Jeffrey Archer के कथा-संग्रह Twist in the Tale से ली गयी कहानी Clean Sweep Ignatius.
बहुत कम लोगों ने इस
बात में दिलचस्पी दिखाई कि इग्नेशियस को नाइजीरिया का वित्त-मंत्री नियुक्त किया
गया. विरोधियों ने भी कहा कि इसमें ख़ास बात तो कुछ है नहीं. वैसे भी सतरह सालों
में वो सतरहवाँ वित्त-मंत्री था.
संसद में अपना पहला
भाषण देते हुए इग्नेशियस ने मतदाताओं से यह वादा किया कि वो सार्वजनिक जीवन में फैले
भ्रष्टाचार और घूसखोरी को समाप्त करके रहेगा. उसने तमाम जनता तक साफ शब्दों में यह
बात पहुँचाई कि कोई भी व्यक्ति, जो किसी भी सरकारी ओहदे पर तैनात है, तब तक
सुरक्षित नहीं, जबतक वो बेदाग़ नहीं है. उसने अपने पहले भाषण की समाप्ति इन शब्दों
के साथ की - “मैं नाइजिरिया की गन्दगी की सफ़ाई झाड़ू लेकर करने निकला हूँ!”
किसी भी अख़बार ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया. इससे पहले
भी सोलह मंत्रियों ने यही सब कहा है और दोहराया है.
इग्नेशियस इन बातों से हताश नहीं हुआ. उसके मज़बूत इरादों, दृढ़
निश्चय और काम करने की लगन को सरकारी तंत्र के असहयोग से कोई अंतर नहीं पड़ा.
परिणाम जल्दी ही दिखाई देने लगे. अनाज के आयात से सम्बन्धित दस्तावेजों में
हेर-फेर करने वाले खाद्य मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी को कारावास झेलना पड़ा.
इग्नेशियस के झाड़ू का अगला शिकार एक लेबनानी व्यापारी था जिसे विदेशी मुद्रा
नियमों की अनदेखी करने के आरोप में अपने देश वापस भेज दिया गया. और एक महीने बाद
एक बड़ी घटना सामने आई. पुलिस-प्रमुख को रिश्वत लेने के आरोप में सस्पेण्ड कर दिया
गया, जिसे लोग एक दस्तूर समझते थे. चार महीने के बाद पुलिस-प्रमुख को अठारह महीने
की जेल हो गयी.
अब जाकर इग्नेशियस को हर अख़बार के मुखपृष्ठ पर स्थान मिला. सुर्खियाँ
थी – “झाड़ू-मार इग्नेशियस... एक झाड़ू जिससे हर अपराधी काँपता है.” इसके बाद
जाँच, गिरफ़्तारी और धर-पकड़ का दौर चला. लोगों में तो यहाँ तक अफ़वाहें फैल रही थीं
कि वो जनरल ओटोबी, नाइजीरिया के राष्ट्राध्यक्ष, तक पर नज़र रखता है. सैकड़ों मिलियन
डॉलर के सारे वाणिज्य करार और विदेशी सौदों की वह व्यक्तिगत रूप से जाँच, परख करके
ही मंज़ूरी देता था. हो भी क्यों नहीं, उसके विरोधी उसकी हर गतिविधि को
माइक्रोस्कोप से देख रहे थे. और पहला साल बिना किसी घटना, घोटाले और भ्रष्टाचार की
ख़बर के निकल गया. यहाँ तक कि दबी ज़ुबान से उसके विरोधी भी उसकी तारीफ करते हुये
सुने गये.
जनरल ओटोबी ने एक दिन उसे अपने ऑफिस में बुलाया. यह मीटिंग
किसी विशेष मुद्दे पर बातचीत के लिये बुलाई गई थी.
”इग्नेशियस! मैंने अभी-अभी ताज़ा बजट-रिपोर्ट देखी. और मैं
हैरान हूँ कि हमारी आय का एक बड़ा हिस्सा अभी-भी विदेशी कम्पनियों द्वारा बिचौलियों
को दी गई रिश्वत के रूप में ग़ायब हो जाता है और हमें कई मिलियन डॉलर के रेवेन्यू
से हाथ धोना पड़ रहा है. तुम्हें कोई अनुमान है कि यह पैसा किसकी जेब में जा रहा
है? वास्तव में यही जानने के लिये मैंने तुम्हें यहाँ बुलाया है.”
इग्नेशियस तनकर बैठा था और शासनाध्यक्ष की आँखों में आँखें
डालकर देख रहा था.
