ई कबिता लिखकर हमको कोई बहुत खुसी नहीं हुआ था. अऊर सच पूछिए त इसको हम कबिता मानबो नहीं करते हैं. बहुत पहिले ई लिखकर हम कहीं कोना में दबा दिए थे.घटना सच्चा है, काहे कि इसके बाद हमरी बिटिया एतना हँसी थी कि पूछिए मत. लेकिन हमरा मन बहुत उदास था. आज भी जब पढ़ाई करने का उमर में छोटा छोटा बच्चा को तरकारी बजार में धनिया मिर्चाई बेचते हुए, चौराहा पर भाग भाग कर कलम, पेंसिल अऊर किताब बेचते हुए, कोलोनी के अंदर कचरा बीनते हुए देखते हैं, त लगता है कि केतना बड़ा झूठ सिखाया गया है बचपन से हमको कि बच्चा देस का भबिस्स होता है. अगर एही भबिस्स है, त अईसा भबिस्स देखने से पहिले आँख बंद हो जाए!
रास्ते भर मैं बहाने सोचता बैठा रहा
कि क्या कहूँगाजब मेरी बिटिया, पहुँचने पर मेरे, मुझसे कहेगी
“लाए क्या मेरे लिए ऑफिस से
डैडी, आज तुम?”
ये कहूँगा, वो कहूँगा
ये कहा तो मान जाएगी,
कहा वो तो, बहुत चिल्लाएगी
ऐसा कहूँगा, और फिर वैसा कहूँगा
क्या कहूँगा, सोचकर धुनता रहा सिर.
जैसे ही गाड़ी से बाहर पैर रखा
एक छोटी सी बड़ी प्यारी सी बच्ची
बस मेरी बिटिया के जैसी
पर वो लिपटी थी फटे गंदे से कपड़ों में
पकड़ कर हाथ मेरा
प्यार से, करुणा से, और कुछ दर्द से
बोली वो मुझसे,
“पाँच नींबू ले लो अंकल जी
हैं बस ये पाँच रुपये के
बचे हैं पाँच केवल
ले लो अंकल जी, न मुझसे!”
हाथ मेरा ख़ुद ब ख़ुद सरका फिर अपनी जेब में
और पाँच रुपये के ख़रीदे पाँच नींबू.
घर पे बिटिया थी खड़ी दरवाज़े पे
बस देखते ही शोर करने लग पड़ी
“क्या लाए डैडी!
बोलो ना क्या लाए डैडी!”
मुस्कुराते मुस्कुराते सारे नींबू
दे दिए फिर हाथ में बिटिया के मैंने
ख़ूब ज़ोरों से हँसी फिर खिलखिला के
“ये भी कोई चीज़ है लाने की”
और उसकी हँसी रुकती नहीं थी.
पाँच नींबू ने मेरी बिटिया को जब इतना हँसाया
कितना ख़ुश होगी वो प्यारी नन्हीं बच्ची
पाँच रुपये में मुझे वो सारे नींबू बेचकर!
धुत्त! भोरे-भोरे रुला दिए।
जवाब देंहटाएंऐसन अकबिता मत्ते लिखिए।
लेकिन एगो बात कहें ऐसन एक ठो छोटा सा अकबिता हजारों महाकव्य से बढकर है।
मनोज जी से १००% सहमत हूँ !
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा और भावुक रचना !
सबकी आँखों में ये पानी आ जाता थोडा थोडा...तो कोई कविता अकविता नहीं होती सलिल जी.
जवाब देंहटाएंवरुण ह्रदय है आपका... सच्ची संवेदना इसी को कहते हैं..
आपको एक लिंक दूँगा...हालांकि इससे बहुत जुडा नहीं है पर कुछ पुराना याद आया...
http://penavinash.blogspot.com/2008/12/blog-post_26.html
यही तो कविता है!
जवाब देंहटाएंएक आँख से आँसू पोंछ सको
तो समझो पूरे इन्साँ हो
दुनिया को रुलाने की ख़ातिर
हैवान हज़ारों-लाखों हैं
बहुत सुन्दर रचना है - ज़रूर आप अ-कबिता लिखें साहब।
हम अब का कहें...मनोज भाई सब कह तो दिए हैं " ऐसन एक ठो छोटा सा अकबिता हजारों महाकव्य से बढकर है।" इकदम सच्चा बात...
जवाब देंहटाएंनीरज
पाँच नींबू ने मेरी बिटिया को जब इतना हँसाया
जवाब देंहटाएंकितना ख़ुश होगी वो प्यारी नन्हीं बच्ची
पाँच रुपये में मुझे वो सारे नींबू बेचकर!...
इस ख़ुशी का तो अंदाजा ही लगाया जा सकता है ...!
मैं समझता इस हद तक पागल मैं ही हूँ आज पता चला दुनिया में एक से एक पड़े हैं हम क्या चीज हैं ! शुभकामनायें महाराज !
जवाब देंहटाएंउस वक्त तीन लोगों के चेहरे पर ख़ुशी ले आया आपका छोटा सा उपहार... और हम लोगों के लिए भी प्रेरणा लेकर आया... भावुक कविता...
जवाब देंहटाएंbahut hitaishee dil ke dhanee hai aap jo samvedansheel bhee hai ...aapko apane beech paakar garv hota hai..........
जवाब देंहटाएंकुछ दिन पहले हम भी ऐसे ही जैसा एक पोस्ट लिखे थे चचा...
जवाब देंहटाएंये देखिये - http://abhi-cselife.blogspot.com/2010/06/blog-post_05.html
एक संवेदनशील रचना ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण !
