रविवार, 30 जनवरी 2011

येनांग विकारः


कल माता जी का आँख का ऑपरेसन हुआ. बहुत मामूली  कैटेरैक्ट का ऑपरेसन था. मगर जब तक आँख से पट्टी नहीं खुल गया, मन घबरा रहा था. पट्टी खुला तो हम तीनों भाई सिनेमा वाला इस्टाइल में बोले कि अब आप धीरे धीरे आँख खोलने का कोसिस कीजिये. देखिये अपको सब देखाई दे रहा है! अऊर मजाक में एक भाई बोला, “नहींईईईईईईईईईई!!  डॉक्टर! मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है!सब लोग बात पर जोर से ठहाका लगाकर हँस दिया. माता जी बोलीं, “अब हमको हँसाओ मत. डॉक्टर मना किया है.हमरे घर में जब सिनेमा का ओभर ऐक्टिंग वाला डायलॉग लोग बोलने लगे तो समझिये सब नॉर्मल है!! माता जी का पट्टी निकालकर, काला चस्मा लगा दिया गया. उनको सब ठीक ठाक देखाई दे रहा था.
फ्लैश बैकः
पटना के जिस मोहल्ला में आँख का दूगो नामी डॉक्टर अजित सिन्हा अऊर कैप्टेन मंगतू राम रहते हैं, ओही मोहल्ला में अंधा स्कूल है. असल में इसका नाम राजकीय नेत्रहीन विद्यालय है, मगर सब लोग इसको अंधा इस्कूल के नाम से जानता है. बगल में आयुर्वेदिक कॉलेज और सामने बुद्ध मूर्ति. आबासीय बिद्यालय था.  एक तरफ हॉस्टल अऊर दोसरा तरफ क्लास होता था. एहिं एगो दोस्त थे हमारे, बिजय कुमार.
बिजय जी से पहिला परिचय आकासबानी पटना के प्रोग्राम में हुआ. बच्चा लोग के कार्जक्रम में कहानी सुनाने आए थे. हाथ में स्क्रिप्ट के जगह पर मोटा सफेद कागज था अऊर कागज पर पता नहीं केतना छोटा छोटा बारीक बुंदा बुंदा गोदा हुआ था. सब लोग आस्चर्जसे देख रहा था. जब उनका बारी आया उनका उँगली कागज पर गोदा हुआ बुंदा पर फिसलने लगा अऊर उनके मुँह से कहानी का सब्द निकलना सुरू हो गया. हमरा ध्यान उनका बात पर नहीं, उँगली पर था जिसमें हमको आँख का पुतली देखाई दे रहा था. अईसा पुतली जो नहीं देखाई देने वाला हरफ भी आसानी  से पढ़ रहा था.
प्रोग्राम के बाद उनसे दोस्ती हो गया अऊर पता चला कि हमरे घर के पास वाले नेत्रहीन बिद्यालय में रहते हैं, तो उनसे मिलने का बात करके हम उनसे बिदा लिये. कुछ दिन बाद अचानक हमको अंधा इस्कूल जाना पड़ा. वहाँ के प्रधानाध्यापक (नाम याद नहीं) पूरा तरह से नेत्रहीन नहीं थे. संस्कृत के बहुत बड़ा बिद्वान थे. हमरे एगो दोस्त के पिता जी बिहार राज्य नेत्रहीन कल्याण परिषद के अध्यक्ष थे. उनके कहने पर हम आचार्ज जी के पास संस्कृत पढने जाने लगे. एहीं से हमरा दोस्ती बिजय जी से सुरू हुआ.
एतवार के दिन पढाई के बाद जब हम पहिला दिन बिजय जी के पास गये तो हमरा आवाज सुनते ही पहचान गये. उनको बताये कि हम हर एतवार को एहाँ पढने आएँगे तो बहुत खुस हुए. बोले, चलिये इसी बहाने आपसे दोस्ती हो गई और आपसे मिलना होता रहेगा.
