रविवार, 31 जुलाई 2016

घर वापसी - एक ममतामयी मुलाक़ात

रोज आँख के सामने का मालूम केतना घटना घट जाता है अऊर उसका गवाह अकेला एक अदमी नहीं होता. एक्के घटना का असर सब आदमी पर एक्के जइसा होता होगा, ई भी कोई निस्चित नहीं बता सकता.

२६ तारीख को अचानक १२ बजे दुपहर में फोन पर नजर गया त देखे कि एगो मेसेज था – “आज रात ९:३० बजे दिल्ली से मेरी फ्लाईट है.” हम तुरत फोन लगाए कि दिल्ली केतना बजे पहुँचना है. पता चला साम के तीन बजे तक. ई संतोस हुआ कि थोड़ा बहुत समय मिलेगा, लेकिन ई जानकर मन खिन्न हो गया कि रेलवे इस्टेसन से हवाई अड्डा तक का टैक्सी पहिले ही बुक हो चुका है. खैर मिलने का बहुत सा तरीका हो सकता था, लेकिन हमरा परेशानी का कारन कुछ अऊर था.

सबेरे से बरसात रुकने का नाम नहीं ले रहा था, दिल्ली में टैक्सी का हड़ताल था अऊर पहिले से ई प्रोगराम हमको पता नहीं था, नहीं त अपना ड्राइभर को बोलकर घर से गाड़ी मंगा लेते. फोन पर ई सब समस्या के बारे में बताए अऊर इत्मिनान भी कराए कि कोनो न कोनो उपाय हो जाएगा. लेकिन टेंसन में हम भी थे.

साढ़े तीन चार बजे फोन आया कि हजरत निजामुद्दीन इस्टेसन पर उतरकर टैक्सी तो तय किया हुआ जगह पर मिल गया, बाकी ओही हुआ जिसका डर था. टैक्सी का चारों टायर छेद दिया था उत्पाती लोग. अब न घर के न, घाट के वाला हाल. ऊ रास्ता पर अऊर हम ऑफिस में परेसान कि एयरपोर्ट कइसे छोड़ेंगे. बस फोन पर एतना निर्देस दे सके कि कोनो तरीका से सुप्रीम कोर्ट पहुंचिए.

हम ऑफिस से निकल कर रोड पर आए अऊर सक्ति सिनेमा के दिलीप कुमार के तरह हर देखाई देने वाला ऑटो रेक्सा अऊर टैक्सी को आवाज लगाए. मगर ऊ बारिस में कोई रोकने के लिये राजी नहीं हुआ. कोई बेक्ति बाहर से आया हो, जिसको सहर का भूगोल नहीं पता हो, ऊ हड़ताल में फँस जाए त कइसा लगता होगा. एही भाग-दौड़ में हम भीग गए – पता नहीं बारिस से कि पसीना से. तब्बे फोन आया कि टैक्सी मिल गया है अऊर हम पहुँच रहे हैं.

हम ओहीं इंतज़ार करने लगे तब फोन पर सूचना मिला कि टैक्सी ओहीं पर है. उसको रास्ता बताए अऊर दू मिनट में एगो टैक्सी हमरे सामने रुका अऊर उसमें से दरवाजा खोलकर निकलीं हमरी दीदी श्रीमती गिरिजा कुलश्रेष्ठ. हम पैर छुए उनका अऊर सामान लेकर ऑफिस में पहुंचे. कैंटीन से चाय मंगवाए, काहे कि दीदी बोलीं कि खाना रास्ते में खा ली थीं.

चाय पीते-पीते सोचे कि कुछ बात करें, लेकिन उनके फोन का घंटी सांत होने का नामे नहीं ले रहा था. बच्चा लोग बेंगलुरु में परेसान था कि माँ कहाँ अटक गयी हैं, समधी लोग दिल्ली में परेसान थे कि हमारे घर काहे नहीं आईं, हम परेसान थे कि अगर साम में भी टैक्सी नहीं मिला त मेट्रो से पहुंचाना होगा हवाई अड्डा, अऊर दीदी परेसान थीं कि बेकार में हमको परेसान कर दीं. मगर अंदर से हम दूनों इस बात से खुस थे कि एक दूसरा से मिलने का मौक़ा मिला.


