शनिवार, 3 सितंबर 2016

आशीष शुभ-आशीष

हिन्दी से हटकर अंगरेजी के अलावा जब हम कोनो दोसरा भासा के बारे में सोचते हैं, त हमको दुइये गो भासा समझ में आता है; पहिला पूरब का बंगला अऊर दोसरा दक्खिन का मलयाळ्म. एक तरफ शरत चन्द्र, रबि ठाकुर, बिमल मित्र, शंकर अऊर सिनेमा के तरफ जाइये त मृणाल सेन, सत्यजीत राय का नाम अपने आप में सम्पूर्न है. दोसरा ओर मलयाळ्म में तकषि शिव शंकर पिळ्ळै, एम. टी. वासुदेवन नायर अऊर सिनेमा में अडूर गोपालकृष्णन, मामूटी, मोहन लाल अऊर भुला गए गोपी. दुनो राज्य में एगो कला अऊर साहित्य का समानता त हइये है.

अब जऊन कलाकार का नाम हम लेने जा रहे हैं उनके अन्दर ई दुनो राज्य का माटी का मेल है. माँ बंगाली (कथक नृत्यांगना) अऊर पिता केरल से (एक थियेटर कलाकार)... जब ई दुनो प्रदेस का कला अऊर संस्कृति एक्के अदमी में समा जाए, त कलाकार के पर्तिभा का अन्दाजा लगाया जा सकता है, खासकर तब, जब उसका बड़ा होने का समय (बांगला में मानुष होबार शोमय) दिल्ली में गुजरा हो अऊर अभिनय का सिच्छा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से मिला हो. ऊ कलाकार हैं – आशीष चेट्टा. चेट्टा (बड़े भाई के लिये मलयाळी सम्बोधन) नहीं कहेंगे, हमसे साल भर छोटा हैं उमर में आशीष विद्यार्थी.

आशीष जी के ऐक्टिंग का झलक हम दूरदर्सन के जमाना में टीवी पर देख चुके थे, सई परांजपे के सिरियल में- “हम पंछी एक चॉल के” अऊर जब सई कोनो कलाकार को चुन लें, त उसके पर्तिभा में कमी होइये नहीं सकता है. उसके काफी टाइम के बाद गोबिन्द निहलाणी का “द्रोहकाल” में देखे. गोबिन्द जी का चुनाव अऊर आशीष का उनके चुनाव के प्रति न्याय देखकर दंग रह गये. पूरा तरह से चरित्र में समा जाना अऊर आवाज के उतार चढाव के साथ चेहरा का बदलता हुआ भाव से ऐक्टिंग करना एतना पर्भावित किया कि का बताएँ. ओम पुरी अऊर नसीर के बीच आशीष को इग्नोर नहीं किया जा सकता था. 


“इस रात की सुबह नहीं” त हम कभी भूलबे नहीं किये. बिना ओभरऐक्टिंग के एगो डॉन का फ्रस्ट्रेसन जो एक मामूली आदमी से पब्लिकली थप्पड़ खाने की बाद होता है, देखने लायक था. एकदम जीवंत... बोले तो असली!


आशीष का चेहरा में मलयाळी झलक है अऊर हिन्दी सिनेमा के पैमाना से उनको इस्मार्ट के कैटेगरी में नहीं रखा जा सकता है. लेकिन इनके आवाज का क्वालिटी अऊर आँख से एक्टिंग करना का कमाल का है. बाकी जो हाल है हमारा हिन्दी सिनेमा का, टैलेण्ट के साथ किस्मत का फैक्टर अइसा है कि का बताया जाए. आशीष जी का बहुत सा सिनेमा आया, मगर उनको जबर्दस्ती कॉमिक भिलेन बनाकर, कभी बिहारी बोलवाकर उनका दुरुपयोग हुआ अऊर धीरे-धीरे हमको लगा कि ई कलाकार चुक गया.