“मुझे शक़ है कि इस
राशि का एक बड़ा हिस्सा स्विस बैंकों के प्रायवेट अकाउण्ट में जा रहा है. लेकिन मैं
अभी इसे साबित नहीं कर सकता.”
”तो मैं तुम्हें जो
भी ऑथॉरिटी चाहिये देने को तैयार हूँ जिससे तुम इसका पता लगा सको. मेरे कैबिनेट के
सदस्यों से तुम जाँच की शुरुआत कर सकते हो. किसी के साथ किसी रियायत की आवश्यकता
नहीं चाहे वो किसी भी ओहदे पर क्यों न हो!”
“इसके लिये मुझे आपकी
स्पेशल लेटर ऑफ ऑथॉरिटी चाहिए और मेरे विदेशी दौरे पर विशेष राजदूत का ओहदा!”
”ओ.के.! सारे कग़ज़ात
शाम तक तुम्हारे टेबल पर होंगे!”
”धन्यवाद, जनरल!” इग्नेशियस चलने को था कि पीछे से जनरल ने उसे आवाज़ दी, “तुम्हें इसकी भी आवश्यकता हो सकती है.” और जनरल ने उसके हाथों में एक छोटी सी ऑटोमेटिक पिस्टल थमा दी, “मुझे शक़ है कि अब तो तुम्हारे भी उतने ही दुश्मन बन गए
होंगे, जितने मेरे!”
इग्नेशियस ने पिस्टल जेब के हवाले की और धन्यवाद कहकर निकल
गया.
तीन महीने तक रात-दिन वो रिसर्च करता रहा बिना किसी की मदद
के और बिना नाइजीरियाई केन्द्रीय बैंक की सहायता लिये.
तीन महीने बाद, अगस्त के महीने में इग्नेशियस ने अपने
परिवार के साथ छुट्टियाँ बिताने का कार्यक्रम बनाया. फ्लोरिडा तक की सारी टिकटें उसने
अपने निजी खाते से खरीदीं. फ्लोरिडा में वह अपने परिवार के साथ मैरियट होटेल में
रुका. उसने अपनी पत्नी को बताया कि उसे दो दिन के लिए न्यु यॉर्क में कुछ काम है और
काम निपटाकर बाकी की छुट्टियाँ वो उनके साथ बिताएगा.
अगले दिन वो न्यु यॉर्क पहुँचा और वहाँ से नगद में टिकट
लेकर वो स्विस एयर की फ्लाइट से जेनेवा को रवाना हो गया. जेनेवा पहुँचकर उसने एक
सस्ते होटल में आठ घण्टे की अच्छी नीन्द ली. नाश्ते के साथ उसने उन बैंकों की
लिस्ट का मुआयना किया जिनके बारे में उसने नाइजीरिया में रिसर्च की थी.
दोपहर में इग्नेशियस वहाँ के सबसे बड़े बैंक के चेयरमैन के
सामने था. प्राथमिक औपचारिकता के बाद उनमें बातचीत शुरू हुई.
”मुझे मेरे राष्ट्राध्यक्ष ने आपके पास यह जानने को भेजा है
कि आपके बैंक में हमारे देश के किन-किन लोगों के खाते हैं.”
”क्षमा चाहता हूँ, लेकिन इसमें मैं आपकी कोई मदद नहीं कर
पाउँगा!”
”मुझे अपनी बात कहने का एक मौक़ा दीजिये. मैं अपने देश का
वित्त मंत्री हूँ और मेरी सरकार ने मुझे पूरी अथॉरिटी के साथ यहाँ इस मिशन पर भेजा
है.”
इग्नेशियस ने अपने फ़ोल्डर से जनरल का पत्र चेयरमैन के सामने
रखा. उन्होंने पत्र पर नज़र डाली और उसे वापस लौटा दिया. “इस पत्र की हमारे देश में
कोई मान्यता नहीं है. मुझे कोई सन्देह नहीं कि आपके देश ने आपको सारे अधिकार दिए
हैं – एक मंत्री के नाते और एक विशेष राजदूत की हैसियत से भी. लेकिन हमारे बैंक की
गोपनीयता का नियम इस कारण नहीं बदल सकता है.”
”मेरे देश ने मुझे यह अधिकार दिया है कि मैं चाहूँ तो अपने
देश के भविष्य में होने वाले सभी व्यापारिक समझौते आपके देश के साथ कर सकता हूँ.”
”आपका बहुत बहुत धन्यवाद श्रीमान इग्नेशियस! लेकिन हमारी मजबूरी
है!”
