सोमवार, 27 सितंबर 2010

एक (अ)हिंदी प्रेम

सितम्बर महीना, माने सरकारी ऑफिस में राजभासा समारोह का महीना. ई महीना में सब सरकारी ऑफिस में राजभासा कार्यक्रम का धूम देखने लायक होता है . हमरे ऑफिस में भी इस महीना में हिंदी मुहावरा प्रतियोगिता, वर्ग पहेली, अंताक्षरी, वाद विवाद, निबंध लेखन, आशु भाषण और न जाने केतना प्रतियोगिता पूरा महीना चलता रहता है अऊर सबसे बड़ा आयोजन होता है 14 सितम्बर को, अंचल कार्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ. सच पूछिए त साल के एगारह महीना में चाहे जो भी हालत हो, ई महीना में त लोग का जोस देखकर बुझाता है कि बस अब कल से सब काम हिंदी में होने लगेगा. लेकिन सितंबर महीना खतम होते ही, हिंदी के काम पर अईसा मोहर लग जाता है जईसा रजिस्ट्री का मोहर लगने के बाद जुम्मन ने खाला की खातिरदारियों पर लगा दिया था.

हमसे जेतना होता है, हम सालों भर करते रहते हैं. चुपचाप बिना किसी फल का आसा किए. इस मामले में हम गीता का बात मानते हैं. अपना तरफ से स्पस्ट कर दें कि गीता हमरी राजभासा अधिकारी का नाम नहीं है, हम त उस गीता का बारे में कह रहे हैं, जिसका एक स्लोक हर कोई जहाँ मर्जी होता है वहीं कोट कर देता है अऊर जना देता है कि हम भी गीता पढे हैं. खैर, जब हम कलकत्ता में पोस्टेड थे, तब तनी आराम था. काहे कि ऊ “ग” क्षेत्र में आता था, यानि अहिंदी भासी क्षेत्र. मतलब कम से कम काम - जादा से जादा नाम.

कभी कभी आस्चर्य होता था कि हिंदी भासी प्रदेस, बिहार के बगल में होने पर भी बंगाल का लोग हिंदी के मामला में “ग” क्षेत्र में है. जबकि कमाल देखिए, बंगाल का अनगिनत सब्द बिहार के बोली में रचा बसा हुआ है. खैर ई सब पर जादा दिमाग नहीं लगाते हुए हम अपना काम में लग गए. हमरा पोस्टिंग बिदेस बिभाग में था, इसलिए हिंदी में काम करने का सम्भावना नहिंए के बराबर था. तो भी हम पहिला काम ई किए कि अखबार वाले को बोलकर हिंदी का अखबार लगवा लिए ऑफिस में.

अब रोज सबेरे हिंदी का समाचार पत्र हमरे सामने रख दिया जाता था. जब पूरा ऑफिस बंगाल का परम्परा के अनुसार सुबह सुबह मुख्य समाचार पर बांग्ला में बहस कर रहा होता था, हम चुपचाप हिंदी का हेडलाईन पढकर अपना काम में लग जाते थे. खाने के समय में पाँच मिनट का समय निकाल कर वर्ग पहेली हल करते और इंतज़ार करते अगला दिन के अखबार का, ताकि जवाब देख सकें.

हमारा हिंदी प्रेम चलता रहा. कोई बाधा नहीं कहीं से भी, मगर प्रोत्साहन जैसा भी कुछ नहीं देखाई दिया. तीन महीना बाद सितम्बर आ गया. हम पहिले ही बता दिए अपने अंचल कार्यालय को कि हम हिंदी का ज्ञान रखते हैं अऊर इस साल हिंदी भासी वर्ग में सब प्रतियोगिता में हम हिस्सा लेंगे, इसलिए हमको समय पर खबर कर दिया जाए. लोग चौंक गया कि बिदेस बिभाग में ई कौन पागल आया है, अऊर जब पता चला त सब हँसा कि बिहारी आदमी को बोलने त ठीक से आता नहीं है, प्रतियोगिता में कहाँ से हिस्सा लेगा.

बहुत जल्दी सारा उम्मीद पर पानी फिर गया. हमरे नहीं, उनके. उस साल सब प्रतियोगिता में हिंदी भासी वर्ग में हम प्रथम आए. पिछला कई साल के चैम्पियन लोग हमसे बहुत पीछे रह गए. अब त हमरे ऑफिस में हमरा इज्जत तनी बढ गया. बॉस का सीना भी चौड़ा हो गया, जब सब ईनाम उनके ऑफिस को मिला.

