गुरुवार, 13 जनवरी 2011

मकर-संक्रांति


घर से दूर, पराया देस में अपना रिस्तेदार लोग से जादा अपना त्यौहार याद आता है. परब त्यौहार अपना लोग के साथ मनाने का जो आनंद है कहीं नहीं. अईसहिं सन् 2002 में सारजाह में मकर संक्रांति का त्यौहार याद करते हुये, हम दू चार लाईन लिखे थे. ओहाँ तो परब के लिये बस घर में अढ़ाई लोग का फैमिली था, हम, हमरी पत्नी अऊर बिटिया. सिरीमती जी को बहुत याद आता था दसहरा, दीवाली अऊर हर छोटा बड़ा त्यौहार. बस उनको देखकर लिख दिये थे मकर संक्रांति पर. कबिता तो खैर हईये नहीं है, मगर बिदेस में "दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है" वाला अंदाज में मन का बात हैः

सूरज ने मकर राशि में प्रवेश कर
मकर संक्रांति के आने का दिया  संदेश
ईंटों के जंगल में आज बहुत याद आया अपना  देश.
गन्ने के रस के उबाल से फैलती हर तरफ
सोंधी सोंधी वो गुड़ की महँक
कुटे जाते हुए तिलों का संगीत
साथ  देते बेसुरे कण्ठों का सुरीला गीत.
गंगा स्नान और खिचड़ी का स्वाद,
रंगीन पतंगों से भरा आकाश
और जोश भरीवो काटाकी गूँज
सर्दियों को अलविदा कहने की धूम.

अब तो बस तुम्हारा साथ ही त्यौहार जैसा लगता है
तुम्हारी आँखों की चमक दीवाली  जैसी
और प्यार के रंगों में होली दिखती है
तुम्हारे गालों के गुड़ में सना तिल
जब तुम्हारे होठों की मिठास में घुलता है
वही दिन मकर संक्रांति का होता है!!


55 टिप्‍पणियां:

  1. त्योहार उत्साही दिल कहीं भी,कैसे भी उत्साह मना लेता है।
    देश से बिदेश जाना फ़िर देश आना,संक्रांति ही तो है।:)
    कविता के अन्तिम पेरा में शानदार तिल-गुड (Till-Good)

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  2. त्योहारों का यह उत्साह तो बस अपने देश में ही है।

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  3. मकर संक्रांति पर होली - दिवाली सब मना ली ..और क्या चाहिए ...

    मकर संक्रांति की बधाई

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  4. दृष्टि ही सृष्टि और एहसास ही ..., आप ही कोई उपयुक्‍त तुक बिठा कर पूरा कर लें.

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  5. bhaiya aisee hi hoti hai ghar se bahar ka utsav...:)

    hame to yaad aata hai kaise maiya (dadi) kahti thi subah subah jo nahayega usko khubshurat bibi milegi...aur ham jo weekly nahane wale hote the....sabse pahle thande pani se naha kar Teel ki lakriyon ke alaw (aag) ko senkte the...fir maiya teel-gud dekar aashish deti thi...:)

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  6. अब तो बस तुम्हारा साथ ही त्यौहार जैसा लगता है

    सौ बातों की एक बात लिख दी है आपने...बस अब इसके न आगे कुछ कहने को बचता है न पीछे...
    मकर संक्रांति की शुभकामनाएं.
    नीरज

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  7. बहुत खूब सलिल जी.. .आपका ब्लॉग नियमित पढता हूँ, लेकिन पहली बार टिप्पणी दे रहा हूँ। आपका इ बिहारी अंदाज त गजब का है। हम हूँ वहीं से हैं पटना के पास "सोनपुर" :) इसलिए अपना-अपना-सा लगता है आपका लेखन।

    आपकी कविता की अंतिम पंक्तियों ने मन प्रसन्न कर दिया। आपको भी मकर-संक्रांति (सकरात) और खिचड़ी की हार्दिक बधाईयाँ एवं शुभकामनाएँ।

    -विश्व दीपक

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  8. सूरज दक्षिणायन से उत्तरायण क्या हुये, आप रुमानी हो गये सलिल भाई ! इस गुलाबी धूप वाले त्योहार पर आपके समस्त परिवार को (ब्लोग परिवार सहित) शुभकामनायें!

