बुधवार, 29 जून 2011

मैं और मेरी परछाईं

पन्द्रह अगस्त अउर छब्बीस जनवरी का राष्ट्रीय त्यौहार हमरे अपार्टमेंट में बहुत जोस के साथ मनाया जाता है. सुबह झंडा फहराना, फिर बच्चा लोग का कबिता, गाना अउर भासन, दिन भर खेल कूद का परतिजोगिता अउर रात में कल्चरल प्रोग्राम. तब चैतन्य जी भी हमरे साथ रहते थे. हम दुनो मिलकर प्रोग्राम का रूपरेखा बनाते, पोस्टर लगाते, रिहर्सल देखते, गाना सुनते अउर इसके अलावा नौकरी भी कर लेते थे.

ऊ साल चैतन्य जी डिसाइड किये कि रियलिटी शो के जईसा हम लोग भी तीन ठो जज रखेंगे इस्टेज पर. एगो नया आइटम भी हो जाएगा अउर जब तक जज लोग का कमेन्ट अउर मजाक चलेगा, तब तक अगिला प्रोग्राम का बच्चा लोग तैयार हो जाएगा. हो गया फाइनल, तीन जज में से हम, चैतन्य अउर हमरे एगो साथी की पत्नी, रचना भाभी का नाम फाइनल हो गया. स्क्रिप्ट पर काम चलने लगा. तब अचानक एक रोज बातचीत करते करते हम बिहारी भासा में कुछ मजाक में बोले. बस चैतन्य जी उठकर खडा हो गए, बोले, “मिल गया मुझे तीनों जजों का कैरेक्टर.”

उनका कहना था कि हमलोग अपने असली रूप में नहीं रहेंगे. जब मजाक करना है त दोसरा कैरेक्टर में बनकर हमलोग मजाक करेंगे, “आपका कैरेक्टर फाइनल है लालू यादव का और आपका नाम रहेगा आलू यादव. मैं किशोर कुमार और मेरा नाम शोर कुमार. भाभी जी बनेगी ऋतू बेरी और कहलाएंगी फेंकू बेरी, क्योंकि इनसे लंबी-लंबी फेंकने वाली औरत के डायलाग बुलवाने हैं.”

बस सबकुछ तय हो गया. अपार्टमेंट में पोस्टर लगा दिया गया कि तीन मसहूर मेहमान हमारे प्रोग्राम में पधार रहे हैं, वही जज होंगे प्रोग्राम के. नाम नहीं बताया गया था. बस कहा गया कि कुछ ख़ास कारन से उनका नाम अभी गुप्त रखा गया है. अपार्टमेंट में कानाफूसी सुरू हो गया. कहीं भी कोइ मिल जाता तो धीरे से पूछता था कि बर्मा जी किसको बोला रहे हैं. औरत मंडली हमलोगों के धरमपत्नी को टटोलने में लगा हुआ था. मगर सस्पेंस जो बहाल हुआ सो आख़िरी टाइम तक नहीं टूटा.

प्रोग्राम सुरू होने के पहले मंच पर कोना में टेबुल अउर तीन ठो कुर्सी लाकर रख दिया गया. टेबुल पर गुलदस्ता सजा दिया गया. अभी भी सस्पेंस बाकी था. चैतन्य जी अउर रचना भाभी का मेकप लगभग ओरिजिनल था. माने उनका चेहरा हर रोज के जईसा था. हमको कहा गया गया था तनी इस्पेसल मेकप करने के लिए. साथ में हिदायत भी कि हमको बाद में आना है. चैतन्य जी का आदेस था कि हम मोटर साइकिल पर, दुनो तरफ अपने अपार्टमेंट के दू गो गार्ड के साथ (नकली) बन्दूक के सिकोरिटी में दरसक लोग के बीच से आयेंगे. आने के पहले तीन चार बार घोसना किया जा चुका था कि बस अब हमारे अतिथि आ चले हैं.

