शनिवार, 10 नवंबर 2012

चोखेर बाली


गजब का रिस्ता था दुन्नो घर के बीच में. एक तरफ हमरा घर अऊर दोसरा तरफ दिलजान माय का घर. दिलजान माय, माने हमरी दादी की ननद की ननद. पिताजी उनको दिलजान माय और उनके पति को फूफा कहते थे. अजीब बुझाता है सुनकर कि फूआ काहे नहीं कहते थे. बाद में मालूम हुआ कि हमरी दादी की ऊ ‘दिलजान’ थीं, इसीलिये माय की दिलजान, दिलजान माय कहलाती थीं. कभी दादाजी (पिताजी के फूफा, जो ओकील थे) को कचहरी जाने का जल्दी होता था अऊर उनके इहाँ खाना नहीं बना रहता था, त हमरे एहाँ से पूरा बना बनाया भात-दाल उठाकर ले जाती थी. कोई संकोच नहीं. इसको कहते थे दिलजान होने का रिस्ता.

दुनो दादी में रिस्तेदारी से बढकर दोस्ती का रिस्ता था अऊर दुनों एक-दोसरा को दिलजान कहकर बोलाती थीं. ई नाम के बाद न कोई नाम, न कोई रिस्ता, न कोई बड़ा-छोटा का भेद. बस जिसको दिल अऊर जान से अपना लिया ऊ दिलजान हो गया.

एही बात पर आज नारो फुआ का याद आ गया. नारो फुआ का नाम था नर्मदा, मगर पुराना जमाना में लोग प्यार से पुकारने के लिये असली नाम को छोटा कर देते थे. नर्मदा को नारो, राजेश्वर को राजो, सच्चिदानन्द को साचो और ‘देवदास’ के पार्वती को पारो. हमरी नारो फुआ, पिताजी की फुफेरी बहिन थीं. मगर पिताजी की सबसे छोटकी फुआ माने उनकी मौसी उन्हीं के उमर की थीं. दुनो के बीच ‘सखि’ का रिस्ता था. ई रिस्ता के बीच कोई भेद नहीं था कि कऊन मौसी हैं अऊर कऊन बहिन-बेटी. जब भी पुकारती थीं तो सखि कहकर. आस्चर्ज का बात ई था कि कभी गलतियो से ऊ दूनो के मुँह से एक दोसरा के लिये सखि छोड़कर कोनो दोसरा नाम हम नहीं सुने. अइसहीं ऊ टाइम का लोग के बीच पान, फूल, सखी अऊर दिलजान का रिस्ता बनता जाता था.

हमरी दादी अऊर हमरे घर भर की दिलजान माय हमरे पैदा होने के पहिले स्वर्ग सिधार गईं. ऊ लोग का बस खिस्सा सुनते रहे. धीरे-धीरे ई सब बात एतना कॉमन हो गया कि कभी ध्यान भी नहीं जाता था. बचपन बीत गया अऊर जब हम कॉलेज पहुँचे त हमरा एगो दोस्त बना – एस. पी. द्विवेदी. हमरा नाम एस. पी. वर्मा. बस तब्बे से हम दुनो एक दोसरा को 'एस्पी' कहने लगे. अंजाने में हम-दुनो के बीच सखि-दिलजान वाला रिस्ता बन गया. आझो दोस्ती बरकरार है अऊर एस्पी छोड़कर कभी कोनो अऊर नाम से नहीं बोलाये हम लोग एक-दोसरा को. 
अब बाते निकला है त एगो अऊर मजेदार बात बताइये देते हैं. एक रोज हम एस्पी को फोन किये. उधर से आवाज़ आया हैलो.
हम बोले, कौन एस्पी?
जवाब मिला, नहीं सर! हम डी.एस.पी. बोल रहे हैं!
हम तुरते फोन काट दिये. असल में फोन उसके चचा उठाये थे, जो डी.एस.पी. थे अऊर उनका आवाज़ एकदम हमरे दोस्त एस्पी जैसा था. ऊ सोचे होंगे कि जऊन आदमी एतना रोब से एस्पी बोला रहा है, त उसके आगे उनके जैसा डी.एस.पी. का का बिसात. बात में ई बात पर हम दुनो दोस्त खूब हँसे.

