गुरुवार, 9 सितंबर 2010

देवदूत????????

एगो बच्चा. पाँच साल का. माँ के गोदी में, डॉक्टर के केबिन में. डॉक्टर जइसहीं बच्चा को स्टेथस्कोप लगाने चले कि ऊ बच्चा आला पकड़ लिया अऊर खींचकर अपना हाथ में ले लिया.मोटा ताजा तंदरुस्त बच्चा के हाथ से जब उसकी माँ आला छुड़ाने लगी,त बच्चा खूब जोर जोर से रोने लगा. एतना जोर से कि उसका पूरा देह काँप रहा था अऊर मुँह लाल हो गया था.आवाज एतना जोर कि आसपास का पूरा इस्टाफ जमा हो गया.सब लोग बच्चा के हाथ से स्टेथस्कोप छीनने लगा अऊर बच्चा के माँ को डाँटने लगा. माए बेचारी अपने परेसान. मगर ओही घड़ी डॉक्टर साहब सब लोग को डाँट कर बोले, “आपलोग बच्चे को छोड़ दीजिए और दूसरा स्टेथस्कोप लेते आइए.” बच्चा चुप हो गया. तब डॉक्टर बच्चा को देखने के बाद बोले, “अब ये मुझको दे दो, बाकी लोगोंको भी देखना है ना.” उनके आवाज में जादू था. बच्चा समझा चाहे नहीं, मगर चुप हो गया अऊर आला पकड़ा दिया.

डॉक्टर साहब चुपचाप पर्चा पर दवाई लिखने लगे. लगबे नहीं किया कि अभी दू मिनिट पहिले एतना बड़ा तूफान आया था ई कमरा में.अगिला पेसेन्ट आया अऊर ऊ औरत अपना बच्चा को लेकर डॉक्टर साहब को धन्यवाद देकर बाहर निकल गई. ऊ गोलमटोल, सुंदर तंदरुस्त बच्चा का नाम था मून. चाँद सा सुंदर था, एही से उसका ई नाम रखाया था, हमरा संझला भाई.

++++
एगो पंदरह साल की बच्ची, हस्पताल के आई.सी.यू. में आँख बंद किए पड़ी है. सुतल अऊर बेहोस आदमी के साथ सबसे बड़ा दिक्कत एही है कि उसका तकलीफ का अंदाजा नहीं लगता है. सुंदर गोल चेहरा अऊर गोरा रंग... देखने से लगता था कि कोनो गुड़िया सुतल है बेड पर. का मालूम केतना तार अऊर एलेक्ट्रोड उसके देह में लगा हुआ है.सामने मॉनिटर पर लोग बाहर सीसा से देखकर एही अंदाजा लगाने का कोसिस कर रहा है कि ऊ केतना खतरा से बाहर है अऊर केतना सीरियस है.

अचानक मॉनिटर का सकल बिगड़ने लगता है अऊर ग्राफ सब सीधा लाइन में चलने लगता है, नब्ज देखाने वाला मसीन में भी नम्बर कम होने लगता है. सबको एही लगता है कि पाँच साल से जो दिन का इंतज़ार सब लोग कर रहा था, ऊ दिन आ गया है. लेकिन आदमी एतना आसानी से हार कहाँ मानता है, अऊर खास कर तब जब जिन्न्गी अऊर मौत का सवाल हो.

सब लोग भागा डॉक्टर को देखने. सुबह का नौ बज रहा था, अऊर सीनियर डॉक्टर को आठ बजे आना था… जूनियर डॉक्टर से जो बना सो किया. अऊर देखते देखते सबके सामने ऊ बच्ची कभी नहीं खतम होने वाला नींद में सो गई. डॉक्टर साहब एगारह बजे आए. अऊर सब लोग जब गोस्सा अऊर दुःख में उनको ओलाहना देने लगा, त ऊ लास जब्त कर लिए. बोले कि सब आदमी को पुलिस के हवाले करेंगे, हंगामा करने के कारन अऊर लास नहीं मिलेगा.

खैर घंटों बाद लास मिला तब जाकर माँ बाप अऊर रिस्तेदार लोग का रोलाई छूटा. सबको पता था कि इस बच्ची का एतने दिन का जिन्नगी लिखा है, मगर ई जानने से दुःख कम त नहिंए होता है. ऊ बचिया हृषिकेस मुखर्जी का मिली नहीं थी, उसका नाम था जिनी.. हमरे चाचा जी का सबसे छोटी बेटी.

