बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम

हमसे दिल्ली का छूटा, लिखने छूट गया. केतना तरह का परेसानी, काम का जबर्दस्ती दबाव, परिवार से अलग रहने का मोस्किल, खान-पान का दिक्कत अऊर बेमतलब का भाग-दौड़. ई सब तकलीफ अदमी भुला जाता है जब उसको कोई खाली एतने कह देता है कि साबास! मगर जमाना बहुत बदल गया है अऊर जेतना जमाना नहीं बदला, उससे कहीं जादा अदमी बदल गया है. बहुत जादे दिन का बात नहीं है, एही 10-15 साल पहिले का बात है, लोग अच्छा काम करने पर पीठ थपथपाता था. आजकल त कोई पीठ थपथपाये त सचेत होना चाहिये कि कहीं थाह-थाह कर ई त नहीं देख रहा है कि पीठ में छुरा घोंपने के लिये सही जगह कहाँ पर है.

साल 2000. जगह कोलकाता
उमर भी कम था हमरा अऊर काम को बोझा समझने का आदतो नहीं था. हमरी माता जी हमेसा सिखाती थीं कि दुनिया का बड़ा से बड़ा काम तुमसे बड़ा त कोनो जनम में नहीं हो सकता. इसलिये काम का बोझा देखकर परेसान होने से परेसानी अऊर बढेगा. बस उसको देखकर उसका मजाक उड़ाओ, त सब बोझा हल्का लगने लगेगा. बस एही बात गांठ बाँधकर हँसते, मजाक करते काम एनजॉय करते थे.

ओही समय हमरे ऑफिस में हमरी चेयरमैन का दौरा हुआ. खबर पहिलहिं आ गया था कि उनको पीला गुलाब बहुत पसन्द है. मंगवा लिया गया गुलदस्ता. उनका आने का टाइम एगारह बजे दिन में था अऊर ऊ आईं करीब तीन साढे-तीन बजे. खैर जब उनको पीला गुलाब का गुलदस्ता दिया गया त बहुत खुस होकर बोलीं,आई लव येलो रोज़ेज़!
हमरे मुँह से अचानक निकल गया (अचानक त नहिंये, लोग बताया था कि ऊ बहुत जिन्दादिल औरत हैं इसलिये जानबूझकर निकला था),वास्तव में ये लाल गुलाब थे, आपके इंतज़ार में पीले पड़ गये हैं! एतना सुनने के बाद ऊ बहुत खुलकर हँसीं अऊर पूरा ऑफिस से सॉरी बोलीं. आज का जमाना होता तो सौरी बोलना त दूर हमरा जो दसा होता ऊ कल्पना से बाहर है.  

ऊ टाइम हमरे ऑफिस में हमरे बॉस थे सिरी असोक कुमार सेनगुप्ता. हम उनके यूनियन के सदस्य नहीं थे. इसलिये ऊ खुलकर बोलते थे, भार्मा! भेन आई हैभ टु डिपेंड, आई उविल डिपेंड ऑन यू. बट भेन आई हैभ टु रेकमेण्ड, आई उविल रिकमेण्ड शुप्रभात! हम ई बात का बुरा नहीं मानते थे, काहे कि ऊ सच्चो हमरे ऊपर बहुत डिपेण्ड करते थे.

एक रोज साम को जाते समय हमको बोलाए अऊर बोले, भार्मा! ऐक्टा अर्जेंट काज आछे. (एक ज़रूरी काम है)
हैं, बोलून! (जी बोलिये!)
एई ऐकटा खूब अर्जेण्ट प्रोपोज़ल आछे. होय जाबे? (ये बहुत ज़रूरी प्रोपोज़ल है, हो जायेगा)
ठीक आछे, काल के एटाई कोरे दिच्छी! (ठीक है, कल इसी को कर देता हूँ)
एक्टू ताड़ा-ताड़ी आछे! (थोड़ी जल्दी है)
कोतो शोमोय देबेन! (कितना समय देंगे मुझे)
ऊ हमसे आँख चोराते हुये बोले, काल के एगारा टा नागाद! (कल ग्यारह बजे तक)
साम को छौ बजी ई बात हो रहा है अऊर अगिला दिन एगारह बजे तक खतम होना है काम, सब काम छोड़ियो के अगर कोई करे, त कम से कम आठ घंटा लगेगा. ऊ भी तब, जब सब कागज-पत्तर पूरा हो.