अब हमरा हिंदी का समाचार पत्र का भी इज्जत तनी बढ गया था. कुछ लोग (दक्षिण भारतीय सहकर्मी गण को छोड़कर) कोसिस करने लगा था कम से कम मुख्य समाचार पढने का. हमरा काम ऐसा था कि सुबह नौ बजे से साम साढे चार बजे तक एकदम फुर्सत नहीं होता था. ऊ दिन चार बजे एक युवा कर्मचारी, जिसका नाम सुकल्प भट्टाचार्य्य था, हमरे पास आया अऊर बोला, “ भर्मा दा! ई पेपर हम पढने का लिए ले सकता है?” (बंगाल में अंगरेजी का “वी” अक्षर से लिखा जाने वाला सब्द का उच्चारन “भ” किया जाता है, इसलिए हमको वर्मा न कहके भर्मा बोलता था सब.)

“अरे सुकल्पो! ऑफिस का कागज (कागज माने अखबार) है, ले जाओ.”

सुकल्पो अख़बार लेकर चला गया. पौने पाँच बजे ऊ फिर हमरे पास आया अऊर बोला, “भर्मा दा! एक्टू सहायता कीजिए.” उसका बांग्ला मिला हुआ हिंदी सुनकर हमको बहुत अच्छा लगा.

“बोलो.”

“एई कागज में हम कुछ वर्ड को अंडरलाईन किया है. आप हमको उसका माने बता दीजिए.”

पहिले त हमको लगा कि ऊ मजाक कर रहा है. मगर जब उसका चेहरा पर हमको सीरियसनेस देखाई दिया, त हम उसको सब सब्द का माने अंगरेजी में समझा दिए. ऊ समझ गया था, ई बताने के लिए उ हमको वाक्य बना कर बताया कि सब्द का मतलब का है. हमको खुसी हुआ.

उसके बाद त हर दिन का रूटीन बन गया कि ऊ साम को हमरे पास आकर हमसे नया सब्द का मतलब सीखता अऊर पुराना सब्द आने से बताता कि ई सब्द हम उसको दू दिन पहिले बताए थे. देखते देखते उस लड़का का सब्दकोस एतना अच्छा हो गया कि उसको हमरे पास आने का जरूरत नहीं रहा. मगर जब कभी उसको कोई कठिन सब्द नजर आता था, तो उ हमसे पूछता अऊर सब्द का अर्थ याद भी रखता था.

एक साल बीत गया. अऊर अगला साल सितम्बर महीना में जो हुआ ऊ कोई सस्पेंस नहीं है. हिंदी माह का सब प्रतियोगिता में से अधिकतर में अहिंदी भासी वर्ग में सुकल्प भट्टाचार्य्य प्रथम या द्वितीय स्थान पर रहा. उसका रोज का आधा घण्टा अभ्यास का रस्सी हमारे ऑफिस के इतिहास के पत्थर पर हिंदी का अमिट निसान छोड़ गया.

35 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसा ही प्रोब्लम से हम कुछ दिन पहले गुजरे थे चचा..हमारे ऑफिस में तो किसी को हिंदी में बात करना गंवारा ही नहीं..आपके ऑफिस में तो फिर भी वो अंकल आपसे रोज हिंदी में बात करते थे....हमारे ऑफिस में ऐसा कोई नहीं...
    हाँ मेरी एक दोस्त है यहाँ बैंगलोर में, श्रेया....वैसे तो वो मेरे से एक साल जूनियर है...उसकी हिंदी मेरे साथ बात करते करते बहुत अच्छी हो गयी है..
    बहुत अच्छा लगा पोस्ट पढ़ कर :)

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  2. वार्षिक सरकारी प्रेम हम कर लेते हैं, साप्ताहिक निजी प्रेम भी, हिन्दी से।

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  3. ये लो यही तो हम यहां पिछले डेढ़ साल से कर रहे हैं। सब लोगों से हिन्‍दी में बात बात करके हिन्‍दी बोलना सिखा दिए हैं।
    पर अफसोस इस बात का है कि कन्‍नड़ हम नहीं सीख पा रहे हैं। हम कुछ हिन्‍दी भाषियों ने मिलकर कोशिश शुरू की थी। हमारे एक कन्‍नड़ साथी ने हमें नियमित रूप से पढ़ाना भी शुरू किया था। पर फिर अभ्‍यास छूट गया।
    आपका संस्‍मरण पढ़कर अच्‍छा लगा।

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  4. सरकारी आफिस में ’हिंदी सप्ताह’ के बाद ,हिंदी का क्रिया कर्म कर दिया जाता है ।अच्छा संस्मरण ।

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  5. वाह बहुत अच्छी लगी आपकी ये पोस्ट ..एक मेरी भी रूसी सहेली थी जो हिंदी सीखते सीखते हिंदी कि कवितायेँ लिखने लगी थी.बहुत अच्छा लगताहै ये सब देखकर.