इस्कूलके अंदरका जिंदगी देखकर मन एकदम उजास से भर गया. लगता ही नहीं था कि चारदेवारी के अंदर एतना अंधेरा है. बिजय जी से पता चला हाथ से पढ़ा जाने वाला लिपि ब्रेल कहलाता है. पहिला बार छूकर देखने का मौका मिला अऊर मन महान लुई ब्रेल के लिये स्रद्धा से भर गया. अईसा लगा कि हम अक्षर अऊर सब्द नहीं,महान लुई ब्रेल का पैर छू रहे हैं. एगो लकड़ी का फ्रेम में लकड़ी में लगे पेंचकस जईसा कलम से गोद गोदकर सब्द को एगो मोटा सा कागज पर उतारा जाता अऊर उसी को छूकर पढ़ा जाता था.
हम पूछे कि आपको समय का अंदाजा कईसे लगता है. तब हमको अपना कलाई में बँधा हुआ घड़ी देखाए. बोले कि एच.एम.टी. खास तौर पर घड़ी बनाता है. घड़ी में 1 से लेकर 12 तक के नम्बर के ऊपर बुंदा बना था,जिसको छूकर महसूस किया जा सकता था. घड़ी का सीसा धीरे से खोलकर, हाथ से घड़ी के सूई को छूकर पता लगाया जाता है कि दूनो सूई कहाँ कहाँ पर है अऊर इसी से टाईम का पता चलता है.
सबसे जादा आस्चर्ज हमको तब हुआ जब हमको सतरंज खेलने के लिये कहे. कमाल का चैलेंज था. सतरंज का गोटी चाइनीज चेकर के तरह बोर्ड में खोंसा हुआ था अऊर उसी तरह चला जाता था. काला गोटी के माथा पर एगो बुंदा बना रहता था, जिसको छूकर पता लगाया जाता था कि कौन गोटी काला है कौन सफेद. हर चाल का हिसाब अपने दिमाग में बईठाकर रखते थे. मजाल है कि कोनो गोटी इधर से उधर कर दिया जाए. हाथ लगाकर पूरा बोर्ड देख लेते थे अऊर कहते थे, “आप  तो हमको अंधा समझ लेते हैं. हमको सब पता है कि आप अपना घोड़ा का जगह बदल दिये हैं.कभी कभी तो संदेह होता था कि बिजय जी को सच्चो देखाई तो नहीं देता है.
.... 
साँवला रंग, मध्यम ऊँचाई, चेहरा पर चेचक का दाग, जिसमें बिजय जी का आँख का रोसनी चला गया,  ब्रेल में लिखा हुआ किताब, एच.एम.टी. का घड़ी, सतरंज का बोर्डकमाल का दुनिया था जिसमें जेतना अंधेरा था उससे जादा रोसनी फैला हुआ था. आज बहुत से लोग अंधा,लंगड़ा, गूँगा, बहरा पर चुटकुला सुनाकर हँसते हैं. मगर कभी रिस्ता बनाकर देखिये. उनपर हँसने का जरूरत भी नहीं है अऊर दया करने का भी नहीं. बस जरूरत है कि उनको अपने जईसा समझें.
हेडमास्टर साहब संस्कृत ब्याकरन में एगो बहुत महत्वपूर्ण सूत्र पढाते थे येनांग विकारः इसका मतलब होता था जिस अंग में विकार हो उसमें करण कारक का तृतिया विभक्ति लगता है.  आज सोचते हैं लगता है कि जिन्नगी में ब्याकरन फिर से लिखने का जरूरत है. जब अंग में बिकार हो तो उसमें षष्ठी बिभक्ति यानि संबंध कारक होना चाहिये.

