इस बार पटना गए तो देखे छोटा भाई एगो इस्टील का कैबिनेट खरीदा है, किताब रखने के लिए. घर के देवाल में पहिलहीं से आलमारी बना हुआ है अऊर लकड़ी का अलगे से एगो कैबिनेट है जिसमें बहुत सा किताब रखा है. मगर किताब बढ़ता जा रहा था अऊर जगह कम हो रहा था, इसलिए ई नया कैबिनेट खरीदना पड़ा. ऊ सब किताब के अलावा एहाँ दिल्ली में भी हमरे पास भी एगो लाइब्रेरी बना हुआ है.
पटना में नया पुराना किताब का कलेक्सन, जब जाते हैं त देखकर अजीब आनंद होता है. कुछ किताब पर दादा जी के हाथ से अंडरलाईन किया हुआ है, चाहे उनका कमेंट लिखा हुआ है. वईसे हमरे जेनरेसन अऊर हमरे बाद वाला पीढ़ी में एगो बात कॉमन है, हम लोग किताब पर कुच्छो नहीं लिखते हैं. एगो अऊर बात, बुकमार्क के लिये भी कभी किताब के पन्ना को ऊपर के कोना से मोड़कर रखने का भी आदत नहीं है हम लोग में. जहाँ तक पढ़े, वहाँ का पेज नम्बर याद रखे अऊर दोबारा ओही पेज से चालू.
हाँ, कुछ किताब में पहिला पृष्ठ पर हम लोग के हाथ का लिखा हुआ मिल सकता है. जैसे जन्म दिन मुबारक़, अच्छा पढ़ो अच्छा बनो, इस किताब की कहानियों का अर्थ जीवन में उतारो वगैरह. ई सब ऊ किताब हैं, जो हम भाई बहन एक दूसरे को जन्मदिन पर गिफ्ट दिया करते थे. हम लिखे भी थे एक बार कि बेटा को जन्मदिन पर गुलज़ार का किताब “पुखराज” दिए थे. बस अईसहीं कोई संदेस लिखकर जन्म दिन का तोहफा देते थे हम लोग बचपन से. जहाँ खिलौना टूट फूट जाता है या कपड़ा फट जाता है या छोटा हो जाता है, किताब बच्चा के साथ बड़ा होता जाता है.
कैबिनेट से किताब निकाले अऊर पहला पन्ना पलटते ही पुराना दिन नजर के सामने से फ्लैस बैक के जईसा घूम गया. उमर के साथ केतना पढ़ा हुआ भूल जाता है लोग, मगर एक रोज कभी पुराना किताब के पास खड़ा होकर उसको “हैलो” बोले नहीं कि किताब पिछला सब दास्तान सुनाने लगता है. रोज कोनों पोस्ट पर कमेंट लिखते समय केतना बात कोट कर जाते हैं, लेकिन केतना मोस्किल होता ऊ कमेंट लिखना अगर किताब नहीं पढ़े होते. अऊर सबसे बड़ा बात कि जब बचपन से कलम, किताब, कागज अऊर दवात (एक विलुप्त पात्र जिसमें मसी अर्थात काले, नीले अऊर लाल रंग की टिकिया पानी में डालकर उस घोल में कलम डुबोकर कागज पर लिखने का काम किया जाता था) के साथ ही खेलने का मौका मिले, त दुनिया का किताब पढ़ने में तनी आसानी हो जाता है.
किताब का बात से याद आया. दिल्ली का नई सड़क, कलकत्ता का कॉलेज स्ट्रीट अऊर पटना का अपना बाज़ार (गाँधी मैदान के पूर्व में स्थित अपना बाज़ार आजकल उद्योग भवन के नाम से जाना जाता है) का ओसारा (बरामदा) में क्या सम्बंध है, जानते हैं आप? ई तीनों जगह आपको हर तरह का नया पुराना किताब मिल जाएगा. किताब का कीमत, बेचने वाला आपका मनोविज्ञान पढकर डिसाइड करता है. मगर एतना तय है कि जिस दाम में भी आप किताब खरीदिए आपको सस्ता लगेगा (अर्थसास्त्र के हिसाब से कंज्यूमर सर्पलस). हमारे कलेक्सन में जेम्स हेडली चेज का सारा उपन्यास “अपना बाजार” के फुटपाथ से खरीदा हुआ है. एगो मजेदार बात याद आ गया. एहीं से एक बार “मोपासाँ” का कम्प्लीट वर्क्स खरीदे थे, एकदम नया किताब, मगर कौड़ियों के मोल. कारन.. हँसी आता है याद करके... पूरा किताब का बाइण्डिंग उल्टा था (बाँई ओर के स्थान पर दाईं ओर से बाइण्ड किया हुआ) गलती से. यानि ऊ किताब पीछे के तरफ से पढ़ा जाता था, उर्दू किताब के तरह. केतना बार एही किताब के बीच अईसा किताब भी मिल जाता है, जिसका ऊ पन्ना भी नहीं काटा हुआ होता है जो प्रेस के गलती से आपस में जुटा रह गया होगा.