हम मेकप करके घर में बंद थे. सबलोग प्रोग्राम अउर चीफ गेस्ट के इंतज़ार में था, इसलिए हमरे तरफ किसी का ध्याने नहीं गया कि हम देखाई नहीं दे रहे हैं. चैतन्य जी धीरे से हमलोग के एगो सहकर्मी ससांक को इसारा किये कि जाकर बर्मा जी को बुला लाओ. नीचे गार्ड रूम में मोटर साइकिल रेडी था. ऊपर चौथा मंजिल पर हमरे फ़्लैट में ससांक घंटी बजाया. किचेन से झांककर देखे कि ससांक है, त हम दरवाजा खोले.

ससांक हमको देखकर बोला, “प्रणाम चाचा जी! वर्मा सर अंदर हैं? ज़रा बुला दीजिए.”

हमको लगा कि मेकप एकदम पक्का है. हंसकर हम बोले, “ अरे शशांक बाबू, हम ही हैं. चलिए.” ससांक का लजाया हुआ चेहरा देखने लायक था. अउर जब हमरा एंट्री हुआ त दरसक लोग भी सुरू में सोच में पड़ गया कि ई कौन है.

प्रोग्राम बहुत अच्छा रहा. हम तीनों का कैरेक्टर एस्टैब्लिश हो गया. आज भी ओही प्रोग्राम का तस्वीर हमरा ब्लॉग का प्रोफाइल फोटो है. हमरा फोटो को लेकर केतना लोग के अंदर कन्फ्यूजन बना हुआ था. अभी भी हो सकता है पता नहीं. केतना लोग नाराज हो गए “संवेदना के स्वर” पर हमरा फोटो देखकर अउर इहाँ पर वाला फोटो देखकर. ऊ लोग का कहना था कि हम धोखा दिए हैं. बहुत समझाने के बाद ऊ लोग माने.

अउर अब तो ई फोटो हमरा ट्रेड मार्क हो गया है.

54 टिप्‍पणियां:

  1. चलो जी एक और रहस्य से पर्दा उठा !!!
    जय हो महाराज ...

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  2. अच्छा तो ई बात था.... हमहु शुरु में धोखा गये थे। मगर बाद में बुझने लगे थे मगर आज उ ओकेजन का पता भी चलिये गया। यही होता है न आन स्पाट क्रियेटिविटी.... !

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  3. हम भी प्रोफाइल फोटो से आपका फोटो मिला रहे थे... कई बार खुद से ही पूछे थे... चलिए आज पता लगा... आनंद आया....

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  4. बहुत रोचक पोस्ट. हम खूब ही हँसे पढके...

    नीरज

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  5. अरे हम तो समझ ही रहे थे लालू यादव का ओरिजिनल फोटो है. हमेँ क्या मालूम था, आलू यादव जी है.
    लहजा भी खूब है।

    लाजवाब सँस्मरण!!

    तनिक ज़ूम कर दें, प्रोफाइल पर!!

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  6. ओह तो ये बात है. गज़ब ढा रहे हैं आलू यादव के भेष में. और वो कार्यक्रम तो कमाल रहा होगा.

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  7. वाह बहुते बढ़िया काम करते हैं इतना अच्छा मजेदार पोस्ट लिखकर...

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  8. लो जी आज पता चला, नहीं तो अभी तक मैं यही सोचता था की चैतन्य जी के साथ तो जवान खड़े है और यहाँ बूढ़े लग रहे है

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  9. ओहो!!! तो आलू यादव जी एक अऊर केरेक्टर...."इन्तजार" कर रहा है ....

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  10. मैं भी कई दिन तक सोच में था की संवेदना के स्वर वाले सलिल जी अलग है और ये अलग.. हालाँकि बाद में लगातार आपको पढ़ते रहने पर समझ गया था.. लेकिन फोटो मैं कोई नकली ही समझता था... वैसे खूब आनंद आया होगा उस दिन आपको...