    -चैतन्य

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  9. परदेश में अपने तीज-त्योहार बहुत याद आते हैं...चलिए आपने इसी बहाने एक सुन्दर सी कविता लिख ली
    मकर संक्रांति की शुभकामनाएँ

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  10. अब तो बस तुम्हारा साथ ही त्यौहार जैसा लगता है..क्या बात कही है.
    दिल सचमुच बहला दिया आपने ..हम भी त्यौहार कुछ इसी तरह मना कर खुश हो लेंगे अब :)बहुत आभार रास्ता दिखाने का :)
    संक्रांति की ढेरों शुभकामनाये.

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  11. आप सब को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें.कविता एवं आलेख अच्छा है.

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  12. अच्छी कविता की है आपने मकर संक्राति पर।
    बधाई

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  13. मकर संक्रांति तो हमारे यहाँ अंगेजी में कहते है बचपन से आज तक तो हम इस त्यौहार को खिचड़ी के नाम से ही जानते है जिस दिन हम लोग उरद की बनी खिचड़ी को हाथ ही नहीं लगाते थे बस सारा दिन गुड खोवा से बना तिल बादाम की पट्टी दाना से गुजरता था और खिचड़ी के पांच दिन पीछे और आगे तक एक सूत्रीय कार्यक्रम था छत पर जा कर पतंग उड़ाना और पतंग लुटाना | आप तो उतनी दूर सरजाहा में रह कर पराया देश सा फिल कर रहे थे हमारे लिए तो ई त्यौहार में ई मुंबई भी बिदेश जैसा लगता है | बाकि इतन दूर बैठ कर ई त्यौहार में और कुछ तो कर नहीं सकते है सिर्फ यही कह सकते है कि खिचड़ी पर आप को भी बधाई |

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  14. हम घोर भात प्रेमी...बचपन में ई परब बड़ा कष्टप्रद लगता था,क्योंकि दिन भर में एको बार भात खाने नहीं मिलता था....पर अब जब बच्चा सब चूड़ा दही इत्यादि नकारता है तो मन दुखी हो जाता है...लगता है परब एकदम वैसे ही मनाएं जैसे बच्चे में मनाया जाता था या आज भी गाँव देहात में मनाया जाता है..

    छूटते चीजो से शायद मोह बढ़ता ही चला जाता है...

    आपका भाव छलक रहा है इस कविता में और हमको भी भावुक किये दे रहा है...

    सच्ची बात है,परब त्यौहार पूरे परिवार के साथ मानाने में ही परब जैसा लगता है,नहीं तो और दुखी ही कर जाता है मन को...

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  15. मकर संक्रांति ..हमारे फर्रुखाबाद में गंगा स्नान - दान और खिचड़ी से जुडी है ... गुड से बनी मिठाइयाँ ,काली उर्द की खिचड़ी ..सुबह से शाम तक दरवाजे पर ..मांगने वालो की लम्बी कतार ... पीढ़ी दर पीढ़ी आने वाले लोग
    आप सभी को शुभकामनाएं

    --

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  16. का बात है चचा.... ! इसब कलम कहीं रख दीये हैं का......... ! और देखिये, गड़बड़ बात मत बोलिए. एतना सुन्दर कविता को आप कह रहे हैं कि कविता हैय्ये नहीं है. राम कहो. बस खाली शीर्षक का कमी है.... ! खैर जो भी हो मगर आपके कलम से अच्छर नहीं सिनेह बहराता है. चलिए अब चिउरा-दही-गुड़-तिल की शुभ-कमाना !!

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  17. सलिल भाई, आपको सपरिवार मकर संक्रांति की बहुत बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

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  18. जय श्री कृष्ण...आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!

