मंगलवार, 9 नवंबर 2010

छठ पूजाः यादों का कोलॉज

अजीब समानता है आदमी अऊर चिड़िया में. एक तरफ साइबेरिया उड़कर हर साल केतना पंछी एहाँ आता है अऊर दोसरा तरफ पेट के खातिर केतना लोग अपना जड़ अपना जन्मभूमि से उखाड़कर परदेस में रोप देते हैं. पेड़ फलता है मगर, अपना जन्मभूमि का मिट्टी उसको हमेसा बुलाता  है. खास तौर से त्यौहार के समय. कुछ परब त्यौहार अपना प्रदेस के अलावा कहीं मनाया भी नहीं जाता. ऐसने एगो त्यौहार है छठ पूजा, बिहार और उत्तर प्रदेस के कुछ हिस्सा को छोड़कर कहीं नहीं मनाया जाता है. हाँ जहाँ जहाँ बिहारी लोग बस गया है वहाँ परब का प्रचलन बढ़ गया है.
मगर बशीर साहब बोल गए हैं कि
ये ज़ाफ़रानी पुलोवर, उसी का हिस्सा है,
कोई जो दूसरा ओढ़े, तो दूसरा ही लगे.
इसीलिए, परब का मजा परिबार, समाज अऊर अपना मट्टी में ही आता है. हम पिछला 17-18 साल से देस बिदेस भटक रहे हैं. लेकिन जननी  अऊर जन्मभूमि का अईसा लगाव है कि जैसे उड़ि जहाज को पंछी, पुनि जहाज पर आवे, हम भी हर साल छठ में पटना मे पाए जाते हैं.
हमरी सिरीमती जी खुदे छठ करती हैं. जब हमरी माता जी छठ करने में असमर्थ हो गईं तो परब बड़ी बहू यानि हमरी सिरीमती जी को सौंप दीं. तब से हमरी सिरीमती जी हमरे पूरा खानदान के बाल बच्चा का हिफ़ाज़त के लिए बरत करती हैं. अऊर बिस्वास कीजिए जब बाल बच्चा से भरा हुआ अँगना में उनको सबके लिए तीन दिन का उपवास रखते देखते हैं, तब एहसास होता है कि माता अऊर बच्चा का एगो अलगे जाति होता है अऊर अलगे धर्म, निःस्वार्थ प्रेम का धर्म.
(छठ पूजा का दो पीढ़ी) 
 