हम बिना कुछ बोले उनके पास से चले गये. रात में घर पर पड़ोसी से कम्प्यूटर माँग के काम किये, फ्लॉपी में सेभ किये अऊर सबेरे दस बजे ऑफिस पहुँचने पर प्रिंट करके अऊर दस्तखत करके सेनगुप्तो दा के आने के पहले उनके टेबुल पर पूरा फाइल रख दिये. ऊ आये, देखे अऊर फाइल लिये हुये हमरे हमरे पास आये. चुपचाप खड़े रहे, मगर उनका आँख में भरा हुआ भाव सब्द में कहने से बाहर था. खाली एतने बोले, कोखोन कोरले? (कब किया)
छाड़ून शेनगुप्तो दा! शे काज टा आमाकेई तो कोरते होतो, कोरे दिलाम! (जाने दीजिये शेनगुप्तो दा, वो काम मुझे ही तो करना था, कर दिया)

एक बार कोनो एक्झीक्यूटिव के आने पर, ऊ हमरा पीठ थपथपाकर बोले कि ई बहुत इंटेलिजेंट ओफिसर है हमारा. आऊर जवाब में हम बोले कि हमको काम का तनखाह मिलता है बस. अऊर पीठ थपथपाने से डर लगता है कि कहीं कोई पीठ में छुरा घोंपने का जगह त नहीं खोज रहा है. बात हँसी में खतम हो गया, मगर ऊ बाद में बोले कि उनको ई बात अच्छा नहीं लगा.

ई घटना हम फेसबुक पर लिखे त बहुत सा लोग बहुत तरह का बात बोला. सरिता दी फोन करके हमको समझाईं कि अपना से बड़ा लोग के बारे में ऐसा बात असम्मान समझा जाता है, चाहे ऊ बात केतनो मजाक में कहा गया हो. साथ में ईहो बोलीं कि मोहावरा बोलते समय बहुत होसियारी का जरूरत होता है, काहे कि बहुत सा लोग उसका साब्दिक माने लगाकर नाराज हो जाता है. हम सरिता दी को बिस्वास दिलाये कि आगे से हम दुनो बात का ख्याल रखेंगे.

कल रात अचानक (हमारे ‘शुभो बिजोया’ के मेसेज के जवाब में) सेनगुप्ता दा का फोन आया. पहिले त ऊ हजार गण्डा आसीर्बाद दिये ( आम तौर पर बिहार में हजार गंडा मुहावरे के साथ गाली का प्रयोग होता है) फिर फेसबुक वाला हमरे स्टैटस के बारे में बोलने लगे कि ऊ बात त ऊ कहिये भुला गये. अऊर उनको त ऊ घटना इयादो नहीं था. कहने लगे कि तुमरा अच्छा बात सब एतना इयाद है कि ई सब छोटा-मोटा बात इयाद करने का फुर्सत कहाँ है. इसके बाद ऊ जो बात बोले ऊ हमको एतना भावुक कर दिया कि हमरे आँख से आंसू निकल गया. ऊ बोले, भार्मा! आज तक कोई भी बॉस अपना ऑफिसर के बारे में सी.आर. में जो बात नहीं लिखा होगा, वो बात हम तुम्हारे बारे में लिखे थे. रेटिंग के अलावा हम लिखे कि किसी भी ऑफिस में कोई भी आदमी इन-डिस्पेंसिबल नहीं होता है, लेकिन यह ऑफिसर अगर इन-डिस्पेंसिबुल नहीं है तो भी हमारे संस्थान के लिये एक बेशकीमती ऐसेट है!

अब बुझाता है कि उनके एही सब बात का असर रहा होगा कि परदेस में रहते हुये, बहुत सारा लोग के बीच से हमको बिदेस में चार साल का पोस्टिंग मिला.

ई बंगाल का जादू भी हमरा पीछा नहीं छोडता है.


46 टिप्‍पणियां:

  1. बाह.. भउत बढ़िया लगा बिहारी भासा में पोस्ट पढ़के..

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  2. बहुत दिनों बाद लेकिन अपनी बात अपनी भाषा में .... अच्छा लगा ....

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  3. उफ़्फ़ , आपको पता नहीं सलिल दा आपकी ये पोस्ट कितने जरूर समय पर पढ ली हमने , लगा कि यार सब कुछ तो वही है , बहुत बहुत शुक्रिया आपका , बॉस को हमारा चरणस्पर्श कहिएगा , यकीन जानिए बात अब भी वही बस जरा दुर्लभ सी हो गई है ...बहुत ही अच्छी पोस्ट ...

