गुरुवार, 13 मई 2010

खुबसूरत अंधबिस्वास

जमाना चाहे केतना भी एड्भांस हो जाए, अंधबिस्वास खतम नहीं होता है. अऊर अंधबिस्वास भी अजीब अजीब तरह का पालता है लोग जिसका कोनो सिर पैर नहीं होता है. अब बताइए कि दही खाकर काम करने से ऊ काम सफल होता है, त सफलता में दही का हाथ है कि अदमी के मेहनत का! करिया बिलाई रस्ता काट दे त काम बिगड़ जाता है. अऊर कहीं बिलाइये का एक्सीडेण्ट हो जाए त कौन दोसी. घर से निकलते कोई छींक दिया त काम खराब. अऊर काम अच्छा हो गया तब?
अब केतना गिनाया जाए. जेतना समाज, ओतना अंधबिस्वास. कहाँ से सुरू हुआ, अऊर कब से चला आ रहा है ई सब, कोई नहीं जानता है. अब देखिए न, हम जोन अपार्टमेंट में रहते हैं, उसमें फ्लैट नं. 420 का नम्बर मिटा के भाई लोग 421 बना दिया है. अब सोचिए त, नम्बर 420 होने से कहीं अदमी दू नम्बरी हो जाता है का ? बाकी मन का भरम का कोनो ईलाज नहीं.
नम्बर से एगो अऊर बात याद आ गया. होस्पिटल में कभी देखे हैं 13 नम्बर बेड नहीं होता है. अरे भाई तेरह नम्बर का पावर एतना तगड़ा हो गया कि डाक्टर का काबलियत भी हार जाता है! कमाल है!! अब इम्तेहान में रोल नम्बर 13 हो गया,त पढाइए छोड़ कर बईठ थोड़े जाता है अदमी.
अब एगो मजेदार बात बताते हैं..सायद बहुत सा लोग को मालूम होगा. बाकी जो लोग नहीं जानता है उनको बताते हैं. चंडीगढ शहर में बहुत सेक्टर है, लेकिन 13 नम्बर सेक्टर नहीं है. इहो अंधबिस्वास का नतीजा है. लेकिन इसमें भी खूब सुंदर अंधबिस्वास छिपा है. जेतना सेक्टर है, उसका नम्बर एतना हिसाब से बइठाया हुआ है कि आप कोनो आमने सामने वाला दूगो सेक्टर का नम्बर जोड़िए त ऊ 13 का गुणक होगा. जैसे 44 सेक्टर का सामने 34 सेक्टर, दुनो का जोड़ हुआ 44+34=78 और 78= 13X6.
अब ई सब सेक्टर के नम्बर पर लागू होता है. केतना खूबसूरत गणित है...चाहे खूबसूरत अंधबिस्वास. 13 नम्बर सेक्टर नहीं है, मगर सभे सेक्टर के बीच मौजूद है.

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अधिक संख्या में लोग अंक ज्योतिष पर भरोसा करते हैं , कुछ हद तक मैं भी नंबर संयोग को देख कर विस्मय में पद चूका हूँ ! भगवान् जाने माया क्या है आप कुछ और प्रकाश डालें ...रुचिकर रहेगा

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  2. भैया, तब तो हम दुनिया के सबसे अनलकी आदमी हुए , हमरा शादी २६ को हुआ, लड़का १३ को, और हमरा जन्म भी १३ के पहले १२ को!

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  3. का दिन बाछे हो ई लेख लिखने के लिए ........गौर किये हो आज का तारिक है ...... १३ मई !!

    लगे रहो ............... बहुत आगे जाओगे भैया !!

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  4. beautiful post
    an eyeopener one has to think scientifically
    how is it possible

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  5. बहुत बढियां लिखे हैं! मजा का बात है की हम पटना में एक मोहल्ला में रोड नंबर १३ में ही रहते थे. :)

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  6. हा हा!! मन का भरम का कोनो ईलाज नहीं....

    कितनी ब्लिड़िग मे जाते हैं, १३ नम्बर फ्लोर गुम!! :)

    तब १४ ही न १३ कहलाया. :)

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  7. ये सब मन का भ्रम और मन के अन्दर बैठे डर से उपजता है / डर आजकल भ्रष्ट लोगों द्वारा हर वक्त पैदा किया जाता है / सिर्फ एक बात में विश्वास करना चाहिए मृत्यु अटल है और जाको राखे साईया मार सके न कोई / आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा / आप कृपा कर अपना ईमेल और मोबाइल नंबर मुझे ईमेल कर दें /

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  8. मैं तो १३ को ही सबसे शुभ अंक मानता हूँ और तिथियों में १३ मई सबसे शुभ दिन !

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  9. हा हा हा मजेदार पोस्ट था...थोडा बहुत अंधविश्वास तो हम भी कभी कभी मान ही लेते हैं लेकीन क्या करें :P

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  10. ऐसे ही एक रोज़ नानक बाबा ग्राहक को सामान देते हुए गिन रहे थे,..... एक, दो, तीन......ग्यारह,बारह, तेरा..और फिर सब गिनती खत्म हो गयीं. सब "तेरा" हो गया....13की माया अजब गजब है..बिहारी बाबू
    संसार मे 13 गलत होगा परंतु उस लोक का 13...सबसे बड़ा सत्य है.

