बुधवार, 29 दिसंबर 2010

मो सम कौन???? कोई तो है!!!

बचपने से बुरा संगत में पड़ गए और आज तक भुगत रहे हैं. कलम चलाना खून में मिला अऊर नाटक करना, संगीत सुनना सोहबत से. हमरे एगो दोस्त थे, जिनके बारे में हम पहिले भी चर्चा कर चुके हैं, उनके संगत में संगीत का समझ डेवेलप हुआ. आज भी आरोह अवरोह चाहे खड़ज निसाद नहीं समझ में आता है, लेकिन संगीत मधुर है कि कटु आँख बंद करके भी बुझा जाता है.
एक बार एगो गजल का धुन पर हम दुनो में बहस छिड़ गया.  बिना हमरे हाँकहे भाई साहेब धुन भी फाईनल नहीं कर पाते थे. हम जऊन धुन के बारे में कह रहे थे कि हमको अच्छा लग रहा है उसको रिजेक्ट कर दिया बोलकर कि धुन गायिका के लिये ठीक है, लेकिन गायक के लिये नहीं. अब हम परेसान कि संगीत का सात सुर से, कोनो राग पर आधारित गाना अगर बनाया जाए, तो गाना भी स्त्री अऊर पुरुस के लिये अलग अलग हो सकता है.
हमको परेसान अऊर कंफ्यूज देखकर हमको बेग़म अख़्तर का गाया हुआ एगो ग़ज़ल अऊर  फ़रीदा ख़ानम का गाया हुआ गीत अपने आवाज़ में गाकर सुनाया. हम जब आँख बंद करके सब सुने तब हमको लगा कि उसका बात सच है. उसके पिता माननीय दत्तात्रेय काळे जी ने भी समझाया कि गीत का धुन गायक या गायिका को ध्यान में रखकर बनाया जाता है अऊर बहुत सा धुन अईसा भी होता है जो दोनों के लिये होता है. पहिला बार हमको लगा कि कला के छेत्र में भी प्रकृति का अंतर लागू होता है.
बाद में अंतर अपने आप साफ होने लगा. महादेवी वर्मा का कबिता अऊर बच्चन जी का कबिता, प्रसाद अऊर सुभद्रा कुमारी चौहान का कबिता. बहुत सा अपबाद भी मिला, लेकिन जादातर पढ़कर अऊर सुनकर पता लगने लगा कि कौन महिला का कृति है अऊर कऊन पुरुस का. मतलब कि कलाकार का सोभाव उसके कला में देखाई देईये जाता है.
ब्लॉग जगत में भी जेतना लोग को पढ़े हैं, उनको पढ़कर भी आसानी से अंतर समझ में आता है. केतना लोग का लेखन तो अईसा है कि चिल्ला चिल्ला कर कहता है कि भईया उनके अलावा कोनो दोसरा आदमी का होईये नहीं सकता है. सर्वश्री गिरिजेश राव, पंडित अरविंद मिश्र, प्रवीण शाह, अली सैयद, गुरुदेव सतीश सक्सेना अऊर एबभ ऑल श्री अनूप सुकुल. वईसहीं माननिया सरिता अग्रवाल (अपनत्व), निर्मला  कपिला, संगीता स्वरूप, सुनीता (अनामिका) अऊर क्षमा जी वगैरह.
हमरे गुरू श्री के. पी. सक्सेना तो एहाँ तक कहे हैं कि हर आदमी का एगो खास गंध होता है, जो हर कोई पहचान लेता है. रेलवे में काम करते थे, इसलिये उदाहरन के लिये बोले कि अगर हम प्रिंस चार्ल्स जईसा कपड़ा भी पहनकर बाजार में निकल जाएँ, तो लोग चाहे हमको जईसनो नजर से देखे, धीरे से कान में जरूर पूछेगा कि फलानी डाउन केतना बजे आती है. अब लखनऊ का चारबाग हो चाहे दिल्ली का अजमेरी गेट, मानुस गंध पहचानना कोनो मोस्किल काम नहीं, बस नाक का अभ्यास चाहिये.
अपने संजय बाबू मो सम कौन वाले क्रिस्मस के छुट्टी वाला दिन ऑनलाईन भेंटा गये. तड़ से भेज दिये एगो लिंक अऊर बोले कि पढ़िये. हम अपना दिल का रेकमेंडेसन तो दबा देते हैं, लेकिन दोस्त लोग का रेकमेंडेसन तुरते मानना पड़ता है. पढ़ गये पूरा पोस्ट अऊर बहुत इम्प्रेस भी हुये. संजय बाबू जब हमसे हमरा प्रतिक्रिया माँगे, तब हमको लगा कि इनका हर बात में गूढ़ रहस्य छिपा होता है. हम बोले कि प्रभु! भले हम उस प्रदेस से आते हैं जहाँ बट बिरिछ के तले एगो महान राजा गौतम बुद्ध कहलाए थे. लेकिन हमरा ज्ञान चक्षु अभी नहीं खुला है कि हम भेद समझ सकें. लेकिन कुछ बात हमको समझ में रहा है. पहिला, आपका ट्रेड मार्क फत्तू उड़ा ली हैं बहिन जी. दोसरा, सभ्य महिला हमरे प्रदेस की हैं. तिसरा, लेखन में गजब का फ्लो है. चौथा अऊर सबसे मह्त्वपूर्न बात है कि लेख कहीं से भी कोई महिला का लिखा हुआ नहीं बुझाता है.
तब भाई साहब, हमको बोले कि थोड़ा देर के लिये संजय का दिब्य दृस्टि आपको उधार देते हैं, तनी देखिये. बाप रे! कमाल का दृस्य था. उनका पोस्ट सभ्य महिला अपना नाम से छाप रखी थीं. तबे हमको लगा कि कोनो मर्द का लिखा हुआ बुझाता है, अऊर फतुआ को देखियो के हमको नहीं सूझा कि मर्द हमरे संजय बाबू हैं.
तब हमको याद आया कि एगो संजय ग्रोवर जी भी हैं, इनका भी पोस्ट कोई चोरा कर अपना नाम से छाप दिया था अऊर उसपर सायद गिरिजेश जी का कमेंट भी था कि मन में आया कि अनाप सनाप लिख दें, मगर चोर अपना बच्ची का प्यारा सा फोटो लगाए हुये था, इसलिये चुप रह गये.
हमरा पोस्ट कल मंगलबार के लिये था, एक दिन देरी होने के कारन संजय बाबू भी एही बिसय पर सिकायत दर्ज कर दिये हैं. कहीं हमरा पोस्ट को भी कोई उनका नकल समझ ले. मगर एगो बात तो पक्का है, आप ही कहते थे कि मो सम कौन,   कहीं इसको सवाल समझकर पूजा बेदी माफ कीजिये पूजा देबी, जबाब नहीं दी हैं. जो भी हो, अब हम का बोलें, पहिलहिं बिहारी हैं उसपर चोरी. बस एतने कह सकते हैं कि
वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
दगा करे जो किसी से तो शर्म आए मुझे!