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  4. अशोक सेनगुप्ता जैसे शख्स आपको रोज मिले. ताकि आपका ब्लॉग हरा भरा रहे ... आप यूं ही पोस्ट लिखते रहें ... सरिता दी कैसे हैं ?

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  5. अब का कहें, लग रहा है,..बंगाली जादू इ ब्लॉग रीडर के सर भी नाचने लगा है...

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  6. आप तो सलिल भाई हर भाषा,हर बात में काबिले तारीफ़ हैं - इतने दिनों बाद कितना अच्छा पढने को मिला -

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  7. You are definitely an indispensable asset!!!

    बहुत समय से इंतज़ार था नयी पोस्ट का...
    हमेशा की तरह बहुत सुन्दर लिखा है आपने:)

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  8. बहुत ही प्रेरक प्रसंग.... आप तो आप हैं बंगाली क्या... आप तो जहाँ जहाँ गए होंगे वहां का जादू पीछा नहीं छोड़ रहा होगा...

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  9. आपको पाकर हम भी खुद को भाग्यशाली समझते हैं। लोग कहते हैं कि बेकार में ब्लॉगिंग में समय बिता रहे हो लेकिन हम जानते हैं कि हमे यहाँ कितना सुख मिलता है।

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  10. सच कहे हैं आजकल पता ही नहीं चलता कौन कैसे पीठ थपथपा रहा है !
    रोचक !

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  11. दादा तसल्ली से पूरे लय के साथ पढ़ती हूँ आपकी पोस्ट...कंटेंट बाद में समझती हूँ पहले सिर्फ भाषा और लहजे का रस लेती हूँ....
    you are just great!!!

    सादर
    अनु

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  12. भार्मा! भेन आई हैभ टु डिपेंड, आई उविल डिपेंड ऑन यू. बट भेन आई हैभ टु रेकमेण्ड, आई उविल रिकमेण्ड शुप्रभात!” ........ khoobai achha laga...

    der aayad durust aayad...............post.

    pranam.

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  13. आपकी कलम का जादू भी तो नि:शब्‍द कर देता है .....

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  14. बहुत समय बाद ब्लॉग गुलज़ार हुआ .... ये मीठी यादें जीवंत बनाए रखती हैं .... भावुक कर देने वाला संस्मरण

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  15. "ई बंगाल का जादू भी हमरा पीछा नहीं छोडता है."

    छोड़ेगा भी नहीं ... ;)

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  16. बहुत ही मीठा संस्मरण और पता नहीं आपको ज्ञात है या नहीं.... कल Boss Day था...हमने भी पहली बार FM वालों से ऐसे Day के विषय में सुना...वे कह रहे थे, "आज ऑफिस जाएँ तो बॉस के लिए फूल या छोटा सा गिफ्ट लेकर जाएँ " आपने तो उस दिन यह पोस्ट लिखकर इतना सुन्दर तोहफा दिया अपने बॉस को...लकी बॉस

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  17. आप आये बहार आई... वरना ये चमन (ब्लॉग ) वीरान था :).
    अब जल्दी जल्दी लिखिएगा.

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  18. bahut dinon baad aapko is tarah se padhe.....bahut hi achcha laga.....raha bangal ka jaadu to vo to vakayee peecha nahin chodta hai,mere to ghar men ghus aaya aur jeet hamari beti ka man,sabka man harshaya........

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  19. शुक्र है आप आए तो सही ... नहीं तो इधर आ आ के हमारा माउस थक गया था ... बहुत मज़ा ले रहे हैं आपकी इस पोस्ट का हम ...

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  20. आपका दिल्ली का छूटा लिखना छूट गया, हम त कलकत्ता में ही हैं, लेकिन लिखना ही छूट गया। ह, ई कह सकते हैं कि आपका दिल्ली का छूटा हमरा भी लिखना छूट गया। काहे कि फोन पर बात करने से जादा हम मिल ही लेते थे और हर मिलन के साथ एक पोस्ट तैयार हो जाता था।
    ***
    हम त सबसे पीछे रहते हैं, खास कर बौस टाइप के प्राणि से, ताकि ऊ हमरे पीठ को छुने का क्या देखने का चान्स भी न पा सके।
    लेखनी का जादू बरकरार है, लगता नहीं कि समय-समय पर इसपर सान न चढ़ाया गया हो!

