पटना सहर का पूर्बी इलाका, बचपन में पटना सिटी कहलाता था, बाद में पटना साहिब कहलाने लगा. जब पटना सिटी कहलाता था तब भी ऊ जगह ओतने पबित्र था जेतना पटना साहिब कहलाने के बाद. एही पाबन धरती पर सिक्ख सम्प्रदाय के दसवें अऊर अंतिम गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ था. संजोग ऐसा हुआ कि हमरे परिबार में हमरे चाचा जी, हमरे चचेरे भाई अऊर हम तीनों एहीं से नौकरी का सुरुआत किए . आज भी सिरी हरमंदिर साहिब का स्मरन होते ही माथा स्रद्धा से झुक जाता है.
ई घटना नौकरी के सुरुआत के भी बहुत पहिले का है. कॉलेज में पढ़ते रहे होंगे तब. एन सी सी ज्वाइन कर लिये थे अऊर कैम्प के लिये झाँसी के पास बबीना ले जाया गया था हम लोग को. ई कैम्प था 15 दिन का, लेकिन समस्या एहीं से सुरू हुआ. ई 15 दिन हमरे लिए पहाड़ जईसा होने वाला था. ऊ जमाना था, हरे रामा हरे कृस्ना का. मतलब लम्बा लम्बा कंधा पर झूलता हुआ बाल का. त हम भी अपवाद नहीं थे. नया नया जवान हुये थे, ठीक से मोंछ दाढ़ी भी नहीं आया था अऊर देखने में मासाअल्लाह स्मार्ट भी थे ( ई बात हमरी माता जी के अलावा भी लोग कहता था काहे कि माँ के नजर में त उसका बच्चा दुनिया का सबसे स्मार्ट बच्चा होता है).
कहाँ कंधा पर झूलता हुआ रेसमी जुल्फ, जिसको देखकर मन में सुनाई देता था, उड़ें जब जब जुल्फें तेरी, अऊर कहाँ एन सी सी का अनुसासन, जिसमें बाल माथा पर कटोरा रखकर काटा जाता था, ऊ भी अईसा कि मुट्ठी छोड़िये चुटकियो में नहीं धराने वाला. बड़ा समस्या था. जो आता ओही डराकर चला जाता. समझे में नहीं आता था कि का करें. लगा कि हमरा अंतरात्मा से जादा हमरा आस पास का लोग हमसे बोल रहा है कि बेटा माता क़ुर्बानी माँग रही है. जब तुमरे अंदर बाल कटाने का जज्बा नहीं है, तो सर कटाने का समय आएगा त का करोगे.
लेकिन हमरा मन टस से मस नहीं हो पा रहा था. आखिर एक दिन एलान हो गया कि मेजर सुरेंद्र नाथ परेड का निरीक्षन करने के लिये सनिवार के दिन आएँगे. इसलिए सब चाक, चुस्त, चौबंद होना चाहिये. तनिको कमी का मतलब था कि पीठ पर पिट्ठू, चाहे राइफल हाथ में उठाकर मैदान का चार चक्कर लगाना. अब हमरे सामने तीन रास्ता था. पहिला एकदम सीधा कि बाल कटवा लें और नहीं त पिट्ठू या दौड़. अऊर इस फैसला के लिए हमको मिलने वाला था सिर्फ चार दिन. और घड़ियाल बाबू चल पड़े थे. हमरे नजर के सामने से ऊ सब लोग का फोटो गुजर गया जिनको हमरे जुल्फ में हमरा स्मार्टनेस देखाई देता था. का जवाब देंगे ऊ लोग को हम. केतना लोग का उम्मीद पर पानी फिर जाएगा. ई हमरा जुल्फ कटने का सवाल नहीं, हमरे नाक कटने का सवाल बन गया था.
चार दिन कईसे बीत गया पते नहीं चला. दुनिया भर का घड़ी अऊर सूरज चाँद सब फास्ट हो गया था या साजिस करके एक्के पार्टी में हो गया था सब. सनिवार के दिन परेड मैदान में एकट्ठा हो गया पूरा प्लाटून. सब चाक, चुस्त, चौबंद. बूट अऊर बेल्ट चमकता हुआ, युनिफॉर्म इस्तरी किया हुआ कड़क, कंधा से राइफल लटका हुआ. एक बार साबधान का कमाण्ड मिला नहीं कि बूट से बूट जोड़कर अईसा खटाक का आवाज होता था कि जईसे पहाड़ो का सीना में छेद हो जाए.
