रविवार, 8 दिसंबर 2013

भीष्म-प्रतिज्ञा



छोटा जगह में पढ़ा लिखा, सरीफ अऊर सरकारी ओहदेदार अदमी को बड़ा आसानी से सम्मान मिल जाता है. अऊर अगर ऊ सरकारी अदमी गुजरात के सौरास्ट्र छेत्र में तैनात हो, तब त बाते अलग है. लोग एतना मिलनसार हैं इहाँ पर कि का कहें. तनी सा परेम का भासा बोलिये अऊर देखिये, तनखा से जादा सम्मान मिलता है इहाँ.

हमरे एगो गाहक हैं, योगेस भाई वनमाली भाई कानाबार. बस इस्टैण्ड पर मैगजीन का दुकान है, साथ में मोबाइल रिचार्ज का काम, दू गो ऐम्बुलेंस है, जो 108 नम्बर पर फोन करने के साथ सेवा में हाजिर. ड्राइबर रखे है, मगर सीरियस पेसेण्ट होने पर बिना दिन-रात देखे अपने ऐम्बुलेंस लेकर निकल जाते हैं. एक रोज बता रहे थे हमको, सर! दीवाली हमारे लिये बहुत बड़ा त्यौहार है. लेकिन कई वर्षों से मैंने परिवार के साथ दीवाली नहीं मनाई! दरसल दीवाली के दिन इमर्जेंसी केस के साथ भागना पड़ता है! लेकिन क्या करें सर, यह काम मेरे लिये कमाई से ज़्यादा सेवादारी का है!
(योगेश वनमाली भाई कानाबार)

बुधवार को ऊ हमरे केबिन में आये. लोन का पैसा भरना था, मगर जब ऊ हमरे केबिन में अन्दर आते हैं, त इसका मतलब कुछ खास कहना, चाहे पूछना होता है. नहीं त केबिन के दरवाजा पर खड़ा होकर गुड मॉर्निंग सर का नारा लगाकर मुस्कुराते हुये चले जाते हैं. खैर, ऊ आकर हमरे सामने बइठ गए अऊर झोला में से एगो निमंत्रन कार्ड निकालकर, उसपर हमरा नाम लिखकर, हमरे आगे कर दिये.
किसकी शादी है योगेश भाई! हम हँसकर बोले.
शादी नहीं सर! मेरे डिकरा अऊर डिकरी का जन्मदिन है.
तबतक हम कार्ड पढ़ना सुरू कर दिये थे.
कमाल है, दोनों का एक ही दिन?
जी सर! 9 तारीख को है. सोमवार है और आपको ज़रूर आना है!
ज़रूर आउँगा!
तबतक हमरा नजर कार्ड के नीचे में लिखा हुआ एगो नोट पर गया. निमंत्रन के साथ-साथ लिखा हुआ था – इस खुशहाली के अवसर पर आप जो भी भेंट लायें वो नगद राशि के रूप में हो. इस प्रकार जमा राशि निर्धन बीमार व्यक्तियों के उपचार पर व्यय की जायेगी तथा इससे एक नयी ऐम्बुलेंस वैन खरीदी जाएगी, जो नि:शुल्क सेवा के लिये सदा तत्पर रहेगी!
बस सर! जो भी पैसे आयेंगे, उसमें अपने पैसे डालकर ऐम्बुलेंस लेना है.
योगेश भाई! आप तो कमाल के इंसान हैं! हम अबाक थे कि ई बात कहते हुये ऊ अदमी के चेहरा पर कोनो अहंकार का भाव नहीं था, बल्कि एतना नम्र सब्द में ऊ ई बात कह दिया कि हम का बोलें समझे में नहीं आ रहा था.
एक बात और सर! इसी दिन से मैं भात खाना शुरू करूँगा, तेरह साल बाद!
योगेश भाई! आज तो आप सरप्राइज़ पे सरप्राइज़ दे रहे हैं.
वर्मा साहब! बहुत कम समय में आपसे बात करके लगा कि आप अपने से हैं. इसलिये जो बात मेरे घर के अलावा किसी से नहीं कहा वो कह पा रहा हूँ.
...........
1998-99 की बात है. मेरा भाई था सतरह-अठारह साल का. उसके पेट में बहुत दर्द रहता था. यहाँ डॉक्टर को दिखाया, मगर सबने कहा कि भावनगर ले जाओ. वहाँ अच्छे डॉक्टर हैं. हमारे परिवार की स्थिति बहुत खराब थी. भावनगर ले जाने को किराये के पैसे नहीं थे. एक समय का खाना किसी तरह खा पाते थे हमलोग. जब उसकी हालत एक रोज़ बहुत बिगड़ गयी तो कुछ पैसे उधार लेकर, उसे भावनगर ले जाने का इंतज़ाम किया. मगर रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया!
................ हमरा मन अजीब तरह से कचोट रहा था.
उसके बाद साल 2000 में मेरी बहन, जिसका उमर 23 साल था, उसके पेट में ट्यूमर हो गया था. हमारे परिवार की हालत में कोई सुधार नहीं था और बहन की हालत रोज खराब होती जा रही थी. पहले भावनगर, फिर अमदावाद में उसका ईलाज शुरू हुआ. आठ महीने के ईलाज में सिर की छत सिर्फ तिरानवे हज़ार रुपये में बिक गयी. और एक दिन उस बहन ने हम सबों को पैसे की तकलीफ से आज़ाद कर दिया और ख़ुद शरीर की तकलीफ से छुट्टी पा गयी!
हे भगवान!
बस वर्मा साहब! उसके मृत शरीर के सामने मैंने नेम उठाया (प्रतिज्ञा की) कि आज के बाद मैं तब तक पैर में चप्पल नहीं पहनूँगा और भात नहीं खाउँगा, जबतक अपने गाँव के लिये एक ऐम्बुलेंस नहीं ले लूँ.
मगर आपके पैर में तो चप्पल है!
सात साल तक बिना चप्पल घूमता और काम करता था सर! बाद में घर वालों ने कहा कि ऐसे कबतक चलेगा. एक नेम निभाओ. तब मैंने सात साल बाद चप्पल पहनना शुरू किया, मगर भात खाना बन्द रहा. फिर बहुत मेहनत की सर! सिर पर छत वापस आयी. बच्चों को अच्छा पहनने-ओढ़ने को दिया, माँ को मुख्यमंत्री ने पच्चीस हज़ार रुपये दिये थे. वो माँ ने काम में लगाये और फिर तीर्थ-यात्रा करके आयी! नौ तारीख को बच्चों के जन्मदिन पर जो भी पैसे आयेंगे, उससे ऐम्बुलेंस लाउँगा और तब तेरह साल बाद भात खाकर अपना नेम पूरा करुँगा! आप आइयेगा ज़रूर! आप तो आयेंगे ही!