57 टिप्‍पणियां:

  1. आज सोचते हैं त लगता है कि जिन्नगी में ई ब्याकरन फिर से लिखने का जरूरत है. जब अंग में बिकार हो तो उसमें षष्ठी बिभक्ति यानि संबंध कारक होना चाहिये.
    aapki soch sachmuch hi prasanshneeye hai.pura lekh man ko bandhta hua.

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  2. विजय जी के परिचय के लिए आपको बहुत बहुत आभार और विजय जी को प्रणाम !
    अम्मा को हमारा चरण स्पर्श बोलियेगा !

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  3. chaliye operation accchi tarah ho gaya acchi bat hai ...aur iske madhyam se andhere - ujaale kee dunia ka ek sansmarn le aaye aap...sachmuch aise logon ko aksham samjhna hai nahi chahiye...ek indri yadi kaam karna band karti hai to doosree indri adhik tezi se kam karne lagti hai... yani ek taraf se aksham hua wyakti doosri taraf se aur jyada saksham ho jata hai... aur us sakshamta ko mahsoos karne wale aise jeevat ko pranam hai mera...

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  4. सबसे पहले तो दादीजी के आँखों का ऑपरेसन सही से हो गया, अच्छा लगा सुन के..
    और बाकी तो मैं सच में आश्चर्य में हूँ की कैसे सतरंज खेल लेते थे वो...:)

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  5. माता जी की आँखों का अ‍ॅपरेशन सफल रहा... पढ़कर अच्छा लगा ...
    इस पर पट्टी खोले जाने के समय आपके परिवार का मजाक ...सचमुच घनिष्ठ रिश्तों को बताता है। इस घटना पर आपने फ्लैश-बैक में विजय बाबू से जो मुलाकात आपने करवाई वह बहुत अच्छी लगी।

    और येनांग विकार को तीसरी नहीं बल्कि षष्ठि विभक्ति यानि संबंध विभक्ति होना चाहिए वाली बात दिल को छू गई ।

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  6. माता जी की आँखों का अ‍ॅपरेशन सफल रहा... पढ़कर अच्छा लगा ..

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  7. बिल्कुल सही कहा आपने - षष्ठी विभक्ति लगनी चाहिए...संबंध कारक। सचमुच, आंख वालों से कहीं ज्यादा आत्मीय संबंध बना लेते हैं ये सबसे, चाहे वो व्यक्ति हो, वस्तु हो या दृश्य हो।
    हमारे स्टाफ में एक ऐसे ही मित्र थे, आंख से दिखाई नहीं देता था लेकिन संवेदनशीलता गजब की। किसी आते या जाते व्यक्ति की पदचाप से वे जान जाते थे कि वह कौन व्यक्ति है।

    इस प्रेरक संस्मरण को हम सब के साथ साझा करने के लिए बधाई, सलिल जी।

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  8. आपकी माताजी की आँख का आपरेशन सफल रहा खुशी की बात है.
    विकार पर अपनी दृढ इच्छा-शक्ति से काबू पाना और आगे बढ़ना और लोगों के लिए प्रेरणादायक है कि कभी घबराना नहीं चाहिए.

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  9. दादी जी शीघ्र ही पूर्ण स्वास्थ्य लाभ करें।

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  10. अब व्याकरण का तो ज़्यादा ज्ञान नही है ... आप ठीक ही का रहे होंगे ...
    बाकी आपकी पोस्ट पढ़ कर मज़ा आ गया ... आशा है माता जी ठीक होंगी अब ... हमारा प्रणाम कहें ...

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  11. सलिल भाई ! मैनें कई बार ध्यान दिया है कि ऊपर वाला येनांग विकारः वालों में सामान्य से कहीं अधिक क्षमता दे देता है, हीन इन्द्रिय की भरपाई शेष इन्द्रियों की विलक्षण क्षमता कर देती है ....अब बस षष्ठी विभक्ति लगाने भर की आवश्यकता रह जाती है ....ज़ो शेष दुनिया का काम है .
    आपने तो कदम कुआँ का चक्कर लगवा दिया ....बहुत याद आती है वहां की.
    आभार आपका ....कदम कुआँ ले जाने के लिए

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  12. माताजी कां नैत्रज्योति विकार दूर हुआ, जानकर प्रसन्न्ता हुई।
    हमारी शुभकामनाएं माताजी के लिये।

    कहते है जिनमें एक-आध इन्द्रिय विकार होता है, उनकी छठी इन्द्रिय सक्रीय हो जाती है।पर मैं मानता हूँ यह उनका तीव्र व गहन मगनता के श्रम का अवदान होता है।

    आपके संवेदनापूर्ण आलेख मनमोह लेते है। जब भी पढता हूँ मेरी सम्वेदनाओं की समझ हरीभरी हो जाती है।आभार, यह उपकार है आपका।

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  13. माता जी की आँखों का अ‍ॅपरेशन सफल रहा... पढ़कर अच्छा लगा..