परब का एगो सबसे बड़ा बिसेसता है कि इसमें समाज का हर आदमी जुड़ा रहता है. हमरी फूआ के छत पर लौकी का लत्तर लगा हुआ था. बहुत लौकी फलता था. लेकिन फूआ उसको हाथ तक नहीं लगाती थीं, इसलिए कि उसमें से लौकी छठ के प्रसाद के लिए देना था. अऊर पूजा के समय पूरे मोहल्ले में जहाँ छठ पूजा हो रहा हो, बाँट दिया जाता. किसी के गाँव से गुड़ गया, तो पहिले पूजा के लिए इस्तेमाल होना जरूरी है. आटा का चक्की वाला लोग, पूरा चक्की खोलकर धुलाई करता है अऊर पूजा के बीच में सिर्फ पूजा के लिए गेहूँ पिसा जाता है.
मोहल्ला का एक से एक लोफर भी रस्ता, गली और नाली का सफाई में लगा रहता है. अऊर आस्चर्ज का बात है कि गंगा नदी तक जाने वाला सहर का सब रास्ता धुला हुआ, एकदम साफ मिलता है. रास्ते में कोनो कूड़ा नहीं, कोनो गंदगी नहीं, भर रास्ता रोशनी, सुंदर रंगीन लाइट अऊर चारों तरफ छठ का गीत. एक लाईन में कहें पूरा सहर एक धागा में माला का जईसा गूँथा जाता है जिसको छठ पूजा कहते हैं. स्रद्धा अऊर पबित्रता का आलम है कि जिस दिन खीर अऊर रोटी का प्रसाद बनता है उस दिन जिसघर में पूजा नहीं भी होता है वहाँ खीर या रोटी नहीं बनता है. इससे प्रसादका अपमान होता है.
समय के हिसाब से बहुत कुछ बदल गया. सहर पूरा साफ हो गया, मगर गंगा मैली हो गई अऊर पटना से दूर चली गईं. अब गंगा माई के नराज होने का कारन जग जाहिर है. लेकिन इससे जो नोकसान हुआ कि लोग गंगा जी में जाना कम कर दिया. आजकल देस के नेता लोग अपना बड़ा बड़ा बंगला के स्विमिंग पूल में छठ मनाते हैं, बहुत सा लोग अपने घर का छत पर पानी का टंकी बनाकर उसमें खड़ा होकर पूजा कर लेते हैं. अच्छा हमको भी नहीं लगता है लेकिन व्यबहारिक होकर सोचते हैं लगता है कि नदी का घाट का दुर्दसा के आगे घर में ही कर लेना उचित है. अऊर सच पूछिये मन चंगा तो कठौती में गंगा वाला कहावत भी एहीं चरितार्थ होता देखाई देता है.
परिबार में, समाज में सब लोग रुपया पैसा से, फल फूल से, ब्रत करने वाला का सेवा करके अपना सहजोग देने का कोसिस करता है. हमरे परिबार में सिरीमती जी की तीनों देवरानी अपना अपना तरफ से नया साड़ी खरीदकर देती हैं. एक एक करके सबका दिया हुआ साड़ी पहन कर पुजा करतई हैं सिरीमती जी. केतना बार जिद भी होता है कि इस बार हमरा साड़ी पहिनकर अरग (अर्घ्य) देना पड़ेगा. एक रोज फोन पर एही जिद चल रहा था जेठानी देवरानी में अऊर हमरी बेटी चुपचाप सुन रही थी. जब बात खतम हो गया उसके बाद का माँ बेटी का सम्बाद, तनी आप भी सुनियेः
ममा! पटना से मम्मी (चाची को मम्मी कहती है) साड़ी के बारे में क्या बोल रही थी.
कह रही थी कि इस बार आपको मेरा वाला साड़ी पहनकर पूजा करना है.
इससे क्या होता है.
होता कुछ नहीं है. पूजा का श्रद्धा है.
एक काम करो. मेरे मनी बॉक्स में भी बहुत सा पैसा जमा हो गया है. उससे तुम एक साड़ी ख़रीद लो अपने लिए. इस बार पूजा मेरे दिए हुए साड़ी को पहनकर करना.
“………………………….”
सिरीमती जी चुप हो गईं, हो सकता है उनका आँख भर आया हो. हम भी वहीं पर बईठे कुछ कर रहे थे. बात सुनकर हमरा हाथ रुक गया. अऊर हमको लगा कि बिहार के बाहर पैदा होने वाली, पढाई करने वाली अऊर बिहार के संस्कृति से दूर रहने वाली हमरी बेटी ठेठ बिहारी हो गई. तब लगा कि सचमुच चिड़िया के बच्चा उड़ना सिखाने का जरूरत नहीं होता है. मट्टी का प्यार अऊर क़तील शिफ़ाई का शेर हमरे दिमाग में घूम गया
क़तील अपने लिए वो कशिश ज़मीन में है
यहीं गिरेंगे, जहाँ से गिरा दिए जाएँ.
सिरीमती जी तब तक पटना फोन मिला चुकी थीं.

पुनश्च: छठ पूजा  की विस्तृत जानकारी "संवेदना के स्वर" पर "छठ की छटा" में पढ़ें! 

56 टिप्‍पणियां:

  1. क्षमा प्रार्थी हूँ कि पटना में होने और समयाभाव के कारण, कमेन्ट नहीं कर पा रहा हूं.. बस कुछ दिन और..

    जवाब देंहटाएं
  2. ये ज़ाफ़रानी पुलोवर, उसी का हिस्सा है,
    कोई जो दूसरा ओढ़े, तो दूसरा ही लगे.

    छठ कर आइये..गन्नों (ओह्ह...ईख/उख) सी मिठास लिखने का धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  3. सलिल जी जब एक दिन बेटा अचानक बोल उठा ..."आउर की हाल छै... " मन गद गद हो गया कि मैथिलि सीख जायेगा... बिहारी ही रहेगा... आपके आलेख ने हमे नानी के छठ की याद दिला दी... भावुक हो गए हम...