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  19. दादा बढ़िया कविता लिखे हैं आप. थोड़ा सा लम्बा है नहीं तो सबको यही कविता एस एम एस करते इस बार.
    हमारे पास तो हर बार यही एक मेसेज आता है -
    "उड़ी पतंग और खिल गए दिल...
    ... मुबारक हो आपको मकर संक्रांति का त्यौहार" :)

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  20. मकर-संक्रांति की नई परिभाषा वह भी काव्य में ...बहुत सुंदर !!! इतनी सुंदर कविता को आप महज एक ख्याल मत कहिए जनाब ,,,।

    आप की लेखनी के पीछे जो गहन भाव हैं...वे हर किसी के नहीं होते ...शायद इसी लिए हर लेखक अच्छा और महान लेखक नहीं होता । और भाव को गहराने के लिए जिस पात्र की आवश्यकता होती है ...वह पात्र आपका बहुत बड़ा है ...विशाल हृदय । जिसमें संवेदनाएँ छलकती हैं और बरबस फूट पड़ती हैं । ऐसे में संवेदनाएँ जब की बोर्ड से स्क्रीन पर उतरती हैं, तो वे जिस विषय पर भी पड़ती हैं वह धन्य हो जाता है । आपके लेखन और उसके पीछे छीपी गहन संवेदनाओं को प्रणाम !!!

    अरे मैं भी क्या भावुक हो गया ... मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ !!!

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  21. heheh..ek dum param romantik kabita ho gayi kasam se..kahe nahi hai ii kabita..isse badhiya kabita hogi..."isse behtar bhi nazm kya hogi".... :) happy lohri aur makar sankranti.... :)

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  22. सलिल सर माँ जब गाँव से आई थी तो कतरनी चुडा लेके आई थी.. और कनिया गुड मंगवा के चुरलाई बनाई है... साथ में तिल का लाइ भी बने है.. कल भोरे भोर नहायेंगे .. चुडा दही के साथ चुरलाई के साथ मकरसंक्रांति मनाएंगे... बाकी... आपकी कविता की इन पंक्तियों ने गुड घोल दिया मन में...
    "तुम्हारे गालों के गुड़ में सना तिल
    जब तुम्हारे होठों की मिठास में घुलता है
    वही दिन मकर संक्रांति का होता है!!"

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  23. लोहड़ी और उत्तरायणी की सभी को शुभकामनाएँ!

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  24. गालों का गुड़ और तिल मुबारक हो। सच कहा आपने वही मकर संक्रांति है।

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  25. "अब तो बस तुम्हारा साथ ही त्यौहार जैसा लगता है
    तुम्हारी आँखों की चमक दीवाली जैसी
    और प्यार के रंगों में होली दिखती है
    तुम्हारे गालों के गुड़ में सना तिल
    जब तुम्हारे होठों की मिठास में घुलता है
    वही दिन मकर संक्रांति का होता है!!..."

    जिस दिन ऐसा सोंधा मीठा कविता मिल जाये अपना तो उसी दिन संक्रांति है सर जी। और का कहे अब बच्चा…!

    हैप्पी-हैप्पी वाला मकर संक्रांति और टेस्टी-टेस्टी वाला खिचड़ी ;)

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  26. सलिल जी ये चंद पंक्तियाँ मन को छू गयी.......... सुंदर एहसास के साथ सुंदर प्रस्तुति...

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  27. मकर संक्रांति का याद तो हमको भी आ रहा है. मस्त चूडा दही खाते थे. तिलबा और तिलकुट के साथ. औए साथ में अल्लू-कोबी मटर का तरकारी नीमक मिरचाय के साथ.
    अब हियाँ कनाडा में ई सब तो नहीं लेकिन दही चूडा जरूर खायेंगे.
    और अपने research group में एक ठो cake ला के सब को समझा दिए की भारत में कैसे मनाया जाता है ई परब और का मतलब है इसका..
    आप सब लोग को तिला-संक्रांति का सुभकामना.

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  28. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  29. जी आपको मकर संक्रांति की बहुत ही बधाई हो। चूड़ा, दही, तिलकुट, गजक..यम यम ..जमकर खाएं बिना सोचे समझे। दिल्ली जैसे शहर में पल बढ़ कर अपन के लिए कभी-कभी त्यौहार का मजा काफी दुगना हो जाता है। आज लोहड़ी पर जमकर झूमे औऱ कल संक्रांति पर जमकर होगा चूड़ा दही। ये तो सौभाग्य है कि इस त्यौहार पर कम से कम रिश्तेदार जान पहचान के काफी लोग जुट जाते हैं। हालांकि छुट्टी नहीं है फिर रात में ही दो लो आ चुके हैं

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  30. सक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें......सादर

