गुरुवार, 24 जून 2010

दिल के बोझ का किराया

“तुम काहे ई छोटा-मोटा नौकरी करने को तैयार हुए?”
“का करते 21 साल के पहले सादी नहीं कर सकते अऊर उसके पहिले नौकरी नहीं मिला त लोग घर से निकाल देगा. कहाँ से खिलाएंगे तुमको!”
“लेकिन ई नौकरी तुमरे काबिलियत से कम है.”
“काबिलियत त झाड़ू लगाने का नौकरी में भी है. अऊर काबिलियत के हिसाब का नौकरी 21 के पहले नहीं मिलेगा. एतना सबर नहीं है हमरे पास. तुमको सरम त नहीं बुझाएगा न हमरे साथ चलने में?”
“का बात करते हो!"
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20 साल में हम परीक्षा दिए, अऊर 21 साल के पहिले नौकरी मिल गया. सहर छोड़ना पड़ा. जौन साल फरवरी में हम 21 के हुए, ओही साल जून में उसका सादी हो गया... गलत बोल दिए सादी कर दिया गया. हम जानते हैं कि ऊ आसानी से नहीं मानी होगी, बिरोध करबे की होगी, लेकिन उसका आवाज दबा दिया गया. खाप पंचायत होता, त गला दबा देता. फिर एकाध बार हम लोग का मुलाकात हुआ, मगर बतिआए नहीं. न हम कारन पूछे, न ऊ कोनो सफाई दी.
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सात साल बाद...

“तुम सादी काहे नहीं कर लेते हो?”
“कोनो कसम त नहिंए खाए हैं कि नहीं करेंगे. तुमको त मालूमे है कि हम केतना जिद्दी हैं.”
“तुमरे सादी में हम नहीं आएंगे.”
“हम भी एही चाहते हैं. बाकी दुनियादार है, इसलिए न्यौता त देना ही पड़ेगा.”
“अच्छा एगो बात पूछें? हमरा चिट्ठी सब का किए?”
“लॉकर में रखा हुआ है.”
“लॉकर में! मम्मी समान निकालते समय देखेंगी नहीं!”
“खाली चिट्ठी है ऊ लॉकर में. तुमरा चिट्ठी के साथ, अऊर कुछ रखियो त नहीं सकते है.”
“पागल हो का, जला दो ऊ सब. बेकार काहे ढो रहे हो.”
“दिल पर उठाए हैं, एही से बोझा नहीं लगता है. अऊर जलाने को काहे बोली, डर लगता है का हमसे.”
“दाढी बढा लेने से, कोई डरावना नहीं लगने लगता है!”
“फिर काहे बोली चिट्ठी जलाने के लिए?”
“हम त इसलिए बोले कि फालतू में लॉकर का किराया काहे दे रहे हो. पईसा बरबाद करना अच्छा बात नहीं है!”
“साढ़े सात सौ रुपया सालाना है किराया. तुमरे याद का कीमत के हिसाब से किराया बेसी नहीं है.”
“ए छोटी!!”
“का है मम्मी!! आते हैं!"


17 टिप्‍पणियां:

  1. आए हाए..बहुते जिद्दी हो भई..अब जाय द..

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  2. ई वाला ता हमको ठीक से बुझैबे नहीं किया. रहिये...घरे जाके फेनु पड़ेंगे...देखते हैं, ताखनी बुझाता है की नहीं.

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  3. "दिल पर उठाए हैं, एही से बोझा नहीं लगता है."

    "दाढी बढा लेने से, कोई डरावना नहीं लगने लगता है"

    वाह...का लिख दिए हैं आप...शब्द नहीं हैं प्रशंशा के लिए...जय हो..सलिल जी...
    नीरज

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  4. प्रणाम

    अब बिहारीपना पे उतरिये गइल बानी..त आई भोजपुरी खातिर भी कुछ कइल जाव..

    राउर ब्लोगवा पढ़ी के हम बाकि भोजपुरिया लोगन में www.jaibhojpuri.com pe एकरा के बाटे से रोकी ना पावनी.. उम्मीद बा की एह गलती के माफ़ करी देब .. आ समय मिली त www.jaibhojpuri.com pe एक बार एह नज़र भी फेर देब

    प्रवीण

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  5. आज तो एकदम अलग तरह की पोस्ट लिखी है आपने ! वैसे आपबीती है या किसी और का अनुभव ?

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  6. बहुत अलग तरह की पोस्ट है आज तो ... हालात से समझोता करती .. समाज के नियमों के खोखले पन को खोलती ... संवेदनशील पोस्ट है ....

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  7. हमरा एगो कमजोर पोस्ट है ई... अपना मूड अऊर स्वभाव से अलग... ई बात हमको पहिलेहीं लिख देना चाहिए था... छूट गया...

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  8. नि:शब्द हैं जी आपके इस भोलेपन के लिए !

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  9. हमेशा की तरह एक बार फिर बेहतरीन रचना, बल्कि इस बार कुछ हटकर। बहुत कम लोग इस तरह का साहस कर पाते हैं। आपने किया, मेरी ओर से बधाई स्वीकार करें।

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  10. हिम्मत है बिहारी में ....! शुभकामनायें

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  11. मेरे ब्लाग पर , आपकी विनम्रता का जवाब है कृपया पढ़ लीजिएगा !!

    http://satish-saxena.blogspot.com/2010/06/blog-post_23.html

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  12. स्तुति के जैसे हमको भी सही से नहीं बुझाया था पहिले बार में, लेकिन अब दूसरा बार पढ़ने में कोंसेप्ट क्लीअर हुआ :)

    और चचा आपके ब्लॉग पे कुछ दिन से नहीं आये थे हम लेकिन आपके पोस्ट को बुकमार्क कर के रखे थे..अभी सब पढ़ रहे हैं :)

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  13. नमश्कार बाबूजी
    देर से आने के लिए माफ़ कीजिये
    वैसे आपकी ये पोस्ट तो बिलकुल अलग है लेकिन फिर भी बहुत अच्छी है ........वाकई बहुत अच्छी !!!!!!!!!!

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  14. मैं बहुत छोटा हूँ इस पर कोई कमेन्ट करने के लिए , और इसके भाव मेरी उम्र और अनुभव से बहुत बड़े |

    सादर

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