मेजर साहब आए, परेड का निरीक्षन किए अऊर खूब तारीफ करके चले गए. मेजर सुरेंद्रनाथ एतना कड़क मेजर थे कि ऊ अगर कोनो टुकड़ी को अच्छा कह दिए त समझिए एक्सरे हो गया. लोग बाग कहता था कि उनके नजर से कमीज के ऊपर वाला पॉकेट में रखा हुआ सिक्का भी नहीं छिप सकता था.
मेजर साहब के जाने के बाद हमरा जेसीओ हमको खोज रहा था. उसको पता चल गया था कि उसका प्लाटून में से एगो लड़का कम हो गया है. लेकिन उसको ई भी मालूम था कि एगो सिक्ख कैडेट बढ़ गया था गिनती में, कैडेट जसपाल सिंह के साथ साथ लांस कार्पोरल सलिल सिंह. कड़क यूनिफॉर्म में माथा पर पगड़ी बाँधे हुए. मेजर सुरेंद्रनाथ को दू गो सरदार दिखाई दिया, मगर इ बात सिर्फ हमरा प्लटून का जे सी ओ जानता था कि पटना से सिर्फ एक सरदार आया था.
अगला दिन कैम्प फायर था. अऊर हम जोस में नारा लगा रहे थे, जो बोले सो निहाल...सत सिरी अकाल!!
बहुत खूब ,जब दिल में जज्बा हो तो रास्ता मिल ही जाता है । आप तो बाल बाल बच गये ।
जवाब देंहटाएंतो अब समझ में आया कि आप सलिल सिंह से खड्गसिंह कैसे बने।
जवाब देंहटाएंगुरु पुरब गुरु नानक जयंती एवम् कार्तिक पूर्णिमा की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंहा हा मस्त...ये भी तो वो बात हो गयी - व्हाट एन आइडिया चचा जी :) :)
जवाब देंहटाएंऔर चचा जी वैसे स्मार्ट तो आप अब भी कम नहीं हैं.,...(झूठ नहीं बोल रहे हम) :)
बहुत बढ़िया तरकीब निकाली ..जो बोले सो निहाल ....
जवाब देंहटाएंbahute zoredaar masaaledar post...is sab kahaniyaan chora leve ke man kaela kabo kabo .... ego kahani maange the na kal.... ab sayad iho mang liye..:P ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विचार आया और आप बच भी गए . इसको कहते "प्रेसेंस ऑफ़ माइंड " और आपके बालों के दुश्मन टापते रह गए.
जवाब देंहटाएंसलिल जी ! सादर प्रणाम !!! आपने जीवन के हर रंग को जिया है । यही कहती हैं आपकी ये मजेदार पोस्टें ।
जवाब देंहटाएंगुरु पुरब की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
गुरु पर्व दी लख लख बधाइयाँ !
जवाब देंहटाएंश्री वाहे गुरु जी दा खालसा ...... श्री वाहे गुरु जी दी फ़तेह !!
जीवन के जिन पहलुओं से.. जिन किरदारों से आप परिचय करते हैं.. वह अदभुद है... हंसती है.. गुदगुदाती है.. कई बार इंस्पायर भी कर जाती है... उन्ही पोस्टों की अगली कड़ी है 'गुमशुदा कैडेट'... सुन्दर!
जवाब देंहटाएंdilchasp.......
जवाब देंहटाएंise buddhi par nihaal .
dee
वाह सलिल जी..... जहां न पहुंचे रवि - वहाँ पहुंचे कवी.. यानी आप बचपन से ही ऐसे थे....
जवाब देंहटाएंक्या दिमाग पाया है.......
और ये नहीं बताया कि जे सी ओ को कैसे पटाया था.......
वो कैसे सलिल वर्मा को सलिल सिंह बना दिया..
मजेदार.....
आपको भी गुरु पुरब एवम् कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ
बेहद सारपूर्ण प्रस्तुति, अवसर चुरा लेते है!!
जवाब देंहटाएंसत श्री अकाल, वाहे गुरू जी दा खालसा।
बहुत सुन्दर संस्मरण। बाल बचाने का शर्तिया तरीका।
जवाब देंहटाएं"जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल"
जवाब देंहटाएंखुश कर दित्ता भाप्पे।
हा हा हा।
आज हंसी नहीं रुक रही है सलिल भाईजी, सच में आप ’चीक्कल पात वाले होनहार बिरवा’ थे शुरुआत से ही:)
वाह ...
