छः महीना से ब्लॉग के गली में भटक रहे हैं, अऊर आज तीन महीना हो गया ई ब्लॉग लिखते हुए. एक बार पीछे घुर के देखते हैं, त लगता है कि का मिला ई तीन महीना में हमको. हम दिए 32 पोस्ट अऊर हमको मिला 558 कमेंट अऊर 53 फॉलोवर. एही उपलब्धि है का! गलत. ई सब तो छलावा है! अऊर फॉलोवर का होता है... हम न त कोनो साधु हैं, धर्म गुरू हैं अऊर न नेता हैं कि हमरा कोई फॉलोवर होगा. सच पूछिए, त फॉलो तो हम कर रहे थे एतना दिन से अपना पुराना याद, बचपन का घटना, बिछड़ा हुआ लोग अऊर दीमक लगता हुआ कबिता सब को.
एगो अऊर बहुत खास बात है. अपना परिबार के बाहर भी हमको एगो परिवार मिला, जिसको हम ई तीन महीना का सबसे बड़ा पूँजी अऊर खजाना मानते हैं. आइए आपको मिलवाएँ, अपना एगो अऊर परिबार से, जो हमको भगवान से नहीं मिला है, हम खुद से बनाए हैं.
सबसे पहिले, अपनत्व, सरिता अग्रवाल जी. समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर. डिग्री माने खाली पढाई करना नहीं. अपने ब्लॉग से जो अपनापन ई बिखेरी हैं, ऊ जीबन का पढाई करने से ही मिलता है. हम इनको सुरुए से पढते थे, लेकिन ऊ कभी हमरे ब्लॉग पर नहीं आईं, हमरे कहने के बावजूद भी. कारन कभी पूछे नहीं उनसे. लेकिन हमरा कमेंट ऊ हमेसा पढते रह्ती थीं, बस ओही से प्रभावित होकर आ गईं, अऊर बस तब से जुड़ी हैं. सायद ई अपना तरह का पहिला जुड़ाव है, एगो अनजान ब्यक्ति से. इनका हैसियत हमेसा एगो बुजुर्ग का रहा हमरे ब्लॉग परिवार में, कभी बड़की दीदी, कभी माँ. पति, प्रतिष्ठित संस्थान I.I.T. खड़गपुर में पढते हुए भी हॉस्टल के महौल से अनजान. अपसब्द के नाम पर 'फनी चैप' से जादा नहीं बोलते हैं. घर में ठेठ अंगरेजी माहौल बातचीत में, लेकिन हिंदी में सरिता जी का लेखन बच्चों को प्रेरित करने के लिए. तीन बच्चियाँ, सभी अपने अपने घर में, सुख अऊर समृद्धि के साथ. अभी फिलहाल, लंदन में नानी बनने का इंतजार कर रही हैं,एगो प्यारी सी बच्ची का.
अगिला नाम जो हमरे सामने आता है ऊ है श्री सतीस सक्सेना का. हम त गुरुदेव कहते हैं उनको, अऊर मानते हैं बड़ा भाई जईसा. पेट के लिए, सरकारी महकमा में इंजीनियर हैं, लेकिन पेट से जादा दिल से परेसान है. दिल है कि मानता नहीं, इसलिए किसी का दर्द देख नहीं पाते, चाहे आदमी हो या अनबोलता जानवर. मासूम एतना हैं कि गर्मी से बेहाल होकर कार का ए.सी. चलाकर अपना दुनो बच्चा के साथ सो गए. आँख तब खुला जब बचिया बेहोस हो गई अऊर सब का दम घुटने लगा. भगवान (जिसको ऊ नहीं मानते हैं हमरे तरह) का दया था कि बच गए. हमसे लड़ाई बहुत करते हैं, सॉरी उलटा हो गया, हम लड़ाइयो बहुत करते हैं इनसे, लेकिन बड़का भाई हैं त इनका सलाहो मान लेते हैं. बगले में रहते हैं हमरे. त बिना बोलाए धमक गए इनके घर, तब पता चला कि हम ऊ पहिला आदमी हैं (अगर ब्लॉगर को आदमी मान लीजिए तब) जो इस दुनिया से उनका घर में दाखिल हुआ है. एगो बेटा अऊर, एगो बेटी के साथ आप अपनी सिरीमति जी के सुर में सुर मिलाते हैं. एक सच्चा इंसान, सादा चरित्र आदमी हैं हमरे बड़का भईया.