ऐसहिं रिस्ता बना हुआ है चैतन्य आलोक जी के साथ भी. सायदे कभी हम लोग एक-दोसरा को नाम से, सलिल जी - चैतन्य जी कहकर बतियाये होंगे. हम दुनो एक दोसरा को सर-जी कहते हैं. एहाँ तक कि हमरी सिरीमती जी भी उनका फोन आने पर बोलती हैं, सर जी का फोन आया है! एकदम फॉर्मल लगने वाला सब्द सर जी भी एतना मीठा रिस्ता को बयान कर सकता है, ई कोई सोचियो नहीं सकता है.

कमाल का रिस्ता है ई दोस्ती... कभी प्रेम बन जाता है, कभी भक्ति बनकर सामने आता है. एतना मीठा रिस्ता कि जहाँ एक अऊर एक मिलकर दू नहीं, एक बनता है. जिसके होने में न सुख का पता चलता है, न दुःख का. सबकुछ भुला जाता है अऊर एगो परम सांति का अनुभव होता है.

मगर कमाल का बात है कि एही सम्बन्ध को गुरुदेव रबिन्द्र नाथ ठाकुर सखी, दिलजान, फूल अऊर पान के रूप में नहीं आँख में पड़कर, गड़ने वाला बालू के रूप में देखाए अऊर नाम दिए – ‘चोखेर बाली!’


43 टिप्‍पणियां:

  1. चोखेर बाली का यह किस्सा-गोई पसंद आया सर जी !!!

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  2. ई खिस्सा मजेदार रहल !
    .
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    दियाली कै सुभकामना :-)

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  3. आपका अंदाजे-व्यां पसंद आया,,,मान गए सलिल भाई,,,

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
    RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,

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  4. रवीन्द्र नाथ टैगोर इन दिनों आपकी इस पोस्ट से और भी चर्चा में आ जायेगें -ई हमको पक्का लग रहा है !
    सर जी न,पंडित जी -किसी का नाम आप न बिगाड़े हों तो बतायें :-)
    पूरी पोस्ट केवल चोखेर बाली को लेकर लिखी है -ई नाम का एक ठो ब्लॉग भी तो है न ? वहां भी एक बार ई शब्द को लेकर
    घनघोर चर्चा हुयी थी ..मगर सही संदर्भ तो आज बुझाया है!
    और हम रिश्ते जोड़ने में बड़े कमजोर हैं भैया -नानी का ननद सुनते ही दिमाग फ्यूज हो जाता है .मुला यी हमारी जन्मजात
    प्राब्लम लगता है ......
    पहले हमको लगता था जो चोख /चोखी हो शोख हो वही है चोखेर बाली :-)
    चोखा माल सुना है न ? चोखा खाए हैं न ?

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    1. पंडित जी! बहुत श्रद्धा के साथ हम आपको पंडित जी कहते हैं, नाम बिगाडने का कभी उद्देश्य नहीं रहा (कभी नहीं सिखाया गया हमको परिवार में)..
      .
      रिस्ता का जलेबी समझने के चक्कर में मत पडिये बस मिठास का आनन्द उठाइये... (अगर मीठा लगा हो तो)..
      .
      'चोखेर बाली' नामका ब्लॉग है हमको नहीं मालूम..
      .
      ई पोस्ट लिखने के पीछे हमारे स्वर्गीय फुआ को याद करना एकमात्र उद्देश्य था और वह दोस्ती का परम्परा जो सायद आपके पुरनियाँ लोगों को अभी भी याद हो.. सुना है कृष्ण भगवान द्रौपदी को सखी कहते थे..
      .
      वैसे मैं बंगाल की भूमि को नमन करता हूँ.. इसलिए चोखेर बाली मतलब शब्दार्थ रूप में बता दूं (बताने की धृष्टता करूँ)
      चोख= आँख, एर=का/की, बाली=बालू.
      .
      और हाँ स्पष्ट कर दूं कि इस एक शब्द के लिए यह पोस्ट नहीं लिखी गयी!!