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  14. एकदम सच्चा बात कहे दाऊ! और क्या कमाल का उपमा निकाले "षष्ठि विभक्ति" वाला।
    जिस स्कूल में हमारा प्रारंभिक शिक्षा हुआ था वहाँ एक अटेंडेंट सर थे अनिल सर। ऊ बोल-सुन नहीं सकते थे लेकिन कमाल का बात था कि नर्सरी-केजी के बच्चा सबको बखूबी संभालते थे जो न ठीक से कोइ बात कह पाता है ना अपना परेशानी समझा पाता है। एक बार पिता जी प्रिंसिपल सर से पूछे कि अनिल जी कैसे हैन्डल कर लेते हैं तो सर ने कहा "ऐसा इसलिये है कि दोनों के खुशी या तकलीफ़ के इजहार का तरीका एक ही है।" बच्चे और अनिल सर दोनों के खुशी और दर्द का पता उनके चेहरे से ही होता है सो दोनों एक दूसरे को खूब समझते थे।

    अम्मा जल्दी से फ़िट & फ़ाईन हो जायें,ये दुआ है :)

    नमन।

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  15. हर एक शब्द बहुत ही भावुक/मोहक/संवेदनशील, आभार ऐसा लिखने के लिए।
    टिप्पणी न लिख सकने की अवस्था को क्या कहते हैं?

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  16. सलिल बाबू जरुर कौनो वर्तनी का गलती किये हैं ....हम तो पढ़ के घबराई गए कि ई कौन सब्जेक्ट ले लिए आज का चर्चा का ..
    यौनांग विकार ..मुला ई तो सच्ची येनानाग विकार ही है .....अन्धो की पहले से ही प्रकाशित होती दुनिया पर ई प्रकाश का आभार !
    माता जी का पोस्ट आपरेशनल केयर पर ज्यादा ध्यान दें -दस पंद्रह दिन सिर से पानी डालकर न नहायें -दवाएं नियमित डालें !वे शीघ्र स्वस्थ हों -शुभकामनाएं !

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  17. डरा दिया शुरू में यार ....
    माँ को शुभकामनायें !

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  18. माता जी की आँख का ऑपरेशन कामयाब रहा!
    आपको बधाई!
    सुखद रहा यह संस्मरण!

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  19. बियाकरण नहियो बदलियेगा ना तभियो आप सब के साथ सस्थीये बिभाक्ती लगाते हैं....
    बहुत्ते बढ़िया.
    माताजी का आंख अच्छा हो गया....सो बहुत्ते अच्छा बात है....

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  20. सलिल भाई,आपका एक अलग ही नज़रिया है दुनिया को देखने का.और यही नज़रिया आप के आलेखों को अतिवशिष्ठ बना देता है.और आप की शैली तो है ही अतिवशिष्ठ.खुदा आप की यह नज़र बनाए रखे .आमीन .

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  21. आज सोचते हैं त लगता है कि जिन्नगी में ई ब्याकरन फिर से लिखने का जरूरत है. जब अंग में बिकार हो तो उसमें षष्ठी बिभक्ति यानि संबंध कारक होना चाहिये
    Salil ji,aapne bdi gahari baat kah di.
    Isake aage har tippani choti hai.
    Aapki lekhni ko naman!