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  11. स्वर्ग-नर्क का विवरण


    ईश्वर एक है


    तो उसने जब कभी किसी ऋषि के अन्तःकरण पर सत्य प्रकट किया तो उसे जन्म और मृत्यु के विषय में स्पष्ट ज्ञान दिया । जन्म और मृत्यु के बीच की अवधि को हम जीवन के नाम से जानते हैं लेकिन जीवन तो मृत्यु के बाद भी है बल्कि यह कहना ज़्यादा सही होगा कि वास्तव में जीवन तो है ही मृत्यु के बाद । आदमी अपने मन में भोग की जो कामनाएं लिए रहता है वे यहां पूरी कब हो पाती हैं ?


    और जो लोग पूरी करने की कोशिश करते हैं उनके कारण समाज में बहुत सी ख़राबियां फैल जाती हैं । वजह यह नहीं है कि भोग कोई बुरी बात है । सीमाओं के बन्धन में रहते हुए तो भोग की यहां भी अनुमति है और जीवन का व्यापार उसी से चल भी रहा है लेकिन अनन्त भोग के लिए अनन्त भोग की सामथ्र्य और अनन्त काल का जीवन चाहिये और एक ऐसा लोक भी चाहिये जहां वस्तु इच्छा मात्र से ही प्राप्त हो जाये और उसका कोई भी बुरा प्रभाव किसी अन्य पर न पड़ता हो । प्रत्येक ईशवाणी मनुष्य के मन में बसी हुई इस चिर अभिलिषित इच्छा के बारे में ज़रूर बताती है ।


    पवित्र कुरआन में इसका बयान साफ़ साफ़ आया है लेकिन वेदों से भी यह ग़ायब नहीं किया जा सका है बल्कि इनका बयान तो बाइबिल में भी मिलता है ।


    इस बयान का मक़सद सिर्फ़ यह है कि आदमी दुनिया के सुख भोगने के लिए बेईमानी और जुल्म का तरीका अख्ितयार न करे बल्कि ईमानदारी से अपना फ़र्ज़ पूरा करे चाहे इसके लिए उसे प्राप्त सुखों का भी त्याग करना पड़े या फिर मरना ही क्यों न पड़े ?


    क्योंकि अगर वह अपने फ़र्ज़ को पूरा करते हुए मर भी गया तब भी उसका मालिक उसे अमर जीवन और सदा का भोग देगा । यही विश्वास आदमी के लड़खड़ाते क़दमों को सहारा देता है और उसके दिल से दुनिया का लालच और मौत का ख़ौफ़ दूर कर देता है ।


    यत्रानन्दाश्च मोदाश्च मुदः प्रमुद आसते ।


    कामस्य यत्राप्ताः कामास्तत्र माममृतं कृधीनन्द्रायंन्दां परि स्रव ।।


    -ऋग्वेद , 9-113-11


    मुझे उस लोक में अमरता प्रदान कर , जहां मोद , मुद और प्रमुद तीन प्रकार के आनन्द मिलते हैं और जहां सभी चिर अभिलिषित कामनाएं इच्छा होते ही पूर्ण हो जाती हैं ।


    मोद , मुद और प्रमुद ये तीन आनन्द जिनका उल्लेख इस मंत्र में किया गया है संभोग से संबंधित आनन्द हैं और विशेषकर ‘प्रमुद‘ तो वेदों में संभोग के आनन्द के लिए ही आता है । इससे मालूम हुआ कि स्वर्ग में लोगों को पत्नियां भी मिलेंगी । इसका प्रमाण दूसरे वर्णनों से भी मिलता है ।


    भोजा जिग्युः सुरभिं योनिमग्ने भोजा जिग्युर्वध्वंवया सुवासाः ।


    भोजा जिग्युरन्तः पेयं सुराया भोजा जिग्युर्ये अहूताः प्रयन्ति ।


    ऋग्वेद, 10-107-9


    दान करने वालों ने पहले सुखकर स्थल अर्थात स्वर्ग को प्राप्त किया है ।


    फिर अच्छे सुन्दर वस्त्र वाली सुन्दर स्त्रियां और तेज़ शराब के जाम को ।

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  12. अंधविश्वास के प्रति सजग करने के लिए धन्यवाद बिहारी बाबू !!!

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  13. बाबूजी आपने ये लिंक दिया था आज पढ़ा पढ़ कर बहुत अच्छा लगा और मुझे अभी पता चला की चंडीगड़ में तेरा नंबर का सेक्टर ही नहीं है और तो और हॉस्पिटल में तेरा नंबर का बिस्तर भी नहीं होता ये तो मुझे पता ही नहीं था ! वास्तव में अच्छा लगा पढ़ कर और अब ये अनोखी जानकारी में सभी को दूंगी !

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  14. सर ,
    दिल की बात कह दिए आप तो , एक वाकया हम भी बताते हैं -
    १२वीं की परीक्षा में हमरे रोल नं. मा भी १३ का महान अंक आता था , रोल नं. देख के हमार अम्मा के तो हालात ही खराब , उनका लाग कि लड़िकवा पक्का फेल हुई जाई , उन्हें देख के हमराहू हालत खराब | लेकिन सोचे अब का करें , रोल नं. तो बदले से रहा |
    मजबूरी में डबल मेहनत सुरु किये , आखिर लड़ाई भी तो इतनी महान ताकत (अन्धविश्वास) से थी , आखिर जो नतीजा आया वो हमारे पूरे खानदान में किसी का नाहीं आया था |
    तो ई १३ नं. तो हमका कम से कम अपने घर का तो हीरो बना गवा लेकिन उस से जरुरी चीज हमका ये सीखे के मिली कि सबसे ताकतवर विश्वास होता है , अगर हम अपने विश्वास पर विश्वास करेगे तो काम सफल होगा और अगर हम अन्धविश्वास पर विश्वास करेंगे तो भैया ११०% नैया डूबनी तय है |

    सादर

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