मंगलवार, 8 जून 2010

हड़ताल

हमरा बेटी का सिकायत था कि हम रोज एतना फालतू बात (घर का मुर्गी दाल बराबर) लिखते रहते हैं, कभी उसका बारे में नहीं लिखे. उसका गिलहरी जेरी का कहानी याद दिलाने पर बोली कि ऊ तो ट्रेजडी था. हम हँसकर बोले कि ठीक है, कभी मौका मिलेगा त लिखेंगे. अभी पिछलका हफ्ता अपना भाई के पास छोड़ आए थे कि पढाई करेगी. उसका पैदा होने का बाद से पहिला बार एतना दिन अलग रहे थे अपना बेटी से. हमरा सिरीमती जी त चुपचाप बाथरूम में जाकर रो आती थीं, अऊर हम ई लैपटॉप में ओझराने का नाटक करते रह्ते थे.
अईसहीं एक दिन बईठे बईठे एगो कबिता बन गया, त सोचे बेटी को आने पर देखाएंगे अऊर कहेंगे कि तुमरा बारे में भी लिखे हैं हम. एकदम व्यक्तिगत कबिता है, का मालूम कईसा लगेगा आप लोग कोः

कल तक सबकुछ ठीकठाक था घर में मेरे
आज से सब हड़ताल पे हैं, ना जाने क्यूँ कर!

हर कमरे में रोशनी है, पर एक अंधेरा सा पसरा है
सारी चीज़ें दिखती हैं, पर हाथ को हाथ नहीं दिखता है
टीवी भी कमबख़्त ये बंद पड़ा है कब से
मानो ख़ाली डिब्बा रखा हुआ कोने में
स्विच भी सारे दिखते तो हैं ठीक ठाक पर
काम नहीं करते कोई, सब बंद पड़े हैं.
टीवी का रीमोट भी मुझसे खेल रहा है आँख मिचौनी
छिपा पड़ा रहता है सोफे के गद्दे के नीचे एक पल
दूजे पल बिस्तर के पास पड़ा दिखता है.
नए नए थे सारे सेल सब डाऊन हो गए इन घड़ियों के.
सारी घड़ियाँ एक साथ रुक गईं हैं कोई साज़िश करके.
कल की शाम ही झूमा को मैं छोड़ आया था चाचा के घर
अब समझा मैं क्या गुज़रा है कल के बाद से मेरे घर में

कल तक सबकुछ ठीकठाक था घर में मेरे
आज से सब हड़ताल पे हैं क्यूँ, अब समझा मैं!
   (झूमा हमरा बेटी का नाम)

31 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही प्यारी बहुत ही अच्छी कविता है चाचा..
    बहुत अच्छी :) :)
    आप अपनी बेटी के लिए लिखे हैं न..उन्हें बहुत ज्यादा पसंद आएगा...देख लीजियेगा :) :)

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  2. बहुत सटीक लिखे हैं सलिल बाबू। अब तो आप पूरे ब्लागर बन न गए हैं।
    http://udbhavna.blogspot.com/

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  3. दिल की बात दिल तक जरूर जरूर पहुँचेगी | देखिएगा !

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  4. बिटिया घर की रौनक होती है..बिछोह साफ दिख रहा है कविता में! भावनात्मक रचना. जरुरे दिखाईयेगा बिटिया को..ऐसन न बाप अपनी भावना दिखा पायेगा वरना पिता कब अभिव्यक्त हुआ है.

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  5. कल तक सबकुछ ठीकठाक था घर में मेरे
    आज से सब हड़ताल पे हैं क्यूँ, अब समझा मैं!
    बहुत भावपूर्ण रचना !!

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  6. बढ़िया प्रयास कविता लेखन का , शुभकामनायें बिहारी बाबू !

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  7. बहुत ही सुन्दर कविता और भाव है, बेहतरीन!

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  8. बेटी से घर, घर है. वरना मकान !
    झूमा घर आ गयी है तो आपकी मुस्कुराहट भी वापस आयी. झूमा को इस चाचा का भी ढेर सारा प्यार !!