फोन के लगातार घंटी बजते रहने के बावजूद भी हमलोग घर परिवार, ब्लॉग-फेसबुक, ऑफिस-ऑफिस का बात करते रहे. संजोग से भाई चैतन्य आलोक भी हमरे सामने वाले ऑफिस में कोनो काम से आय थे. ऊ भी बीच बीच में पूछ रहे थे कि क्या हुआ. उनके लिये ब्लॉग के दुनिया से कोनो बेक्ति से मिलने का ई पहिला अबसर था. नहीं त आज तक ऊ हमरे ही जरिये सब से मिलते आए हैं.

इस पल को यादगार बनाने के लिये एकाध फोटो भी खींचे हमलोग अऊर फिर साम को टैक्सी बुक किये अऊर ट्रैफिक जाम से होते हुए साहित्य पर चर्चा करते हुए हवाई अड्डा पहुंचे. एगो बात त भुलाइये गए, रास्ते भर दीदी के गाइड भी बने रहे – ई देखिये इण्डिया गेट, ई राष्ट्रपति भवन, ई दूतावास का इलाका है. साहित्य के चर्चा में हम अपना तरफ से एगो बात कहे कि हमको इच्छा है एक ऐसा कहानी लिखने का जिसका सब पात्र कहानी के मुख्य घटना पर बारी-बारी से अपना बात कहता है. मतलब एक्के घटना का दू अलग-अलग लोग के द्वारा दिया गया ब्यौरा.

(कल गिरिजा दी हमसे मुलाक़ात का बात अपने ब्लॉग पर लिखी हैं अऊर आज हम ओही बरनन अपना तरह से कर रहे हैं.)

हवाई अड्डा आ गया था अऊर दीदी को डिपार्चर वाले दरवाजा से छोडकर लौटते समय उनका ममतामय निगाह हमको आसीरबाद दे रहा था.

28 टिप्‍पणियां:

  1. इस वृत्तांत से कुछ अपनी यादें भी झंकृत हुईं। अन्त भला सो सब भला। कभी कभी क्या अक्सर हम परिचितों से संवाद को टेकेन फार ग्रान्टेड ले लेते हैं और संवाद हीनता पसर जाती है। अब ई बात हम इहाँ काहें कहे खुदै ठीक से समझ नही पा रहे। वही संवादहीनता। हा हा।

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  2. इ तो साबित हो गया...बारिश या हड़ताल भाई बहन को मिलने से रोक नहीं सकते :)

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  3. हम दोनों वर्जन पढ़ लिए. बिहारी भी अउर बुन्देली भी. एक बात दोनों में नजर आया कि जब दुई लोग मिलना चाहते हैं सच्ची वाला तो सारी कायनात जलन के मारे बिघन डालती है. जो ई बताता है कि रिश्ता बहुते गहरा है.

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  4. आप के दिल्ली आते ही मुलाकातों का दौर चल निकलता है ... इसी जगह हम भी आप से पहली बार मिले थे ... :)

    दीदी और दोनों दादाओं को सादर प्रणाम |

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  5. चचा, हम गिरिजा बुआ वाला वर्जन तो पहले ही पढ़ लिए थे न...और अब आपका यह वर्णन पढ़ कर आनंद दुगुना हो गया...| वैसे ये बात तो ऋता दी बिलकुल सही बोली...भाई बहन की मुलाक़ात को कोई चीज भी नही रोक सकती...|

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  6. मिलना कितना आनंद दे गया। ..जानकर खुश हो ली

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  7. इस पोस्ट से आपकी घर वापसी उतनी ही सुखद है जितना 26 जुलाई का वह सुयोग जिसकी लहर अभी तक चल रही है घर में .मैंने सब लिखा है पर वह बहुत ही कम है .उम्मीद है कि लिखने का शुरु हुआ यह सिलसिला अब चलता रहेगा . कहानी के बारे में आप जरूर सोचना . वह प्रयोग काफी रोचक होगा और वास्तविक भी ..

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  8. एक मुलाकात ने कितना कुछ लिखने पर बाध्य कर दिया ... गिरिजा जी से फ़ोन हुई, मेरी पदोन्नति की बधाई के लिए :)
    जिस कहानी का ज़िक्र किये हैं, वह लिख डालिये

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  9. मिले तुम लोग -आनन्दित मेरा मन हो रहा है .और कहानी- क्या प्लान है मुझे भी बताओ न .