42 टिप्‍पणियां:

  1. अरे हम सब अपने में एक ही हैं छठे हुए। अपने जैसा लालटेन लेकर दूसरा ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा। निश्‍चिंत रहिए।

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  2. नंबर मार ले गए ..
    यह संजय पहले से ही मेरा सलेक्टेड था ...
    बड़ी ताडू चीज हो यार :-(
    संजय मेरे मनपसंद लोगों में से एक हैं जिन्हें पढना अच्छा लगता है !

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  3. पूजा देवी के महान काम पर दो पोस्ट आ गई और बेचारी देबी जी को मालूम ही नहीं कोई उनको खबर तो दो |

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  4. धत्तेरे कि ... एतना बढिया लिखे हैं कि बुझैबे नहीं करता है कि केकरो सिकायत लिक्खे हैं। अब एतना बढिया लिखिएगा त लोग त यही समझेगा कि आप पूजा जी की आरती उतारने के लिए कह रहे हैं, और हां आप जो गीत गाए हैं उ हो बहुते निम्मन लगा।

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  5. बहुत बढ़िया ..जितना समझ पाया ...बाकि कोशिश करूँगा ...शुक्रिया भाई

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  6. सलिल जी, व्यक्तित्व और कृतत्व (माफ कीजिए शब्द तो ध्यान आ रहा है पर spelling ध्यान नहीं आ रहा) पर आपकी ये पोस्ट हमे भी सोचने पर मजबूर करती है कि जो भी पढ़े - तो ध्यान से पढ़े.... ताकि लिखने वाले का व्यक्तित्व ध्यान में आ जाए....

    मौ सम कौन : पूजा बेदी (देवी) छोड़ दीजिए सलिल जी, अपनी प्रदेश कि पंदितियाइन है.......... कौनो फर्क नहीं पड़ता किसका माल ले गई.......... मौ सम ही ऐसा है.