जब भी पटना में हमरा भाई या बेटा कोई नया किताब खरीदता है या कोई सिनेमा का डीवीडी, त हमको फोन करके जरूर बताता है. ऐसहीं एक दिन बेटा का फोन आया कि अपना बाजार के नीचे से ऊ रस्किन बॉण्ड का चिल्ड्रेंस ओमनीबस खरीद कर लाया है. उसको पता है कि हमरे फेवेरेट हैं रस्किन बॉण्ड इसलिए, जब उनका कोई किताब खरीदता है तो हमको तुरत फोन पर बताता है. मगर उस दिन बहुत एक्साइटेड लग रहा था.
“जानते हैं, उसके पहिला पेज पर उनका ऑटोग्राफ भी है.” बेटा बोला.
अब बारी था हमरा एक्साइटमेण्ट का.
बाद में जो ऊ बताया, सुनकर बहुत बुरा लगा. ऊ किताब किसी को रस्किन बॉण्ड अपने से ऑटोग्राफ करके दिए होंगे (काहे कि उस ब्यक्ति के नाम संदेस लिखकर ऊ ऑटोग्राफ किये थे) अऊर ऊ आदमी बेच गया उस किताब को कौडियों के मोल जो अनमोल हो सकता था. खैर हमरे घर आ गया ऊ किताब त हमको लगा कि बिज्ञान का सिद्धांत सही है कि पानी अपना सतह खोजिये लेता है.
इसी के साथ याद आया शारजाह में ‘खलीज टाइम्स’ अख़बार का क्लासिफाएड .. फ़ॉर सेल! कलेक्शन ऑफ वैरियस आइटेम्स रिसीव्ड ऐज़ अनवांटेड गिफ्ट्स. एक ओर किसी का दिया हुआ तोहफा को अनवांटेड कहकर बेच देना. अऊर दूसरा ओर अमित जी के ब्लॉग से एगो बात कि उनका एगो कमरा है जिसमें उनको जाने अनजाने, गाहे बेगाहे मिलने वाला सारा छोटा-बड़ा उपहार हिफाज़त से रखते हैं वो.
बिज्ञान का सिद्धांत सही है कि पानी अपना सतह खोजिये लेता है.
जवाब देंहटाएं..वाह क्या बात है। किताब वहाँ आ गई जो उसकी कद्र करना जानता है।
सलिल भाई पुरानी किताबों की बात से अपने पुराने दिन भी याद आ गए। पुरानी किताबों की दुकान पर अपन ने भी बहुत समय बिताया है। कभी एक कविता भी लिखी थी। लगाऊंगा गुलमोहर पर।
जवाब देंहटाएं*
रस्किन बांड के आटोग्राफ वाली किताब तो बहुत पुरानी नहीं लगती । 2007 में ही उन्होंने किसी को दी होगी। इतने जल्दी ही उकता गया पाने वाला- आश्चर्य है। बहरहाल आपके लिए और बेटे के लिए तो वह एक अनमोल तोहफा ही है। मुबारक हो।
*
किसी की दी गई अमूल चोकलेट का चाँदी सा चमकीला रेपर आज तक संभाला रखा है ! कुछ अनमोल लोगो की यादें तक अनमोल होती है फिर उपहार तो हम जैसे लोगो के लिए बहुत बड़ी चीज़ हो गई ... सलिल भाई !
जवाब देंहटाएंक्यों गलत तो नहीं कह रहा हूँ ?