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  22. आज कोई मसखरी नहीं।
    मां जी अच्छी हैं, जानकर राहत हुई। दू दिन से बातो नहीं हुआ सो हाल-चाल नेहीं ले पाए थे।
    इस पोस्ट से बहुत कुछ जहां सीखने को मिला वहीं एक अलग तरह की मानसिक शान्ति भी। प्रेरक तो है ही।

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  23. माता जी के स्वास्थ्यलाभ की शुभकामनायें। आज की पोस्ट पर कहने को बहुत कुछ है, लेकिन आज का कमेंट सिर्फ़ माताजी के लिये। आपके परिवार में सब ओवर एक्टिंग करते रहें, यही कामना।

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  24. माँ शीघ्र स्वस्थ्य लाभ करने ...शुभकामनायें !
    आँखों की रौशनी के बिना कितनी रोशन है जिनकी दुनिया, यहाँ तो लोग आँखों के अंधे ही ज्यादा है !

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  25. हमेशा की तरह दिल को छू लेने वाला संस्मरण। इसे पढ़कर सई परांजपे की फिल्म ’स्पर्श’ याद आ गई। इसमे नसीरुद्दीन शाह ऐसे ही एक ब्लाइंड स्कूल के ब्लाइंड प्रिंसीपल बने थे। बहुत बढ़िया फिल्म है और नसीर भाई और शबाना आज़मी जी का अभिनय भी कमाल का है।

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  26. bilkul sahi kaha dadu....na chutkule sunaane ki zarurat hai, na daya karne ki....bas, unhein apne jaisa samjho.....bohot accha laga padhkar....

    hamare school mein bhi, hamare music teacher bilkul netraheen the...par us samay hamare school mein koi bhi aisa musical instrument nahin tha, jise vo expertise ke saath baja nahin sakte the...inka spirit bohot tagda hota hai dadu....kamzori ko taaqat banana koi inse seekhe

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  27. जिन्नगी में ई ब्याकरन फिर से लिखने का जरूरत है. जब अंग में बिकार हो तो उसमें षष्ठी बिभक्ति यानि संबंध कारक होना चाहिये.

    बात माँ के ऑपरेशन से शुरू कर ज़िंदगी की शल्यक्रिया कर दी ...
    विचारणीय पोस्ट है ....माँ अब पूर्ण रूप से स्वस्थ होंगी

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  28. येनांग विकारः -सलिल जी , इन दो शब्दों के माध्यम से आपने बहुत ही अच्छी सीख दी है ............ बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति.

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  29. माता जी के जल्द स्वस्थ होने की कामना है.

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  30. वाह वाह वाह....क्या कहें...कुछ कहने लायक नहीं हैं हम...आँखें नम हैं...कमाल लिखते हैं आप...कमाल.
    नीरज

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  31. अंतिम पैरा ने पूरे पोस्‍ट के विवरण को फिर से, बारीकी से पढ़ने के लिए विवश किया.

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  32. सबसे पहले माता जी की आँखों का सही आपरेशन होने की बधाई | ये बहुत जरुरी है वरना यहाँ मुंबई में नालायक डाक्टरों ने मामूली से मोतिया बिन के आपरेशन में चाची सांस की आँख ख़राब कर दी बाद में उन्हें दान में मिले कार्निया लगवाना पड़ा और आँख जाने का दर्द उनसे ज्यादा कोई नहीं जनता होगा क्योकि उनके इकलौते बेटे को शुरू से आँखों में दोष था वो एक दो फिट दूर से ज्यादा नहीं देख पाते थे और उम्र बढ़ने के साथ ही वो बेचारे अब नहीं देख पाते है उससे दुःख की बात की ये बीमारी उनके बेटे को भी अनुवान्सिक रूप में हो गई | जेठ के बेटे को देखती हु तो दुःख होता है काफी होशियार है किन्तु आँखों में दोष के कारण उसमे आत्मविश्वास नहीं है सभी से घुलमिल नहीं पाता है | अच्छी पोस्ट |

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  33. सलिल जी सचमुच यदि किसी अंग में विकार हो गया हो तो उसमे षष्टि विभक्ति लगनी चाहिए... यही है जीवन का व्याकरण... आपके व्याकरण से जीवन की भाषा कितनी मधुर हो जाएगी इसकी कल्पना से मन मुदित हो जाता है..