”मैं आपके बैंक के ख़िलाफ़ एक सरकारी विज्ञप्ति जारी कर
असहयोग की बात कह सकता हूँ! यही नहीं, हमारा वणिज्य मंत्रालय इस देश के साथ सारे
व्यापारिक समझौते रद्द कर सकता है. हो सकता है कि हमारे राजनयिक रिश्ते भी समाप्त
हो जाएँ और हमारा दूतावास बन्द करना पड़े. नाइजीरिया में आपके राजदूत को गिरफ्तार भी
किया जा सकता है!”
”महाशय! यह सब आपके हाथ है! लेकिन हमारे हाथ बँधे हैं!”
तभी इग्नेशियस का हाथ अपने जैकेट की जेब में गया और उसने
पिस्टल निकाल ली. चेयरमैन के माथे से पिस्टल लगाकर उसने कहा, “मुझे उन सभी
नाइजीरियाई नागरिकों के नाम चाहिए जिनके यहाँ खाते हैं. वर्ना तुम्हारा भेजा यहाँ
कालीन पर बिखरा मिलेगा! ये मत कहना कि मैंने तुम्हें मौक़ा नहीं दिया!”
चेयरमैन डर से काँप रहा था और उसके माथे से पसीना टपक रहा
था. फिर भी उसने गिड़गिड़ाते हुये कहा, “क्षमा कीजिये मैं आपकी कोई मदद नहीं कर
सकता!”
”बहुत ख़ूब!” कहते हुए इग्नेशियस ने पिस्टल चेयरमैन की कनपटी
से हटा ली. चेयरमैन अभी भी काँप रहा था.
इग्नेशियस ने अटैची उठाकर टेबुल पर रखी और बटन दबाते ही
खटाक की आवाज़ के साथ वो खुल गयी. बहुत करीने से सजाकर उसमें सौ-सौ डॉलर के नोट भरे
थे. चेयरमैन की नज़रों ने अन्दाज़ा लगाया कि रकम करीब पाँच मिलियन डॉलर होगी.
इग्नेशियस ने कहा, “क्षमा चाहता हूँ! लेकिन आपके यहाँ
अकाउण्ट खोलने के लिये क्या करना होगा मुझे?”
हमेशा की तरह लाजवाब ... ;)
जवाब देंहटाएं"आप" के हाथ में झाडू भी यहीं से तो नहीं पहुंचा था कहीं :)
जवाब देंहटाएंग़ज़ब
जवाब देंहटाएंgazab hai ..............aankhen khol dene wala hai ji
जवाब देंहटाएंआ
जवाब देंहटाएंइस कहानी की प्रासंगिकता समझ में आ रही है .... इसी कहानी का तजुर्मा इस वक़्त क्यूँ किया गया है....और इशारा कहाँ है, यह भी स्पष्ट है.
जवाब देंहटाएंदिल बहलाने को इस कहानी के अंत को हकीकत में बदलते देखने का सपना पालना भी कहीं से गलत नहीं.{जो लोग ऐसा सपना पालें :)}
अच्छा ! तो बिलियन्स ऑफ़ डॉलर पिछले ६५-६६ साल से ऐसे जमा किया जाता रहा स्विस बैंक्स में ! का बात है ! वेरी गुड !!
जवाब देंहटाएंठीक बात भी है, यही होना भी चाहिए, a good offense is the best defense. हमरे यहाँ फ़ायर सेफ्टी ड्रिल भी ऐसे ही होता है, और सुने हैं सेना में भी सैनिकों को कुछ मॉक अप लड़ाई-उड़ाई से प्रैक्टिस करवाया जाता है । इस इस्टोरी के जो नायक थे उनको रिपोर्ट लेना ही नहीं था, उनको अपना माल-असबाब की सुरक्षा की गारण्टी चाहिए थी.। इसलिए बार-बार सामने वाले की जान लेने की धमकी देते रहे ।
लेकिन हमारे देश में अभी एक ऐसे नायक हैं जो अपनी जान देने वालों में से हैं, इसलिए अक्सर ऐसे मामलों में सफल हो जाते हैं, लोग बाप-बाप करके रिपोर्ट देते हैं :)
हाँ नहीं तो !
अंत के बारे में वाकई सोचा नहीं था, अभी भी नहीं सोचा है ।
जवाब देंहटाएंगजब की कहानी। लंका में सब बावन गज़ के ... आज पहचानें या कल
जवाब देंहटाएंसब झाड़ू मारकर पैसा अपने ही पास
जवाब देंहटाएंभारत को नाईजीरिया में बदलते देख तो रहें हैं हम ......और "आप" ?