हमरे छोटका भाई श्री मनोज कुमार, छोटा इसलिए कि हमसे उमर में एक साल छोटा हैं. कोलकाता में भारतीय आयुध निर्माण संस्थान में हैं, लेकिन असली आयुध त इनका कलम है, चाहे कहिए त कुंजी पटल. एकदम सहित्यिक आदमी, संस्थान के नाम से बिपरीत. शांत सोभाव वाले मनोज जी के मन में एगो मलाल है, जिसका जिकिर ऊ हमसे किए थे एक बार, सायद हमरे साथ कॉमन मलाल था इसीलिए. एकदम ठेठ देसी आदमी हैं मन से. सब लोगों का पोस्ट पढते हैं, टिप्पनी देते हैं, अऊर साप्ताहिक चर्चा भी करते हैं. बातचीत में एतना कोमल कि लगबे नहीं करता है कि एतना बड़ा सरकारी साहेब हैं. वादा किए हैं कि आतिथ्य का मौका देंगे. देखें कब पधारते हैं.
हमरा परिवार का अगिला सदस्य है सोनी गर्ग हैं. ब्लॉग का नाम तीखा बोल. लेकिन ई तीखापन ऊ लोग के खिलाफ है जो गलत आचरन करते हैं. व्यावसायिक परिवार से आने के बाबजूद भी लिखने का रुचि, जागरण जंक्शन का टॉप 20 ब्लॉगर्स में से एक. मगर थोड़ा सा पागल है. जब पता चला कि सम्वेदना के स्वर वाला सलिल हम ही हैं, त गुसिया गई कि हमको बताए काहे नहीं. बाबू जी कहती है हमको, अऊर हमरी त बिटिया है, बंगाल के हिसाब से माँ. कोई भी कमेंट कीजिए इसके पोस्ट पर, तुरत जवाब देगी, गलती करेगी त बेहिचक माफी माँग लेती है. कहती है बंधन पसंद नहीं, इसलिए नौकरी, ना-करी. अपने मन की मालकिन है, बात करने का अंदाज भी ओईसने है, जइसा लिखने का, डायरेक्ट दिल से!
सबसे सैतान है, स्तुति पाण्डे. अमेरिका में बसी है, लेकिन फिर भी दिल है हिंदुस्तानी को सच करने पर तुली है…फोन पर डेढ घंटा बतिया गई...ठेठ हमरे भासा में.बात सुनियेगा त बुझएबे नहीं करेगा कि एतना पढी लिखी, आई.बी.एम. में काम करने वाली लड़की है. ऊ त माने बदल दी है आई.बी.एम. का – इण्टर्नेशनल बिहारी मंच. अब बताईए है कोनो मुकाबला. इण्डिया में अपना दोस्त सब से लगातार जुड़ी है. ओहाँ अंगरेज लोग को भोजपुरी सिखाती है, लेकिन कुलदीप बाबू (हमरे मेहमान, उसके दुल्हा) को ठीक से हिंदीओ बोलना नहीं सिखा पाई. खैर, ई मजाक था. नाटक अऊर अभिनय उसके रग रग में बसा है. बहुत सम्बेदनसील है, हमरे जईसा. तुरते रोने लगती है. लेकिन कबिता से ओतने दूर है जेतना भारत से अमेरिका. भारत लौटकर आने का तमन्ना है. दोनों माँ बाप के लिए बहुत प्यार है मन में. हमको कभी पापा, कभी बाबूजी कहती है, हमारी (बि)देसी बेटी.
