कभी-कभी हमको अपना ऊपर बहुत गोस्सा आता है
कि जहाँ पढा-लिखा लोग-बाग, अपना बात कहने के लिये गीता-पुरान, उपनिसद अऊर ग्रंथ का
उदाहरन देता है, हम सिनेमा का उदाहरन देकर अपना बात कहते हैं. मगर जाने दीजिये
मतलब त बात कहने से अऊर समझ में आने से है. कुच्छो हो, सिनेमा त ऐसहूँ हमरे रग-रग
में बसा हुआ है.
ऊ का है कि तब तक सिनेमा में आतंकबाद नहीं
आया था. अपराध माने स्मगलिंग - ऊ भी हीरा का. रॉबर्ट एगो काला रंग का पोटली
निकालकर लॉयन को थमाता है अऊर उसके अन्दर से ढेर सा हीरा निकलकर चमकने लगता है.
हीरा से जादा चमक लॉयन के आँख में देखाई देता है. ऊ घूमकर गोली चलाता है अऊर
रॉबर्ट ओहीं जमीन पर गिरकर ढेर हो जाता है. लॉयन अपना बाकी आदमी से बोलता है, “कफन में जेब नहीं होती, मगर इस मुर्दे की
जेब भी है और असली हीरे उसमें ही हैं. निकाल लो हीरे और इसकी लाश को माहिम की खाड़ी
में फेंक दो!”
बहुत बड़ा मकान था. तिनमहला था मगर बहुत
लम्बा-चौड़ा. फाटक के जगह पर बड़ा-बड़ा लोहा का ग्रिल, बीच में छोटा सा दरवाजा, एक
आदमी के जाने भर, पीछे एगो गार्ड हाथ में बन्दूक लिये हुये. सीढी चढकर, जैसहिं हम
दरवाजा खोले कि घूमने वाला कुर्सी के पीछे से आवाज़ आया, “आइये साहब!”
सामने पूरा देवाल पर टीवी स्क्रीन लगा हुआ
था अऊर फाटक से लेकर एहाँ तक हमरा एक-एक कदम निगरानी में था. एही नहीं, तिनमहला
मकान के हर कमरा पर एहीं से निगरानी रखा जा रहा था. हमको सामने वाला कुर्सी पर
बइठने का इसारा हुआ.
”बोलिये साहब क्या
लेंगे, ठण्डा या गरम, चाय या कॉफी?”
“बस ठण्डा पानी.”
”क्या साहेब! पहली
बार आये हैं तो सिरिफ पानी कैसे चलेगा...
ठण्डा आपो (लाओ)!”
”ठण्डा नहीं, चाय
चलेगी!”
जबतक चाय आता, हम अगल-बगल सीसा का कमरा
में नजर दौड़ाये. टेबुल के ऊपर लैम्प जलाकर सैकड़ों जवान लड़का सब टेबुल में मूड़ी
गड़ाये हुये काम में मगन था.
“देखिये साहब! यही
हमारा छोटा सा काम है!”
एतना बात बोलते हुये ऊ कागज का पुड़िया
निकाला अऊर हमरे सामने एक मुट्ठी हीरा निकाल कर रख दिया. सामने चमचमाता हुआ हीरा
देखकर हमको भी अजीब तरह का सिहरन होने लगा. याद आया कि बचपन में जब हमरा छोटा भाई
दादा जी के ऑफिस जाता था (माँ-पापा के साथ), त दादा जी उसको पोस्ट ऑफिस का तिजोरी
खोलकर देखा देते थे जिसमें नोट भरा रहता था. हमरे भाई का आँख देखने लायक होता था ऊ
समय. ऊ मम्मी को कहता था कि दादा जी से पैसा माँगने पर मना कर देते हैं अऊर सब
पैसा ऑफिस में रखते हैं.
फिर ऊ आदमी हमको पूरा फैक्टरी घुमाने ले
गया. मामूली गन्दा पत्थर, एकदम सेन्धा नमक का ढेला जइसा, मगर लेजर से काटने अऊर
पॉलिस करने के बाद जब ऊ चमक लेकर हमलोग के सामने आता है त इतिहास गवाह है कि केतना
लोग का नीयत खराब हो जाता अऊर केतना खून-खराबा हो जाता है.