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  6. सचमुच, हिंदी की जो दुर्गति इस देश मे है,शायद किसी और देश की मातृभाषा मे नहीं होगी, विभिन्न प्रदेशों मे तो इसके धुर विरोधी हैं ,जैसे तमिलनाडु(जो मैंने महसूसा है !). आपका पोस्ट शायद कुछ लोगों की आँख खोल दे. बहुत सुन्दर चित्रण बन पड़ा है , सरकारी संस्थाओं का! बधाई.

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  7. @राजेश उत्साहीः
    बड़े भाई, आपसे ई उम्मीद नहीं था..एक शख्स हमको ऐसा मिला कि मलयालम सिखा गया.. आज हम हिंदी अऊर अंगरेजी के जईसा लिख पढ सकते हैं… आप भी कन्न्ड़ सीख जाइएगा… पत्थर उठाइए त सही, आसमान में सुराख़ खुद ब खुद हो जाएगा!!

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  8. Ye aapne hame achhee lat lagva dee..ehee...bihaaree bhaasaa padhva lenekee...daaktar sone ko bol gaya,aoor ham hain ki,aapka blogva padhe ja rahe hain..

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  9. बहुत अच्छी बात बताई ...ऐसे कम ही लोंग होते हैं जो इतनी लगन से हिंदी सीखें ....

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  10. आप केतना बांध कर रख देते हैं... अपनी पोस्ट... नज़रें तो यहाँ वहां होती ही नहीं है.... एक्के बार में पूरा पढ़ जाते हैं.... आई नो भेरी भेल दैट हिंदी इज़ अभर मदरटंग.....

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  11. आपकी सभी संस्मरण रोचक होते हैं और उस श्रेणी में ये भी है...

    शुक्रिया..

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  12. हिन्दी पखवाड़ा श्राद्ध पक्ष की तरह होता है। साल भर हम जिसे याद नहीं करते उन्हें इस पखवाड़े में खूब याद करते हैं।

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  13. आपकी बात एकदम दुरुस्त है। ये भी सही है पर जबतक हम हिंदीवासी भी दूसरी भाषाओं को नहीं सीखने की कोशिश करेंगे तबतक अपने ही देश में इसके विरोधी मिलते रहेंगे। हम उत्तर भारतियों को भी चाहिए कि कम से कम दक्षिण भारतीय भाषाओं को बोलने के स्तर पर ही सही सीखें तो सही।

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  14. हमें तो खुद १४ सितंबर का दिन हिंदी का श्राद्ध दिवस लगता है।
    मस्त लिखत हैं जी आप, रोचक अंदाज में।

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  15. आपने बिल्कुल सही कहा है! चाहे भाषा हो ये कोई भी चीज़ उसे पूरी मेहनत और लगन से सीखना चाहिए तभी कामयाबी मिलती है! सुन्दर और रोचक संस्मरण!

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  16. रोचकता का तड़का लगाकर सुगंधित हो गई है यह पोस्ट ।

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  17. विडम्बना यही है कि "अपने आफिस में आज हम भी हिन्दी का श्राद्ध मना रहें हैं।"

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  18. चलिए, इसी बहाने लोग हिन्दी को याद तो कर लेते हैं।

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  19. सही बात है...पत्थर दिल से उठा ले कोई तो सूराख होने का पूरा चांस बन जाता है...
    पता नहीं कैसे हमरे मन में भी गहरे बात बैठ गयी है कि कोई भी भारतवासी (कार्यक्षेत्र में भी) जदी हमरे साथ अंगरेजी बतियाता है तो मने मन हुन्हकारी भरते हैं और चालू रहते हैं हिन्दी भाषा में ही...थोडा देर टकुर टुकुर कर के ऊ भी उतर जाता है जमीन पर...और तब हमको बहुतै आनंद आता है...

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  20. रोचक सन्स्मरण. हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पख्वाडा.. हिन्दी मास तो वो मनाते है जो हिन्दी का कम उप्योग करते है.. जो लोग हर दिन हिन्दी को जीते है... उन्हे किसी दिवस की जरुरत नही..

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  21. आपने बहुत ही अच्छा लिखा है ... नित्य अभ्यास से कोई भी काम ऐसा नही है जो किया न जा सके .... बहुत अच्छा लगा सुकलप के बारे में जान कर
    वैसे एक बात बताएँ .. आप अच्छा किए की गीता के बारे में बताए दिए ..... नही तो हम पता नही कौनसी गीता के बारे में सोचते रहते ........