दुनो घटना पटना के मेडिकल कॉलेज हस्पताल का है. हमरे नोएडा में भी एगो डॉक्टर साहब हैं. काली मंदिर के ट्रस्ट के क्लिनिक में मरीज देखते हैं, मुफ्त. बीमार पड़ने पर जब भी उनके पास हम जाते हैं, तो पहिले पैर छूते हैं, अऊर जब ऊ अपना हाथ उठाकर आसिर्बाद देते हैं, त चार आना बीमारी ओही घड़ी गायब हो जाता है. अऊर जब बीमारी के कारन को लेकर डाँट लगाते हैं, त आठ आना दूर हो जाता है बीमारी.बाकी में से चार आना उनका बताया हुआ परहेज से अऊर खाली चार आना दवाई असर करता है.

अगर सच्चो भगवान आदमी को बनाया है, त जरूर डॉक्टर के रूप में, ऊ अपना दूत बहाल किया होगा कि उसके काम में कोनो गड़बड़ रह जाए, त ई लोग ठीक कर दे. लेकिन भले बिस्नु भगवान पालनहार हों, आजकल ई दूत लोग त लछमी जी का बात मानते हैं.


पुनश्चःई घटना याद करने का जरूरत नहीं पड़ता अगर दिव्या बहिन ई सवाल नहीं उठाती कि “आप डॉक्टर हैं या कसाई” अऊर भाई कुमार राधारमण नहीं देखाते डॉक्टरी का दूगो रूप, चिकित्सक और सम्वेदना अऊर जयपुर के डॉक्टर के चमत्कार के बारे में.

50 टिप्‍पणियां:

  1. क्या कहे ..... रोज़ देख ही रहे है कभी कहीं कभी कहीं डाक्टरों की हड़ताल .... और बेचारे मरीज बेहाल !

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  2. देवदूत कम अब तो यह यमदूत ज्यादा नज़र आते है !

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  3. बचवा आझो बदमाश है
    बाकि जिन्नी को याद करके आझो पूरा बदन सिहर जाता है कहे की उ बचिया हमरे ही गोद में आखरी साँस ली थी. जाने के पहले हमरे ही उप्पर उलटी की थी भगवन कसम उ घडी उलटी से तनिको घिन नहीं बरा था.
    डॉक्टर के बारे में इ बात हमसे जयादा कोई नहीं समझ सकता है क्योंकि उसी के बदौलत शायद हम इस दुनिया में है.
    मून (ईद वाला नहीं मोबाइल के दस नंबर मिलाये दिख जायेगा )
    ईद मुबारक

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  4. क्या कहें हम? हाँ आपका कमेन्ट दिव्या जी के ब्लॉग पे पढ़ा था..,पहला पैराग्राफ पढ़ के ही लग गया की ये पोस्ट उसी कमेन्ट का विस्तार है..

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  5. वैसे तो सभी लोग इंसान होते हैं डॉ भी पर कुछ पेशे जैसे टीचर और डॉ. होने से कुछ मौलिक जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं ऐसा मेरा मानना है.पर आजकल तो हाल ही बुरा है किडनी से लेकर आँख तक बिक जाती है और मरीज़ को पता ही नहीं चलता.

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  6. .
    भाई सलिल,
    आपके चाचा जी की बेटी के साथ जो हुआ , वो बहुत दुखद घटना है। ऐसा बहुत से मासूमों के साथ हो रहा है। डाक्टर्स में बढती असंवेदनशीलता निंदनीय है । डाक्टर में संवेदनशीलता के बहुत से अपवाद भी हैं। कुछ डाक्टर पैसे को ही धर्म समझते हैं, अपने गुरूर में रहते हैं, देर से पहुँचने के कारण, मरीजों को होने वाली तकलीफों और दुःख को नहीं समझते। ऐसे चिकित्सक निंदनीय हैं। इश्वर उन्हें उनके कु-कृत्यों का बदला अवश्य देगा।

    समस्त चिकित्सक समुदाय की तरफ से आपकी गुनाहगार हूँ सलिल भाई। हो सके तो माफ़ कर दीजियेगा।
    .

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  7. सभी लोग निस्वार्थ रूप से डॉक्टर पर भरोसा करते हैं पर आजका ज़माना इतना ख़राब हो गया है की उस भरोसे का नाजायज़ फ़ायदा उठाया जाता है और लोगों को बेवक़ूफ़ बनाया जाता है और इस बात की उन्हें भनक भी नहीं पड़ती की उनके शारीर का एक अंग बिक चुका है! बहुत दुःख और अफ़सोस होता है!

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  8. डा० का पेशा ऐसा है की लोग उनमें भगवान को देखते हैं ...

    अपवाद हर जगह हैं ..हाँ यह ज़रूर है की आज पैसे के पीछे लोग ज्यादा भागते हैं और अपने पेशे से न्याय नहीं करते ...पैसा कमाने की चाह में वो सारे टैस्ट भी करा दिए जाते हैं जिनकी ज़रूरत नहीं होती ...यहाँ तक की मानव अंगों का व्यापार तक करते हैं ...