..वाह क्या बात है।
जवाब देंहटाएंमुझे तो किसी ने आजतक कोई किताब गिफ्ट नहीं कि,और जो भी किताब मैंने लिए हैं सब मेरे ही ख़रीदे हुए हैं :)
जवाब देंहटाएंहाँ माँ को साहित्य में इंटरेस्ट था पहले, बताती है...लेकिन उसके अलावा और कुछ नहीं...बहन के पास बहुत सी किताबे थी, वो जब बैंगलोर से जाने लगी तो सब मुझे दे गयी(सब इंग्लिश नॉवल)..बोली मुझे कि ये सब को सेकण्ड हैंड बेच देना...लेकिन ये सब नॉवल हमसे नहीं बेचा जाता, और सब हम अपने पास रख लिए..इस बार जनवरी मेंजा रहे हैं घर तो सब लेकर जाएंगे...
और हाँ गांधी मैदान वाला अपना बाजार का भी ट्रिप मारना है इस बार :)
यह तो आपने बिलकुल मेरी पसंद वाली बातें लिख दीं .मुझे भी किताबें सहेजने का भरपूर शौक हैं.बल्कि मेरे पास पुराने अखबार ,मैगजींस का भी ढेर है.पहले मैं भी बच्चों -बड़ों सभी को पुस्तकें ही गिफ्ट करता था परन्तु ज्योतिष के आधार पैर वह मेरे लिए हानिकारक रहा ,इसलिए अब पुस्तकें उपहार देना बंद कर दिया है.मैं भी किताबों के पृष्ठ मोड़ने के खिलाफ हूँ. ऐसा लगा कि,आपने मेरा ही वर्णन कर दिया है.धन्यवाद.v
जवाब देंहटाएंसलिल जी , बहुत अच्छा लगा आपका पुस्तक प्रेम. हम भी पुस्तकों के काफी शौक़ीन है और अपने दूसरे खर्चे के पैसे से भी किताब खरीदना नहीं भूलते थे..लगा अपनी कहानी फ्लैसबैक में चल रही है. ...अच्छा संस्मरण.
जवाब देंहटाएंchalo aap ne kisi se prem karna to seeka hai.
जवाब देंहटाएंbahut sunder collection hoga aapka .
फुटपाथ से किताब खरीदने का अपना ही मज़ा है। आजो हम जहां जाते हैं फुटपाथ पर से एकाध गो किताब उठाना नहीं भूलते। एही जगह पर हमको अंधेर नगरी मिला था और अभी जो पढ रहे हैं, बाणभाट्ट की अत्मकथा, ऊ हो।
जवाब देंहटाएंजन्म दिन पर किताब भेंट देने से याद आया हमरे नाना जब हम आठ साल के थे त जनम दिन पर लोटा और डोरी दिए थे, बहुत नीती का बात था उसमें। पुस्तक भंडार, गोविन्द मित्रा रोड पटना चार से छपा था। देखिए केतना बार उसको पढे कि एड्रेसबो याद है। हमहूं लोग को जनम दिन पर किताबे भेंट करना ही सबसे बढिया मानते हैं।
त आपको कब् भेंट करें किताब?
और जो ऊ औटोगराफ़ बाला किताब मिल गया है उसका सेलिबरेसन २० ता्रीख को करेंगे।
किताब में कुछ भी अंडरलाईन नहीं करना चाहिए। मनोविज्ञान ऐसा है कि आप चाहे पूरी क़िताब पढ़ जाएं मगर याद वही रहता है,जो किसी ने अंडरलाईन किया था,भले ही आपके लिए वह उस पुस्तक की कमतर महत्व की बात रही हो। इसलिए।
जवाब देंहटाएंहमको भी एगो बीमारी है-किताब जमा करने का। पढ़ाई-लिखाई त साढ़े बाईस है,मगर जमा करते चलते हैं!
जवाब देंहटाएंDada pardada kee kitabon kee almariyan yaad dila deen...jab wahan khade,khade kho jaya karte the!
जवाब देंहटाएंस्वप्निल कुमार आतिश ने इ-मेल पर कहा है:
जवाब देंहटाएंपानी अपना सतह खोज लेता है ...ये तो एक दम नया मुहावरा हो गया ..हे हे एक cliche हम बताते हैं ... 'दाने दाने पे है खाने वाले का नाम' हे हे
और हाँ बहुत भाग्यशाली है जो इतना महान आदमी का औटोग्राफ ऐसे मिल गया.. कुछ न कुछ उसमे ..आगे दिखेगा..खैर अभिये से दिखता है ...
जहाँ खिलौना टूट फूट जाता है या कपड़ा फट जाता है या छोटा हो जाता है, किताब बच्चा के साथ बड़ा होता जाता है...