ई एपिसोड के लास्ट में अपने सम्वेदना के स्वर चैतन्य जी को कईसे भुला सकते हैं. ई ब्लॉगवा का नाम उनका दिया हुआ है.आज तीन महीना से उनका दिया नाम का कर्जा चुका रहे हैं धीरे धीरे. लेकिन ऊ भी हमरे जईसा बिजनेसमैन नहीं हैं, इसलिए न उनको कर्जा बसूलने का जल्दी है, न हमको चुकाने का.
पुनश्चः ई पोस्ट अल्पबिराम है. एतना लोग के प्यार का कर्जा है कि चुकाने के लिए एगो अऊर जनम, मतलब अऊर पोस्ट लिखना पड़ेगा. त बस इंतजार कीजिए. तनी सुस्ता कर हम फिर चालू हो जाते हैं.
अरे वाह ...........बहुत बढ़िया क्या कहने सलिल भाई ..........मज़ा बांध दिए आप तो !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट है..और सबका परिचय भी बहुत सुन्दर...आपका परिवार ऐसे ही फूलता फलता रहे ....शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंजब कुछ लिखते हैं तो रुलाईये देते हैं :( .. क्या कहें पा....अब फोनवे पर कहेंगे जो कहना है. :(
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से सबका परिचय दिए हो साहब। ये पोस्ट अच्छी लगी लोगों के बारे में तनिक-तनिक जानकारी हो गई। बहुत अच्छा परिवार है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अपनत्व भरा परिचय।
जवाब देंहटाएंवाकई कुटुम्ब भाव उभरता है।
आपको बधाई व सभी को अभिनंदन
यही तो परिवार...बहुत अच्छा लगा जानकर..बढ़ता परिवार देख कर. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया प्रस्तुती ,एकदमे में पढ़ गए पता चलबे नहीं किया की पूरा पढ़ लिए ,शानदार है अपनापन आपका ...
जवाब देंहटाएंबहुत है बहुत खूब है। तीन महीना हुये और परिवार इत्ता बड़ा हो गया। बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंआज लिखने का मन नहीं हुआ...मुस्कुरा के बस देखते जाने का मन हुआ. आपका अपनापन और कलम की स्याही दोनों बहुत मीठी हैं, एकदम भोजपुरी जैसी ही.
जवाब देंहटाएंये स्नेह वृंत बना रहे, पल्लवित हो..
आपके परिवार और आपकी संवेदनाओं को प्रणाम !अपनत्व हमसे बड़ी हैं मगर कई बार लगता है वे आपसे भी अधिक संवेदनशील हैं , अच्छी तो वे हैं हीं !
जवाब देंहटाएंईश्वर आपका इतना प्यारा दिल कभी न दुखाये..यही प्रार्थना है !
सच में ये ब्लॉग एक परिवार कि तरह .....ज़रा से दूर जाइये तो ऐसा लगता है ....जैसे घर से कही दूर चले गए .......बहुत बढ़िया प्रस्तुति रही .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दरता से आपने अपने परिवार के सभी लोगों से परिचय करवाया! बढ़िया पोस्ट! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंचचा कल सोने के वक्त इस पोस्ट को पढ़ लिए थे,कमेन्ट नही दिए थे.....बहुत अच्छा लगा ई परिवार से मिल कर....लेकिन एगो बात हमको अच्छा नही लगा...मेरा एगो दुश्मन का भी नाम है ई में..ऊ है स्तुति पाण्डे....बहुत बड़की दुश्मन है हमारी ई लड़की :P
जवाब देंहटाएंलीजिये बाबू जी, आपकी ये पागल बिटिया ने आने में फिर से देर कर दी ...........लेकिन इ का आप तो रुलाई दिए आज ......अपना परिवार में शामिल किए खातिर आपका बहुते सुक्रिया !!!!!!!