    पर फिर भी जब कोई बीमार होता है तो सारी उम्मीद डा० से ही की जाती है ...आपने मार्मिक घटना का ज़िक्र किया ...जब ऐसा अपनों के साथ होता है तभी एहसास होता है ..

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  9. दवाओं के प्रेस्क्रिप्शन के बारे में भी कहना होगा... मेडरेप जो पैसे देकर जाते हैं उनकी दवाएँ प्रेस्क्राईब करना… कितने डोक्टर आजकल सल्फा ड्रग्स से ऐलर्जी के बारे में पूछते हैं पेशेंट से?? कितने ये सोचते हैं या बताते हैं कि इसके कॉन्ट्रा इंडिकेशंस क्या क्या हैं?? कितनों ने पूछा होगा कि पेशेंट कौन सी दवा पहले से ले रहा है और उनकी दवा से ड्रग इण्टरैक्शन का क्या असर होगा..??
    लेकिन ये तो व्यापार ही नहीं, रैकेट हो गया है.. एक एसिटाइल सैलिसाइलिक ऐसिड पता नहीं कितने ब्राण्ड नेम से बिकती है..अहमदाबाद जाकर गोलियाँ खरीदो और उनको अपने ने रैपर में डालकर किसी डॉक्टर को पकड़ो और पैसे देकर लिखवाते रहो... एकदम सुनियोजित रैकेट!! बस उम्मीद की एक किरण यही है कि सारे डॉक्टर ऐसे नहीं...

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  10. बहुत अफ़सोसनाक घटना. लेकिन अब ये नई बात नहीं रह गई. बहुत कम ऐसे डॉक्टर है, जो अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं.

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  11. ई ऐसन बिसय हय की सबके पास अच्छा बुरा कहे के कुछ न कुछ त रहेगा ही।
    लेकिन अंत में डाकटर त सलिल बाबू भगबाने हैं।
    अब ई दोसर बात है कि सगीना माहतो के कहे के परता है ऊपर बाला दुखियो के नाही सुनता रे।

    आंच पर संबंध विस्‍तर हो गए हैं, “मनोज” पर, अरुण राय की कविता “गीली चीनी” की समीक्षा,...!

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  12. सलिल भाई, हम खुद भ्रष्ट होते जा रहे हैं, आखिर समाज भी तो हमसे ही बनता है. जब बड़ी-बड़ी रिश्वत देकर दाखिला होगा तो डॉक्टर बनने के बाद कमी की ही ज्यादा चिंता होगी ना?

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  13. "हमरे नोएडा में भी एगो डॉक्टर साहब हैं. काली मंदिर के ट्रस्ट के क्लिनिक में मरीज देखते हैं, मुफ्त. बीमार पड़ने पर जब भी उनके पास हम जाते हैं, तो पहिले पैर छूते हैं, अऊर जब ऊ अपना हाथ उठाकर आसिर्बाद देते हैं, त चार आना बीमारी ओही घड़ी गायब हो जाता है."

    यही वजह थी सर जी कि क्यों डाक्टर को लोगो ने भगवान् का अक्स बताया ! मगर अफोसोस ऐसे अक्स मिलते कम ही है ! सारा खेल पैसे ने बिगाड़ दिया !

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  14. मूल्यों का क्षरण हर ओर है तो चिकित्सक से बहुत उम्मीद किस मुहं से करें ?

    बज़ारवाद का जो इंजेकशन इस देश को लगाया गया है उसके नशे में तो अब सब मदमस्त होकर झूमेंगें ही!

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  15. क्या कहें...??हिल गए हैं आपकी पोस्ट से...डाक्टर भगवान भी है और यमराज भी...कब कौनसे रूप में मिले कहना मुश्किल है...या कहें आपकी तकदीर पर है...

    नीरज

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  16. डाक्टर लोग जो हिपोक्रेटिक ओथ लेते हैं वो क्या वास्तव में हिपोक्रसी है? क्या ऐसी ओथ होनी चाहिए?...मैं तो डॉक्टर को एक मेकेनिक की तरह देखता हूँ, फर्क बस इतना है की मेकेनिक मशीन सुधरता है, डॉक्टर शरीर. अगर डॉक्टर को देवता के झाड पर चढाओगे तो उसे शैतान के गर्क में भी गिरना पड़ेगा. ....संवेदनशील व्यवहार सभी पेशों में सोने पर सुहागे का काम करता है.... यही बहस शिक्षकीय पेशे में भी आम है! आपने डॉक्टर डॉक्टर के बढ़िया भेद दिखाए!

