मंगलवार, 6 जुलाई 2010

काला कागा

एगो बुझऊवल बुझाएँ. कऊन सा अईसन भासा है जो पूरा दुनिया में बोला जाता है?  ई भासा अदमी, जानवर अऊर पंछी तक बोलता अऊर समझता है. ई भासा पढने के लिए, समझने के लिए कोनो इस्कूल जाने का जरूरत नहीं है, न कोनो किताब कॉपी, कलम दवात, बही खाता का जरूरत है.
सब अदमी हमरा जईसा बेकूफ थोड़े है कि नहीं समझेगा. हमको मालूम है कि आप सब लोग बूझ गए होंगे, एही से हम ईनाम नहीं रखे थे. ई भासा है प्यार का भासा, ममता का भासा, दुलार का भासा. अपना एगो दोस्त नबीन जी के घर गए हुए थे चंडीगढ. सबेरे उठ के देखते हैं कि साह्ब किचन से निकल रहे हैं. हम चुटकिया दिए कि का बात है भाई जी सबेरे सबेरे किचन में डिऊटी दे रहे हैं. तब तक पीछे से शशि भाभी आ गईं (नबीन जी की सिरीमती जी). हम बोले कि एतना बड़ा गेस्ट त नहिंए हैं हम कि आप दुनो अदमी किचन में लगे हैं. तब शशि भाभी बताईं, “अरे भाई साहब! किचन के खिड़की में रोज एक कौआ आ जाता है, बेचारे की एक ही टाँग है. और जब तक रोटी न दो काँव काँव चिल्लाता रहता है. इनका नाश्ता भले न पैक हो पर कागा जी का नागा नहीं होना चाहिए.”

हम ठहरे सेंटीमेंटल अदमी, बस ई प्यार का भासा टच कर गया हमको. अऊर चट से एगो तुकबंदी कर दिए. देखिए शशि भाभी का पंछी प्रेम, हमरे नजर से...


काला कागा
एक टाँग पर
रोज़ रसोई घर की खिड़की पर आ जाता
और सुबह की रोटी पाने को कस कर आवाज़ लगाता.

शशि ने भी
हर रोज़ उसे
उसके आवाज़ लगाने से पहले ही जाकर
रोटी उसकी चोंच में देने का एक नियम बना रखा है.

फिर एक दिन वो
कागा आया
साथ में दो साथी भी आए
लगता है कि सालगिरह थी कागा की और पार्टी दी थी.

कल थोड़ी सी
देर से जागी
जगते ही वो दौड़के भागी
चला गया था काला कागा काँ काँ करके बिन रोटी के.

साधु कहीं भी
एक बार ही
हैं पुकारते और बढ़ जाते
शशि सोचती काला कागा भूखा आज रहेगा दिन भर.
 
(पुनश्च: बहुत कोसिस किए, लेकिन कागा बाबू फोटो खिंचाने के लिए तैयार नहीं हुए.)
 

23 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! इन लाइनों में तो आपने गजब ही ढा दिया:
    साधु कहीं भी
    एक बार ही
    हैं पुकारते और बढ़ जाते।
    साधुवाद।
    निदा फ़ाज़ली का एक दोहा याद आ रहा है:
    सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर।
    जिस दिन सोया देर तक, भूखा रहे फकीर।।

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  2. बहुत ही बढ़िया किस्सा सुनाया आज आपने ! वैसे काला कागा भूखा नहीं रहा होगा ............इंसानियत अभी इतनी भी नहीं मरी है.........अभी तो काफी जान बाकी है !

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  3. हमहू बहुत सेंटीमेंटल हैं...फिलिम सीरियल देखते देखते टप टप लोर चूने लगता है. लोग बोलता है की एतना सेंटी पाना लेके कहाँ जाओगी..थोडा कठोर बनो, लेकिन कैसे कठोर बन जाएँ :(

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  4. बड़ा सेंटिया के पोस्ट लिखे हैं (ठेले हैं लिखना उचित नहीं लगा)। हमरा बालकनी में जे कौआ आता है ऊ त रोटी देख कर मुंहे घुरा लेता है। भोरे-भोरे दू गो बिस्कुट खा कर मन भर गया त औरो दोस सब को काऊं काऊं कर के नेयोतिया गया है।

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  5. Bihari babu hame pata hai, aap jaise kuchh log pyar ki bhasha samajhte hain.......aur ye aapke saare posts se jhalakta bhi hai......

    upar se apne kauwe ki kahani badi pyare dhang se kahi.....

    post to as usual mast hai, ek baar me padhne layak!!

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  6. फिर एक दिन वो
    कागा आया
    साथ में दो साथी भी आए
    लगता है कि सालगिरह थी कागा की और पार्टी दी थी.
    अच्छा लिखा आप ने !