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  7. अरे वाह!
    आपने तो सबकी पोल खोलकर रख दी!
    --
    ब्लॉगिंग जिन्दाबाद!

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  8. "तब हमको लगा कि इनका हर बात में गूढ़ रहस्य छिपा होता है"
    I can not agree more :)
    एकदम खरा सच है सलिल जी। लिखने और उड़ा कर छापने में फर्क महसूस होता है।
    वैसे देबी जी बहुत हिट हो गयीं, नहीं क्या?

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  9. भैया, कर दिये हो ’सम्वेदना के स्वर’ वाला हिसाब बराबर?
    वो गाना सुनकर और गाकर लौटता हूँ "इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा..."

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  10. केतना लोग का लेखन तो अईसा है कि चिल्ला चिल्ला कर कहता है कि भईया ई उनके अलावा कोनो दोसरा आदमी का होईये नहीं सकता है
    एकदम सही कहे हैं .आपका लिखा भी कहीं भी पढेंगे तो तुरंत पहचान जायेंगे हम बेफिक्र रहिये :)

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  11. सलिल साहब , इतना बड़ा बड़ा लिंक रखते है ............... पूजा बेदी कै खबरिया लग गईल बाये कि कौनों गड़बड़ बाये येहवा पे.

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  12. लिखने की चार पंक्तियाँ बता देती हैं कि किसकी कलम चल गयी है।

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  13. सलिल बाबू ! गुणी लोग कहे हैं न ! कि बड़का लोगन के साथ करे के चाहीं...कुछ गियान-वियान मिलिए जाला ...एही से न हम आपके पीछे-पीछे लग गये हैं..अब देखिये न केतना गियान प्राप्त हुआ है कि ...."लोग नेट पर भी चोरी (हमको डकैती कहने में जादा अच्छा लग रहा है,पर जब तक राउर के इज़ाज़त न मिली हम डकैती के चोरिये कहब ) करने लगा है आजकल" ...ई हमको पहिले नहीं मालूम था अभिये न पता चला है ..हम तो समझते थे कि मेडिकले फील्ड में थीसिस आ रिसर्च का चोरी- डकैती ज़ो भी कहिये .....सो होता है,साहित्य का दर्पण दिखाते-दिखाते लोग दरपने मार देता है ..अई गजब....चोरवा जब पकराता है तब ऊ केतना मगन होता होगा कि ल पकरागईनी.

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  14. ओह! बहुत सारी नई बातें पता चलीं....ये सब भी चल रहा है यहाँ...ग़ज़लों कविताओं की चोरी तो सुनी थी पर यहाँ तो पूरा का पूरा आलेख.....आश्चर्य है...

    वहाँ किसी ने इस आशय की टिप्पणी की है या नहीं??....उन महोदया को अपनी हरकत का पता तो चलना चाहिए.

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  15. कल देखा था पूजा देवी का यह आलेख ..
    इससे पहले स्वप्न मञ्जूषा ,गिरिजेश राव आदि के लेख/कविता भी ऐसे ही चोरी हो चुके हैं ...

    वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
    दगा करे जो किसी से तो शर्म आए मुझे!
    पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी !

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  16. सलिल भाई,
    जब भी तोहार पोस्ट पर आइला,कुछ न कुछ नया मिल जाला। मन करेला कि हरदम तोहार पोस्ट खोलके बैठल रही लेकिन काम धंधा और
    शीतलहरी के कारण संभव नइखे होखे पावत। अगला साल के इंतजार में बानी। हमरा तोहार पोस्ट पढ़ के इहे बुझाता कि सलील जी तोहरा से पंगा लिहल केहु खातिर बड़ा ही सुश्किल हो जाई।
    नया साल-2011 में भगवान आपके एतना खुशी देस की अंत में आपके कहे के पड़ जाई कि प्रभु अब कुछ ना चाहीं। वाल-वच्चा सब लोग सुखी रहस लोग इहे आशीर्वाद देत बानी। वाद वाकी फिर-- -

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  17. इस पोस्ट का पॉडकास्ट बनाया है आपको सुनवाना है पर मेलid नहीं है...

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  18. वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
    दगा करे जो किसी से तो शर्म आए मुझे!

    sharmindgi to hame bhi mahsoos hoti hai....

    pranam.