पिछला तीन-चार महीना से एतना परेसान रहे
हैं कि का बतायें. घर-ऑफिस का रोज का परेसानी के साथ-साथ एगो जरूरी दस्तावेज हमसे
पहिले वाला आदमी लेना भुला गया अऊर पकड़ा गया हमारे टाइम में. सबको मालूम था, लेकिन
जिम्मेवारी हमरा था. नौकरी में दाग, अनुसासनिक कार्रवायी अऊर पता नहीं का का होता.
टेंसन अइसा कि कोई मदद करने वाला नहीं.
एक रोज एगो आदमी मिलने आया अऊर उसको हम
मदद के लिये अपना समस्या बताये कि अगर कोई जान-पहचान से दस्तावेज मिल जाये तो हम
अपना पइसा खर्च करके कलंक से त बच सकेंगे. ऊ बोला, “साहब! आपके लिये हम इतना भी नहीं कर पाये तो लानत हम पर और आप जैसे
नेक आदमी को यहाँ परेसानी हो, ये हमसे बर्दाश्त
नहीं होगा. आप मेहमान हैं हमारे. आपका पैसा नहीं खर्च होगा.” तीन रोज में ऊ आदमी कागज लेकर हमारे सामने आया अऊर बोला, “साहब! आप हंसते हुये अच्छे लगते हैं!”
हम
परेसानी के लेजर किरन के आँच में कटते अऊर रगड़ाते हुये अपना चेहरा का चमक बचा सके अऊर ई
सोचकर खुस थे कि परमात्मा तकलीफ नहीं दे त इंसान हीरा कैसे बनेगा. एही अनजान सहर
में ऊ हीरा जइसा आदमी हमको भेंटा गया.
अमित
जी त रोज कहबे करते हैं, बाकी आज त हम भी आप लोग को कहेंगे कि
खुसबू है एहाँ के हर बात में,
अरे, कुछ दिन त बिताइये गुजरात में!
अच्छे लोगों और बहुत अच्छे लोगों और कुछ तो बहुत ही अच्छे लोगों से मिलवाया ह-ईश्वर ने हमेशा...मुझे भी
जवाब देंहटाएंसक में मुसकुराते हुए ज्यादा अच्छे लगते हैं आप ...
देखिये कब आना होता है ... फिलहाल तो हम इस बात से ही मगन है कि आपने अपना वादा तो निभाया ... ;)
जवाब देंहटाएंAnd yes Diamonds like YOU are forever इस लिए वैल्कम बैक कह कर भी नहीं कह रहे !!
हम कुछ सेन्स करते रहे हैं सलिल भाई मुला अपुन की भी समस्या इधर कुछ ऐस्यीच ही रही है -ई नौकरी में कब कौन लफड़ा आ धमके कौन जानता है -और आप अकेले भी पड़ जाते हैं ! जैसे आपको हीरा मिला भगवान करे हमको सबको मिले !
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम! कल ई पोस्ट की चिटठा चर्चा त होयिबे करी ..आप आये बहार आयी
और हाँ अबकी एल टी सी गुजरात को भी -हम अमित को का जाने सलिल भाई को जानते भये हैं!
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंआप हंसते हुये अच्छे लगते हैं!”
हमें भी......
आपको पढना सदा अच्छा लगता है सलिल दा....लिखने का वक्त निकालते रहिये जैसे भी हो.
सादर
अनु
भागवत महापुराण में वर्णन आता है चार युगों का ,सतयुग के लोग बड़े संतोषी और दयालु होते है ,त्रेतायुग में अधिकांश लोग कर्मप्रतिपादक ,वेदो. के पारदर्शी विद्वान् होते है ,द्वापरयुग में हिंसा असंतोष झूठ और द्वेष अधर्म के इन चार चरणों . की वृद्धी हो जाती है ,और इनके कारन धर्म के चारो चरण -तपस्या ,सत्य दया और दान आधे आधे क्षीण हो जाते है ,और कलयुग में तो लालसा ,तृष्णा में लोग बहते रहते है ।इन युगों का समय भी वर्णित है किन्तु मेरी अल्प बुद्धि में तो यही समझ में आया है की हम जिस युग में आज है वहां चारों युग विद्यमान है जिसमे सतयुग के निवासी आप है |
जवाब देंहटाएंबचपन से सुना है, अच्छे लोगों के साथ कभी गलत नहीं होता. आजकल देखने को मिल रहा है. आज ही अनु की पापा खोने और मिलने वाली पोस्ट पढ़ी और अब यह. अभी भी दुनिया में मददगार बाकी हैं.