जोगेस भाई एतना कहकर हमरे केबिन से बाहर निकल गये, फिर से ओइसहिं हँसते हुये बाकी लोग से बात करते हुये. मगर हमको छोड़ गये एक अजीब सा हालत में. ओसो कहते हैं कि तकलीफ माँजकर चमका देता है इंसान को. आज हमरे सामने ऊ इंसान मँजकर अपना चेहरा पर जऊन चमक लिये हुये निकला है, एगो मिसाल है. छोटा-छोटा बच्चा के जनमदिन पर लोग गिफ्ट देता है बच्चा को, मगर ई बच्चा लोग जऊन गिफ्ट देने जा रहा है समाज को, उसपर त खड़ा होकर माथा नवाने का मन करता है! 

32 टिप्‍पणियां:

  1. जब तक जोगेश भाई हैं , बहुत कुछ आशा है !! मंगलकामनाएं !!

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  2. दुख-तकलीफ़ पर आदमी कैसे रियेक्ट करता है, इसीसे आदमी की पहचान होती है। योगेश भाई कमजोर होते तो अपने दुखों को अपने कर्तव्य से बचने की ढाल बना लेते लेकिन इन्होंने अभाव से लोहा लेने का नेम उठाया और भरपूर निभा रहे हैं।
    डीकरा-डीकरी को हमारी तरफ़ से भी आशीष दीजियेगा।

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  3. मेरा स्नेह और आशिर्वाद देना भैया ....और हाँ कुछ उधार आपका मुझपर है ,वो बताती हूँ....(मेसेज में .. वो उन्हें भेंट में दीजियेगा मेरी ओर से ....

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  4. कल जब आप वहाँ जाएँ तो हमारा भी प्रणाम कहें ... योगेश भाई को |

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  5. अच्छा लगता है ऐसे लोगों के विषय में जानकर .... उन्हें ढेरों शुभकामनायें

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  6. सच में महान आदमी हैं .....उनको बहुत बहुत नमन .....

