शनिवार, 26 जून 2010

कर्ज कलकत्ता का

बचपने से सोचते थे कि बिहार के पूरब में पश्चिम बंगाल है, त आखिर पूर्वी बंगाल कहाँ है? पता चला पूर्वी बंगाल कहीं नहीं है, जो था आजकल पूर्वी पाकिस्तान कहलाता है. त बेकारे न बंगाल को पश्चिम बंगाल कहते हैं! मगर हमरा बात का त कोनो भैलूए नहीं. खैर 1971 में पूर्वी पाकिस्तान बन गया बांगला देस. तबो पश्चिम बंगाल का नाम ओही रहा. आखिर में हम हार मान कर मन में बईठा लिए कि एही नाम सही है. लेकिन बोलने से त कोनो हमको रोक नहिंए सकता था, एही से आज तक बंगाल बोलते हैं.
का मालूम था कि इसी देस का राजधानी में हमको छः साल काम करना पड़ेगा. अऊर इहो मालूम नहीं था कि ई सहर हमरे जन्मभूमि के बाद, हमरे जीवन का हिस्सा बनने वाला पहिला सहर हो जाएगा. इतिहास, आजादी का लड़ाई, साहित्य, संगीत, संस्कृति, शिल्प, कला अऊर का बोलें. बंगाल का जोगदान ई देस भुला नहीं सकता है.
मक्खन में से तेज छूरी डालकर निकाल लीजिए, तबो छूरी पर मक्खन का निसान रहिए जाता है. ओही तरह से कलकत्ता छूटने के बाद भी हमरे अंदर कलकत्ता रहिए गया. संस्कृति चीजे अईसा है कि जेतना उसमें समाइएगा, ओतने उसी रंग में रंगते जाइएगा. अईसहीं संस्कृति आगे बढता है, एक हाथ से दूसरा हाथ अऊर एक पीढ़ी से दोसरा पीढ़ी.
नारी जाति के सम्मान का गजब तरीका है बंगाल का. बेटी को माँ कहकर पुकारते हैं. सच भी है. बंगाल के समाज में आज भी बहुत सा लड़की लोग बिना सादी किए देखाई देती है. कारन सादी के बाद ससुराल चल जाने से घर पर बूढ़ा माँ बाप को कौन देखेगा. माँ के तरह सेवा करती है बेटी अपने माँ बाप का.
दोसरा बात, साथ में काम करने वाले पुरुष को दादा, माने भाई, अऊर स्त्री को दीदी कहना. लेकिन एहीं से एगो समस्या सुरू हुआ हमरे साथ. कोई भी उमर का स्त्री अगर आपके साथ काम करती है त उसको दीदी कहकर बोलाया जाता है बंगाल में. एही से बिबेकानंद जी अमेरिका में ‘ब्रदर्स एण्ड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका” कहे थे, जो इतिहास है. हम भी ओही रंग में रंग गए. अशोक दा, शुप्रभात दा, मानस दा अऊर शोनाली दी, डालिया दी, शुभ्रा दी, अंजलि दी...
समस्या अंजलि दी से सुरू हुआ. अंजलि दासगुप्ता, उमर 55 साल, हमरे उमर से डेढ़ गुना, एक बेटा जिसका उमर हमरे उमर से कुछ कम... हमरे ठीक बगल में बैठती थीं. साम को देर तक रुकना होता, त हम लोग कह देते कि हमलोग कर लेंगे आप जाइए. अंधेरा हो रहा है. इसपर उनका जवाब होता, “तोमरा जवान छेले. आमि तो बूड़ो लोग. तोमरा बाड़ी गिए, फेमिली शोंगे एंज्वॉय कोरो. तोमार काज होए गेछे तो?” कभी ऊ हमलोगों के ऊपर काम छोड़ कर भागी नहीं, जईसा अऊर लड़की लोग करती थीं.
एक दिन उनको कोई बात कहने के लिए हम घूमे, अऊर उनके तरफ देखकर बोले, “अंजलि दी!” अऊर एतना बोलते साथ हमारा आवाज बंद हो गया. हमको उनका अंदर एक माँ का चेहरा देखाई देने लगा. तब हम तुरत अपना बतवा भुला कर उनसे बोले, “अंजलि दी! आमि आपनाए दीदी बोलते पारबो ना. आपना के दीदी ना, मम्मी बोला उचित.” उनका आँख में लोर भर गया. बाकि हम जेतना दिन कोलकाता में रहे, उनको मम्मी बोलते रहे. पूरा ऑफिस में लोग उनको हमरा मम्मी के रूप में जानता था. एहाँ तक कि हमरा बॉस भी इण्टरकॉम पर बोलता कि तुम्हारी मम्मी के लिए कॉल है, भेज दो.
हमरे घर में कोई औलाद नहीं था, एही सहर ने हमको सारा उम्मीद हार जाने के बाद एगो बेटी दिया. जो आदमी भगवान के हर दरवाजा से निरास लौटा, उसको अचानक सब उम्मीद छोड़ देने के बाद औलाद, ऊ भी बेटी, दिया एही सहर कोलकाता ने. बनारस, बिंध्याचल, मैहर, गुरुवायूर, तिरुपति, हरमंदिर साहिब… मजार, दरगाह, गिरजा... सब जगह माथा झुकाए, झोली फैलाए. अंत में सब बंद. जब मांगे, तब नहीं मिला, जब मिला तब मांगना छोड़ चुके थे… खैर बिसय से भटक गए. माफ कीजिएगा.
हम कह रहे थे कि बंगाल का बहुत बड़ा एहसान है हमरे ऊपर. एक मम्मी अऊर एक बेटी का कर्जा भी है.