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  17. डॉक्टर भी आदमी है, उसमे भी ज्ञान और कौशल के साथ साथ त्रुटि और अकौशल भी होता है, जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड सकता है, पड़ता ही है . पर यह जान बूझ कर की गयी की कर्तव्य की अवहेलना से भिन्न है, पहले के उपाय के रूप में हमें खुद को किसी एक डॉक्टर के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए (यह मानते हुए की इसमें व्यावहारिक दिक्कते हो सकती हैं ) . दूसरे के सन्दर्भ में समाज द्वारा डॉक्टर की जवाबदेही तय की जानी चाहिए या जनता द्वारा सक्रिय निगरानी की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए ...डॉक्टर को भगवान बनाना शायद रोग का इलाज नहीं है.

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  18. सलिल भाई हम सबकी मुश्किल यह है कि हम जब सोचना शुरू करते हैं तो बस एक ही पक्ष को सोचते जाते हैं। आपने दो उदाहरण दिए दोनों अलग अलग हैं।
    हम सबको यह सोचना चाहिए कि डाक्‍टर भी आखिर हममें से ही कोई बनता है। आसमान में से नहीं उतरता । उसे संस्‍कार कहां से मिलते हैं। परिवार से समाज से । हम केवल डॉक्‍टर की बात ही क्‍यों करते हैं। शिक्षक,पुलिस,रेल कर्मचारी,सचिवालय के कर्मसारी,राज्‍यपरिवहन,आटो वाला टैक्‍सी वाला,सब जगह तो सब तरह के लोग हैं। इसलिए भावावेश में नहीं तर्क सम्‍मत बात करनी चाहिए।
    और सबसे पहले तो हम अपने गिरेंबां में झांककर देख लें। हम जिस पेशे में, जिस विभाग में हैं क्‍या वह काम ठीक से कर रहें हैं। माफ करें थोड़ी तीखी बात हो गई है। पर लगता है भाई लोग लठ्ठ लेकर बस पीटने लगते हैं वहां सांप हो या न हो।

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  19. ई सब देख सुन के आत्मा हिल जाता है. बाजारवाद के दौर में डाक्टर लोगन के कुछ करनी पर क्या कहें.
    हां, यह बात तो सही है डाक्टर भगवान् के रूप होते हैं. इस पोस्ट के मार्फ़त अररिया में एक कुशल बाल विशेषज्ञ का स्नेह भरा आचरण याद आ गया.

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  20. क्या कहें भाई... हर तरह के डाग्धर हैं दुनिया मा... कोई बच्चे को भी मना लेता है कोई पूरे परिवार को रुला देता है..

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  21. समाज में गैर जिम्मेदार और संवेदनहीन लोगों की बढ़ती संख्या ,चिंताजनक है ।

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  22. @ राजेश उत्साहीः
    बड़े भाई आपका बात त कभी तीखा होबे नहीं करता है... सच्चा होता है इसलिए कड़वा लगता है… हम जानकर अढाई उदाहरन दिये हैं... इसमें एगो उदाहरन अगर बिकृत पक्ष देखाता है, त डेढ़ उदाहरन उसका दैबिक पक्ष भी देखाता है... हमरी बहन का मृत्यु दुःखद था अऊर अवश्यम्भाबी भी. हाँ! डॉक्टर का ब्यवहार आदमीयत के लिहाज से अमानबीय था, जिसका अफसोस है आज तक.. ऊ अगर आठ बजे भी आ जाता त जान नहीं बचने वाला था. मगर तीन घण्टा देरी से आकर जो ड्रामा किया ऊ निंदनीय था, खासकर तब जबकि ऊएगो मानबीय पेसा से सम्बंधित था.
    अऊर हमरा भाई मून त अपने टिप्पनी में लिखबे किया है कि आज ऊ अगर जिंदा है त सिर्फ ऊ डॉक्टर साहब के ईलाज अऊर उनका सहनसीलता के कारन...एक बार जिस समय ऊ डॉक्टर साहब हमरे भाई को देख रहे थे, उनको मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ था, मगर जब तक ऊ अपना सब पेशेंट को नहीं देख लिये, नहीं गए अपना पत्नी को देखने. पटना के नामी शिशु बिसेसज्ञ थे (अब जीबित नहीं) मगर भगवान उनको बेऔलाद रखा.
    ई पोस्ट चुँकि दूगो अलग अलग पोस्ट से प्रभाबित होकर.. या कहिए ब्यथित होकर लिखा गया था (जिसका जिकिर नोट में है) इसलिए सिर्फ इसी पेसा के बारे में है.. अऊर दिल को चोट इसलिए पहुँचाता है कि बाकी जेतना पेसा के बारे में आप बोले हैं उसके साथ जिन्नगी अऊर मौत का प्रस्न नहीं जुड़ा हुआ है. फिर भी हमरा कोसिस रहा है लेखन में कि कहीं से भी मानबता अऊर सहृदयता के इस पेसा को ठेस नहीं पहुँचे. मगर ई पेसा का कुछ सच ओतना ही कड़वा है जेतना आपका सच्चा बात!
    सलिल