    चैतन्य

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  9. सारी घड़ियाँ एक साथ रुक गईं हैं कोई साज़िश करके
    इस एक लाइन में आप अपना पूरा दर्द उंडेल कर रख दिए हैं...बहुत भावुक कर दिया आपकी कविता ने...कुछ और लिख नहीं पाएंगे..
    नीरज

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  10. बहुत भावनात्मक कर दिए आप तो हमको. मेरे पापा भी जब हमको सी-ऑफ करने आते हैं तो उनके गले से एक आवाज़ नहीं निकलती है....गला रुंध जाता है उनका.
    राजीव ओझा जी ने अपने ब्लॉग पे बेटियों के बारे में लिखा था, जो मुझे छू गया...वो बाँट रही हूँ-

    "कभी तितलियों सी, कभी नटखट गुडिय़ों सी, कभी छुईमुई की पत्तियों सी तो कभी शैतान दोस्त और कभी गंभीर स्त्रियों सी लगती हैं बेटियां। परिवार का स्पंदन और रिश्तों का बंधन होती हैं बेटियां। मुझे न जाने क्यों अच्छी लगती हैं बेटियां। लोगों को बोझ लगती होंगी, मुझे तो भीनी- भीनी सुगंध सी लगती हैं बेटियां।"

    उनके ब्लॉग का लिंक - http://rajubindas.blogspot.com/search/label/%E0%A4%90%E0%A4%B8%E0%A5%80%20%E0%A4%B9%E0%A5%80%20%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%80%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82%20%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82

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  11. salil jeebetiya to phool samaan hai hamare angna kee par mahkatee doosara aangan hee hai.ye hee parampara hai.........abhee to bhavishy banane padne gaee hai fir ...hum swayam use vidaa karne kee tak me rahne lagte hai........maine bhee betee par poem likhee thee kabhee samay mile to padiyega.........

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  12. isee liye sochta hun ..vo kitane abhage hain jinke ghar nahi hoti hain betiyan

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  13. बड़ा सिकायत है जी आप से ...एक कविता जो सबके मन को छूने के छमता रखती है उसे आप अपनी व्यक्तिगत बता रहे है ....नहीं जी नहीं ये तो सरासर नाइंसाफी है

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  14. एक बहुत ही भावुक कविता...अति सुंदर शब्दों में गूँथी हुई

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  15. bahut bhavuk ho kar likhi gayiu kavita hai ...sach me kuch log aise hote hain jinke jane se lagta hai ghar chala gaya...

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  16. is blog ki sabse badi khasiyat iski bhasha hai ... :)... mere liye to delhi me kal ke mausam sa ho gaya ye blog...

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  17. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता! बेहद पसंद आया!

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  18. hamra dunno ankh dab daba gaya post padh ke.e pira samaj sakte hai.
    guddi

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  19. का बात है जी...
    बिटिया से बिछडऩे के बाद घर के सूनेपन को खूब शब्द दिए। बहुत अकेलापन हो जाता है बेटी के घर से जाने के बाद... हमने महसूस किया है.. अपनी बहिन की शादी के बाद।

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  20. @Guddi:
    आँख को डबडबा जाने दीजिए,बाकी लोर बहने मत दीजिएगा...बेटी के बिदाई के लिए बचा कर रखिए.

    @lokendra singh:
    ई हमरा संस्कृति का हिस्सा है. आप बहिन को बेटी के जईसा समझ रहे हैं...अऊर बंगाल में बेटी को माँ कहते हैं...

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  21. aasoo koi paisa hai jo bacha ke rakhe,banker hai na isiliye e kah baithe.Vidai me to aasoo apne aap bahte rahta hai ou pata bhi nahi chal pata hai.
    guddi

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  22. बहुत सुंदर और प्रभावशाली
    सुंदर रचना के लिए बधाई

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  23. कल की शाम ही झूमा को मैं छोड़ आया था चाचा के घर
    अब समझा मैं क्या गुज़रा है कल के बाद से मेरे घर में

    बेटियाँ होती ही ऐसी हैं ... इनके बिना सब सूना सूना होता है .. हास्य में भी संवेदनाएँ भरपूर हैं ... लाजवाब ...

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  24. उम्मीद है अभी तक दीदी को ये कविता मिल चुकी होगी और विश्वास है कि उन्हें ये बहुत पसंद आयी होगी |

    'टीवी भी कमबख़्त ये बंद पड़ा है कब से
    मानो ख़ाली डिब्बा रखा हुआ कोने में'

    'सारी घड़ियाँ एक साथ रुक गईं हैं कोई साज़िश करके'
    बहुत साधारण सी दिखने वाली बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं |

    सादर

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  25. सच में बिटिया के चहल पहल से घर घर जैसा लगता है ! उसके बिना
    रहना कल्पना भी असह्य लगतीं है मुझे तो, बहुत सुन्दर बिटिया को बहुत पसंद आयी होगी रचना :)

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