जवाब देंहटाएंये तो लाख टके की बात कर दी आपने..तभी तो इतना महान ऑटोग्राफ वाली पुस्तक आपके यहाँ आ गई.
हाँ किताब की पेज को मोडना नहीं चाहिए .बहुत सुन्दर सुन्दर बुक मार्क आते हैं आजकल तो वह लगा देने चाहिए :)
हर खरीदी पुस्तक के साथ कहानियाँ जुड़ी रहती हैं।
जवाब देंहटाएंहमारे निजी लाइब्रेरी में भी कुछ बहुमूल्य चीज़ें हैं... धनबाद से हम कालेज स्ट्रीट जाते थे.. सौ रुपया लेके और मन भर किताब लाते थे... किताब का मोल अनमोल है... राजभाषा ब्लॉग पर एक आलेख लिखे थे... कुसुमाग्रज पर.. वो किताब भी दरियागंज के इतवारी बाज़ार से ५ रुपया में लाये थे... अच्छा लगा आपका आलेख .. लगा हमही लिखे हैं...
जवाब देंहटाएंपुरानी यादें दिला देते हो यार ! जब पैसे कम होते थे तब कबाड़ी की दूकान पर जाते थे आज भी बेहतरीन संकलन वहीँ का है ! :-)
जवाब देंहटाएंपुस्तक प्रसंसको के शौक बहुदा एक समान हुआ करते है।
जवाब देंहटाएंकिन्तु बेश्किमती पुस्तकों का कबाडी के यहां पाया जाना यह इंगित करता है कि बहुतों के शौक बहुत जल्द अस्त हो जाते है।
अरे वाह सर जी…! हम भी एक्साइटेड हो गये पोस्ट पढ के…!रस्किन बाँड की "the blue umbrella" के साये में एक रात गुजारी है हमने भी…।
जवाब देंहटाएंवैसे जहाँ तक किताब की बात है सर जी… ये भी हो सकता है कि किसी चोरी गये सामान का हिस्सा हो किताब क्योंकि ये तो तय है कि किताब सबसे पहले तो रस्किन साहब के किसी बडे फ़ैन के पास रही होगी… खैर जो भी हो, किताब के साथ उनका आटोग्राफ़, बहुत बढिया उपहार रहा। कल गाँधी मैदान पुस्तक-मेला में रस्किन साहब को खोजेंगे हम भी…
नमन !
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जवाब देंहटाएंसलिल जी , दिल्ली के दरियागंज में इतवार को लगने वाले पुस्तक बाजार में कई साल चहलकदमी की है . आपने सब यादें ताज़ा करा दीं . धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंसलिल भैया, आपसे मिलने की उत्कंठा तो पहले से ही बहुत थी, अब आपकी लाईब्रेरी से भी मिलना चाहते हैं। मिलवायेंगे न?
जवाब देंहटाएं6/10
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट
कबाड़ी के यहाँ प्रायः श्रेष्ठ साहित्य मिल जाता है
एक समय था जब लोग गिफ्ट में किताबें देते थे,
एक वो भी समय था जब हम किसी का पुस्तक प्रेम देखकर ही उसके दोस्त बन जाते थे.
मेरे एक दोस्त हैं किताबों के जबरदस्त रसिया. उनकी हर किताब के पहले पन्ने पर ही लिखा मिल जाएगा कि किस रेलवे स्टेशन पर कहाँ जाते समय खरीदी थी, क्योंकि वे प्रायः सफर करते रहते हैं.
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आपकी पोस्ट देखकर एक लतीफा याद आ गया
अर्ज़ है :
एक साहब के पास बहुत ढेर सारी किताबों का कलेक्शन था. एक बार उनका कोई परिचित आया तो इतनी किताबें देखकर चकित हुआ. बोला- 'बड़ा जबरदस्त कलेक्शन है. इनको करीने से रखने के लिए आपको बुकसेल्फ़ भी रखनी चाहिए.'
वो साहब बोले- 'हाँ भाई, बात तो आपकी सही है, लेकिन दिक्कत यह है कि बुकसेल्फ़ कोई मांगने से देगा नहीं न :)
जब रद्दी वाला रद्दी लेने आता है तो मै उसके बोरे मे पुरानी लिताबें तलाशती हूँ जिन्हें लोग व्यर्थ समझ कर दे जाते हैं। कई बार बहुत काम की किताबें मिल जाती हैं। अच्छा लगा आलेख। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंruskin bond ke autograph wali kitaab............!!!!!!!