जवाब देंहटाएंलेकिन बाद में रहात का सांस कैसे लिये सो तो बतैवे नहीं किये भैया....दोस्त्वन लोग को जब बताये होंगे सब खूब मज़ा लिया होगा है कि नहीं.....
सब को गुरु-परब का बधाई....
राजेश
बहुत ही मजेदार संस्मरण।
जवाब देंहटाएंआप के संस्मरण एक से बढ़कर एक होते हैं। मुहावरेदार भाषा का प्रयोग, जैसे सोने में सुहागा... सलिल जी, मन मोह लेता है।
प्रकाश पर्व की शुभकामनाएं।
6.5/10
जवाब देंहटाएंफूल पैसा वसूल पोस्ट
आपकी पोस्ट पर आना हमेशा ही आनंद दायक होता है.
आपका अंदाज सबसे जुदा है. जिसने आपको नाहीं पढ़ा .. तो उसने क्या ख़ाक पढ़ा है :)
bahut sunder aapbeeti.
जवाब देंहटाएंAre bhaiya hum hun ta Bihari bani aur INDIAN AIR FORCE se retired ho kar Kolkata mein sarkari seva mein Hindi ke vikas khatir lagal bani.Humre blog par raur nimantran Ba. Tani saj dhaj ke aiyega-kahe ki ek BihaRi sab par bhari.Are majak kara tani bhai.Abar dekha hobe.GOd lagi.
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
सलिल जी ... एक और मस्त पोस्ट .... इसी को जीना कहते हैं .... और एन सी सी के दिनों की मस्ती तो कुछ और ही होती है ....
जवाब देंहटाएंप्रकाश पर्व की बहुत बहुत मुबारकबाद ..
लांस नायक सलिल वर्मा जी ई तै कमाल के आईडिया लगौनी आप. तब जे. सी. ओ . साहब आपके फईनली पकड़ लेहनस कि ना ....
जवाब देंहटाएंओह ...यह रास्ता निकालेंगे,इसका तो तनिको अंदाजा नहीं था...
जवाब देंहटाएंजबरदस्त...
आखिर बाल बचा ही लिया आपने...
बाल-बाल बचा बाल!
जवाब देंहटाएंहम्म!
जवाब देंहटाएंबच गए बड़े भाई।
इसी लिए कहते हैं कि पटनिया के पास बहुते तरकीब होता है।
जो बोले सो निहाल .. सत्त श्री अकाल।
(हम त इसी लिए एनसीसी ज्वायन नहीं किए थे। और देखिए उस समय तो बचालिए थे, मगर आज मुट्ठी क्या चुटकियो में धराने लायक नहीं बचा है...)
अच्छा लगा ये संस्मरण पढ़कर.... वैसे तरकीब यक़ीनन अच्छी है.....
जवाब देंहटाएंबोले सो निहाल --- सत श्रीअकाल आप भी पूरे उस्ताद हैं\ शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंवाहे गुरु जी का खालसा,
वाहे गुरु जी की फतह!
-चैतन्य
भाई मान गए आपका भी जवाब नहीं....गजबे करतें हैं आप ....
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं जहाँ चाह वहां राह :)पूरी पोस्ट बहुत रोचक है कई बार मुस्कराहट आई पढते हुए.
जवाब देंहटाएंएन सी सी ,
माँ की नजर में उसका बच्चा सबसे स्मार्ट होता है
रेशमी जुल्फें
वाह मजा आ गया पढकर.
बहुत बढ़िया, मज़ेदार और दिलचस्प संस्मरण! बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंअरे इतना बढ़िया लेख तो आप ही लिख सकते हैं ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंकभी चलते -चलते इधर आ जाएँ , आपका स्वागत है
मजेदार बहुत बढ़िया.....
जवाब देंहटाएंआपको भी गुरु पुरब एवम् कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ
वाह सलिल जी ,कमाल का आइडिया निकाला !
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
Salute सर जी!... आज कुछ और कहते बनता भी नहीं..
जवाब देंहटाएंपता है आपका लिखा पढना क्या है?
१४-१५ की उम्र में शाम को क्रिकेट खेलने जैसा...अभी रात होगी और खेल ख़त्म हो जाएगा :(
पोस्ट भी यूँ ख़त्म हो जाती है...जिसकी वाकई इच्छा नहीं होती.
धन्यवाद ऐसा लिखने का...
इहाँ जरुर कहिबे के परी - "व्हाट एन आइडिया सर जी " :)
जवाब देंहटाएंसादर