जवाब देंहटाएंसत्य कहा आपने
हटाएंबहुत बढिया कहानी है। कई बार छोटं-छोटे वादे हमें लुभा देते हैं और हम आश्वस्त हो जाते हैं। लेकिन जब तक लम्बे समय तक व्यक्ति की परख ना हो, तब तक अपनी राय बनाना तर्कसम्मत नहीं होता है।
जवाब देंहटाएंकहानी ने स्तब्ध कर दिया !
जवाब देंहटाएंमाल जमा होना जरूरी है . . . .
जवाब देंहटाएंबाकी सब बाद में !!
behad rochak.....
जवाब देंहटाएंअंत मेरी कल्पना से बाहर था, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन हां, एक क्षीण उम्मीद थी जो तोड़ गया :(
जवाब देंहटाएंअरे वाह........ लाजवाब.
जवाब देंहटाएंha ha ha ha
जवाब देंहटाएंabhi tak ke lie to iatana hi
जब भी दादी kahani सुनाती थी अंत में जरुर कहती -कहानी जैसे सच नहीं ?और कहानी जैसा झूठ नहीं ?
जवाब देंहटाएंबाकि तो समय बड़ा बलवान।
बढ़िया है....समझदार लोग पूरी तसल्ली करने के बाद ही अपने पत्ते खोलते हैं...
जवाब देंहटाएंa typical Jeffrey Archer style !!!
आभार सलिल दा <3
अनु
wow - kya baat hai :)
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन शहीद लांस नायक सुधाकर सिंह, हेमराज और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंlajvaab kahani ...kahi bhoot to kahin bhavishy chhupa hai ..
जवाब देंहटाएंवैल डन इग्नेशियस :)
जवाब देंहटाएंक्या कहें :).. अंजाम अभी बाकी है :)
जवाब देंहटाएंgazab ka anuvaad .
जवाब देंहटाएंtwins kee insurance story bhee gazab kee hai anuvaad ho jae
please :)
पढते समय अंत को अंदाजा भी नहीं हुआ ... फिर जब अंत पढ़ा तो समझ गया ... ये तो होना ही था ...मज़ा आ गया इस कहानी का ..
जवाब देंहटाएंअपने देख में कौन ऐसा निकलता है ये देखना होगा ... हा हा ..
हे भगवान , वो कहानी कही ये कहानी न बन जाय :) ??
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , आभार !
कितना कुछ घट चुका है! कितना कुछ लिखा जा चुका है!!!
जवाब देंहटाएंनि:शब्द करती प्रस्तुति .... शुरू से अंत तक
जवाब देंहटाएंअन्तिम वाक्य ने कहानी को आद्योपान्त बदलकर रख दिया । एकदम अप्रत्याशित । 'आप' से जोडकर देखने के उत्साह की जगह एक भाव कि ऐसा नही होसकता ...होना भी नही चाहिये । लेकिन सच तो यही है कि विश्वास को बनाए रखना अब ऐतिहासिक प्रसंग लगता है ।
जवाब देंहटाएंNoting is impossible!
जवाब देंहटाएंkahanee me romanch aur suspense ant tak bana raha!
यह कहानी जैसे एक भारतीय भवितव्यता की और संकेत कर रही है मगर मैं आशावादी हूँ!
जवाब देंहटाएंअनुवाद अच्छा है खुद किया या कहीं पहले से ही किये हुए को उड़ा लिया है?
आप तो ऐसा नहीं करेगें मुतमईन हूँ!
डर है कि ये कहानी भारत में सच न हो जाये....
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी कहानी. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंसलिल जी आपको और रेणु जी को विवाह की 25वीं वर्षगाँठ की बहुत- बहुत बधई एवम शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंGazzzzaab ki kahaani hai chacha :) :) ant ne to sach mein aascharychakit kar diyaa!
जवाब देंहटाएंये हर बार तुम मेरा कमेंट कैसे उड़ा लेते हो भाई...?
हटाएंसलिल चचा...मेरा कमेंट...डिट्टो...:)
स्तब्ध रह गये अंत पढ़ कर.!!!
जवाब देंहटाएंनिशब्द करने वाली प्रस्तुति ...
ऐसा भी कहें या ऐसा ही !!!
जवाब देंहटाएंसांच को आंच नहीं ... आदमी के कृत्यों की अच्छी पड़ताल !!!
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