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  19. सब बात समझने में थोड़ा देर लग गया...लेकिन चोरी ऐसी भी होती है पता नहीं था :(

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  20. oh .. lag hi nahi raha tha shuru men ki ye bat chori sena jori kee taraf chali jayegi...hehehe..hadd karte hain aap bhi... :P fattu se ek do baar hum bhu mukhatib hue hain pahle...aur pooja jee ke blog pe doshala odhe khade dekha to hairat hi hui...ajeeb log hain.....

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  21. गायिका के लिए अलग राग और गायक के अलग...हम्म्म्म..बात में दम तो लगता है...लेकिन ग़ालिब का गज़ल के.एल सहगल से लेकर बेगम अख्तर तक...लाता मंगेशकर से लेकर जगजीत सिंह तक सभी गाये हैं लेकिन सब का अलग अंदाज़ है और सभी बहुत खूब गाये हैं..नहीं का? फिर भी आपका बात गलत साबित करने का मन नहीं कर रहा क्यूंकि क्या है के उसमें दम लगता है...
    ब्लॉग जगत में औरन की बात हम नहीं करते लेकिन आपका लिखा दूर से पकड़ में आ जाता है...आपकी रचना की चोरी असंभव है...आप आप हैं.

    नीरज

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  22. मो सम कौन ? कोई तो है ....कहाँ है कोई ? सब चोरी करके बनने की कोशिश कर रहा है ....पर ऐसी चोरी से कैसे बचा जा सकता है ?


    वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
    दगा करे जो किसी से तो शर्म आए मुझे!


    बस यही बात उतःती है मन में ...

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  23. मतलब ए हुआ के हम कोई दूसरा नाम से टिप्पणी डालेंगे तो आप तो बूझ जाएंगे कि हमने ही डाला है:-(

    (माफ कीजिएगा, हमको ई बोली एतना ही आता है, काम चलाउ)

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  24. निश्चय ही सबका अंदाज और ढंग अलग-अलग होता है एवं आसानी से समझ आ जाता है.गलत करने से तो न करना अच्छा होता है. शोहरत के लिए की गयी गलती से तो उल्टी बदनामी ही हुई,इतना अंदाज खुद करने वाले को क्यों नहीं था?
    गलती को भी उजागर करने के लिए आपने रोचकता बनाये रखी

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  25. लीजिए एक और मिला। वाह वाह...

    भैया जी ऐसा है कि हम ब्लॉग जगत में नए नए सक्रिय हुए हैं और नित्य श्रेष्ठ चिट्ठों की तलाश में भटक रहे हैं आपके यहाँ आने की कई दिन से सोच रहे थे और आज जब आ ही गए तो देखिए हमे क्या मिला- एक और श्रेष्ठ हिंदी ब्लॉग।

    आपाकी भाषा शैली भा गई। अब आपके पुराने पोस्टों को भी पढ़ेंगे धीरे धीरे।

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  26. हमको तो बस एतने बुझाया कि हमरा नाम लिस्ट मे नहीं है.बाकी चोरी से लिखने वालों को भी सलाम है ,क्योंकि इसी बहाने वे हमसे जुड़े तो सही ! और लगता है अभी पहचान बनानी पड़ेगी लिस्टिंग के खातिर , हें...हे...हे.. हें ...हें...! नया साल का बधाई है आपको और सभी ब्लॉगर बंधुओं व बांध्वियों को भी आपही के माध्यम से !....................

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  27. सायद गलत हो गया चोरी से नहीं ,चोरी का मैटर पोस्ट करने के लिए. .

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  28. ई त बात कहाँ से शुरू हुआ और कहाँ पहुँच गया...हम सोचे की संगीत के विषय पर ही विस्तृत विवेचना है धरा हुआ..और पढ़ते वकत हाँ हाँ में मुडी भी हिलाते जा रहे थे ज्ञान लेते हुए..पर बात तो चोरी चकारी तक जा पहुंचा...