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  22. सुकल्प में लगन थी, संकल्प था, और आप जैसे मार्गदर्शन देनेवाला पास ही होने का सौभाग्य भी...तीनो ने मिल कर एक हिंदी भाषी रच दिया! मुझे तो कोई अहिन्दी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला... ऐसी जरूरत भी नहीं पड़ी मगर मेरे बेटे ने वारंगल में केरल वासियों के साथ रह कर मलयालम सीख ली है और अब वह उर्दू सीख रहा है . उर्दू लिपि में अपना पहला वाक्य पढ़ कर वह इतना खुश था जैसे एवेरेस्ट फतह कर ली हो! बेहद जरूरी है भाषाओँ के बीच लगातार पुल बनाने की!!

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  23. एक बहाना ही सही..प्रेम छलकता तो है..कभी कभी. :)

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  24. एक बहाना ही सही..प्रेम छलकता तो है..कभी कभी. :)

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  25. बहुत ही बढ़िया संस्मरण...बस सीखने की लगन होनी चाहिए और लगन हो तो सिखाने वाले को भी आनंद आता है.....बहुत अच्छा लगा,जान आप मलयालम लिखना पढना सीख गए हैं...

    कॉलेज के दिनों में बंगला लिखना-पढना सीखा था और उन दिनों, बहुत सारी भाषाएँ सीखने की इच्छा पाल रखी थी...पर सिर्फ अंग्रेजी ,हिंदी में ही उलझ का रह गयी...कुछ सोचने को मजबूर कर रही है यह पोस्ट.

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  26. आप कै ई संस्मरण बहुत बढिया लागल अउर हमहुं आज बडा खुश बाटी कि निबन्ध लेखन कै पहिला ईनाम हमरे विभाग के इ हिन्दी पखवाडा कै अबकी बार हमरी झोली में गिरल.

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  27. abhi pichle saal hi ek Orissa ke ladke ko HIndi sikhayi thi koshish yahi thi ki main bhi usse Orisi sikh saku thodhi bahut likhni to aa gayi lekin bolni bilkul bhi nahi aayi .......

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  28. बहुत रोचक है। समीर्जी की बात भी सही है एक दिन ही सही -- कभी तो एक से आगे बढना ही पडेगा। शुभकामनायें

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  29. प्रेरक प्रसंग !!! आप तो राजभाषा अधिकारी से कहीं बढ़कर कार्य कर रहें हैं । सुकल्प को हिंदी सिखा कर आपने बहुत अच्छा कार्य किया । हिंदी माह मनाने के पीछे उद्देश्य भी यही है कि कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारियों को प्रेरणा व प्रोत्साहन देकर उन्हें हिंदी सिखने के लिए प्रेरित किया जाए ।

    हिंदी माह में इस पोस्ट को लगाने के लिए भी साधुवाद !!!

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  30. आप में और हममें बड़ी मनी समानता है । हमहुँ साइंस कॉलेज से पढ़ल है। हमहुँ सरकारी नौकर हैं। पहले कलकत्ता पोस्टेड थे और अभी दिल्ली काम कर रहे हैं। आपका संस्मरण हमको कलकत्ता का याद दिला दिया। राजभाषा पखवाड़ा मे भाग लेना और इनाम जीतना, लोगों को भाग लेने को उत्साहित करना, पखवाड़ा समापन समारोह में गाना गाना, इ सब किए है हम हिन्दी के खातिर। हमको बंगाली से उतना शिकायत नहीं रहा है जितना कि अपना बिहारी भाई सब से। हमरा बैच में 75 में से 50 गो बिहारी है। हिन्दी भाषी होते हुए भी सब हिन्दी में आवेदन लिखने बोलने पर नाक भौं सिकोड़ता था और तरह तरह का नौटंकी करता था। इ सब तब जब हम फौरमैट टाइप करके दिते थे । लगता था कि जैसे बचपन में माए के दूध के बजाय अंग्रेजी भिस्की पिया है । जब हम उ सब के बोलते थे कि हम अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़े है और जब हम हिन्दी भाषी हीं हिन्दी के इज्जत नहीं करेंगे तब कौन करेगा तब जा के नेनियाते हुए साइन करता था।

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  31. मेरे साथ यहाँ कॉलेज में एक तेलुगु और एक मणिपुरी दोस्त है , दोनों काफी हद तक हिंदी समझने लगे हैं , अच्छा लगता है |

    सादर

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