जवाब देंहटाएंkaun kambakht naamuraad mua bech gaya aisi kitaab....kaash mujhe mili hoti....!!
kya likha hai dadu...sacchi, maza aa gaya padhke. Pata hai, jab main choti thi na....i mean jab main aur bhi choti thi ;) to gaon jaane par bohot bore hoti thi (kyunki mere cousins aurr bi tingu the, bas rote rehte the ;) to main puraane kamre jahan gehun jau chat par bhare rehte the...wahan ghus jaati thi...us kamre mein ek taand thi (aapko to pata hi hoga taand) wahan papa chacha ke bachpan ki kitaabein padi rehti thi....aur jangle ki raushni mein main padhti rehti thi...ek din to ghanton ho gaye...bahar nikli to dekha gharwaale mujhe dhoond dhoondh ke badhaal the.....hiihihi
uff....kinnni bak bak karti hoon na main ;)
पुरानी पुस्तकों के श्रेष्ठ संकलन की आपूर्ति तो आज भी सेकन्ड हेन्ड पुस्तक विक्रेता (कबाडी) के यहाँ ही हो पाती है.
जवाब देंहटाएंsachmuch kitabon men apna bhi kitna kuch chipa hua rahta hai.kitni aatmiy lagne lagtin hain kitaben khaskar puraniwali.
जवाब देंहटाएंआपकी तरह हमें भी किताबों का शौक है, जयपुर में जब कभी पुस्तक मेला लगता है तो हमारा अधिकाँश समय वहीँ किताबें देखने खरीदने में ही जाता है...किताबों के पहले पृष्ठ पर अपना नाम कहाँ से खरीदी और कब ये हम लिख देते हैं...पुराणी किताब कभी खोलते हैं तो ये सब पढ़ कर बहुत सी घटनाएं याद आ जाती हैं...इतना किताब हो गया है के सोचते हैं अब क्या करें...यहाँ से जब नौकरी छोड़ कर जयपुर जायेंगे तो सोचा है एक कमरे का लाइब्रेरी खोलेंगे जिसमें जनता के लिए पढ़ने की सुविधा प्रदान कराएँगे...हमारी किताबें जितनी चाहे पढ़ो लेकिन वहीँ बैठ कर...
जवाब देंहटाएंऐसा ही कलेक्शन संगीत और फिल्मों का भी है...देखो क्या करते हैं उसका...जब खरीदते हैं तब थोड़े ही सोचते हैं के हमारे बाद इसका क्या होगा...
इत्ता किताब खरीदा लेकिन आपकी तरह रस्किन बंद या ऐसा ही कोई का हस्ताक्षर युक्त किताब अभी तक नहीं मिला हमें...इन्तेज़ार करेंगे हम भी.
बहुत रोचक पोस्ट.
नीरज
सही में..पढ़कर धक्का लगा...कैसा अभागा आदमी होगा,जो ऐसे अनमोल चीज की कीमत नहीं समझ सका...
जवाब देंहटाएंहमसे तो कभी कोर्स का पुराना किताब भी नहीं बेचा गया कबाड़ी में...किताब से प्यारा हमारे लिए दुनिया में और कुछ भी नहीं..
सलिल जी,
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट में हमेशा कुछ न कुछ ऐसा मिल ही जाता है जो पाठक की संवेदना को झकझोर देता है जैसे इस पोस्ट में ,
जहाँ खिलौना टूट फूट जाता है या कपड़ा फट जाता है या छोटा हो जाता है, किताब बच्चा के साथ बड़ा होता जाता है...
किताबों के माध्यम से किताबों से जुडी तमाम पुरानी यादों को आपने जिन्दा कर दिया!
धन्यवाद!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सलिल जी, आज का पोस्ट पढते पढते दिमाग कई जगह घूम गया है... पुराना........ बीते हुवे दिन, प्रेस का (बिगड़ा) काम काज, स्याही दवात और स्याही वाले पैन से होली, हमरी किताबों का कबाडी में बिकना....... किसी कबाडी को रोक कर किताब छांटना...... सफर में किताब खरीदने से घर वालों को गुस्सा आना (और कौन टाइम पास करेगा). इत्यादि इयादी....... अत अपनी लिख दी...... पोस्ट से हटकर टीप दिए.