जवाब देंहटाएं..........
जवाब देंहटाएंka kahe....eehe t: jiban hai
chahta t: sab aisa hi parivar
hai....magar sabko milta kahan hai.
aap sunate rahiye hamsab sunte rahenge.
pranam swikar kar lijiyega.
धुत्त मरदे!
जवाब देंहटाएंइतना अपनापन से कोई लिखता है। आप त बात-बात में रुलाइए देते हैं। ई सब बात मने में रखते त काम नहीं चलता का।
अब छोटका भाई बना लिए हैं त आना त पड़ेगा ही। इधर बहुत दीन से दील्ली जाना हुआ ही नहीं है। ससुरारो बाला सब इयाद नहीं करता है। देखें "ऊ" अगर राखी बांधने का जीद की त जाना तो होगा ही।
हं एगो बात है। परिबार बढाते रहिए। इसमें नियोजन का कोनो जरूरत नहीं है।
क्या सलिल भाई! आप ही नें तो कहा था, अपन दोनों के बारे में कि "जहां सोच और अभिव्यक्ति एक हो जाती है, ऐसा अकसर दो व्यक्तियों में कम ही होता है, पर हम में है."
जवाब देंहटाएंब्लोग का नाम तो अपनी टेलीफोन पर दैनिक मगज-मारी में ऐसे ही आ गया था. अपने तो सारे जुमला-हूकूक आपके हैं. क्या तेरा? क्या मेरा?
खैर! दिनरात जिस तरह हम फोन पर मगज-मारी करते हैं, उसे देखकर तो हमारी बीबीयों का वाक-कौशल हार गया है. परिवार और मित्रो का कहना है कि बी.एस.एन एल को घाटे से उबारने में हमारा प्रयास भी सराहा जायेगा.
मेरे लिये तो आभासी ही वास्तविक है.
आपका सानिध्य,अस्तित्व की अनूठी देन है.
-चैतन्य आलोक
Bihari Babu!! achchha laga aaapke e blog pariwar ke baare me padh kar!! ketna dil se laga kar aap post karte hain! sach me aap bahut bhawuk insaan hain.........!!
जवाब देंहटाएंaapke post ko padh kar khushi milti hai..........:)
hame bhi aapkee eee pariwar me shamil hona hai........:D please!!
@ मुकेश कुमार सिन्हा
जवाब देंहटाएंआप तो इस परिवार का हिस्सा आलरेडी हाइये हो.
एतना लोग के प्यार का कर्जा है,त बस इंतजार कीजिए. तनी सुस्ता कर हम फिर चालू हो जाते हैं.
बहुत ही अच्छा लगा ,आपके परिवार से मिलकर...
जवाब देंहटाएंआपके रोचक कमेंट्स तो कई बार देखे हैं (दूसरे ब्लोग्स पर :) )..उतनी ही रोचकता से सबका परिचय भी दिया है...आपका परिवार ऐसे ही लिखता रहें और हम पढ़ कर लाभान्वित होते रहें
ओशो सिद्धार्थ कहते हैं-
जवाब देंहटाएं"कहने को कोई हमारा है
तब तक ही यह जग प्यारा है"
बहुत अच्छा लगा जानकर
जवाब देंहटाएंबहुत व्यक्तिगत परिचय कराया आपने परिवार के सदस्यो से. बहुत अच्छा पोस्ट है. मजा आया पड्कर. परिवार बढता रहे, शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंबहुत व्यक्तिगत परिचय कराया आपने परिवार के सदस्यो से. बहुत अच्छा पोस्ट है. मजा आया पड्कर. परिवार बढता रहे, शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंई परिचयनमवा तो बहुत सुघड़ लिखने बाटीं-ऊ कहल जाथ न कि केहू के बारे में ठीक ठीक जानिके होय त..अ ओकरे साथी संगातीं के बारे में जानकारी करैके चाही -लाजवाब लोग हैं आपके परिचय में ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रहा परिचय का अंदाज़
जवाब देंहटाएंपरिवार ऐसे ही फूलता फलता रहे
शुभकामनाएँ
बी एस पाबला
@अरविंद मिश्रः पंडित जी, आपका आगमन से कुटिया पबित्तर हो गया!