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    2. सलिल भइया जी! जय श्रीकृष्ण! आयुष्यदाता धन्वंतरि जी का असीस सब पर बना रहे। नाम बिगाड़े बाला कृत्य एगो बड़ा सानदार अ आत्मीयता भरा सैतानी ह। ....एगो परतीक ....के बबन बाबू के "ए हो बबनवा" कह के पुकारे में जो घनिस्ठता है ओ बबन बाबू में कहाँ? अइसन आत्मीयता के अस्थान अब औपचारिकता ने ले के सब रिस्ता के मुर्दा बना दिया। अब त कोनो मिलबे नहीं करता है नाम बिगाड़ बाला।
      देबाली के न्योता देतनी ...सपरिबार आयीं रउआ।

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  5. बडे भाई!
    ई सब संबोधन कहां भुतला गया है .. दोस, परटनर, बंधु, साथी, मीत .. हमको हमारे नाम का एगो दोस्त मीत कहता था, इसमें, इस तरह के संबोधन में जो मिठास था, अपनापन था, ऊ आज कल के औपचारिक संबोधन .. मि. सलिल ..में कहां दिखाई देता है।

    ऐस‍इयहें एक ठो बात याद आ गया। जाते-जाते सेयर करना चाहेंगे ..

    यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च । पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥
    जो कोई भी हों , सैकडो मित्र बनाने चाहिये । देखो, मित्र चूहे के कारण कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे । — पंचतंत्र

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    1. मनोज भाई!
      याद है हीरामन और हीरा बाई.. रेणु जी की मारे गए गुलफाम उर्फ तीसरी कसम में.. वे दोनों भी एक दूसरे को मीता कहते थे!!

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  6. आपकी पोस्ट ने बहुत पुरानी बात याद दिला दी , गाँव में ये रिवाज था (आजकल है या नहीं, नहीं पता, फोन करके पूछना पड़ेगा ) इसे 'सखी' लगाना कहते थे और तब लडकियां एक दुसरे को गुलाब, चंपा, चमेली, दिलजान ,सखी आदि कहकर बुलाया करतीं। आजीवन एक दुसरे का नाम नहीं लेतीं {वो अलग बात है छोटी लड़कियों का जब आपस में झगडा हो जाता तो गुस्से में एक दुसरे का नाम कई बार ले कर सखी तोड़ देतीं :) }
    मैंने इस प्रसंग के विषय में विस्तार से अपनी एक लम्बी कहानी की एक क़िस्त में लिखा है तब बिहार से अलग प्रदेशों की कई पाठिकाओं ने कहा ,"उन्होंने पहली बार इस तरह का कुछ जाना है " (अब अपनी ही कहानी की क़िस्त ढूंढ कर पढनी पड़ेगी )

    @एही सम्बन्ध को गुरुदेव रबिन्द्र नाथ ठाकुर सखी, दिलजान, फूल अऊर पान के रूप में नहीं आँख में पड़कर, गड़ने वाला बालू के रूप में देखाए अऊर नाम दिए – ‘चोखेर बाली!’

    सलिल जी, उस उपन्यास में ये दोनों सहेलियां जरूर थीं .पर एक का दुसरे के पति से रिश्ता था इसीलिए उसे 'चोखेर बाली' नाम दिया गया .
    वो आँखों में पड़ी किरकिरी ही हुई न

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    1. सही कहा रश्मि जी! मैंने वह उपन्यास भी पढ़ा है और फिल्म भी देखी है!! यही तो कमाल था गुरुदेव का.. भला कौन सोच सकता था ऐसा!!

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    2. छत्तीसगढ़ में भी मितान बदई नाम की एक परम्परा है जिसके रिश्ते खून के रिश्तों से भी अधिक आत्मीय होते हैं।

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  7. अभी मनोज जी की टिपण्णी से याद आया अगर दो पुरुषों के एक से नाम हों तो वे दोनों एक दुसरे को 'मीत' कहते थे /हैं।

    मेरे पापा के ही समान नाम वाले एक मित्र हैं, आज भी दोनों एक दूसरे को 'मीत' ही कहते हैं। और हमलोग उन्हें 'मीत चाचा ' कहते थे (अब तो एक जमाने से मिलना नहीं हुआ )

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  8. “नहीं सर! हम डी.एस.पी. बोल रहे हैं!”