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  21. का बात है सलिल जी ,बहुते सुंदर लिखे हैं .अरसा हो गया इस तरह का पोस्ट पढ़े हुए .एक तो अजय भाई हैं ,दुसरे आप ही .

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  22. उसका पीछा कैसे छूटे जादू जिसका जिससे है
    गुजरात बंगाल हैहैरान जादू किसका किससे है

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  23. अच्‍छा प्रेरणास्‍पद संस्‍मरण है। सत्‍य है कि आज पीठ थपथपाने का रिवाज नहीं है, बस आपसे ईर्ष्‍या शुरू हो जाए तो समझो कि आप अच्‍छा कार्य कर रहे हैं।

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  24. बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत अच्छा लगा ....सप्ताह 15 दिनों में एक पोस्ट जरूर लिखे .....शुभकामनाए ...

    RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.

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  25. सुर-लय में बहती हुर्इ-सी आपकी बातें मानवीय संबंधों के किसी उज्ज्वल पक्ष का मधुर निनाद-सी लगती हैं।

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  26. प्रेरणास्‍पद संस्‍मरण है
    बड़े दिनों की अधीर प्रतीक्षा के बाद आज आपका आगमन हुआ है

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  27. डिपेंडेबल और लायक बनने में वैसे ही तकलीफ़ सरासर होती हैं जैसे तकल्लुफ़ बरतने में, हम तो नाकारा लेबल लेकर लुत्फ़ में है।
    पीठ और छुरी वाला डॉयलाग मस्त है, कॉपीराईट उल्लंघन के रिस्क के बावजूद जरूर इस्तेमाल किया जायेगा :)

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  28. भाई , अधिकारी अक्सर किसी के नही होते । खास तौर पर ईमानदार और कर्मठ लोगों को वे साधन के तौरपर इस्तेमाल करते हैं । इन-डिस्पेंसेबल तो केवल वे स्वयं ही होते हैं । कई महीनों के बाद आपने चुप्पी तोडी है । अब लेखन जारी रहना चाहिये ।

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  29. बहुत बढ़िया लिखते हैं लेकिन इतना कम क्यों लिखते हैं भाई।

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  30. हम सोचते थे हम ही गायब रहते हैं. आप इतना दिन गायब रहेंगे ये ठीक नहीं।
    शिकायत मान के दर्ज कीजिये :)

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  31. बंगाल का काला जादू वैसे भी बहुत प्रसिद्द है। संस्कृटिक राजधानी भी है। लेकिन आपके लिखने की बात अलग है। आपके सानिध्य को मिस करता हूँ। शायद सबसे अधिक।

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  32. बहुत बढ़िया संस्मरण
    ई बंगाल का जादू भी हमरा पीछा नहीं छोडता है.... ऐसी कड़ी में कभी बंगाल के काले जादू के बारे में भी लिखियेगा ...बहुत सुनते आ रहे है इस बारे में इसलिए उत्सुकता है ...

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  33. दीपावली के पावन पर्व की बधाई ओर शुभकामनायें ...

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  34. सुन्दर ,सार्थक रचना,बेहतरीन, कभी इधर भी पधारें
    सादर मदन

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  35. बहुत ही बढियां संस्मरणात्मक लेख लिखे हैं

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  36. " मगर जमाना बहुत बदल गया है अऊर जेतना जमाना नहीं बदला, उससे कहीं जादा अदमी बदल गया है."

    ई बात सही है पर हम नहीं ना बदले , आप हमारे लोग पे टिपिया गए कि हम आपको भुला दिए हैं, अइसा कभी हो सकता है ? आप सोचे भी कैसे ऐसी बात , हम कमेंट नहीं किये कभी तो क्या समझियेगा भुला दिए ? हम अउर आप उस ज़ालिम ज़माने के लोग हैं जो एक बार सम्बन्ध बनाने पर उसे बिसराते नहीं --- आगे से ऐसी बात नहीं न करियेगा वर्ना हमरे करेजवा पे फिर से चोट लगेगी

    खुस रहें हमेशा

    नीरज

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  37. बहुत खूब !खूबसूरत रचना,। सुन्दर एहसास .
    शुभकामनाएं.

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  38. एकदमे अलगे तरीके से मज़ा बाँध दिए हैं आप
    हमरो ब्लॉगवा पर आइए ना..तोड़ा हम भी लिख लेते हैं.
    iwillrocknow.blogspot.in

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