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  23. क्या कहें …………कही देवदूत है तो कही यमदूत्।

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  24. 1.बाल मनोविज्ञान यही कहता है कि अगर बच्चे की कोई जिद छुड़वानी हो तो कोई समतुल्य विकल्प रखिए। मसलन,अंगूठा चूसने वाले बच्चे की ऊंगली आप लाख बार मुंह से निकालें,वह फिर डाल लेगा। ऐसी स्थिति में,उसके हाथ में कुछ पकड़ाने से अंगूठा चूसना अपने आप रुक जाता है।
    2. मुझे लगता है कि न सिर्फ रोगी के परिजन, बल्कि हर डाक्टर भी यही चाहता है कि रोगी बच जाए। डाक्टर रोग की असलियत जानता है इसलिए उसका रूख कई बार अनमना सा लगता है। चिकित्सा जगत की प्रगति ने अपेक्षाएं बढ़ा ही हैं और डाक्टरों का जीवन काफी असहज भी किया है। परिजनों की व्याकुलता जीवन के प्रति जीजिविषा की परिचायक है।

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  25. हर डाक्टर देव दूत नही है और सभी यमदूत नहीं है फिर भारत मे और कौन किसी की जान के साथ नही खेल रहा ये मिलावट करने वाले इनसे भी अधिक यमदूत हैं। मैं यहाँ डाक्टरों की तरफदारी नही कर रही मगर कई बार वो निर्दोश भी होते हैं। पूरी जमात को एक ही रस्से से नही बान्धना चाहिये जो अच्छा काम कर रहे हैं वो निरुत्साहित होते हैं। धन्यवाद।

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  26. बड़े बड़े नमी अस्पतालों में ऐसे दुखद वाकये होते है तो मन क्षुब्ध हो जाता है |और ये भी उतना ही सच है की जब तक हमारे साथ नहीं गुजरे हम किसी की पीड़ा नहीं समझ सकते |डाक्टर लोग भी यंत्र समान हो गये है और अधिकतर ऐसा होता है की मुख्य डाक्टर तो आदेश देकर चले जातेहै और उनके बाद का स्टाफ कितना जागरूक होता है ये भी विचारणीय है |दोनों घटनाओ में साफ है की दावा के साथ व्यवहार का अधिक महत्व है |

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  27. सलिल जी !!! मैं आपके अनुभवों के प्रस्तुत करने के ढ़ग से अभिभूत हूँ । निश्चित ही आप संवेदनाओं के मर्म छूने वाले विशेषज्ञ हैं और लोगों को उनके सरोकारों से जोड़ने वाले कलाविद भी । बहुत -बहुत आभार !!!

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  28. सलिल जी ,आपकी अभिव्यक्ति में जो अपनापन है , सहजता में भी जो अनूठापन है वह इसे विशिष्ट बनाता है ।

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  29. " आजकल ई दूत लोग त लछमी जी का बात मानते हैं."

    EHE BAAT SAHI BA AAJKAL KE DOCTER LOG KHATIR. DEVDUT T PURAN BAAT HO GAEEL BA.

    SABHE KEHU AAJ KE DOCTER LOG SE PARESAN BA.

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  30. @Dipu singh:
    दीपू जी,एताना गोस्सा कएल ठीक नइखे...सब पेसा के मजबूरी होला अऊर हमनीं के एक्स्पेक्टेसन ढेर हो जाला...सब तकलीफ के जड़ ऊहे बा...डाक्टरो लोग त मनई मानुस बाड़न स...तनी ऊँच नीच हो जा ला..

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  31. Hamara mashtishk ek daiviy karishma hee hai...........
    TIL KA TAAD AUR JAROORAT PADNE PAR TAAD KA TIL BANA DETA HAI .
    Varna insaan ke liye jeena hee mushkil ho jae .khaas tour par samvedansheel vyktitv ke liye .

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  32. Parnaam Saliljee
    Appke dekha dekhi main humhoon blog ki duniya main kadam rakh diye hain
    I read few of your blogs ,& specially this one ekdum rongta khada kar dene wala satya likhte hain hain

    Prabhu aaj ke yug main "Laksmi Jee" ka bol bala hain , Doctor saheb bhi last main insaan nikalte hain , bus hum logon bhram hain prabhu prabhu karte rehte hain

    aap apna
    sanjay sharma

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  33. आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !

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  34. आपने आंखे नम कर दीं। वैसे आज ही मैं एक डॉक्टर से मिला। वे बहुत भले इंसान लगे। बहुत काबिल डॉक्टर हैं। समाज के लिए सदैव चिंतनशील तो रहते ही हैं साथ ही काम भी करते रहते हैं। आज उन्होंने कहा कि शासन ने हमारी पढ़ाई पर कई लाख रुपए खर्च किए हैं और वो रुपए आम जनता से ही सरकार के पास पहुंचे थे। तो हमारा कर्तव्य बनता है कि उस समाज के लिए हम कुछ करें जिसके हम ऋणी हैं।
    अभी मध्यप्रदेश में जूनियर डॉक्टर्स ने हड़ताल की थी, वे गांव में सेवाएं देने के लिए राजी नहीं थे। इन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि गांव के बंधु क्या बीमारी से मर जाने के लिए हैं। डॉक्टरी किस काम की कि अन्नदाता की सेवा और रक्षा ही नहीं कर सकती। उन्होंने कभी नहीं सोचा की इसी तरह अगर अन्नदाता हड़ताल कर दे और कह दे हम अपना अनाज डॉक्टर्स या अन्य शहरवासियों को नहीं बेचेंगे जो हमें हेय की दृष्टि से देखते हैं। तब क्या स्थिति होगी आप सहज सोच सकते हैं।

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  35. salil sir sunle bani ki sarkar kee or se ego rule banal ha ki ab medical ka padhai kare wala ladka lacdki log aapab practice wactice chalu kaila se pahile gaon me internship karihe...lekin gaon ka naame sun ke ii laika logan ka naak bhaunh sikude lagela...iho paise ka khel ha....khair ekgo dugo badhiya chikitsak logan se hmaro bhent ba..lekin u sab bachpan ka yaad ha..ab ta kehun na laukela aisan ....
    jvalant mudda uthaile bani aaap ...

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  36. सलील जी
    दिव्या जी की पोस्ट पर कुछ लंबी टिप्पणियां की हैं। उसपर पोस्ट भी लिखने जा रहा था। पर कुछ समस्या में फंस गया। उस पोस्ट पर मैने हकीकत बयां की है। पर कई लोग झगड़े के लिए तैयार लगते हैं। मूल मुद्दे एकदम दुरुस्त है। ताली एक हाथ से नहीं बचती। ये ठीक है। पर महानगरों में डॉक्टर पैसे के पीछे ही भाग रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं। व्यक्तिगत तौर पर डॉक्टरों से 75 फीसदी अच्छा ही रिस्पांस मिला है। पर पैसे की होड़ में भागते कितने डॉक्टर बताउं। जब देश की राजधानी में सड़कों पर अस्पताल में इलाज कर देने से मना कर देने पर मरीज की मौत हो जाती है तो कैसे उनकी इज्जत की जाए। मेरा अनुभव समाजिक अनुभव होता है। अधिकारिक तौर पर नहीं, व्यक्तिगत तौर पर समाजिक कार्य में सलंग्न रहने के कारण हर तरह के कड़वे अनुभव देखे हैं लोगो के दर्द साझा किए हैं। पर क्या करें मूल्यों में गिरावट हर क्षेत्र में इतनी ज्यादा आ चुकी है कि सख्ती के बिना कुछ नहीं होने वाला....

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  37. दुनिया में हर तरह के लोग है ऐसे ही हर तरह को सोच रखने वाले डाक्टर भी हैं .... फ़र्क बस इतना है की डाक्टर के ऐसा करने से कभी कभी इतना नुकसान हो सकता है की भरपाई नही हो सकती ... वैसे जो लोग बंद या हड़ताल करते हैं उनके चलते भी कई बार ऐसे नुकसान हो जाते हैं पर वो सीधे नही होते इसलिए उनका दोष नही माना जाता ....
    दरअसल संवेदनहीन हो गये हैं सब ... सरकार (एड्मिनिस्ट्रेशन) मोटी चमडी की हो गयी है ...

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  38. बहुत ही संवेदनशील पोस्ट है...यही कह सकते हैं कि डॉक्टर बनने का निर्णय लेने से पहले ही उन्हें यह बात मन में बिठा लेनी चाहिए कि उन्हें आम लोगों से ज्यादा व्यक्तिगत कुर्बानियाँ देनी पड़ेंगी. उनका पेशा ही ऐसा है कि उनके कारगर हाथों में किसी की जीवन और मृत्यु होती है...ऐसे में उनसे कुछ ज्यादा अपेक्षाएं होती हैं. और अगर वे अपना कार्य पूर्ण समर्पण भाव से करते हैं तो उन्हें भगवान तक का दर्जा देने समाज नहीं हिचकिचाता.

