आज भोरे भोरे छोटकी बेटी का फोन आया. भोरे भोरे माने साढे नौ बजे. छुट्टी के दिन त हमरा भोरे भोरे का मतलब एही होता है. जाड़ा का सुबह, रजाई तोसक के अंदर लेटे हुए हम, बाहर देखते हैं, त हरा घास के मैदान में कुस्ती का सीन देखाई देता है. आजकल ई कुस्ती रोजे चलता है मैदान में. एक तरफ से लंगोट कसे हुए धूप, दोसरा तरफ कुहासा. दुनो एक दूसरा को पटकने में लगा हुआ. कभी धूप कुहासा को पटक देता है, तो लोग बाग, बच्चा सब जमकर ताली पीटता हुआ मैदान में आ जाता है. जब कुहासा धूप को पछाड़ देता है तो सब लोग डर के मारे रजाई में लुका जाता है. असल में ई पूरा कुस्ती का खेला, एकतरफा खेला है. इसमें सब लोग धूप के पार्टी में होता है. हमरे जईसा एकाध आदमी कुहासा को बाहर से समर्थन देता है. मगर अंत में कुहासा का सरकार गिर जाता है और सब लोग धूप के जीत पर ताली बजाने लगता है. सत्यमेव जयते!
ई देखिये! लगे हम सुमित्रानंदन पंत के जईसा प्रकृति का बर्नन करने लगे. असल बात त रहिये गया. हाँ.. त हमरी छोटकी बेटी का फोन आया भोरे भोरे. फोन पर उनका एक्साइट्मेण्ट थामे नहीं थम रहा था, लगता था कि बस फोन से बाहर निकलकर हमरे गोदी में बईठकर अपना बात बताएगी.
“बड़के पापा! आज सैण्टा मेरे लिये बहुत सा गिफ़्ट लेकर आया.”
“वाऊ! क्या क्या लाया?” हम भी उसके सुर में सुर मिलाकर बोले.
“वो ना, एक जैकेट, एक पिकनिक बैग, टोएज़ और चॉकलेट लाया मेरे लिये. मैं जब सोकर उठी, तो मेरे पास सॉक्स में रखकर गया था सैण्टा. झूमी दीदी को फ़ोन दे दो. मैं बताउँगी… (झूमी दीदी से) मुझे सैंटा ने बहुत सारा गिफ़्ट दिया है, तुम्हें क्या मिला.”
“मुझे आज डैडी बुक्स दिलवाने ले जाएंगे.”
“हे हे! बड़के पापा कोई सैंटा है!! सैंटा तो लाल कपड़े पहनता है, लाल कैप पहनता है, उसकी ना, वाइट दाढ़ी होती है.”
हम लोग मुस्कुराने लगे ऊ तीन साल का बचिया का ई सब बात सुनकर.
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तनी देर में पटना से बेटा का फोन आ गया. उसका एक्साइट्मेण्ट त पहिलहीं से नौवाँ आसमान पर था. हमको फोन पर बोलना पड़ा कि तनी साँस ले लो तब बताना. मगर काहे तो ऊ साँस लेने वाला है, जब तक बतवा बता नहीं लेगा तब तक साँस नहीं लेने वाला.
“जानते हैं भैया! आज हमारे स्कूल में स्पिक मैके का प्रोग्राम है. बिरजू महाराज, एल. सुब्रमनियम और बेग़म परवीन सुलताना आएंगी.”
परवीन सुल्ताना के नाम पर स्व. पिता जी का याद आ गया. दीवाना थे उनका गाना का. अऊर आज बेटा का एक्साइटमेण्ट देखकर लगा कि दादा का अत्मा पोता में समा गया है. इसके बाद बेटा का आवाज़ फिर से सुनाई दिया,
“पता है भैया! बेग़म परवीन सुल्ताना जी का स्वागत भाषण हमको देना है!! और उनको बुके देकर उनको मंच पर भी हम लेकर आएंगे!!”
बेटा का खुसी देखकर हमको लगा कि सचमुच आज सैंटा हमरे परिबार में भी खुसी बाँट रहा है. छोटकी बेटी को गिफ़्ट्स, बड़की को बुक्स अऊर बेटा को हमारे खानदानी सौख के अनुसार संगीत सभा में, देस के एतना गुनी कलाकार को बईठकर सुनने का मौका.