जवाब देंहटाएंऔर हाँ हमें भी आप हँसते हुए ही अच्छे लगते हैं :).
कोई भी जब किसी नए शहर में आता है और उसे अच्छे अनुभव होते हैं तो बहुत ख़ुशी होती है और विश्वास जम जाता है कि यह दुनिया जीने लायक है.
जवाब देंहटाएंपरमात्मा तकलीफ नहीं दे त इंसान हीरा कैसे बनेगा.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए ,आभार सलिल जी
Recent Post : अमन के लिए.
एक लिहाज है व्यक्तित्व में, एक मिठास है भाषा मेँ. रिश्तों की उष्मा है गुजरात में........
जवाब देंहटाएंएकदम सही बोले वो कि, “साहब! आप हंसते हुये अच्छे लगते हैं!”
जवाब देंहटाएंअरे हाँ, आप तो भावी प्रधानमंत्री के मायके में हैं आजकल, भाव अधिक होना चाहिए!
जवाब देंहटाएंसच्चे लोगों को अक्सर कठिनाइयों का सामना करना पडता है ,इस खेद के साथ विश्वास भी था कि आपको जल्दी ही समाधान मिलेगा । आज पढकर अच्छा लग रहा है । समय निकाल कर अनुभव के ये हीरे बिखराते रहिये ।
जवाब देंहटाएंई बात...तबही हम कहे हमरे भैया कहाँ गुम हो गये!
हटाएंमुझे तो लग रहा है गुजरात वाले आपको जाने नहीं देगे या आप गुजरात के हो जायेंगे।
चलिये आपकी परेशानी दूर हुयी ..... अच्छे लोगों को अच्छों का साथ मिल ही जाता है .... यूं ही लिखते रहा कीजिये ....
जवाब देंहटाएंहीरा सदा के लिए.... बढ़िया संस्मरण
जवाब देंहटाएंहमें तो आप जैसे भी हैं / निशर्त अच्छे लगते हैं...भले ही हँसते हुए होने की शर्त और वक़्त पर जिन्हें जिन्हें भी पसंद आये हों :)
जवाब देंहटाएंहमें तो आप जैसे भी हैं / निशर्त अच्छे लगते हैं...भले ही हँसते हुए होने की शर्त और वक़्त पर जिन्हें जिन्हें भी पसंद आये हों :)
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो सादर प्रणाम ,
जवाब देंहटाएंआपकी गैर-मौजूदगी में आपकी पुरानी पोस्ट से काम चला लेते थे(और किसी के लिए भी ब्लॉग/शायद/ अपने व्यक्तिगत जीवन और समस्याओं से बढ़कर नहीं है , इसीलिए आपसे कोई खास शिकायत भी नहीं है)
एक दिन में दो ऐसी पोस्ट पढ़ीं(पहली 'मैं घुमंतू' ब्लॉग से लेखिका के पिता जी के खोने और मिलने के बीच का संस्मरण था दूसरे में आपके चिर-परिचित अंदाज में लिखी आपबीती) जिनको पढ के भगवान के ऊपर भरोसा और मजबूत हो गया | वो किस रूप में आपके सामने आ जाये किसी को नहीं मालूम |
साथ ही , मुस्कुराते हुए सभी लोग अच्छे लगते हैं , ईश्वर आप के साथ-साथ सभी की मुस्कान कायम रखे |
सादर
काट काट कर, घिस घिस कर बनता है हीरा..
जवाब देंहटाएंपरमात्मा तकलीफ नहीं दे त इंसान हीरा कैसे बनेगा.