    पर आजकल पूर्ण समर्पण की भावना कम ही देखने को मिलती है और दिनोदिन डॉक्टर संवेदनहीन होते जा रहें हैं.

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  39. arun c roy की टिप्पणीः
    सलिल जी नमस्कार ! क्षमा चाहता हू कि देर से आपके ब्लॉग पर आया.. छोटी छोटी बातों से कितनी बड़ी बाद समझा देते हैं आप.. अभी डोक्टरों के मुद्दे पर ही कितनी सहजता से दोनों पक्षों को आपने रख दिया है.. हर पेशे में बदलाव आया है ऐसे में डॉक्टर पेशा अछूता नहीं रहा.. लेकिन अपवाद हर जगह हैं.. हमारे अनुभव भी दोनों तरह के हैं.. कई बार डॉक्टर भगवान् के रूप में आये हैं तो कई बार उनकी गलती से नुक्सान भी हुआ है.. जीवन के हिस्से के रूप में इसे लेने की आवशकता है.. वैसे राजेश उत्साही जी को आपने बहुत सटीक उत्तर दिया है.. आपके मार्गदर्शन की अपेक्षा में..

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  40. प्रेरक संस्मरण।
    भांति-भांति के लोगन से भरी पड़ी है ई दुनियाँ।
    डाक्टर से हम अधिक उम्मीद लगा बैठते हैं जब कि वे भी हमारे ही बीच से आते हैं। कोई बुरा तो कोई अच्छा।

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  41. अच्छा किया बाबूजी आज आपने मुझे मेल की वर्ना में ये सब शायद रह जाता वैसे इस सब को पढने से छोड़ने की उमीद कम ही थी मुझे अपने आप से खैर, आपने जो डॉक्टर्स के बारे में लिखा है वो सच है आज वास्तव में इन लोगो ने अपने पेशे को एक बिजनिस बना लिया है पैसा कमाने का इन्हें कोई फर्क नहीं पढता की कोई मरे या जीए आज ही कुछ न्यूज़ चैनल पर दो केस देखे एक जिसमे खसरे की टिके लगने से दो बच्चो की मौत हो गयी और दूसरा जिसमे एक युवक क जहां पहले मृत घोषित किया फिर आईसीयू में रखा और फिर से मृत घोषित किया ये है आज के इन डॉक्टर्स का हाल ! आज से तीन साल पहले जब मेरी दीदी की डिलीवरी होने वाली थी उस वक़्त डॉक्टर्स गहरी नींद में सोये थे सुबह के चार बजे थे दीदी हॉस्पिटल में ही थी लेकिन नर्स और डॉक्टर्स अपनी नींद नहीं खराब करना चाहते थे इसलिए चेकअप देर से शुरू किया और इतनी देर से की मेरा भांजा गर्भ में ही मर गया !जब दीदी की 2009 में दूसरी डिलीवरी हुई उस वक़्त जिस हॉस्पिटल में दीदी का नाम लिखवाया गया था जब वहाँ लेकर गए तो उन्होंने पहले तो एडमिट करने से ही मना कर दिया जबकि सारा चेकअप वही किया करते थे मना करे का कारण था की आप देर से आए है और कंडीशन सिरिअस है अगर केस बिगड़ गया तो हमरे हॉस्पिटल की इमेज खराब हो जाएगी जब सभी ने उनसे रिक्वेस्ट की तो बहुत ही मुश्किल से माने वो भी हमारे रिस्क पर एक बड़े ओपरेशन के बाद दीदी ने एक परी को जन्म दिया !जो अब एक साल की हो गयी लेकिन फिर भी मेरा आज डॉक्टर्स पर बिलकुल भरोसा नहीं है क्योंकि ये सिर्फ अपनी दुकान चलन जानते है इनकी बला से की मरे या जीए !