26 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 27.06.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. सलिल भाई,
    आपकी कर्म भूमि मेरी जन्म भूमि है !
    २० साल कलकत्ता में रहने के बाद फिर १९९७ में मैनपुरी आना हुआ !
    आपकी पोस्ट ने बहुत से यादें ताज़ा करवा दी !

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  3. मैं बंगाली हूँ इसलिए शायद मुझे आपका ये पोस्ट बेहद पसंद आया! बहुत ही सुन्दरता से आपने प्रस्तुत किया है!

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  4. बहुत भावनात्मक लेखन....पढ़ना अच्छा लगा...दो साल कोलकता में रहे थे ..आपकी पोस्ट पढ़ कर वही जुडाव महसूस हुआ ...

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  5. कलकत्ता के प्रति आपका प्रेम गदगद कर देने वाला है..शहर हमें कई बार ऐसी यादें दे जाता के हमें अपना सा लगने लगता है...रोचक पोस्ट...
    नीरज

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  6. जब मांगे, तब नहीं मिला, जब मिला तब मांगना छोड़ चुके थे…
    ...मार्मिक पोस्ट. हम त आपका ई पोस्ट पढके भावुकिया गये न..! हमरा प्रणाम स्वीकार करें..

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  7. बहुत गहरे मन और प्यार के साथ अपने इन यादों को व्यक्त किया है ! लगा की वही कहीं आस पास हैं ! शुभकामनायें

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  8. सर बहूत ही जबरदस्ता पोस्ट . जन्म भूमि और कर्मभूमि हमेशा दिल के करीब रहती है। एक रगो में बहता खून और दूसरा दिल की धड़कन। यशोदनंदन कहो या देवकीपुत्र बात एक ही है।

    वैसे दद्दा लॉकर का किराया अभी भी दे रहे हैं क्या....

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  9. हम हैं तो बिहारी, लेकिन स्कूल में बंगला पढाये जाने के कारण बंगला भाषा भी सिख गए. शक्ल भी बंगालियों से कुछ इस कदर मिलती है कि अक्सर लोग मुझ बंगाली समझ बैठते हैं. कलकत्ते में कभी रहना तो हुआ नहीं, पर आना जाना किसी ना किसी बहाने से लगा ही रहता है. सही कहा आपने .. कलकत्ते कि संस्कृति एक अलग तरीके कि संस्कृति है.

    काफी सुन्दर रचना.

