आज अचानके लिखने बईठे त एगो बुझौवल दिमाग में आ गया. तनी आप लोग भी कोसिस करके देखिए, बूझ पाते हैं कि नहीं. कलेंडर का कौन तारीख, साल का 365 दिन में भी नहीं बदलता है? अब आप कहिएगा कि हम फालतू में गप्प हाँक रहे हैं. ई कोनो पहेली हुआ, ई मजाक होगा कोनो. लेकिन जब हम सीरिअस बात करते हैं त एकदम सीरिअसली करते हैं.
चलिए आजे का तारीख पर बात सुरू करते हैं. आज दू जून है. अब इसमें नया का है. ठीके बात है, एक के बाद दू आता है, अऊर मई के बाद जून. आपलोग में से कुछ लोग बिचारेंगे, त गूगल में 2 जून टाइप करके के खोजने का भी कोसिस करेंगे. गूगलवो कम बदमास नहीं है, का मालूम केतना पेज देखाएगा, एगो मामूली बात के लिए.
दू जून के दिन महारानी एलिज़बेथ द्वितीय इंग्लैंड के सिंहासन पर बैठी थीं. अऊर एही दू जून के दिन लाल बहादुर शास्त्री जी भारत के परधान मंत्री के गद्दी पर बइठे थे. अइसहीं केतना घटना हुआ होगा 2 जून के दिन, जिसका हम लोग को न खबर है, न खबर रखने का कोनो जरूरत है.
अब आप लोग फिर बेसबर होले जा रहे हैं कि हम खाली मदारी का मजमा लगाकर, बिना मतलब का बात किए जा रहे हैं, अऊर सवाल का जवबवा देइये नहीं रहे हैं. त भाई बहिन लोग, तनी अपना दिमाग पर जोर डालिए, अंतिम में त हम बतइबे करेंगे.
चलिए, इसका कबल कि आप लोग भाग जाइए, हम बताइए देते हैं. ऊ तारीख जो साल का पूरा 365 दिन कलेंडर में रहता है, अऊर दिन, महीना बदलने से भी नहीं बदलता है ऊ है ‘दू जून’. सबूतो देना पड़ेगा, नहीं त आप लोग पढ़ल लिखल लोग मानिएगा थोड़े हमरा बात.
ई दू जून का खातिर दुनिया में एतना भाग दौड़ मचा रहता है. लोग काम करने जाता है. घर बार छोड़कर इधर उधर भटकता रहता है. न दिन, न महीना... साल का 365 दिन, बस दू जून के लिए. हाँ, कुछ लोग दू जून का रोटी से ही खुस नहीं रहता है, ऊ लोग सारा जिन्नगी भागता रहता है.
कुछ लोग अइसा भी है देस में जिसको दू जून का रोटी भी नसीब नहीं. हम भी एतना भासन इसी लिए दे रहे हैं कि हमरा पेट में दू जून का रोटी है, अऊर 365 दिन के खातिर भी दू जून का इंतजाम है. सोचते हैं कि साल में आज का दिन केतना अच्छा है कि आधा रोटी खाने वाला आदमी भी ‘दू जून’ का रोटी खाया है कह सकता है ..काहे कि आज ‘दू जून’ जो है. अऊर ई दू जून गूगलवो को पता नहीं है, गरीब का दू जून का रोटी गूगल के खोज से भी बाहर है!
मंगलवार, 1 जून 2010
गूगल भी हुआ लाजवाब !!!
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kya kahna. vah.
जवाब देंहटाएंभैया आपने तो कमाल ही कर दिया, हम तो केलेंडर के २ जून में अटके थे और आपने तो हमें कहाँ ले जाकर पटका, ई तो आप छक्का लगा दिए, सारे ब्लॉग हाथ ऊपर करके बाल को लपकने के चक्कर में ही रह जाएँगे!
जवाब देंहटाएंvaah!!बहुत रोचल पोस्ट लिखी है।बधाई।
जवाब देंहटाएंसही कहा जी, ये ’दो जून’ सर्वत्र और सदैव है।
जवाब देंहटाएंबहुत दूर की कौड़ी लाये जी।
आभार।
ई पोस्ट का प्रेरणा भाई चैतन्य जी से प्राप्त हुआ, इसके लिए उनका आभार!!
जवाब देंहटाएं...happy टू जून
जवाब देंहटाएंई दू जून की रोटी के लिए तो सारा जिन्नगी बीता जा रहा है.
जवाब देंहटाएंकुछ लोग अइसा भी है देस में जिसको दू जून का रोटी भी नसीब नहीं
जवाब देंहटाएंsach kaha.......
विचारणीय लेख के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंवाह! अद्भुत!!