जवाब देंहटाएंऐसी ही पुरानी किताबे खरीदकर कितने ही अलमारी बहरभर दी |अब जगह नहीं है तो बहुत लायब्रेरी में दे दी है |
जवाब देंहटाएंऔर आजकल तो रोज ही घर पर किताब बेचने वाले आते है \
आपकी इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा
जवाब देंहटाएंबुधवार के चर्चामंच पर भी लगाई है!
किताबों के बीच कभी अकेलापन नहीं महसूस होता ।ये शौक अगली पीढ़ियों तक फैलता रहे ,फैलता रहे----
जवाब देंहटाएंकिताबों के बीच कभी अकेलापन नहीं महसूस होता ।ये शौक अगली पीढ़ियों तक फैलता रहे ,फैलता रहे----
जवाब देंहटाएंआपके प्रोफाइल में ईमेल आई डी नहीं है ,इसलिये यहां लिख रहा हूं-मुझे श्री रामेश्वर सिंह कश्यप लिखित ’लोहा सिंह’ किताब की तलाश है । कहां मिलेगा ,मदद करिये ।मेरा ईमेल पता है-ajaiji112@gmail.com
पांच लाख से भी जियादा लोग फायदा उठा चुके हैं
जवाब देंहटाएंप्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा।
मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
या हादी
(ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)
या रहीम
(ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)
आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक
{आप की अमानत आपकी सेवा में}
इस पुस्तक को पढ़ कर
पांच लाख से भी जियादा लोग
फायदा उठा चुके हैं ब्लॉग का पता है aapkiamanat.blogspotcom
कितनी सुन्दरता से यादों को संजोया है..किताब से प्रेम पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है..और यही विरासत अक्षुन्न रहती है.
जवाब देंहटाएं'PANI APNA SATAH KHUDIYE DHOONDH LETA HAI'
जवाब देंहटाएंAP BHI NA JANE KYA KAH JATE HAIN KAHAWAT KI TARAH.
PRANAM.
किताबों से दोस्ती करने का अपना अलग ही आनंद है।
जवाब देंहटाएं...एक बार एक व्यक्ति मेरे घर आया और कमरे के चारों तरफ रैक में रखी किताबों को देखकर बोला- आप किताबें बेचते हैं क्या ?
बात अलमारी से शुरू कर किताबों कि दुनियाँ की सैर तक पहुँच गयी ....मैं तो बहुत देर से आई इस पोस्ट पर ...कल से मेरे ब्लॉग का डैशबोर्ड नहीं खुल रहा है ...
जवाब देंहटाएंआपकी लाईब्रेरी के बारे में पढ़ बहुत अच्छा लगा ..जन्मदिन पर मुझे भी किताबें उपहार में देना अच्छा लगता है ...और मुझे अच्छी किताबें मिली भी हैं ...
क्या आपके पास --- आज़ाद की पिस्तौल और उसके गद्दार साथी ---( धर्मेन्द्र गौढ़ ) की लिखी पुस्तक है ? मौका मिले तो ज़रूर पढियेगा ..
आभार ...
भाई साहब हमने भी दोस्तों को जन्मदिन पर किताब देना शुरू कर दिया है। किताबों का तो सच कहूं अलग ही संसार होता है, कोई किताब मन को भा जाए तो बस उसे खत्म किए बिना छोडऩे का मन ही नहीं करता।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है...वाकई अपने पसंद के लेखक की लिखी हुई किताब पर उन्हीं के लिखावट में लिखा हुआ कुछ भी मिल जाए तो प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहता...लेकिन किसी का उपहार वो भी ऑटोग्राफ्ड, उसको बेचना ये तो अच्छी बात नहीं...खैर विज्ञान का सिद्धांत पानी ने जगह खोज ली, और आपके पास आ गई। आपके लिए अच्छा रहा...बधाई...
जवाब देंहटाएंहीरे की कद्र तो जौहरी ही कर सकता है।
जवाब देंहटाएं---------
प्रेत साधने वाले।
रेसट्रेक मेमोरी रखना चाहेंगे क्या?
सच में, किताबों से बेहतर तोहफा मुश्किल ही है.
जवाब देंहटाएंदेर से सही (बस एक साल), यह खज़ाना मिलने की बधाई!
जवाब देंहटाएंयह खज़ाना मिलने की बधाई! हमका आने में थोरा देर हो गयी
जवाब देंहटाएं।
रस्किन बोंड के साइन की हुई किताब,,,,,.....
जवाब देंहटाएंबाउ जी, ये तो सच में कमाल का तोहफा है |
सादर