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  7. सलिल भाई! शशि उदास है इन दिंनों क्योंकि पिछले दिनों करीब 15 दिनों के लिये हम सब छुट्टीयां मनाने चंड़ीगढ से बाहर चले गये थे, लौटे है तब से काला कागा नहीं दिख रहा है.उसकी एक टांग भी खराब थी.

    सचमुच साधु सा अन्दाज़ था उसका.
    मै भी आफिस के लिये लंच ले जाते वक्त उसे मिस करता हूं अपने दिल में, और शशि की आखों मे भी!!

    नवीन

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  8. ये तो सच है प्यार की भाषा हर कोई समझता है .... और निरीह प्राणी तो प्यार के बदले अपनी मूक भाषा से बहुत कुछ दे जाता है ... जैसे आपको इतनी मधुर कविता रचने का श्रेय ...

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  9. @मनोज कुमारः
    का कीजिएगा, कलकतिया कौआ है... चा, बिस्कुट अऊर बीड़ी के अलावा कुछो नीमन नहीं बुझाएगा उसको.
    @ मुकेश कुमार सिन्हाः
    आपका बात से नीमन हमको कुच्छो नहीं लगता है.
    @ नवीन जीः
    का बात करते हैं नवीन जी! तब त हमरा कबिता के हिसाब से ऊ साधु से यायावर हो गया!
    @ दिगमबर नासवाः
    आपका सराहना हमको बल देता है. कबिताई हमरे बस का बात नहीं है, तुकबंदी कर लेते हैं. सच कह रहे हैं, ई मॉडेस्टी नहीं है.
    @शिवम मिश्राः
    आपका एही भरोसा चाहिए समाज में, तब्बे जाकर जान आएगा.
    @ अपनत्वः
    एकदम ठीक...ठीक...एही छोटा छोटा पल हाथ में थामे हैं कि अगिला पीढ़ी को देकर उऋन हो सकें.
    @एस के टीः
    निदा साहब का दोहा, ऊ भी हमरे पोस्ट के लिए... धन्न हो गए हम.
    @ साजिदः
    सुक्रिया भाई जान!
    @ स्तुति पाण्डेः
    हमको भी एही बतिया बोला था कोई कि तुमरा सेंटीमेंट तुमको कमजोर बनाता है. त हम बोले कि एही हमरा ताकत है, तुमको त कमजोरिओ का पता नहीं है अऊर ताकतो नहीं जानते हो!
    @ सुमनः
    बहुत दिन बाद दर्सन दिए आप! किर्तार्थ हुए हम.

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  10. बहुत खूब...अपनी माटी की बोली-भाषा पढ़कर अच्छा लगा.

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  11. बहुत खूब...अपनी माटी की बोली-भाषा पढ़कर अच्छा लगा.

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  12. बहुत खूब...अपनी माटी की बोली-भाषा पढ़कर अच्छा लगा.

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  13. खूब लिखा अपने अंदाजे-बयां में...बेहतरीन.

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  14. बहुत बढ़िया किस्सा सुनाया बहुत खूब बेहतरीन अच्छा लगा

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  15. आपने भी बड़े प्यार से लिखा है सीधे दिल में उतर गई. आपका ब्लाग मैंने अपने मित्रों को भी पढवाया. आपकी जो भासा है न बहुत ही प्यारी है। काश हम भी बोलन सीख सकें.

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  16. अरे मैं तो रह ही गई !!!!!!
    नमस्ते बाबूजी, देर से आने के लिए माफ़ी चाहती हूँ !
    वैसे हर बार की ही तरह इस बार भी बहुत अच्छा लिखा है ! मैं इस वक़्त बालकनी में हूँ और बाहर कोवे बहुत शोर कर रहे है लेकिन ये शरारती कोवे है रोटी नहीं खाते चोच मारते है ! लेकिन इन सभी को जब अपने इस एक टांग वाले भाई के बारे में पता चलेगा तो हाल पूछने ज़रूर जायेंगे ! प्यार की भाषा हर कोई समझता है कोई ज़ल्दी तो कोई देर से !
    और हाँ बाबूजी आपको हमसे कुछ भी बोलने के लिए क्या सोचना पड़ेगा की मुझे बुरा लगा या अच्छा ???? मेरी पोस्ट पर आपकी कही ये बात पसंद नहीं आई ! अब ऐसे ही तो बाबूजी बोला नहीं है आपको !

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  17. साधु कहीं भी
    एक बार ही
    हैं पुकारते और बढ़ जाते
    शशि सोचती काला कागा भूखा आज रहेगा दिन भर.

    यह किस्सा नवीन जी से सुन चुके थे, लेकिन आपने तो इसे बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है ...दूसरी ओर इस प्रसंग में कही गई कविता तो बहुत पसंद आई ।

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  18. स्तुति ने जो कहा, हम भी वैसा ही कुछ कहने वाले थे... :)

    और अभी तो आज फ्री वक्त में आपका बाकी सब पोस्ट पढ़ रहे हैं, जो छुट गया था हमसे :)

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