    अब का कहें इसपर..
    स्माइली लगा देते हैं
    :))

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  29. प्रसिद्ध लोगों की रचनाओं की चोरी कोई करेगा...तो खुद और भी बौना हो जाएगा ।

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  30. सलिल भैया,
    हम तो इस घटना को 'blessing in disguise' मानते हैं, इस बहाने से हम आपकी पोस्ट के टाईटिल बने। आपके इसे विषयवस्तु बनाने से कितने ही सुधीजनों की शुभेच्छा हमें मिली, अपनी क्षतिपूर्ति(अगर थी तो) हो गई। अपने पर बिश्वास भी बढ़ा।
    ये टाईटिल में ’तो’ पहले से था क्या? :))
    आपको, आपके परिवार को व आपके पाठकों को नववर्ष की शुभकामनायें।
    p.s. - पुजा देबी जी को भी शुभकामनायें:)
    दोस्ती का आधार आपसी समझ है। प्रदेश, धर्म, जाति की साम्यता\विषमता का इस रिश्ते में बाल बराबर भी प्रभाव नहीं हो सकता।

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  31. वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
    दगा करे जो किसी से तो शर्म आए मुझे!
    वाह! क्या बात है!
    नव वर्ष की शुभकामना!

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  32. वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
    दगा करे जो किसी से तो शर्म आए मुझे!

    वाह, बहुत खूब।
    .............................

    नव वर्ष 2011
    आपके एवं आपके परिवार के लिए
    सुखकर, समृद्धिशाली एवं
    मंगलकारी हो...
    ।।शुभकामनाएं।।

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  33. बालीवुड में पूजा देवी की कलाकारी को inspiration कहते हैं.

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  34. "अगर हम प्रिंस चार्ल्स जईसा कपड़ा भी पहनकर बाजार में निकल जाएँ, तो लोग चाहे हमको जईसनो नजर से देखे, धीरे से कान में जरूर पूछेगा कि फलानी डाउन केतना बजे आती है.
    वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
    दगा करे जो किसी से तो शर्म आए मुझे!"
    भाई जी, दिल को छू जाती है आपकी लेखनी से निकली हर बात. टिप्पणी के लिए अल्फाज नहीं हैं मेरे पास. बस पढ़ता हूँ बार-बार और मजा लेता हूँ साहित्य की इस अद्भुत विधा का जो बहुत ही सरस है,व्यंग्य में भी जोर का झटका धीरे से दिया है आपने..आपकी हर रचना की तरह यह भी बेमिशाल है.आपके विचार की गहराई को मापना मेरे बस की बात नहीं.बस पढ़ा और आनंद लिया.सचमुच मजा आ गया.

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  35. "आज भी आरोह अवरोह चाहे खड़ज निसाद नहीं समझ में आता है,"बस यही दिक्कातिया तो हमारे साथ भी है मगर संगीत में प्राण बसे हैं जैसे ऊ सुग्गा के गटई में वू जिन्न जिन्नात के नहीं होते थे....अब यी राज क बात राउर के बताये तो दिहिन -.मुला ओपन मत करिहो .इन दिनों सूफियाना चल रहा है .....आबिदा परवीन का ....अधेरी रात है किधर जायं .....

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  36. सलिल भाई जी,
    उपतोक्त कमेंट अभी देखा है, श्री कुमार राधारमण के ’उपचार’ ब्लाग पर निम्न कमेंट किया है। आशा है भूल सुधार का मौका मिलेगा -
    "कुमार साहब,
    इस ब्लॉग के माध्यम से आप अच्छा कार्य कर रहे हैं। हर बार कमेंट नहीं करता हूँ, लेकिन लाभान्वित होते हैं। उसके लिये आभार स्वीकार करें।

    अब इस पोस्ट से अलग बात, ’http://chalaabihari.blogspot.com/2010/12/blog-post_29.html" पर आपका निम्न कमेंट देखा,
    ’बंटी को मिली बबली!’ आपका ईमेल पता नहीं मिला, इसलिये पूर्ण विनय से आपसे निवेदन कर रहा हूँ कि कृपया थोड़ा विस्तार से बतायें कि मैंने किसके यहाँ से क्या चुराया है ताकि क्षमा मांग सकूँ। आशा है नये वर्ष में मुझ जैसे को सुधरने का मौका देंगे। मेरी ईमेल आई.डी. पर भी जवाब दे सकते हैं, मेरे ब्लाग पर भी, चला बिहारी..... ब्लाग पर, या आपके ब्लाग पर। जहाँ आपको उचित लगे। "

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  37. किसी और का तो नहीं पता , लेकिन आपको कही भी पढ़ा , तुरंत पहचान जाउंगा | साथ ही एक अनु जी(expression) हैं और एक विशाल भैया (Aabshar) , इनको भी काफी हद तक पहचान सकता हूँ , और तो अभी नया ही हूँ तो ज्यादा लोगो को पढ़ा नहीं | कोशिश करूँगा अपना पहचान कोष बढ़ाने का |

    सादर

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