***
पता नहीं कऊन सताब्दी में एगो संत, खुसी बाँटने का बीड़ा उठाए. जिसके हिस्सा में कोनो खुसी नहीं था, उसको उपहार देने का काम सुरू किये. बाद में अमेरिका का कोई कार्टूनिस्ट ऊ संत को ई नया रूप दिया, लाल लबादा, लाल टोपी, पीठ पर बड़का मोजा अऊर उसमें का मालूम केतना तोह्फ़ा, ऊ लोग के लिये, जिनके जिन्न्गी में अभाव का तोह्फा भगवान जनम से लिख दिये हैं.
हम एही सब सोचते हुये खिड़की से बाहर देखने लगे धूप अऊर कुहासा का कुस्ती. सिरीमती जी चाय दे गई थीं. कप से निकलने वाला भाप, कुहासा का पार्टी ज्वाईन कर लिया था. ओही समय सामने सड़क पर हमको एगो गठरी जईसा आदमी देखाई दिया छोटा सा, पीठ पर बड़ा सा एगो झोला लादे हुये माथा पर लाल रंग का लम्बा टोपी. हम चौंक गए कि ई सैंटा कहाँ से आ गया. जब ऊ सैंटा नजदीक आया तब ठीक से देखाई दिया कि ऊ एगो बच्चा था, कचरा बटोरने वाला. कचरा में उसको रात को पार्टी से लौटने वाला किसी का टोपी मिल गया था, जिसको पहन कर ऊ सैंटा कलॉज़ बनकर अपने रोज के काम में लगा हुआ था.
क्या सलिल भैया, लास्ट में आकर वही धोबी पछाड़ मारा ना?
जवाब देंहटाएंकुहरे-धूप की कुश्ती की बात, बिरजू महाराज का जिकिर, सांता क्लाज़ का संक्षेप में इतिहास, और आखिर में आकर फ़िर वही दिल हिलाऊ अंदाज - इस बच्चे की तस्वीर आँखों के आगे घूम गई और खुद को अपराधबोध होने लगा है कि हम इसी समाज का हिस्सा हैं।
द्रवित कर दिया है आपने।
सलिल भाई गौर कीजियेगा ... मैं अपने लिए कुछ नहीं मांग रहा हूँ बल्कि जो भी माँग रहा हूँ सब देश वासीयों के लिए माँग रहा हूँ ... जब उनको मिलेगा ... मुझे भी अपने आप मिल ही जायेगा !
जवाब देंहटाएंयह तो रहा मेरी पोस्ट पर आपकी टिप्पणी का जवाब !
आप की पोस्ट पर मेरी राय .... एक ब्रेक के बाद !
सिवम बाबू!
जवाब देंहटाएंहमको पता था आप एही जवाब दीजियेगा..मगर तब तक हमरा कमेंट आपका मॉडरेसन बॉक्स में समा गया था... न मिटा सकते थे न बदल सकते थे. दोबारा बोलने से भी फायदा नहीं था. मुँह से निकला बात,कमान से निकला तीर अऊर मॉडरेसन बॉक्स में गया कमेंट लौटाया नहीं जा सकता.
चलिये खुस हो जाइये!!
मो सम कौन जी से सहमत हूँ ... आप पोस्ट को घुमा क्यों देते है अंत आते आते ?
जवाब देंहटाएंजब तक हम यह कल्पना करें कि आज की संगीत सभा में क्या रंग जमेगा ... आपने पोस्ट घुमा दी ... और पहुँचा दिया हम सब को सपनो की दुनिया से सच्चाई की दुनिया में ...!!!
आप भली भांति जानते है ... हम सब कितने डरपोक लोग है ... सच का सामना नहीं कर पाते हम लोग ... फिर क्यों बार बार ... हर बार ... आप इस का अहेसास करवाते है आप !?
हो सके तो इसका जवाब जरूर दीजियेगा !
वैसे, हम डरपोक जरूर है पर अज्ञानी नहीं ... आपका जवाब मालूम है हम सब को !
khushiyo ke paimane sabke apne apne hai . sabse jude rahna bahut khushee deta hai .utaran hee sahee soch rahee hoo ki us topee se usake thandak me kaan cover ho gaye honge.......God bless chote Santa .
जवाब देंहटाएंSanta ka astitv bhole bhale bachhon ko sachme bahut khushi pahunchata hai!