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  11. मुझे लगा था की ये आप के किसी स्टेज पर किये जा रहे नाटक आदि की फोटो है पर लगता था की ये तो बिकुल लालू जी जैसा है, नाटक वाले भी क्या फिल्मो की तरह असली चरित्र न बना कर लालू जी का ही नक़ल करते है, अब पता चला ये तो लालू नहीं आलू जी है |

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  12. बस मैं भी यहि कहने वाली थी कि क्या ये फ़ोटो उसी समय की है....और आपने बता ही दिया.

    सुन्दर सन्समरण.

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  13. त आज ई रहस से परदा उठाइए दिए। हमहू एतना दिन से सोचते ही रह्ते थे कि ऊ जो फोटू में देखाई देता उससे कब भेंट गोगा। बढिया लगा चाचा जी से मिलके बड़े भाई।

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  14. वाह खड़कसिंह जी तो आप आलू यादव भी हैं।

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  15. सलिल भाई,
    मैंने तो सोचा था यह आपका असली फोटो है और ' संवेदना के स्वर' में आप मेक अप किये हुए हो.
    चलिए गलतफहमी दूर हो गयी. :)

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  16. आपका यह अंदाज़-ए-बयां पसंद आया। इस कार्यक्रम की वीडियो सी.डी. हम चैतन्य जी के यहां देख चुकें हैं। इसलिए हमारे लिए इस रहस्य से पर्दा बहुत पहले ही उठ चुका था। जिंदगी में आदमी की छवियां बदलती रहती हैं...जो नहीं बदलता वही आत्म तत्व "मैं" है।

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  17. हम तो समझे थे कि अपने चाचा का फोटू लगाए हो :-)
    शुभकामनायें सलिल सर !

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  18. @ गुरुदेव सतीश सक्सेना साहब:
    कोनों अपराध हुआ है का गुरुदेव!! एकदम्मे से "सर" कहकर लतिया दिए हैं!! ऊ दबंग सिनेमा में दबंगाइन जउन डायलोग बोले रहिन ऊहे कहे के पड़ी... "थप्पड़ से डर नहीं लगता है बड़े भाई, ई "सर" वाला प्यार से डर लगता है!!

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  19. @ऊ लोग का कहना था कि हम धोखा दिए हैं.
    ये चित्र और भाषा देखकर हम भी काफ़ी समय तक यहाँ आने से बचते रहे। धोखा ही था कि इतना सहृदय मित्र से पहिचान इतना देर में हुआ।

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  20. फोटो से क्या है , आप का लेखन तो ओरिजनल है और बिना किसी मेक अप (लाग-लपेट)के लिखते हैं ।

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  21. ओह हो..तो ये कहानी है इस फोटू का...हमको लग तो रहा था की कोई स्टेज प्रोग्राम का फोटू होगा...आपसे बहुत पहले एक बारे पूछना सोचे भी थे ;)
    मेक अप सही में मस्त किया हुआ है..जब आप फेसबुक प्रोफाइल बनाये थे तो हम भी ई फोटो और आपका क्लोज अप वाला फोटू को मिला के देखे तो लगा एकदम्मे नहीं मिलता है ...:)

    वैसे नान खतरनाक था. "आलू यादव,शोर कुमार और फेंकू बेरी" :P

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  22. मतलब यी की पर्छैयेयें ही असली हुई गवा है ...बाप रे ...

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  23. कभी कभी सलिल को सलिल सर कहने का भी दिल करता है यार...
    यह दिल की बाते हैं और कुछ नहीं... !
    शुभकामनायें !

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  24. लीजिये शीर्षक देख कर हमने सोचा....शायद आपकी एनिवर्सरी है...और आपने इस अवसर पर भाभी जी के लिए कुछ लिखा है..
    पर ये विवरण भी रोचक रहा...

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  25. करीब १५ दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  26. नमन दाऊ !