    यह बढ़िया रहा ...
    याद रहेगा !

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  9. गज़ब की किस्सा गोई है...सच ही है असली नाम से इतर प्यार से जो भी बोला जाये प्यारा ही लगता है.
    मैं और मेरी दो खास सहेलियां.हम आपस में एक दुसरे को बड़े प्यार से चुड़ेल कहते हैं :):).

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    1. यह रहस्य आज पता चला। अब तो डरने का पूरा कारण बनता है। वादा रहा, आज से डरना शुरू।

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  10. चोखेर बाली का सही अर्थ आज समझा है । आपके स्नेहसिक्त संस्मरण का इस शब्द से कहाँ तालमेल बैठता है । पता नही इस वटवृक्ष की जडें कैसी जमीन में कितनी गहरी हैं कि शाखें इतने विस्तार में फैलीं हैं । कि छाँव इतनी सघन है ।

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  11. मीठी यादों से , प्यार भरे रिश्ते से महकी सुंदर पोस्ट ...

    दीपावली की शुभकामनायें

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  12. बहुत सुंदर लेख,क्या कहने

    धनतेरस की बहुत बहुत शुभकमानएं

    एक नजर मेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर डालें

    http://tvstationlive.blogspot.in/2012/11/blog-post_10.html?spref=fb

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  13. अब तो लगता है कि मित्रता के मायने भी बदल गए हैं। पहले मित्रता जीवनभर निभायी जाती थी। बहुत अच्‍छी पोस्‍ट।

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  14. हालाँकि मेरा ऐसा तो कोई किस्सा नहीं है लेकिन मैंने अपने गाँव में ऐसे कई लोगों को देखा है जो एक दुसरे को नाम से नहीं बुलाते |
    वैसे स्कूल के दिनों से ही मेरा एक दोस्त है , आशीष शुक्ल | हम दोनों शायद ही कभी एक दुसरे को नाम से बुलाये हों , हमेशा मिश्रा-शुक्ला , ऐसे ही एक बार मैं उसे स्कूल के लिए बुलाने गया तो उसके घर के बाहर पहुँच के जोर जोर से शुक्ला-शुक्ला चिल्लाने लगा | उसके अड़ोस-पड़ोस में दो और शुक्ला जी के मकान थे , वो तक निकल आये |
    इसी तरह जब भी प्रिंसिपल के ऑफिस से किसी एक के नाम का फतवा जारी होता था तो दूसरा अपने आप समझ जाता था कि अभी १० मिनट में ही उसका भी बुलावा आने वाला है , तो ज्यादातर दूसरा वाला खुद ही सात चला जाता था |

    सादर

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  15. सलिल 'दा' एगो अउर रिश्ता भी होता है जहाँ हम कुछ नहीं कह पाते हैं.

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  16. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  17. दिलजान सखी .... गजब का जमाना था नहीं ,है एस .पी , सर जी के रूप में . बस देखने,लेने,समझने का नज़रिया चाहिए ....जैसे चोखेर बाली .
    रिश्तों की खुशबू से सराबोर पोस्ट

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  18. meri maa ki bhi 'paan' aur 'diljan'thin....hum unhen paan mousi aur diljan mousi kahte the.'badki amma ki ek 'sakhi'thin,unke pati ko bhi sablog 'sakha sahab'kahte the....un mazedar baaton ki yaad aaj aapne dila di......

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  19. :)
    Papa ki yaad aa gayi.. jaane pehle se aa rahi thi ya ye padh k aayi, wo nahi pata..
    unke aise dhero dost hain jinka naam humein bhi nahi pata... wo aksar kehte hain, "dost hi to kamaye hain humne jeevan me varna rishtedaar kab rishta badal lein, kya bharosa?"

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  20. कमाल का रिस्ता है ई दोस्ती... कभी प्रेम बन जाता है, कभी भक्ति बनकर सामने आता है. एतना मीठा रिस्ता कि जहाँ एक अऊर एक मिलकर दू नहीं, एक बनता है. जिसके होने में न सुख का पता चलता है, न दुःख का. सबकुछ भुला जाता है अऊर एगो परम सांति का अनुभव होता है. .........................