    जवाब देंहटाएं
  4. Aapne jin baaton ka ullekh kiya hai,sab apni shreematiji se pahle bhee suna hai (vah PATNA hi ki hain );lekin aapke varnan me ek alag kashish hai.DHANYAVAD.

    जवाब देंहटाएं
  5. Aapne jin baaton ka ullekh kiya hai,sab apni shreematiji se pahle bhee suna hai (vah PATNA hi ki hain );lekin aapke varnan me ek alag kashish hai.DHANYAVAD.

    जवाब देंहटाएं
  6. Aapke lekhan me itnee sadgee aur tazagee hotee hai,ki,padhte hee chale jane kaa man hota hai!

    जवाब देंहटाएं
  7. छठ एक महत्वपूर्ण त्योहार है इस अवसर पर हर कोई घर पहुंच कर ही त्यौहार मनाना चाहता है।
    छठ पर्व की शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  8. जब तक अंत तक पढ़ नहीं लिया, छोड़ नहीं पाया ! शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  9. अपने गाँव शहर की खुशबू कभी नहीं जाती जी। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है वैसे-वैसे खुशबू की ललक भी बढ़ जाती है।

    जवाब देंहटाएं
  10. परिवार में सब को हमारी ओर से छठ की हार्दिक शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  11. सचमुच एक बार जो पढ़ना शुरू किया तो पढ़कर ही छोड़ा है। यहां पता चला कि छठ की पूजा वास्‍तव में बच्‍चों की हिफाजत के लिए की जाती है। फिर लगा कि अरे यह तो हमारे घर में भी होती रही है। पर हां सब बच्‍चों के लिए नहीं। मैं घर में सबसे बड़ा हूं। मुझ से पहले दो बच्‍चे हुए एक एक महीने के होकर चले गए। मानता की गई कि अब जो भी बच्‍चा होगा उसके विवाह होने तक उसकी छठी पूजी जाएगी। यानी हे छठ माता उसकी रक्षा करना। छठ माता यानी भाग्‍य लिखने वाली माता। कहते हैं कि बच्‍चे के जन्‍म के छठवें दिन छठ माता आकर उसका भाग्‍य‍ लिखती है। तो जब तक मेरा विवाह नहीं हुआ,हर साल 18 नवम्‍बर को छठी माता की पूजा की जाती रही। मेरी मां व्रत रखकर यह पूजा करती थीं।

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही अच्छा लगा पढ़ना .और ये जानना कि कैसे छट पूजा पर सभी साफ़ सफाई भी करते हैं और कितनी श्रद्धा के साथ सब किया जाता है.और रही बात बेटी की तो कुछ भी कहिये माटी का प्रेम और घर के संस्कार कभी नहीं जाते. .

    जवाब देंहटाएं
  13. अच्छी भावनात्मक प्रस्तुती ...लेकिन अब परिस्थितियां बदल रही है भगवान का भय शरद पवार ,सोनिया गाँधी ,मनमोहन सिंह जैसे लोगों को देखकर आम जनता के मन से निकलता जा रहा है उसी तरह समाज में कुकर्मियों और असामाजिक तत्वों के चौतरफा विकाश को देखकर छठ के प्रति भी लगाव नयी पीढ़ी में कम होता जा रहा है ....रही सही कसर ठग किस्म के व्यापारियों और ग्रामीण इलाकों में तालाव व पोखर की घटती संख्या ने पूरा कर दिया है ....

    जवाब देंहटाएं
  14. ईमानदारी से कहूँ तो छट पूजा के बारे में सिर्फ सतही जानकारी है हमें लेकिन आपकी पोस्ट पढ़ कर आँखें भीग गयीं...रिश्तों की डोरी जिस पूजा में मजबूत होती है वो ही पूजा सर्वश्रेष्ठ है...