जवाब देंहटाएंWaise,padhte,padhte mujhebhi razai me ghus jane ka man hua!
bade bhaiya....kyun direct dil se likhte ho:)
जवाब देंहटाएंkaash innn santa clause ke chehre pe khushi chamke....
han to mere santa....hum bhi aa gaye... :)mere moje men kya kya hai ? hehehe.... bachpan pata to chal gaya tha santa ke bare men ..lekin kisi kristmas par kauno santa nahi aaye humare paas... :( fir hum apne man men ee soch liye ki santa khali isai logon ke ghar jate hain.. :P .. aur 12th men the spic macay ka ego programme hamare school me bhi hua tha... hariprasad chaurasiya . lachhoo maharaj aur uma devi ..bahut elog aaye the bada maza aaya tha.. lekin sabere un sab logon ke joota chappal chori mila tha...
जवाब देंहटाएंhan to aaj hum santa clause ko hi marry chirstmas bol dete hain ...
:)
merry christmas
भिन्न-भिन्न गोल चक्करों पर अपनी गाडी को अच्छी तरह से नया मोड दे देते हो सलिल जी,छोट्की बिटिया के फोन से बात सुरु कर बात को खत्म एक बडे और मारक प्र्श्न चिन्ह पर कर दिया !
जवाब देंहटाएंउ बच्चा भी तो अपने हिस्से के दर्द बटोर रहा है........ थोड़ी खुशियों के लिए..... क्या है की अब सांता भी तो गरीब बच्चों को गिफ्ट नहीं देते..........
जवाब देंहटाएंएकदम वाजिब और सटीक बातें कहने के लिए धन्यवाद.आपकी पोस्ट्स लोगों की आँखें खोलने के लिए पर्याप्त हैं,परन्तु जो अपनी खुशी के आगे कुछ सोच नहीं सकते ,वे चकरा जाते हैं.
जवाब देंहटाएंइसी प्रकार की एक इंग्लिश प्वेम जो पटना की ही एक बेटी की लिखी हुयी है आज "क्रन्तिस्वर " पर भी है.एकदम वाजिब और सटीक बातें कहने के लिए धन्यवाद.आपकी पोस्ट्स लोगों की आँखें खोलने के लिए पर्याप्त हैं,परन्तु जो अपनी खुशी के आगे कुछ सोच नहीं सकते ,वे चकरा जाते हैं.
इसी प्रकार की एक इंग्लिश प्वेम जो पटना की ही एक बेटी की लिखी हुयी है आज "क्रन्तिस्वर " पर भी है.
बहुत सी खुशियाँ बांटी सांता ने ...गरीब बच्चे को भी सर्दी से बचने के लिए टोपी तो मिल ही गयी ...बहुत संवेदनशील पोस्ट
जवाब देंहटाएंदुर्लभ साम्यता लक्षित की आपने।
जवाब देंहटाएंसचमुच कुछ लोग ज़िन्दगी भर सेंटा का इंतज़ार करते रह जाते हैं, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना!
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंराउर पोस्ट बहुत नीमन लागल। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसलिल जी
जवाब देंहटाएंआप ये ना सोचे की वो आखरी वाला सैंटा किसी को कुछ नहीं देता है, देता है जी करोडो रूपये देता है ढेरो एन जी ओ है जो बच्चो के नाम पर चल रहे है वो इन्ही सैंटा के बदौलत ही चल रहे है | एन जी ओ इन सैंटा की दशा सुधारने के लिए सरकार से और आम लोगों से करोडो लेते है उनकी दशा तो सुधार जाति है पर इन सैंटा की दशा नहीं सुधरती है | काश की ये सैंटा खुद अपनी दशा सुधार पाते |
एक दम अनूठा पोस्ट...छुटकी के फोन से मुस्कराहट शुरू हुई और बेटे के फोन से और चौड़ी हो गयी...वो ही मुस्कराहट कचरा बीनने वाले बच्चे से टकराकर चूर चूर हो गयी...एक ही पोस्ट में इतने रंग...कमाल है...
जवाब देंहटाएंनीरज
अरे अंत में लाकर क्या मारा है ...गज़ब है .
जवाब देंहटाएंत हाँ सलिल बाबू ! अईसन चुमुक लगइले बाड़ अपन बलगवा मं के हमनियो के घींच लेले बाड़ ....एक -दू हाली हइजा से गुजरे रहलीं ......लागता के अब रउआ के नियम से पढ़े के परी. एह ओरिजिनालिटी खातिर त तरसत रहलीं....टाइम मिली त हमरेओ गाँव आयीं जा सरकार- नमवां नोट करीं - bastar ki abhivyakti blogspot.com
जवाब देंहटाएंएक अदद सान्ता की आवश्यकता है हम सबको, अपने जीवन में। पर औरों के लिये सान्ता बनने में कष्ट छा जाता है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट लगाई है आपने!