    पर ऐसा रिश्ता बनता कहाँ ...हमको भी बताएँगे ....:)))))

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  21. दीपावली पर्व के अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें

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  22. hamra ketna yaar....mita....patnar......aaj kahan kahan hoga.......hame nahi pata.......lekin sab darz hai hamare dil me ...........


    pranam.

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  23. कुछ रिश्‍ते
    हमेशा साथ होते हैं

    चाहे वक्‍त उनमें कितनी भी
    दूरियां ले आये

    आपकी इस पोस्‍ट में जाने कितने रिश्‍ते बिल्‍कुल आस-पास महसूस होते गये जैसे-जैसे पोस्‍ट पढ़ते गये ... आपकी लेखन शैली बेहद रोचक होती है हमेशा ही
    '' दीप पर्व की अनंत शुभकामनाएं ''
    सादर

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  24. ’चोखेर बाली’ का शाब्दिक अर्थ इस पोस्ट से ही पता चला।
    एस.पी.\डी.एस.पी. वाली बात पढ़कर तो मजा ही आ गया, चचा सही मामू बने:)

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  25. बहुत रोचक लगा आपका वर्णन। सही बात प्रेम के रिश्ते का कोई नाम नहीं होता, सम्बोधन के लिए नाम सोचकर नहीं किया जाता, बस स्पांटेनियस जो बन गया, सो बन गया।

    आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।

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  26. कुछ रिश्तों के नाम होते है...कुछ रिश्ते बस नाम के होते हैं...

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  27. दोस्ती तो गजब का रिश्ता है... बस मन में एक बार जो उद्बोधन घर कर जाये वही जीवन भर चलता है....

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  28. हमेशा की तरह दिलकश अंदाज में आपने मित्रता के इस पवित्र रिश्ते को भी याद किया। जिसे आँख में नहीं बसाया वो बालू की तरह चुभेगा क्या? जिसे पहली नज़र में झटक दिया वो क्या चोखेर बाली बनेगा या बनेगी? चोखेर बाली तो कोई सखी-सहेली या मीत ही हो सकती है। आपने चोखेर बाली के बहाने इस रिश्ते को पूरी तरह खोलकर रख दिया।

    मीत बनाने की यह परंपरा पहाड़ों में आज भी है। मीत भाई, मीत बहन के रिश्ते मैने देखे हैं। मेरे पिताजी की भी एक मुँहबोली बहन थीं। हम उन्हें काकी कहते थे। अब वे दोनो दुनियाँ में नहीं हैं लेकिन क्या मजाल कि पिताजी कोई नया फल या मिठाई लायें और मुझे काकी के घर एक मील दौड़कर पहुँचाना न पड़े! गर्मी के दिनों में हिरमाना कटता, सब घेरकर बैठ जाते, पहली फाँक काटते ही पिताजी उसे गमछे से लपेटकर मुझे थमा देते और मैं दौड़ पड़ता। न उन्हें कुछ कहने की जरूरत थी और न मुझे कुछ समझने की। जितनी देर करता उतना अपना हिस्सा गवांने का खतरा रहता।
    वे लोग इसी धरती पर रहते थे (हो सकता है आज भी हों) जो मीत के रिश्ते को दूध के रिश्ते से भी अधिक मान देते थे।

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  29. dosti ka rishta sansaar ka sabse khoobsurat rishta hai jise bahut khoobsurati se bataya hai aapne...abhar..

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  30. मेरी चचेरी बुआ जो मेरी हमउम्र है हम आज भी पक्की सहेलियाँ है और दोस्ती में कोई रिश्ता ,दखल नही देता ये उतनी ही खरी बात है जितनी आपकी यह पोस्ट ।

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  31. निःशब्द कर देते हैं आपके शब्द।
    ऐसे रिश्तों में शायद प्रेम, स्नेह और श्रद्धा - तीनों भाव एक साथ मौजूद होते हैं।


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  32. सही अर्थ आज समझा...मामा जी चोखेर बाली का

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