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  15. छठ के बारे में पढ़ना बहुत अच्छा लग रहा है ..आखिर चार साल हम भी छठ पूजा के भागीदार रहे हैं ....पहले इस पर्व के बारे में नहीं जानते थे ...ब्लॉग पर छठ के बारे में पढ़ कर ठेकुआ बहुत याद आ रहा है :)

    जवाब देंहटाएं
  16. सलिल जी,
    आपको व आपके समस्त परिवार को छठ पर्व की हार्दिक बधाई। घर से दूर रहकर भी घर से जुड़े रहने में ये पर्व त्यौहार बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आपके कमेंट्स की कमी महसूस करते हैं, लेकिन निश्चिंत रहकर अपने पारिवारिक आयोजन\दायित्व निभाइये। टिप्पणियॊं का हिसाब किताब फ़िर कर लेंगे:)

    जवाब देंहटाएं
  17. एक काम करो. मेरे मनी बॉक्स में भी बहुत सा पैसा जमा हो गया है. उससे तुम एक साड़ी ख़रीद लो अपने लिए. इस बार पूजा मेरे दिए हुए साड़ी को पहनकर करना
    पहले ऐसे सीखते थे बच्‍चे संस्‍कार .. अब वो बात कहां ??

    जवाब देंहटाएं
  18. आपके समस्त परिवार को छठ पर्व की हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  19. आपन मिटटी से प्यार तै सबका होला. इ त्यौहार सब तै आपन मिटटी से जोडले हवे. माई - बेटी कै भावनात्मक संवाद एक बहुत अच्छी लघुकथा बन गइल हवे . बढ़िया प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  20. छठ पूजा के बारे में सुना तो था, आपके ब्लॉग पर आकर और बिस्तार से जानने को मिला ...शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  21. दू साल दानापुर में रहे हैं, छठ पूजा का महत्व जानते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  22. सलिल जी,
    यहाँ सहारनपुर में यमुना नदी शहर से दूर है . छठ पूजा पूर्वी यमुना नहर के किनारे आयोजित हो रही है कई साल से. इस बार पूर्वांचल सांस्कृतिक सभा के बैनर तले यह आयोजन व्यवस्थित रूप से करा रहे हैं हमलोग.
    अभी दिल्ली-गाजियाबाद गया था , दीपावली के साथ-साथ छठ पूजा की बधाई के होर्डिंग भी दिखे लोनी , यमुनापार और मोहननगर में. छठ पूजा भी पैन इंडियन होने की ओर अग्रसर है.
    छठ पूजा की शुभकामनाएं .

    जवाब देंहटाएं
  23. सर जी... परनाम.... कैसे हैं आप?

    हमारे गोरखपुर में भी छठ बहुत धूमधाम से मनाया जाता है... आपको व आपके समस्त परिवार को छठ की हार्दिक बधाई.........

    जवाब देंहटाएं
  24. मेरे एक करीबी हैं आप ही की तरह वे बिहार के हैं। उनके मुंह से भी सुना है कि छठ का मजा तो बिहार में ही है। यहां तो त्योहार है इसलिए मना लेते हैं, लेकिन वैसा सुख नहीं मिलता जैसा गंगा के किनारे मिलता है।

    जवाब देंहटाएं
  25. शानदार तस्वीरें, बढिया पोस्ट. पटना की छ्ठ पूजा तो हमने भी देखी है. क्या माहौल होता है उस समय.

    जवाब देंहटाएं
  26. Chhath puja ke sanbandh jankari achhi lagi.Bhaiyy ji,Bahut hi niman lagela jab raur blog par Bihar mein prachalit shavd dekhila.

    जवाब देंहटाएं
  27. बहुत निम्मन लगा आपका बतियाना। बरा परेम से और सरसता से आप ई बात सबको समझा दिए। अपना जमीन से जुरल रहना सबको अच्छा लगता है। बालो बच्चा सब जिरिए जाता है। हमहु गाव फिंचिए गए हैं
    औए सब साफ़ सफ़ाइ चल रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  28. चचा जी हमारे गाँव में छठ पूजा के समय, आँगन में ही एक छोटा सा तालाब जैसा बना देते थे....वहीँ पूजा करते थे...पटना में भी देखिये अब इस साल पापा लोग सोचे हैं की छत पे ही कोई व्यवस्था कर देंगे...
    लेकिन कुछ भी हो...हम पटना में चार साल साल गंगा घाट पे गए हैं...वहां का दृश्य एकदम अलग होता है...उसके पहले हम लोग गाँव चले जाते थे..और पिछले चार पांच साल से पटना जू में जा रहे हैं :)