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  31. आप कहीं भी रहें, अपनी जड़-जमीन को नहीं भूल सकेंगे। घर से दूर रहने वाले शायद इन सबकी अहमियत ज्यादा ही महसूस करते हैं। खूबसूरत पंक्तियों पर भाभीजी की प्रतिक्रिया भी बताते, यकीनन पसंद आई होगी ये कविता उन्हें।
    आपको व आपके परिवार को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें।

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  32. अब तो बस तुम्हारा साथ ही त्यौहार जैसा लगता है
    तुम्हारी आँखों की चमक दीवाली जैसी
    और प्यार के रंगों में होली दिखती है
    तुम्हारे गालों के गुड़ में सना तिल
    जब तुम्हारे होठों की मिठास में घुलता है
    वही दिन मकर संक्रांति का होता है!!
    काल्ह से इसको पढ रहे हैं और सोच रहे हैं कि का लिखें। ई जे भावना के गुड़पाक में स्नेह का तिल और मुड़्ही का लाई तिलबा बनाए हैं, उसको खाने का मज़ा ही बार बार ले रहे थे। अभी गंगा स्नान करने के पहले लगा कि बतियाइए लें। भौउजी, बाल-बच्चा और आपको तीला सकरात सुभ हो!

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  33. bhai bihari babu aapke likhne ki style mujhe bilkul pasand aa gayi badhai makar sankranti par sundar lekh ke liye

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  34. ये कविता नहीं है?
    आप मानने को नहीं कह रहे हैं न? :)
    और किसी दिन कुछ भी हो, त्योहारों के दिन सुबह सबसे पहले आपके लिखे को ढूंढना जरुरी हो जाता है।
    इस मिठास का धन्यवाद।
    आपको व आपके समस्त प्रियजनों को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें।

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  35. aaj sabhee pichalee post pad lee comment nahee likh pa rahee hoo.......bas aasheesh dene chalee aaee .....

    pachalee post pruthveeputr se judee kai yade taza ho aaee ......kabhee post ya mail ke through bataungg .

    baby jhooma aur aapko sabheeko are chaitny aashee sabhee ko shubhasheesh.
    lagta hai theek hone me kuch samay aur lagega...

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  36. उतरायण :मकर सक्रांति,लोहड़ी और पोंगल की शुभकामनायें!! धान्य समृद्धि अविरत रहे।

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  37. मकर संक्रांति पर इसके पहले मैंने कोई कविता नहीं पढ़ी थी,
    आपने आज हमें तिल-गुड़ युक्त कविता से तृप्त कर दिया।
    कविता में ‘बेसुरे कण्ठों वाला सुरीला गीत‘...यह बिम्ब मन को भा गया, शब्द-अर्थ-चित्र-स्वर का अनोखा समन्वय...।
    वाह, सलिल जी, आपकी सोच को नमन।

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  38. कहूं विदेश चले गए हो क्या ? संक्रांति की शुभकामनाएं !

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  39. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  40. सलिल जी शब्द नहीं हैं इस नीरस और तनावपूर्ण शहरी जीवन को बयां करने के लिए हमारे पास.सचमुच "ईंटों के जंगल में आज भी बहुत याद आता है अपना देश"क्योंकि सारी परम्पराएं,रश्मों-रिवाज इस उम्मीद में पीछे छोड़ आये हमलोग कि यहाँ भी सबकुछ वैसा ही होगा, पर देसिल बयना यहाँ कहाँ.आम के बगीचे में ईंख ली पिराई और उसके खौलते रस की सौंधी सुगंध कहाँ .यहाँ तो सब रेडीमेड. "अब तो बस तुम्हारा साथ ही त्यौहार जैसा लगता है" अपनों के नाम पर जो छोटा सा परिवार है,शायद उसी में सिमट आया सारा त्यौहार है.,इतनी सूक्ष्म पकड़ उसी की हो सकती है जिसने इस सच को जीया है. दिल्ली आकार हम भी दशहरा लगभग भूल ही गए थे .लेकिन भला हो अपने प्रदेश की रिक्शा चालकों के प्रयास का कि हम यहाँ भी मां दुर्गा के दर्शन कर पाए,वह भी बिलकुल घर जैसा.इस भावपूर्ण रचना को पढ़कर अभिभूत हूँ.मकर संक्रांति की शुभकामनाएं