    परीक्षा में उलझे हुए थे MCA के, इसलिये गायब थे। सो अनुपस्थिति माफ़ की जाये ! :)

    हम भी बहुत बार इ सोचते थे कि अइसा भेष काहे धरे होंगे आप। एक बार गुरू [माने स्वप्निल भाई] से पूछे भी थे पर ऊ नहीं बताये थे…तब हमको लगा था कि कोनो नाटक का स्नैप होगा। आज खुला राज़ !

    ऊ प्रोग्राम में आगे का का हुआ… इ भी बताते त अउर मजा आता। :)

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  27. सलिल भाई! मैं तो सारे घटनाक्रम को साक्षी भाव से देख रहा था..और इंतज़ार में था कि रहस्योद्घाटन कैसे होता है..आज भी वो सब याद करके मन भावुक हो जाता है.. पता नहीं वैसी मस्ती फिर कहाँ...!!

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  28. wakayee apka photo dekhkar kuch aashchary sa hota tha......donon jagah do shakl kaise samajh nahin pate the.

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  29. आपका यह फोटो शुरू से ही रहस्यात्मक लगता रहा मुझे।
    जब भी आपकी पोस्ट पढ़ने ब्लॉग पर आता तो पोस्ट पढ़ने के बाद दो-तीन मिनट तक आपकी फोटो को जरूर देखता रहता।
    अब रहस्य जान गया हूं तो जब भी आपकी फोटो देखूंगा, इस रोचक पोस्ट की याद आएगी और मुस्कुराहट भी।
    फोटो के पीछे छिपी आपकी प्रतिभा को नमन।

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  30. बढ़िया लगा ये फोटो का रहस्य |
    जब तक रहेगा समोसे में आलू ......
    आगे की पंक्तिया याद नहीं आ रही |

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  31. बहुत बढ़िया, शानदार और रोचक पोस्ट ! बेहतरीन प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  32. ई लो अब मालूम पढ़ा ... फिर तो शोर कुमार की आवाज़ किशोर जैसी होनी चाहिए ... अभी जल्दी से एक ठो काना लगा दें ... आपने तो मजे ले लिए उस यादगार प्रोग्राम के कुछ मजे हम भी ले लेंगे ...

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  33. ओ तो ई है फोटो का राज.....

    बढ़िया...

    हम अनुमानित कर सकते हैं वहां का दृश्य और प्रभाव...

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  34. और आप दूसरों को रहस्यमयी बताते हैं,
    बहुत नाईंसाफ़ी है..

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  35. क़िस्सा-गोई कोई आपसे सीखे...!

    एकदम बतियाती हुई भाषा में आपके लिखे हुए को पढ़ना मुझे सदैव रोचक लगा है...आज भी।

    हाँ, एक बात कि मैं एक अरसे के बाद दस्तक दे सका हूँ...मुझे कुछेक किताबें प्रकाशनार्थ तैयार करनी थी।

    प्रसन्नता है कि आपने कभी कोई उलाहना भी नहीं दिया...और आप समय-समय पर आते भी रहे, मेरे लिखे हुए के इर्द-गिर्द!

    सलाम आपकी महब्बत को...प्रणाम आपके अखण्ड प्यार को!

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  36. सलिल जी, विवेकानंद वाली पोस्‍ट पर टिप्‍पणी के जवाब में मैंने आपके डाक का पता और चिरंजीव पुत्र का नाम जानना चाहा है, जवाब नहीं आया, संपर्क के लिए आपका मेल आइडी या फोन नं. तलाश न सका, इसलिए यहां संदेश लगा रहा हूं.

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  37. 'netgear' se comment band hona....aur phone chori
    hone se samvad.......kafi dil dukhaya hai indino..

    aap to hame apne parchaeen se hi swikar hain....

    pranam.

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  38. तुम्हारी इसा तस्वीर को जब पहली बार देखे तो मुझे लगा कि शायद पापाजी की तस्वीर है. जिन्हें पापाजी याद हैं वे सभी यही समझे थे...

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  39. मैं अभी तक आपकी तस्वीरों को देखकर यही सोचता था कि प्रोफाइल पिक तो बहुत अलग है इस से , आज राज पता चला |

    सादर

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