    जवाब देंहटाएं
  29. बाह का का तो याद दिले दिए महाराज आप तो ..जान रहे हैं अब छठ पूजा का महात्म , उसका छटा ..गाम से निकल कर पटना , मुजफ़्फ़रपुर तक ही सिमट कर रह गया है हमको लगता है ..का किया जाए गाम में दादी नानी लोग ..इंतज़ारे करती रह जाती है कि बौआ लोग आएगा और ढाकी छिट्ता उठा के घाट पे ले जाएगा ...उदासीए उदासी रहता है ..अद्भुत पोस्ट ...अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं
  30. जब भी शामिल होता हूं छठ में,घाट के पास रास्ते के किनारे चेहरा ढंककर बैठी महिलाओं को देख मन उदासी से भर जाता है। तमाम सफाई और चमक के बीच घुप्प अंधेरे सा एहसास होता है।

    जवाब देंहटाएं
  31. आपको व आपके समस्त परिवार को छठ की हार्दिक बधाई और भाभीजी के लिये छठपर्व और उपवास की शुभकामनाएं।

    इस पर्व का महत्व जानने को मिला, आभार

    जवाब देंहटाएं
  32. divali evem chaith ke avsar par ahank post nahi
    jain kateko bisral baat sab kulbula delak......

    pranam.

    जवाब देंहटाएं
  33. कितनी सारी बातें याद आ गयीं,छठ की...मेरी दादी भी पूजा कर वो साड़ी मेरी माँ और चाची को दे दिया करती थीं.
    अब तो यादें ही शेष हैं...छठ में जाना नहीं हो पाता...पर अच्छा लग रहा है..सबके संस्मरण पढ़कर

    जवाब देंहटाएं
  34. लड़कईयां में, एगो ठेकौरा के चक्कर में हमहूँ बोझा उठाए हैं गंगा तट पर....माँ भी करती थीं छट पूजा..
    ..रिश्तों का ताना बाना और भारतीय संस्कृति की छठा बिखेरती इस भावना प्रधान पोस्ट के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  35. वाह, आनंद आ गया पढ़कर। हमेशा की तरह श्रेष्ठ, रोचक और सार्थक लेखन के लिए बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  36. संस्कार और मिट्टी की गंध लिये सार्थक लेख ।

    जवाब देंहटाएं
  37. बहुत अच्छा लगा छठ पूजा के बारे में इतना कुछ जानकार ...लेकिन यह बात तो १६ आने सच है की कितनी भी उड़ान भर ली जाएं पर अपनी मिटटी की महक सदा अपनी और बुलाती है ....त्योहारों में अपनो की कमी का अहसास किस कदर होता है , बहुत अच्छे से जनता है दिल .

    जवाब देंहटाएं
  38. cछठ की छठा देखी नही बस ब्लागजगत मे पढ पढ कर आनन्द लिये जा रहे हैं।पंजाब मे तो अब लोहडी ही मनायेंगे। शुभकामनायें बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  39. अरे सर जी !

    पटना में हैं आप तो दर्शन-लाभ का अवसर है मेरे लिये,पर पहले पूजा कर लें। छठ पर्व की ढेरों शुभकामनायें। :)

    नमन!

    जवाब देंहटाएं
  40. भारतीय संस्कृति के यही रंग रिश्तों की रेशम डोर हैं. आलेख अच्छा लगा. छठ पर्व पर शुभकामना .

    जवाब देंहटाएं
  41. छ्ठ पूजा की सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इसमें उगते और डूबते दोनो ही सुर्य की पूजा की जाती है । जो हमे खुशी और दुःख दोनो में ही एक समान रहने का संदेश देती है ।
    सभी को छ्ठ की हार्दिक शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  42. आज तो दोनों शेरों ने बहुत पुरानी गजलों कि याद करा दी ... देरी से ही सही पर आपको छठ पर्व की ढेरों शुभकामनायें ...

    जवाब देंहटाएं
  43. bahut hee achchhee post..khashkar dono sher bahut hee achchhe lage...chhath ke bare me achchhee jankaree milee..