जवाब देंहटाएंजिसे दो जून की रोटी नसीब नहीं होती, वह कैलेंडर से भी वाकिफ़ कहां हो पाता है...फिर इतिहास तो बहुत दूर की बात हो जाती है ...आपने दो जून की रोटी को महत्व दिया और कलैंडर के महीने दिन का सुंदर प्रयोग किया है ...लेकिन जिसके लिए आप बात कर रहें हैं, उसे इसकी कोई खबर नहीं है ...कि कोई बिहारी बाबू उसके लिए इतना सोचते हैं
जवाब देंहटाएंउपरवाला आज सब को दो जून की रोटी दे, यही कामना है. एक को तो मीठा खाने की सलाह दी जाती है, दो को रोटी ही सही.
जवाब देंहटाएंka ho bihari babu...........aap ta sachche me lajabab hain.......kahan se 2 june ko "do-jun" ki roti se jor diye.....
जवाब देंहटाएंaap to google ke sartaj ban jaiyega........jo do jun ki roti ko bhi khoj nikalega....:)
लेकिन जब हम सीरिअस बात करते हैं त एकदम सीरिअसली करते हैं.
जवाब देंहटाएंभैया इ बात सोलहो आने सच है .....आपके लिए
अऊर ई दू जून गूगलवो को पता नहीं है, गरीब का दू जून का रोटी गूगल के खोज से भी बाहर है!
इ गुगलवा ससुरा का जाने आम आदमी के दरदबा के ..........
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुती है आपका .....
पिछले कई दिनों से जलजला के बारे में बहुत कुछ अन्य ब्लॉग पर पदने को मिल रहा है, लेकिन ये उन सब से अलग रहा खैर जलजले का जो चित्रण किया वो इसे समझने के लिए अच्छा है ! आकिरी लाइन "हतक हमेशा जलजला ही पैदा करता है" बहुत सही है !
जवाब देंहटाएंदो जून की ही तो चिन्ता में सब घुले जा रहे हैं...बढ़िया लेख
जवाब देंहटाएंसोनी बिटिया! ई जलजला वाला कमेंट लगता है गलती से हमरा पोस्ट पर लग गया है.. हम त अईसा कुछ यहाँ लिखबे नहीं किए हैं. हमरे पोस्ट के बारे में लिखने से हमको अच्छा लगता.
जवाब देंहटाएंसलिल भाई, बहुत बढ़िया लगी आपकी यह पोस्ट ..............यह बात सच है कि आज आज़ादी के ६२ साल बाद भी हमारे देश में बहुत से लोग ऐसे है जो २ वक़्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाते है पर हमारे राजनेता आज भी उनकी चिंता करने से कतराते है |
जवाब देंहटाएंमाफ़ कीजियेगा सर , पता नहीं ये कैसे हुआ शायद कोई तकनिकी कारण की वजह से हुआ कमेन्ट मैंने आपकी ही पोस्ट पर किया था ये जलजला वाला कमेन्ट तो "संवेदना के स्वर पर किया था" लेकिन दोनों की टाइमिंग शायद क्लेष हो गई और अपना कमेन्ट भी उस वक़्त आपकी पोस्ट नज़र नहीं आया ..........खैर अब आपकी पोस्ट पर आते है .......... आपने कहाँ से शुरू किया और कहाँ पर ख़त्म किया वो अदभुत है वास्तव में इस दो जून का अर्थ तो गूगल भी नहीं बता सकता .........इस दो जून का अर्थ एक जरुरतमंद ही बता सकता है ......अभी कुछ दिन पहले एक ट्वीट पड़ी थी " ऊपर वाले पर विश्वास करो क्योकि कुछ सवाल ऐसे होते है जिनका जवाब गूगल भी नहीं दे सकता .............
जवाब देंहटाएंभैया, गोदियाल साहब भी आपसे प्रेरणा लेकर दो जून जी रोटी पर कविता लिख दिए हैं!
जवाब देंहटाएं"गरीब का दू जून का रोटी गूगल के खोज से भी बाहर है!"
जवाब देंहटाएं:-( क्या कहें....शब्द नहीं है!
बहुत ही सुन्दर, रोचक और विचारणीय लेख लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! बहुत बढ़िया लगा! बधाई!
जवाब देंहटाएंआज आपका ब्लॉग पे पहली बार आना हुआ और पहली बार में ही यहाँ का हो कर रह गया..आपक लिखने का अंदाज़ इतना रोचक है के एक के बाद एक कई पोस्ट पढ़ गया...दू जून का बात में आप गज़ब ही कर दिए हैं...अब आपका समझो मैं पक्का फैन हो गया हूँ...कोई रोक सके तो रोक ले...:))
जवाब देंहटाएंनीरज
waah kya sense of humar hai...badhiya post.
जवाब देंहटाएंatyant rochak hai aapka 'du june'.
जवाब देंहटाएं२ जून के ऊपर भी सोच बैठे चचा(सम्मान के साथ) ,,
जवाब देंहटाएंकाबिल-ए-तारीफ .
सादर
sach mein... 2 june... :-/
जवाब देंहटाएंबहुत खूब भाई
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