पिछला साल, जब हम गुजरात में थे, तब एगो सिनेमा देखने को मिला – “रहस्य”. ई सिनेमा आरुषि-हेमराज हत्याकाण्ड पर आधारित था. इसमें बहुत दिन के बाद देखाई दिये आशीष विद्यार्थी. सिनेमा देखने के बाद लगा कि ई कलाकार में आज भी बहुत दम है. गुस्सा, फ्रस्ट्रेसन, मजबूरी को अपने ऐक्टिंग से एतना बढिया एक्स्प्रेस किये थे कि हमको अपना फेसबुक पर एगो इस्टेटस लिखना पड़ा. संजोग से ऊ भी हमरे पोस्ट पर आकर अपना कमेण्ट किये अऊर हमको धन्यबाद बोल गये.


अऊर ई साल आया हमरा सबसे पसन्दीदा सिरियल – “24”. ई सिरियल जेतना हमको स्क्रिप्ट के कसाव के लिये अऊर सब कलाकार का अदाकारी के लिये पसन्द आ रहा है, उससे कहीं जादा हमको आशीष विद्यार्थी के अभिनय के लिये भी पसन्द आ रहा है. खतरनाक अऊर सातिर आतंकवादी के रोल में उनका सधा हुआ ऐक्टिंग से जान आ गया है.

डायलाग से जादा त उनका आँख बोलता है अऊर उनका पूरा चेहरा डायलाग का साथ देता है. जब ऊ कमीनापन पर उतरता है त आपको उससे नफरत होने लगता है. आपको बिस्वासे नहीं होता होगा कि ऊ जो पर्दा पर देखाई दे रहा है ऊ रोशन शेरचन नाम का किरदार है कि आशीष विद्यार्थी... अइसे कैरेक्टर में समा जाना कि लिखने वाले को भी दुनो में अंतर करना मोस्किल हो जाए, एही  ऐक्टर का सबसे बड़ा कामयाबी है.


ऐक्टिंग अऊर आवाज के मामला में पर्दा पर बहुत सा दोस छिप जाता है, काहे कि सामने का द्रिस्य अऊर दोसरा कलाकार भी होता है, त कोनो ऐक्टर का दोस पता नहीं चलता. लेकिन रेडियो पर बोलते समय त सब कुछ आवाजे से बताना पड़ता है. मोबाइल ऐप्प “गाना” पर खाली गाने नहीं सुनाई देता है. आपको “कहानीबाज़ आशीष” के आवाज़ में कहानी का स्रिंखला मिलेगा. अऊर उनके आवाज के जादू से कोई नहीं बच सकता है.



आशीष जी, आपको हम अपना इस  पोस्ट के माध्यम से सुभकामना भेजते हैं कि आप भले कम काम कीजिये, लेकिन अपना ऐक्टिंग के ईमानदारी अऊर आवाज के जादू को ई फिलिम इण्डस्ट्री के टाइपकास्ट करने वाला रोग से अक्छुण्ण रखिये. हमको एही खुसी है कि आपसे जो हम उम्मीद लगाए थे, ऊ अभी तक बरकरार है! “24” के लिये सुभकामना अऊर कहानीबाज़ चलाते रहिये. ऑल द बेस्ट!!

19 टिप्‍पणियां:

  1. आशीष विद्यार्थी पर बहुत अच्छा लिखा है। आप लिखते हैं तो लगता है कि आप चरित्र की आत्मा में घुस के लिखे हैं...लगता ही नहीं कि आपने लिखा है या खुद चरित्र ने आपसे लिखवा लिया है। आपकी शैली का तो कहना ही क्या? किसी पर लिखा गया इतना जीवंत हो जाता है कि ऐसा लगता है कि हम आपके पास बैठा है और आपने हमें एक ऐसा किस्सा सुना दिया जिस से हमारा मन और आत्मा भीग गया और एक सुकुन हमारी आत्मा में उतर गया है। धन्यवाद आपका!!