जवाब देंहटाएं--
मेरी क्रिसमस!
बहुते अच्छा लिखे हैं। अब ई सब कचरा बटोरने बाले के लिए कोनो सनता काहे नहीं आता ई हमरा बुझइबे नहीं करता है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंएक आत्मचेतना कलाकार
सच तो यह है सलिल भाई कि सांताक्लाज आखिर पैसे वालों की दुनिया की खोज है। गरीब तो कोई आखिर यह ही इसलिए कि उसके पास पैसे नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंsab saanta bhi ameeron ke liye hote hain bichare gareeb ke liye koi saanta bhi nahi banta.
जवाब देंहटाएंsunder prastuti.
धूप और कुहरे की कुश्ती ...काश धूप की तरह हमेशा सत्य ही जीते ,
जवाब देंहटाएंसुबह साढ़े नौ बजे भोरे-भोरे होता है ,नहीं मालूम था ..
बेटे और बेटी दोनों ने ही खुशखबरी दे दी ...
आखिरी पंक्तियों पर अटक कर ही रह गए ...कल सुबह ही बहुत से बच्चे दरवाजे पर आवाज़ लगा रहे थे ...कुछ समझ नहीं आता ऐसे मौकों पर क्या करे ... !
सलिल जी बहुतै बढ़िया लागल ई पोस्ट. धूप अवुर कुहासा के उठापटक से शुरू भइल ई पोस्ट आके सांता पर रुक गईल. सांता कै मतलब भी शायदै ई बचवा लोग जानत होखे........उका तै दो रोटी कै जुगाड़ पुरे दिन में हो जाये तै बहुतै बात बाये . छुटकी कै चुल्बनापन और ख़ुशी बहुतै बढ़िया लागल.
जवाब देंहटाएंमेरी क्रिसमस, हेप्पी क्रिसमस...
जवाब देंहटाएंउस अन्तिम बच्चे के लिये भी.
सलिल जी आपकी पोस्ट को पढ़ कर नहीं कह रहा लेकिन मेरे छोटे बेटे ने पूछा कि पापा सैंटा अंकल उन बच्चो को मन जिनके पास शर्ट नहीं होते..घर नहीं होते.. उनको शर्ट, घर क्यों नहीं देते.. और पापा आप भी उनकी मदद क्यों नहीं करते.. मेरे आँखों में छुपे हुए आंसू थे... उसकी नज़र में मैं एक स्वार्थी पिता हूँ जो केवल अपने बच्चो की मदद करता है... सैंटा संत को बाज़ार खूब भुना रहा है... १०० रुपया दिहाड़ी पर माल, रेस्त्र आदि पर सैंटा लाल ड्रेस में मनोरंजन करते मिलते हैं.. कभी उनकी आँखों में देखिये.. दर्द दिखता है.. आपकी पोस्ट ने दूसरी बार इसी मुद्दे पर रुला दिया..
जवाब देंहटाएंअब तो आपका पोस्ट पढ़ने से पाहिले ही समझ जाते हैं हम की अंत में कुछ न कुछ तो जरुर गोलमाल होगा...देखिये सब ने वही कहा की अंत में लाकर एकदम पटक दिया आपने...
जवाब देंहटाएंअच्छा वैसे एक बात...
चचा कुहासा से हमको कितना प्रेम है आपको क्या बताएं...और जारा का धुप तो मेरे लिए भी बहोत खास होता है लेकिन वो दिन भी अच्छा लगता है जब धुप न निकले..और कुहासा के साथ साथ हल्का धुप..मजा आ जाता है..
सरकार आखिर का बात ने सारी उमंग ढीली कर दी। आज एक और ब्लॉग पर ऐसे बच्चों की तश्वीर देखीं... कचरे के ढेर से कचरा बटोरते हुए।
जवाब देंहटाएंkahan se kahan pahuncha dete hain aap to....
जवाब देंहटाएंhats of to you...sachhi me.....
pranam.
सलिल जी,
जवाब देंहटाएंगरीब बच्चों के भाग्य में सेंटा की लाल टोपी भी आ जाय तो बहुत है !
उनके लिए तो सेंटा बस सपने में ही आता है !