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  10. हम तो कब से आपके ब्लॉग को टुकुर टुकुर तकते थे, आज फेस बुक से शुभ समाचार मिला तो दौड़े चले आये. आभार गिरिजा दी का, उनसे हुई मुलाकात का, जिसके बाद आपकी लेखनी के चश्मे फूट पड़े!!

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  11. गिरिजा जी के स्नेहिल व्यवहार से मैं भी आह्लादित हूँ। आपसे आशिर्वाद प्राप्त करने का मौका मिलता रहा है और आगे भी मिलेगा। आप मेरे अनुरोध पर बंगलोर की सुस्त और थकाऊ यातायात की चिंता किये बिना मेरे आवास तक आयीं... यह हमारा सौभाग्य है।

    @चचा जान : ई संस्मरण सच्चों में डाउन दी मेमोरी लाइन धकेल दिया। लगता है हमको भी वापसी करना पड़ेगा, चचा !

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  12. Kitne sneh se aapne varnan kiya hai bhai - bahan k milne ka jise padh kr mn anandit ho gaya .... Super

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  13. एक ममतामयी मुलाक़ात में कितना कुछ हो जाता है जो कई बार लम्बे समय साथ रह कर भी नहीं हो पाता ... इस सुखद मुलाक़ात का असर दूर तक जाने वाला है ऐसी आशा है ...आप ब्लॉग पर नियमित होंगे ऐसी भी आशा है

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  14. Gazabb chacha...gazabbb...mulakat ho gayi ye bahut achhaa laga...baaki sab ekdam film type ka ho gaya tha ...:) Humko bhi bauut man hai milne ka bua se ..dekhiye ab kab mil paate hain :) anyways ye to ekdam priceless mulakat thi...yaadgar....aur dekhiye isi bahaane aap blog par wapas aaye... :)

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  15. Yek hi ghatana ka varnan jab do vykti karte hai to us ghatana ki rochakata ke sath sath un vyktiyon ke vyktitva ke baare me bhi pata chalata hai, bahut sundar !

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  16. परेशानियों के बीच सुखद मुलाकात और आखिर में अपने-अपने गंतव्‍यों की ओर सकुशल पहुंचना वाकई अच्‍छा एहसास है।

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  17. एतना समस्या से निबट के भी आप अपनी दीदी से मिलिए लिए और समय पर हवाई अड्डा पहुँचा भी दिए ई बहुत बड़ी बात हुई. इहाँ त जाम के समस्या ओह पर बारिस. प्रोग्रामे गड़बड़ा जाता है. मुलाक़ात अच्छा रहा, आपको बहुते बधाई.

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  18. गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी से मुलाकात का यह वृत-चित्र मन को प्रसन्न कर गया। आशा है इस मुलाकात के बाद कुछ और कहानियां जन्मेंगी। शुभकामनाओं सहित। इधर कंप्यूटर की खराबी से देरी से ब्लॉग पर पहुंचना हुआ।

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  19. स्वागत, सलिल जी ।
    अपनेपन का यह स्नेहिल विवरण आपके शब्ब्दों का आश्रय पाकर और भी भावपूर्ण हो गया है ।
    गिरिजा जी और आपको शुभकामनाएँ ।

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  20. आ मुलाक़ात जितना मीठा आप का लेखा भी उत्ताही मधुर।

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  21. 'जहाँ चाह, वहाँ राह!' कहावत को चरितार्थ कर दिया ! किसी-किसी से मिलकर मन बहुत ही ख़ुश होता है और वह ख़ुशी आपके इस विवरण में साफ़ झलक रही है !
    यह स्नेह यूँ ही सलामत रहे !!!
    शुभकामनाओं सहित,

    ~सादर
    अनिता ललित

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  22. ममतामयी मुलाक़ात मिलन समारोह अच्‍छा रहा

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  23. आहा ये पोस्ट कैसे छूट गई ? वाह बहुत सुन्दर ।

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  24. एतना समस्या से निबट के भी आप अपनी दीदी से मिलिए लिए और समय पर हवाई अड्डा पहुँचा भी दिए ई बहुत बड़ी बात हुई. इहाँ त जाम के समस्या ओह पर बारिस. प्रोग्रामे गड़बड़ा जाता है. मुलाक़ात अच्छा रहा, आपको बहुते बधाई.

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