जवाब देंहटाएं@ पबला जीः आपको पुनः सक्रिय देखकर मन गदगद हो गया.
साँची बताइ तो हमका बिहारी औउर इ भोजपुरी पढ़ने में बड़ी आलस आत है..सीधा भेजा में नाही घुसत.
जवाब देंहटाएंतभी हम आँख चुरात हैं इहा आने के वास्ते.
पर इ तोहार पोस्ट से बहुत लोगन का जानकारी मिली. अच्छा लगा जान के. चलो ठेन्कुवा दे ही देत.
:):)
परिवार फलता फूलता रहे ।
जवाब देंहटाएंपरिवार फलता फूलता रहे ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंभावना का भावना से मिलन प्रस्तुत करता आपका यह परिवार यूँ ही बढ़ता रहे और जिंदगी के अनुभवों से आपूरित आपके इस परिवार से हम लाभान्वित होते रहें...यही अभिलाषा है । दूसरों के अनुभव से जो सीख मिलती है,वह स्वयं के जीवन को संवारने का संबल बनती है । आपके इस संवेदनशील परिवार से मिल कर अच्छा लगा । अब तो इनके आंगन (ब्लॉग) में जाना ही होगा ।
जवाब देंहटाएंब्लॉगर परिवार पर
जवाब देंहटाएंअच्छे विचार
आपका आभार।
पोस्ट तो किसी तरह सब ठो हम पढ़ लेते हैं... आजकल ब्लॉग पर समय ज्यादा नहीं दे पा रहे हैं... बाकी आपको तो हम अप्रिले से फोलो कर रहे हैं, बहुत अपनापन जो लगता है.
जवाब देंहटाएं-----------------------------------------
जवाब देंहटाएंआप भी बड़ी भुलाक्कर हैं चचा जान ! एतना बड़ा समरिध परिवार का चर्चा खुलेआम करते हैं. दीन-जमाना खराब है. पता नहीं किसका नजर-गुजर लग जाए. इहे लिए हम सबसे पहिले करिया डोरा बाँध दिए हैं. बोलिए ठीक किये न.... ?
जाने कहाँ से कईसे आपके बिलोग्वा में हम आ गईल,जो हम स्तुति बिटिया के फोटुआ देखि तो दंग रह गईल.नजर ना लगे हमार बचुआ को. बज़ पर ही मिलत रहे उनसे.फिर देखि अपना सतीस बाबु को.फिर तो पढते गए. पढते गए.
जवाब देंहटाएंइलाहबाद छोड़े को जुग बीत गईल ,अब हम भोजपुरी,अवधि नही बोल सकत पर कोसिस कर रही हैं कि लिखे.तो हम भि ई परिवार का हिस्सा होई जईबे सायद.पर पूरा परिवार से मिल के मन खुस होई गईल हमार.
प्रभु खूब खुशियाँ दें सबको.
एक खामख्वाह के ब्लोगर को भी अपना परिवार में सामिल कीजिए......
जवाब देंहटाएंमेरे होठों पर एक हलकी सी मुस्कान है , और आपके और आपके परिवार के लिए दुआएं |
जवाब देंहटाएं(हालाँकि हम आपको का दुआएं देंगे , आपके बच्चे जैसे हैं हम, लेकिन कभी-कभी बच्चे की दुआ भी असर करती है और फिर हमारी दुआ सीधा दिल से आ रही है , ख़ामोशी में घुलकर) |
सादर