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  7. समाज योगेश भाई जैसे लोगों के संकल्प पर ही टिका है।

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  8. आम आदमी ...ही खास (महान) हो सकता है... योगेश वनमाली भाई कानाबार को शुभकामनाएं नेक काम के लिए

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  9. कितना अच्छा लगता है ऐसे लोगों के विषय मे पढ़ कर .....ईश्वर पर यकीन बढ़ जाता है ....हमारी भी शुभकामनायें दीजिये योगेश जी को ...!!

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  10. सच में यहां बहुत लोग हैं जो नि:स्‍वार्थ सेवा में लगे हैं। उनकी ईच्‍छा जरूर पूर्ण होगी।

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  11. योगेश भाई के जीवट और अनुकम्पा भाव को नमन!! और ऐसे इन्सान का परिचय करवाने के लिए आपका अनन्त आभार!!

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  12. अद्भुत व्यक्ति हैं योगेश जी.. ऐसी इच्छाशक्ति मिल जाय तो बहुत से कष्ट तो ऐसहीं छू मंतर हो जायेंगे

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  13. insaniyat abhi jinda hai bas use saamne lana jaroori hai ...jogesh bhai ko sadar naman ...

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  14. श्रद्धा के पात्र हैं योगेश जी....उन्हें नमन...

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  15. ऐसे लोगों से बहुत प्रेरणा मिलती है, ज़िन्दगी को और बेहतर जीते रहने के लिए।

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  16. योगेश जी जैसे लोग समाज की ज़रूरत हैं .... उनको और उनके कार्य को नमन ।

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  17. सलिल भाई ! पोस्ट पढते पढते एक फायदा ये हुआ कि पता नहीं कब के छुपे काफी आंसू बह गए। । आज का मीडिआ जो सिर्फ नकारात्मक और सनसनी वाले प्रकरणों को भुनाना ही अपना धर्म समझता है। । अगर 'योगेश भाई " जैसे महामानवों से लोगों को परिचित कराये तो जेन कितने टिमटिमाते दीपों को एक नयी ऊर्जा . और प्रेरणा मिले। ईश्वर से प्रार्थना है कि योगेश भाई के 'डीकरा-डिकरी' को जीवन में कभी उस दौर से न गुज़रना पड़े जिसमे "भट खाना भी 'नेम' के अधीन हो जाय ।
    ----- अउर आप की खातिर का कहें। .... अइसहीं नीमन निम्मन बतकही लिखते रहिये त सचहूं इतना असीस बरसेगा कि मूड़ी पर मूसरे लेखिन
    बुझायेगा । एकदम रोवाई दिए आप तो ,

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  18. काश की हम सब में भी इतनी इच्छाशक्ति होती समाज के लिए कुछ करने की ।

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  19. किसी भी अच्छे काम को शुरू करने के लिए बस दृढ निश्चय की जरूरत होती है...योगेश जी जैसे लोगों की बहुत जरूरत है समाज को....उनके बच्चों को आशीष और अनंत शुभकामनाएं !!

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  20. शायद ऐसे ही लोगों ने धरती का भार उठा रखा है.. वाकई नमन है जोगेस भाई को.

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  21. सच में सिर झुक जाता है ऐसे निस्वार्थ लोगों के सामने ... कितना साहस है योगेश भाई में ... अपनी तकलीफ से पूरे समाज की तकलीफ मिटाने का संकल्प लेना और उसे पूरा करना विरले इन्सान के ही बस में होता है ...

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  22. किसी कि मुस्कुराहटो पे निसार किसी का
    दर्द ले सके तो ले उधार ,जीना इसी का नाम है। ...
    योगेस भाई को नमन

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  23. Bas naman krne ko ji chahta h aise insaan ko...aur kya kahoon...kbhi kbhi mann itna bhar aata h k shabd doob jatey h usmei...is post k liye abhar...kyon k aise hi kuchh logon k karan insaan aur insaniyat pr bharosa ab bhi baki h...

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  24. जोगेश भाई को शत शत प्रणाम। मानवता पर विश्वास बढ़ा जाते हैं ऐसे लोग।

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  25. कहते हैं कि आशा से आकाश थमा है । मेरा मानना है कि योगेश भाई जैसे लोगों से धरती थमी है । आज भी बहुत से लोग हैं जो ईमानदारी त्याग और प्रेम का उदाहरण हैं जरूरत है उन्हें जानने और आपकी तरह प्रकाश में लाने की । योगेश भाई और उन जैसे लोगों को मेरा नमन ।

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  26. गज़ब हैं योगेश भाई। कुछ ऐसे लोगो के बल पर ही इंसानियत टिकी है !

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