जवाब देंहटाएं- चैतन्य आलोक
ऊपर हिमांशु मोहन जी, बहुत अच्छी लाइने लिखी है
जवाब देंहटाएंएक आंख आंसू पोंछ सको
तो समझो पूरे इन्सां हो
दुनिया क रुलाने की खातिर
हेवान हजारो लाखो है
वैसे दोष इन बच्चो का भी नहीं है दोष तो इनके हालातो का है !
एक भावपूर्ण कविता !
अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंतऽ.. कबिता अउर का होता है, ब्लॉगर बिहारी बाबू ?
जीवन के कुछ पलों के सच को शब्दों में बाँध लेना क्या कबिता नहीं है ?
वह शब्द-सृष्टि जो आपको झिंझोर दे, जिसे आप ठगे हुये एक दीर्घ उच्छ्वास से अधिक कुछ और न दे सकें.. यही तो कविता है । कवि के लिये क्या वियोगी होना ही पर्याप्त है ? तटस्थ भाव से आपने जो पँक्तियाँ उकेरी हैं, इसे कविता कहने में आपको सँकोच कैसा ? पाठकों की अपेक्षाओं से शायद अपने को बरी रखने हेतु आप ऎसा लिख गये ?
न रुकने वाली हँसी में निहित निराशा को आपने बखूबी महसूस करवा दिया है ।
जवाब देंहटाएंfrom bihari blogger
to डा० अमर कुमार
date21 July 2010 13:09
subject Re: [चला बिहारी ब्लॉगर बनने] अ-कबिता पर नई टिप्पणी.
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" ...... आप इलाहाबाद से हैं जहाँ से मेरा संबंध वर्षों का रहा... अतः आप पूज्य हैं मेरे लिए.. दिव्या जी के ब्लॉग पर आपसे हुई तकरार के लिए यहाँ क्षमा चाहता हूँ...वरिष्ठ हैं आप...किंतु उस चर्चा के योग्य ज्ञान नहीं मेरे पास,...
.......
......"
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@ ऎ भाई, तऽ ई हमरे मेल में काहे शोभायमान है ? लगे हाथ भ्रम-निवारण कर लीजिये.. ग्राम-उफ़रौलिया, तहसील-डुमरा, जिला-सीतामढ़ी से हूँ । दरभँगा का दूध पिया है अउर मऊनाथ भँजन का भात खाया है, बनारस में डकार लिया है तऽ अब रायबरेली में सुस्ता रहे हैं । रहा सवाल ज्ञान का.. लाला के पास एगो खोपड़िये तऽ है जिसको वह अपनी सम्पत्ति में गिना सकता है, अउर दूसरे गरिया सकते हैं ।
इलाहाबादी ? न भाई न, ई ज़ुलुम मत करिये.. इलाहाबादी महा फ़सादी सुने हैं कि नहीं !
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जवाब देंहटाएंनीम्बू तो मीठे निकले ...आभार !
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बहुत ही संवेदनशील रचना है, पढ़ कर आँखे नम हो गयी, इस रचना की तारीफ़ के शब्द मेरे पास नहीं है, कोई बहुत ही संवेदनशील व्यक्ति ही ऐसी रचना लिख सकता है! भैया आपकी प्रतिक्रिया मुझे मिलती रहती है बहुत अच्छा लगता है, इसी तरह अपना स्नेह और आशीर्वाद बनाए रखियेगा
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण संवेदनशील रचना . आभार !
जवाब देंहटाएंभगवान् को ये सब दर्द दुःख नहीं दिखता क्या? या वो भी कलयुगी हो गए हैं? :( जहाँ इन नन्हे हाथों में किताब होनी चाहिए..वो बच्ची अपने घर के चूल्हे का इंतज़ाम कर रही है.
जवाब देंहटाएंये अ कविता जीवन को अ से शुरू कर ग्या तक जीना सिखाती है{ माफ करें ग्या कैफे हिन्दी मे मुझे लिखना नही अता} हंसी हंसी मे ही एक सच्चाई से परिचित करवा दिया। बहुत अच्छा लेगी रचना। आभार।
जवाब देंहटाएंखडगसिंह जी ये सब लिखना पढ़ना छोड़कर के अपने पुराने कागज खंगालो और जितनी ऐसी अकविता लिख रखी हैं उन्हें निकालकर यहां ले आओ। कोई और पढ़े कि नहीं पढ़े बाबाभारती जरूर पढ़ेंगे। क्योंकि हमें तो यही अकविता सुकून देती है। और न हों तो कोई बात नहीं अब लिखो। अब कभी बाबा भारती की गुल्लक लूटने आओ तो उसमें छोकरा शीर्षक से तीन ऐसी ही अकविताएं रखी हैं। उन्हें भी ले जाना। पर खडगसिंह एक ही सलाह है अब कभी इसे अकविता मत कहना वरना बाबाभारती की बात पर कौन यकीन करेगा।
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जवाब देंहटाएंuf... sachchai karubi hoti hai... ka keejiyega.... samajh leejiye ki yahi bhaviss hai.
जवाब देंहटाएंसलिल ,
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील रचना....मुझे तो वो निम्बू बेचने वाली लडकी नज़र आ रही है...ऐसा लग रहा है की उसका चेहरा मेरी आँखों के सामने है.....बहुत अच्छी रचना
bah re bihari bhaiya . apke kavi ke kauno certificate ka jaroorat nahi. aisan bhowook aur gahri kavita...........dil me baith gail bhaiya.........wah.......
जवाब देंहटाएंसोचनीय विषय |
जवाब देंहटाएंमैंने "देश के भविष्य" को हर रेलवे क्रोसिंग , हर चौराहे पर हाथ में कटोरा लिए देखा है | :(
सादर