आपकी लेखनी को नमन !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
अद्-भुत प्रस्तुति ...क्रिसमस पर सांता क्ल़ॉज़ का इतिहास और धूप व कुहासे की कुश्ती ...फिर अंत में समाज की विषमता को दर्शाता निर्मम सत्य ...बेहद हृदय स्पर्शी रचना !!! क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंसलिल जी ,
जवाब देंहटाएंजब पढ़ा करते थे तब ऐसे अंत वाली 'प्रसाद' जी की रचनाओं को सुखांत और दुखांत की तर्ज़ पर 'प्रसादांत' कहते थे... खुशी के साथ-साथ दुःख की एक छाया भी...
saralta aur sahajta ke saath likha lekh bahut achcha laga.
जवाब देंहटाएंबड़े खुशनुमा अहसास लिए यह पोस्ट पढ़ रही थी.....छुटकी बिटिया को ढेर सारे गिफ्ट...बेटी को किताबें ...बेटे को इतने बड़े गायकों को सुनने का अवसर....
जवाब देंहटाएंउस सैंटा की टोपी पहने बच्चे को भी उस दिन कुछ तो अच्छा मिला ही होगा...कम से कम भरपेट भोजन...यही सोच तसल्ली दे लेते हैं,मन को
कहें तो क्या और ना कहें तो क्यूँ?
जवाब देंहटाएंअंत तक आत़े आत़े फिर वही...
भोरे भोरे का टाइम होंठ पर मुस्कराहट पसार गया...लेकिन हमरा मन कह रहा था कि इ संटा ऐसे ही नहीं जायेगा...सो देखिये फाईनली हमरा संका सही होइए न गया...
जवाब देंहटाएंआप कहें और ऐसे ही कहें..ई त होता नहीं है..
का जाने ई गट्ठर ढ़ोने वाला अधनंगा बच्चा सब पर संटा कब रहम बरसायेगा...
वैसे अब तो भाईजी ई साल शुभकामना कहने सुनने का भी मन नहीं कर रहा..का होगा सुभकामना कह के...मंहगाई घुसखोरी हिंसा आतंकवाद कुच्छो जदी कम हो जाता हमरे शुभकामना कहने से त हम ता अभिये इसी पल से बैठ जाते शुभकामना का जाप करने...
कलेंडर बदलने के सिवाय और रह ही क्या गया है..न्यू इयर में..का हैपी हैपी कहें..
(बेटवा आपको भैया कह के संबोधित करता है ???)
...बहुत संवेदनशील पोस्ट
जवाब देंहटाएंBehatareen post....kalpana aur yatharth ka sundar prastutikaran....
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है। यह सामाजिक विषमता है। सेंटा भी गरीब बच्चों को कहां देता है गिफ्ट। गरीबों के लिए तो सेंटा भी महज एक सपना है और 50 फीसदी तो इस बारें में जानते भी नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंमैदान में कुश्ती...धूप...कुहासा...छोटकी बेटी...एक्साइटमेंट...सेंटा...बड़की को बुक्स...बेग़म परवीन सुल्ताना...सिरीमती...लाल टोपी...गठरी जैसा आदमी...कचरा बीनने वाला बच्चा...
जवाब देंहटाएंमुग्ध कर दिया आपने, अंत में व्यथित भी।
आप का गद्य पढ़ते समय ऐसा लगता है जैसे कोई कविता पढ़ रहा हूं।
... कविता जैसा प्रवाह, कविता जैसा भावपूर्ण।...
ऐसा भी लगता है जैसे विद्यानिवास मिश्र जी या हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का कोई ललित निबंध पढ़ रहा हूं।
...कलात्मक लेखन का उत्कृष्ट उदाहरण।
पूरा लेख अच्छा था लेकिन अंत बहुत ही सुन्दर था |
जवाब देंहटाएंसादर
सलिल की लेखनी का कमाल कब कहाँ से कहाँ बहा ले जाए से मन के सूक्ष्म तार झनझना दे - और संयोजन बिलकुल अनायास-अनगढ लगे पर गहरे उतर जाये.
जवाब देंहटाएंअद्भुत। शब्द कम पड़ रहे... निःशब्द के साथ स्तब्ध भी हूँ।
जवाब देंहटाएंप्रणाम सर।
सादर।
बहुत ही सारगर्भित विषय पर उम्दा लेख, सादर शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक एवं बिना कृत्रिमता के बहुत ही सारगर्भित संदेश छोड़ता लाजवाब आलेख...।
क्या बात है !लाजवाब👌👌👌🙏🙏🙏
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