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  34. विजय जी से मुलाकात बहुत अच्छी लगी...इन लोगो को किसी सहायता और दया की जरूरत नहीं...जरूरत होती है खुद में से एक समझे जाने की....जिस में लोग अक्सर चूक कर जाते हैं.

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  35. सच ,हम हर बात में चुटकुला ढूंढ़ते है ?और समझते है जीवन में हास्य का कितना महत्व है ?आपके आलेख ने हमारी आंखे खोल दी |
    माँ को प्रणाम |
    आभार

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  36. अम्मा जी का ऑपरेशन अच्छे से हो गया, खुशी की बात है. विजय जी जैसे आत्मविश्वास से ही इंसान कुछ भी कर सकता है. सुन्दर पोस्ट.

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  37. माता जी का आपरेशन सफल हो गया,जानकर खुशी हुई।येनांग विकार के बहाने आपने बहुत कुछ कह दिया।बहुत दिन हो गईल रहे सोचनी हा कि तनी कामेंट देबे के बहाने आप से कुछ बात हो जाई।माता जी के उपर ख्याल राखब।

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  38. माताजी कां नैत्रज्योति विकार दूर हुआ, जानकर प्रसन्न्ता हुई।
    हमारी शुभकामनाएं माताजी के लिये।

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  39. माता जी के सफल आप्रेशन के लिये बधाई। इस पोस्ट के जरिये बहुत अच्छी जानकारी और सार्थक सन्देश मिला है सही मे इन लोगों को केवल प्यार और प्रोत्साहन की जरूरत होती है। शुभकामनायें।

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  40. अब का कहें....

    भावुक कर दिए आप...

    मन चिंतन मोड में धंस गया....

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  41. aap khalis bihari hain. yah to pata chala. vaise bihari kya nhi ban sakta or kahan nahi paaya jata. khasiyat to yah hai galat or sahi har jagah milte hai yatra, tatra, sarvatra. varhal. blog achca hai mata ji ka opretion safal raha ye achhi bbat hai.

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  42. आत्मीय संबंध जरूरी है ,किसी को जानने समझने के लिये

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  43. आज सोचते हैं त लगता है कि जिन्नगी में ई ब्याकरन फिर से लिखने का जरूरत है. जब अंग में बिकार हो तो उसमें षष्ठी बिभक्ति यानि संबंध कारक होना चाहिये.....

    ऐसे लोगों से जुड़कर ही उनकी वेदना और जुझारूपन का पता चलता है जो की कई बार सामान्य व्यक्ति से भी ज्यादा होता है . प्रेरक प्रसंग

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  44. जिंदगी भले ही सुकून से गुजर रही है ,
    पर आज भी मेरा हर पल एक चुनौती है ,
    और सुकून आता है मुझे ,
    उस चुनौती को स्वीकार करने में ,
    सुकून मिलता है मुझे ,
    उस चुनौती को पूरा करने में ,
    शायद इसीलिए ,
    जिंदगी सुकून से गुजर रही है |

    सादर

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  45. yah post aaj anayas hi samne aa gaee. sparsh ka dhyan ayaa . mene ek english kahaani me ek aise school ke baare me padha jisme har bachce ko poora ek din andha, bahra ,goonga ya langada bankar rahna padta hai taki samanya bachchon ko nishakt bachchon ki pareshaniyon ko samjh saken .

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  46. जब अंग में बिकार हो तो उसमें षष्ठी बिभक्ति यानि संबंध कारक होना चाहिये..... सुंदर संदेश , माता जी के ऑपरेशन की बात कहते कहते बहुत सार्थक बात कह दिये :)

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  47. येनांगविकार: - शरीर में जिस अंग के द्वारा ( येन ) विकृति आए या विकार जन्म ले ।
    इसलिये तृतीया विभक्ति ( करण कारक ) लगता है । पादेन खंज: या अक्ष्णा काण:
    ( पैर से लंगड़ा या आँख से काना ) कहकर उस दोष और प्रगट किया जाता है । ये
    उदाहरण आपने भी सुने होंगे ।

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