जवाब देंहटाएंसच बात ...लिखना जारी रखिएगा ...
अगला एल टी सी हमारा भी गुजरात का ...
जवाब देंहटाएं:)
शुभकामनायें सलिल भाई !
तो गुजरात जाने का रहस्य अब समझ आया...तो कुछ रोज और गुजारो गुजरात में...।
जवाब देंहटाएंगुजरातियों की इमानदारी की दुनिया कायल ऐसे थोड़े ही है.
जवाब देंहटाएंसलिल भाई जी मुस्कुराने में दो और गुस्सा होने में २ २ मांस पेशियों को काम करना पड़ता है अतः आपकी मुस्कराहट भगवन बनाये रखें
जवाब देंहटाएंवह आदमी बिलकुल ठीक कहा कि आप हँसते हुए अच्छे लगते हैं। ब्लॉग से ढक्कन हटाने के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंजब पढ़ते थे त परीच्छा के समय बड़ा टेनसन रहता था, लेकिन परीच्छा खतम होने के बाद एगो अउर टेनसन हो जाता था के केतना थ्रिलिंग बाला मौसम था ...चला गया। अब एक साल फेर इंतज़ार करना पड़ेगा। ओइसन हीं, नौकरी में दाग लगते-लगते ....टेंसनाते-टेंसनाते बरी हो जाने का भी एगो अलगे आनन्द है। लगता है कि पूर्बज लोग ठीक्के कहे थे "असत्य पर सदा ही सत्य की जीत होती है"।
जवाब देंहटाएंसलिल भइया जी!अब आराम से खाखरा अउर ढोकला खाइये ...हंसते रहिये .....
वैसे बात अमित जी की सौ टका सही कि गुजरात सभी मामले में अच्छा है और यह तभी पता चलेगा जब कुछ दिन वहाँ रहेंगे अन्यथा तो बस मोदी को गरियाते नेता लोग ही दिखाई देते हैं..
जवाब देंहटाएंये हीरे की बात तो ठीक है ... पर क्या आप भी गुजरात के भक्त हो गए हैं ...
जवाब देंहटाएंअच्छे लोगों को अक्सर हीरे ही मिलते हैं क्योंकि वो खुद जो हीरे होते हैं ...
bitaiye lete hai kuchh din gujarat me ....
जवाब देंहटाएंchaliye musibat to tali.
अंधियारे में एक किरण रौशनी की ...
जवाब देंहटाएंअच्छे लगते हैं संस्मरण जो भरोसे की मजबूत नींव तैयार करते हैं !
गुजरात की तारीफ तो सभी जगह से सुन रहे हैं और लोगों के पेट का दर्द भी अनुभव कर रहे हैं। लेकिन आपको अच्छे आदमी मिले यह बधाई की बात है। बस गुजरात घूमने का मन हो रहा है, अगले साल तक बनाते हैं, प्रोग्राम।
जवाब देंहटाएंaapki hansi bani rahe......aur aap sada likhte rahen......
जवाब देंहटाएंइस हँसी की बदौलत ... कई लोगों के चेहरे पर भी मुस्कान सजी है :)
जवाब देंहटाएंखुसबू है एहाँ के हर बात में,
अरे, कुछ दिन त बिताइये गुजरात में!
पढ़कर अच्छा लगा ... लंबे अंतराल के बाद आपको ....
सादर
सांच को परेसानी जो होए,लेकिन सच्चे में हीरवा तो हीरवे है न .... आ गुजरात .. कुछ दिन गुजार लेंगे अमिताभ जी का कहना मानके
जवाब देंहटाएंएकदम सही कहा आपने मामा जी ......वैसे आप तो हस्ते हुए ही अच्छे लगते हो......बढ़िया संस्मरण
जवाब देंहटाएं@ संजय भास्कर
मोटा भाई, हमारे अनमोल हीरे की चमक लौटाने वाले ’ऊ आदमी’ तक ह्म ब्लॉगर्स का धन्यवाद फ़ोरवर्ड कर दीजियेगा।
जवाब देंहटाएंkhusboo to sabse jayda aapke lekhan me hai :) ek dum soundha apna sa :)
जवाब देंहटाएं