    जवाब देंहटाएं
  44. छठ की छटा वास्तव में निराली है !!
    मेरे घर के पास भी एक पार्क में सभी व्रतधारियों ने एक बड़े से स्विमिंग पुल में खड़े हो कर पूजा की थी ! देख कर अजीब लगा की ये लोग गंगा जी क्यों नहीं गए लेकिन आज शायद समय की यही मांग हो गयी है !

    जवाब देंहटाएं
  45. संस्कार और मिटटी की गंध के साथ आपको और आपके पुरे परिवार को छठ की बहुत बहुत बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  46. बहुतै शुभकामना
    हम भी जान गये अबकी बार छठ माता की पूजा खूब उत्साह से जबलपुर में नर्मदा तट पर लगा हम भी कितने भाग्यवान हैं जो पढ़ते थे वो देख भी लिया.
    प्रणाम करता हूं बिहार का सांस्कृतिक प्रतीकों को विरासतों को.

    जवाब देंहटाएं
  47. बिहार का सांस्कृतिक प्रतीकों को विरासतों को. में का के स्थान पर की प्रतिस्थापित कीजिये
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  48. वर्मा जी , सबसे पहले आप हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करें . एक तरफ ये सरकार तो दूसरी तरफ आप ........ अब बिहार सबके सर चढ़ बोलता है . आप केवल बिहार की ही बात नहीं करते बल्कि हमारी बातें , जो हमें यहाँ की मिटटी ने दिया है ......... जिसे हम अपने संतति को गर्व से देना चाहेंगे ........ आप उन सबों की बात करते हैं . आपको फिर से शुभकामनाएं ........

    जवाब देंहटाएं
  49. सलिल जी, नमस्कार आपके डेरा पर देर से आये.... क्षमा करेंगे..
    छठ महापरब की हार्दिक शुबकामनाएं....

    इस परब को अब हम अछे से जान गए हैं - क्या है की घर के पास तालाब है.... पिच्छले ४-६ साल से बहुत रौनक होती है.... और घर में इन दिनों सब इसी श्रधा की बात करते रहते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  50. सलिल जी,
    छठ को बीते कई दिन हो गए पर मन अब भी ऊभ-चूभ हो रहा है.
    पता नहीं क्यों मुझे लगातार कर्ण की याद आती रही. सूर्य का बेटा था वह. सूर्य की आराधना भी करता था. दुर्योधन ने उसे अंग देश का राजा बनाया था. अंग देश वही तो नहीं जहाँ की बोली अंगिका है ? फिर तो वह बिहार ही हुआ. कवच-कुंडल-विहीन अपने पुत्र की रक्षा के लिए कुंती ने क्या किया होगा ? प्रार्थना ! किससे ? सूर्य से ! राजमाता पूजा करे तो प्रजा भी साथ ज़रूर रही होगी. पूजा की तिथि छठ तो नहीं थी ?
    पता नहीं क्यों कर्ण बहुत याद आया.
    सोचियेगा. मेरी इस दूर की कौड़ी में कुछ सार लगे और आपको भी कर्ण की याद आये तो बताइएगा ज़रूर.

    जवाब देंहटाएं
  51. त्यौहार हम सभी मनाते हैं ,इनके बारे में लिखते पढते भी रहते हैं पर माटी की सुगन्ध से इस तरह रची-रची बसी अभिव्यक्ति यदा-कदा ही पढने मिलती है जो अपने साथ पूरे परिवेश को इतने अपनेपन से साथ लेकर चलती है ।

    जवाब देंहटाएं
  52. हालाँकि मेरे घर में छठ पूजा का चलन नहीं है , लेकिन फिर भी मुझे ये देखने की बहुत लालसा थी ,| लास्ट इयर ही मैं और दरभंगा का मेरा एक दोस्त क्षितीश सुबह सुबह उठकर यहीं दुर्गापुर में छठ पूजा देखने गए थे , सचमुच बहुत अच्छा लगा |

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  53. ग्वालियर में भी भोजपुरी समाज के लोग हैं और वे पूरी श्रद्धा व धूमधाम से छठ-पर्व मनाते है यह अखबारों से जाना तीन दिन लगातार सचित्र समाचार पढ़े । आप सबका का ध्यान आया । और यह विचार भी कि इस पूजा को मैं कभी निकट से देखूँ ।

    जवाब देंहटाएं