाएंसलिल भैया ,आनंद का भौतिक समृद्धि से कोई खास सम्बन्ध नहीं है . इसी विषय पर नेने चकमक में एक बड़ी खुबसूरत कहानी पढ़ी थी—एक मल्लाह टोप से अपना मुंह ढंके रेत पर लेता कोई गीत गुनगुना रहा था . उसके साथी को अचरज हुआ . जबकि अभी दिन ढलने में काफी समय था वह बजाय और मछलियाँ पकड़ने के आलसी बना पड़ा था .
जवाब देंहटाएं“तुम इस समय ज्यादा मछलियाँ पकड़ सकते थे .”
“उससे क्या होता ?”
“तुम्हें ज्यादा पैसा मिलता “
“उससे क्या होता ?”
“तुम और नाबें खरीद लेते .”
“फिर ?”
“तब तुम ज्यादा पैसा कमा सकते और जीवन का ज्यादा आनंद उठा सकते”
“तो तुम्हें क्या लगता है कि इस समय मैं क्या कर रहा हूँ ?“
इस पोस्ट में बड़ा प्रेरक सन्देश है .
आनन्द दायक।
जवाब देंहटाएंकहानी से लेकर वर्तमान की वही माँग
जवाब देंहटाएंअब तो क्या है समृद्धि !
सुख - जब तक आत्मसुख नहीं, सुख है क्या ?
...................... ओशो को पढ़ना,उनके शब्दों से जीवन को देखना, महसूस करना हमेशा अद्भुत रहा है
कठोर यथार्थ!!
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रस्तुति ...सच तो यही है की सुख ढूंढने से कहीं नहीं मिल सकता है उसे अपने में ही ढूंढा जा सकता है ...
जवाब देंहटाएंप्रिय दोस्त मझे यह Article बहुत अच्छा लगा। आज बहुत से लोग कई प्रकार के रोगों से ग्रस्त है और वे ज्ञान के अभाव में अपने बहुत सारे धन को बरबाद कर देते हैं। उन लोगों को यदि स्वास्थ्य की जानकारियां ठीक प्रकार से मिल जाए तो वे लोग बरवाद होने से बच जायेंगे तथा स्वास्थ भी रहेंगे। मैं ऐसे लोगों को स्वास्थ्य की जानकारियां फ्री में www.Jkhealthworld.com के माध्यम से प्रदान करती हूं। मैं एक Social Worker हूं और जनकल्याण की भावना से यह कार्य कर रही हूं। आप मेरे इस कार्य में मदद करें ताकि अधिक से अधिक लोगों तक ये जानकारियां आसानी से पहुच सकें और वे अपने इलाज स्वयं कर सकें। यदि आपको मेरा यह सुझाव पसंद आया तो इस लिंक को अपने Blog या Website पर जगह दें। धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंHealth Care in Hindi
सम्राट जब उठ बैठा था तब उसमें आशा का संचार तो हुआ ही होगा। आशा की भावना से मरा तो दुखी निश्चय ही नहीं होगा। यही काफी है।
जवाब देंहटाएंहम सोचते है बहुत सारा धन, साधन सुविधाएँ पहले इकट्ठा करेंगे बाद में सुख शांति से जीवन बिताएंगे इसी धन,पद,प्रतिष्ठा प्राप्त करने की दौड़ धुप चिंता में अनेक बिमारियों का शिकार होकर सुख लेने की क्षमता खो देते है ! वैसे भी सुख का आनंद का संबंध समृद्धि से नहीं हमारी संवेदनशीलता पर निर्भर करती है ! @ क्या हम ऐसा मनुष्य पैदा कर सकेंगे जो समृद्ध भी हो और शांत भी?
जवाब देंहटाएंनिश्चित हम ऐसा मनुष्य जो की हमारे ही भीतर है विकसित कर पाएंगे जो किसी भी अति पर न जाते हुए शरीर आत्मा का सम्यक विकास कर सके जो धन का भी सही उपयोग कर सके ध्यान का भी, अक्सर ओशो अपने प्रवचनों में जोरबा-बुद्ध एक नए विकसित मनुष्य का जिक्र करते है ये वही है ! एक संतुलित व्यक्तित्व ही संपूर्ण हो सकता है सुखी हो सकता है ! उस फ़क़ीर का हँसना सच में रस्यपूर्ण लगता है इलाज जितना सस्ता दिखाई देता उतना है नहीं :) ! बेहतरीन पोस्ट !
बहुत खुब, बहुत अच्छा लेख है। आप ऐसे ही अपना लेख हम लोगों तक पहुचाते रहें।
जवाब देंहटाएंमैं एक Social worker हूं और समाज को स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां देता हुं। मैं Jkhealthworld संस्था से जुड़ा हुआ हूं। मेरा आप सभी से अनुरोध है कि आप भी इस संस्था से जुड़े और जनकल्याण के लिए स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां लोगों तक पहुचाएं। धन्यवाद।
HEALTHWORLD
बहुत रोचक एवं प्रेरक.
जवाब देंहटाएंसुख के पीछे इंसान पूरी उम्र भागता है पर अंततः वो उसे उसके मन के अन्दर ही मिलता है ... ओशो के जन्म दिन पर इस प्रेरक और गहरी कथा को सबके सामने रखना ओशो को सबसे बड़ी श्रधांजलि है ... बहुत ही रोचक और प्रेरक भाव ...
जवाब देंहटाएंओशो सही अर्थों में दार्शनिक थे, वही कहा जो उन्होंने देखा।
जवाब देंहटाएंप्रवचन के बीच उनके द्वारा कही गई कहानियां भले ही उसी समय रची गईं हों किंतु वैसी घटनाएं संसार के हर कोने में घटित होती रही हैं।
विरोधाभासों से भरी इस दुनिया में हम किसी को भला कैसे सुखी और समृद्ध होने की शुभकामना दे सकते हैं !
नए साल पर आपको सपरिवार हार्दिक मंगलकामनाएं!
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....!!
जवाब देंहटाएंbahut hi rochak bodh katha.....
जवाब देंहटाएंइतने सुंदर दृष्टांत के साथ अपनी बात कहने वाले ओशो के सिवा दूसरा कोई नहीं पढ़ा ...... ओशो अपनी बात कहते हुए पाठक को बांध लेते हैं।
जवाब देंहटाएंसुशी के लिए समृद्धि होना आवश्यक नहीं समृध्दि सुखी भी हो यह भी जरूरी नहीं
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
kahani ki rochakta ke sath kitni badi bat aap samjha gayen....
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