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  2. हमें ये नहीं पता था कि आशीष हाफ मलयाली हैं...और आप की भाषा दादा....आनंद आ जाता है पढ़ कर :-)
    हाँ आशीष वाकई बढ़िया एक्टर हैं...मगर फिल्मों में कई बेकार रोल करके अपना नाम खराब किये हैं...लेकिन समझी जा सकती है एक कलाकार की मजबूरी....खैर बुरे के साथ अच्छा भी परोसते रहें यही उम्मीद है...
    :-)
    अनु

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  3. Gazab...idhar aap blog shuru kar diye hain achhaa lag raha hai chacha :)
    Aur ashish vidyarthi mere bhi pasandida kalaakar hain. Bahut zyada pasand hai inka kaam mujhe bhi...
    Aur 24 ke baare mein kuch nahi kahenge...baad mein kabhi :)

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  4. मेरे लिये यह पोस्ट जैसे आशीष विद्यार्थी का नया अवतरण है जिस तरह अच्छी समीक्षा या पुरस्कार किसी कृति या कलाकार को और भी ऊँचाई दे देता है . हालांकि इनके अभिनय की तो प्रशंसा सुनी थी पर कोई उल्लखनीय भूमिका देखी नहीं थी .आपने उनके विषय में जिस आत्मीयता से लिखा है अब जरूर उत्सुकता रहेगी .

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  5. सुन्दर समीक्षा की आपने..नादिरा ज़हीर बब्बर निर्देशित एक नाटक में इनका अभिनय देखी थी ..बेहद स्वाभाविक ..प्रभाव छोड़ता हुआ ..

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  6. ई तो भयंकर कलाकार हैं। असली परिचय त हमें इनके अभिनय से मिल गया था। आज आपको पढकर प्लीजेन्ट सरप्राइज हुआ। त ई बंगला और मलयाली मिश्रण हैं। गज़ब।

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  7. ख़ुशी इस बात की कि आपकी लेखनी रवां हो रही है और पुराने दिन लौट रहे हैं. साथ ही इशारा यह भी कि शायद कुछ फुर्सत भी नसीब में आई है!
    इनके चेहरे से ही अदाकारी टपकी पड़ती दीखती हैं....!

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  8. यही तो कलाकार की पहचान है कि वह किरदार इस कदर घुल मिल जाय कि देखने वाले समझे यही असली चेहरा है ...
    आशीष जी के बारे में बहुत ही रोचक जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार!

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  9. एक अच्छा आलेख ... आशीष विद्यार्थी के अभिनय ने हमेशा अपनी छाप छोड़ी है और विशिष्ट जगह बनाई है .... हर रोल को इमानदारी से निभाते हैं और ऐसे कलाकार हमेशा लम्बे समय तक मनःस्थिति में रहते हैं ....

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  10. आशिष विद्यार्थि के अभिनव को देखने का अभी मुझे मौका नहीं मिला लेकिन ये वर्णन पढ़कर उनका अभिनय जरुर देखुंगी। सुंदर प्रस्तुति।

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  11. आशीष दादा के अभिनय का मुरीद तो मैं शुरू से था, 2005 मे जब उन से मिला और उन्होने भरी महफ़िल मे बाकी सब को छोड़ा मुझे समय दिया और विभिन्न विषयों पर खुल कर चर्चा की, एक व्यक्ति के रूप मे भी मैं उनका मुरीद हो गया |

    आज आप की इस पोस्ट से बहुत कुछ याद आ गया | थैंक्स दादा |

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  12. आशीष जी का अभिनय देखा है कुछ फ़िल्मों में । उनके अभिनय में स्वाभाविकता होती है । किरदार के भीतर वे नहीं, किरदार उनके भीतर प्रवेश कर जाता है । उनके व्यक्तित्व के कुछ और आयामों की जानकारी आपकी इस प्रस्तुति से हुई । आशीष जी के लिए शुभकामनाएँ और आपके लिए आभार ।

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  13. Kmaaal ki paarkhi nazar ..... Bht hi gahre utar kr aapne hr pahlu ka badi hi sukshmta se shabdon me utara hai ...... Badhaiiiii behatreeeen post ki

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