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  10. जय माता दी,
    १६
    जुलाई को श्री कृष्ण मेमोरिअल हॉल,पटना में ५१ गरीब कन्याओं का सामूहिक
    विवाह में आप भी आयें

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  11. মা গো.. কি রকম ভাল কথা..
    কিন্তু একটু অব্যেক্শন তো..
    এঈটা কোলকাতার ও বাঁগালের কর্জ নেঈ
    আবার দিন দুঈগুলোর প্রতিদান বলবেন

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  12. सलिल भाई क्या कहने। वास्तव में एक बात जो आपने शुरू में कही वह मैंने कभी सोची ही नहीं। सबसे पहले तो मेरी जानकारी में इजाफा करने के लिए धन्यवाद। अब बात कोलकाता की, तो साहब कभी न तो बंगाल गया और न ही कोलकाता। पर पढ़ा सुना खूब है कोलकाता के बारे में। बाबू मोशाय से तो मेरा बहुत लगाव है।
    सलिल जी ऐसा होता है। आप अपने जीवन में कई जगह रहते हैं, आखिर रोजी रोटी का सवाल है। उनमें से कुछ जगहों से कुछ लगाव सा हो जाता है। जैसे मैं अपनी बताऊं। फर्रुखाबाद में जन्मा, उसके बाद लखनऊ, देहरादून, इलाहाबाद, आगरा, जालंधर, अंबाला होता हुआ अब ग्वालियर में हूं पर इलाहाबाद और देहरादून जितना याद आता है उतना और कोई नहीं। अब भी मन करता है वहीं चला जाऊं । वैसे बहुत शानदार पोस्ट है आपको बधाई।

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  13. @Dr. amar kumar
    ডাগদর সাহেব! এই দেখুন, এটা কে বলে, হৃদয়ের কথা হৃদয়ের থেকে বোঝা যায়... চলুন আমি আপনার বলা সত্তে ওই কারজা টা কে পালটে প্রতিদান করলাম... ধন্যবাদ!! আবার আসবেন!

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  14. Bihari babu, late ho gaye, abki baar...:(

    aapke har postwa me aisa lagta hai ki jeevan bhar dete hain.......dhanya haain aap
    !!

    aur aapki mummy jee ko mera pranam!!

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  15. बंगाल का जादू तो सर चढ कर बोलता है,सलिल भाई! आप की बिहारी थाली में बंगाली रसोगुल्ले की मिठास बहुत ही प्यारी लगी.

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  16. हमारे भी कोलकता के बहुत दोस्त हैं चाचा, :)
    पढाना सही में बहुत अच्छा लगा :)

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  17. अरे वैसे आपको बताना भूल गया, जिस काम के लिए मैं यहाँ आया था वो बोलबे नहीं किये..इस पोस्ट में भूल गए ऊ काम...

    अरे आपको अवार्ड मिल चूका है चाचा...जरा देखिये तो
    ईटज्ज ब्लॉग अवार्ड टाइम

    :P

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  18. aap itnee sahjata se abhivykt kar lete hai gahree bhavnao ko aur nateeza hota hai pathal juda mahsoos karata hai.......
    bitiya ko aasheesh .

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  19. बिहारी के बीच-बीच में बंगाली संवाद मजेदार रहे। दमदार लेखन बिहारी बाबुआ। वैसे बंगालियों की बात ही अलग है। बंगाली लोग स्त्रियों की ही नहीं सभी की बहुत इज्जत करते हैं, विवेकानंद की जन्मभूमि है इतने संस्कार तो अब भी वहां की फिजा में हैं। वैसे हमारे कुछ दोस्त हैं बंगाली बहुत सुनते हैं उनसे बंगाल के बारे में....

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  20. आपकी इस पोस्ट के लिए तो कुछ भी कहना मुश्किल होगा बाबूजी !!!!!!!!

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  21. कोलकाता ..... उफ्फ़
    क्या बोलूं , ऊँगली दर्द करने लगेंगीं लेकिन इस शहर की तारीफ़ खत्म नहीं होगी ,

    सादर

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  22. मन में गहरे उतर जानेवाली है यह पोस्ट - भावनामय हृदय जिन संबंधों को जोड़ता है उनकी शीतल छाँह का अनुभव कितना सुहावना होता है !और भी अच्छा ,उनके पक्ष का, यह लगा कि'कभी ऊ हमलोगों के ऊपर काम छोड़ कर भागी नहीं. '

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