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  42. अच्छा किया बाबूजी आज आपने मुझे मेल की वर्ना में ये सब शायद रह जाता वैसे इस सब को पढने से छोड़ने की उमीद कम ही थी मुझे अपने आप से खैर, आपने जो डॉक्टर्स के बारे में लिखा है वो सच है आज वास्तव में इन लोगो ने अपने पेशे को एक बिजनिस बना लिया है पैसा कमाने का इन्हें कोई फर्क नहीं पढता की कोई मरे या जीए आज ही कुछ न्यूज़ चैनल पर दो केस देखे एक जिसमे खसरे की टिके लगने से दो बच्चो की मौत हो गयी और दूसरा जिसमे एक युवक क जहां पहले मृत घोषित किया फिर आईसीयू में रखा और फिर से मृत घोषित किया ये है आज के इन डॉक्टर्स का हाल ! आज से तीन साल पहले जब मेरी दीदी की डिलीवरी होने वाली थी उस वक़्त डॉक्टर्स गहरी नींद में सोये थे सुबह के चार बजे थे दीदी हॉस्पिटल में ही थी लेकिन नर्स और डॉक्टर्स अपनी नींद नहीं खराब करना चाहते थे इसलिए चेकअप देर से शुरू किया और इतनी देर से की मेरा भांजा गर्भ में ही मर गया !जब दीदी की 2009 में दूसरी डिलीवरी हुई उस वक़्त जिस हॉस्पिटल में दीदी का नाम लिखवाया गया था जब वहाँ लेकर गए तो उन्होंने पहले तो एडमिट करने से ही मना कर दिया जबकि सारा चेकअप वही किया करते थे मना करे का कारण था की आप देर से आए है और कंडीशन सिरिअस है अगर केस बिगड़ गया तो हमरे हॉस्पिटल की इमेज खराब हो जाएगी जब सभी ने उनसे रिक्वेस्ट की तो बहुत ही मुश्किल से माने वो भी हमारे रिस्क पर एक बड़े ओपरेशन के बाद दीदी ने एक परी को जन्म दिया !जो अब एक साल की हो गयी लेकिन फिर भी मेरा आज डॉक्टर्स पर बिलकुल भरोसा नहीं है क्योंकि ये सिर्फ अपनी दुकान चलन जानते है इनकी बला से की मरे या जीए !

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  43. हमको चिट्ठचर्चा वाले मनोज कुमार जी ने भेजा है.. और मैंनें आद्योपाँत यह पोस्ट पढ़ने के बाद यह पाया है कि...मुझे अपना अधिक समय जाया न करते हुये राधारमण जी के पोस्ट पर दी अपनी टिप्पणी को यहाँ भी दोहरा देना चाहिये ।

    " काश कि आदमीयत की बात करने वाले अपने सामने खड़े बँदे की आदम ज़रूरतों ( Basic Human needs ) को समझ पाते या हिँसक समूह के सम्मुख अपनाये जाने वाले आदम प्रतिक्रिया ( Human Reaction ) को समझ पाते ?
    काश कि आदमीयत की बात करने वाले यह समझ पाते कि समाज की आदमीयत में हम स्वयँ कहाँ हैं ?
    काश कि आदमीयत की बात करने वाले यह भी सोच पाते कि देवत्व का बलात अभिषेक कर देने मात्र से वह अपने कुकृत्यों पर देवताओं से श्रापित होने से बरी नहीं हो जाते ! काश कि वह अपने गढ़े हुये ऎसे देवताओं के कोप ( हड़-ताल ) के कारणों की पड़ताल या प्रायश्चित करने की क्षमता भी अपने में विकसित कर पाते ।"

    आप हि बताइये न बाबू साहेब के काहाँ तक घुम घुम कर आपना सफाई देते रहें ?

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  44. अगर सच्चो भगवान आदमी को बनाया है, त जरूर डॉक्टर के रूप में, ऊ अपना दूत बहाल किया होगा कि उसके काम में कोनो गड़बड़ रह जाए, त ई लोग ठीक कर दे. लेकिन भले बिस्नु भगवान पालनहार हों, आजकल ई दूत लोग त लछमी जी का बात मानते हैं.

    आपने कह ही दी हमारे मन की....

    अपने ज्ञान के बल पर डाक्टर रक्षक और भक्षक दोनों ही हो सकते हैं...बस जिसका जैसा संस्कार होगा , जीवन मूल्य होगा उसी रास्ते वह चलेगा...

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  45. आपकी इस पोस्ट ने कुछ याद दिला दिया मुझे ,
    आज से १५ दिन पहले ही मेरे एक दोस्त की माताजी का देहांत हुआ है , उनको कैंसर था |
    जब हम लोग उसे छोड़ने दमदम हवाई अड्डे गए थे तो समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी माँ को मरते हुए दखने जा रहा है या कुछ देर और जिन्दा देखने|
    :(
    उनको श्रद्धंजलि के तौर पे हमने उसी रात दुर्गापुर वापस लौटते हुए एक कविता भी लिखी थी , २ दिन के लिए उसे ब्लॉग पर भी डाला , लेकिन फिर लगा कि कही उसको बुरा न लगे , इसलिए वो पोस्ट हटा दिए |
    देखिये फिर कभी उसको दोबारा पोस्ट कर पाऊं या नहीं | :(

    सादर

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