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  41. कविता दो दिन पाहिले ही देखें थे लेकिन पढ़े आज :)
    अंतिम वाली छः लाईन तो बस वाह :) मस्त एकदम
    और चचा इस बार मकर संक्रांति में हम पटना में करीब पांच साल बाद हैं, वैसे इस बार तो ज्यादा बुझाया नहीं, काहे की काम में ही बीजी रहे सुबह से शाम तक....लेकिन फिर भी बहुत अच्छा लगा :)
    आज फुर्सत से बैठे हैं तो कुछ पोस्ट पढ़ रहे हैं सबका :)

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  42. सलिल भाई जी,
    घर से बाहर परब,त्योहार के उ माजा ना मिलेला जौन माजा परिवार के साथ मिलेला। लेकिन राउर कविता देखके अईसन लगल हा कि रउआ कही भी केहू के याद के बहाने ही सही कल्पना करके ही आनंद कर सकीला। रउआ अईसन हमरो भी हालत बा -काहे कि लागल लागल झुलनिया के धक्का बलम कलकत्ता पहँच गए। धन्यवाद।

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  43. salil bhai ji
    kya likhun ,sabne to sab kuchh kah diya hai.
    par aapki boli hi itni achhi lagti hai ki bina padhe bina likhe raha nahi jaata. atna achha baat likhle baada aur kahtar ki e kavita na hauve .vah bhai vah!, kamaal ke haua tuhon.chala aapan pyar aur saneh aisane banile rahi h,ihe duua karatani.bahut hi khoob lagal tohar lekhva.
    toharo ke kichadi par dher sari badhai detani.
    kaisan lagal ;hamhun bhojpuri jantani --;)
    bahut bahut aabhar-----
    poonam

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  44. awwww..........kinnnnni pyaali kavita hai....ab to tumhara saath hi lagta hai tyohaar sa....what a line dadu...what a line...toooooooooooo good !

    dekhiye sankranti bhi nikal gayi, aur maine wish nahin kiya...shoooo sholly....happppy sankranti dadu. lately zara kam hi aa payi hoon online...isiliye :)

    i hope u and ur family have a great great year ahead :)

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  45. आद.सलिल जी,
    कुटे जाते हुए तिलों का संगीत
    साथ देते बेसुरे कण्ठों का सुरीला गीत.
    गंगा स्नान और खिचड़ी का स्वाद,
    रंगीन पतंगों से भरा आकाश
    और जोश भरी “वो काटा” की गूँज
    सर्दियों को अलविदा कहने की धूम

    सचमुच अपने गाँव की संक्रांति की याद आ गयी !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  46. अब तो बस तुम्हारा साथ ही त्यौहार जैसा लगता है
    तुम्हारी आँखों की चमक दीवाली जैसी
    और प्यार के रंगों में होली दिखती है
    तुम्हारे गालों के गुड़ में सना तिल
    जब तुम्हारे होठों की मिठास में घुलता है
    वही दिन मकर संक्रांति का होता है!..

    वाह इसको कहते हैं प्रेम की इंतेहा ... हमने तो भाई .. सब त्योहार उन्ही के नाम पर छोड़ दिए हैं ... वो कहती हैं तो त्योहार नही तो कुछ भी नही ...

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  47. शायद पहली बार नज़र पड़ी आपके ब्लॉग पर ...
    मैं भी पटना का ही हूँ ...थोडा बहुत लिखता हूँ ...
    मेरे ब्लॉग पर आकर ..मुझ्र भी कृतार्थ करे //

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  48. सलिल जी,
    मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण हो जाता है, चिरई-चउआ-पेड़-पालो-मनई सब रोआं झारने लगता है, कनकना जाता है. आपका पोस्ट भी इसी तरह चैतन्य कर देनेवाला है.

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  49. सलिलजी , मैं बिहारी तो नहीं हूँ.पर आप कुछ मेरे पडोसी सा लिखते हो.इस लिए अपने से दिखते हो.आपकी कलम को सलाम.

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  50. सही कहा बाऊ जी , घर से दूर कुछ याद आये न आये , घर का पर्व-त्यौहार जरुर याद आता है |

    सादर

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