जिन्नगी से बड़ा कोई मास्टर नहीं है, लेकिन जिन्नगी त कोनो देखाई देने वाला चीज नहीं है, इसीलिए आस पास जेतना आदमी, जानवर, पंछी, पेड़-पौधा अऊर जीव-जंतु है, सब को ध्यान से देखने का जरुरत है. जइसे किसी भी भेस में नारायण मिल जाते हैं, उसी तरह सिखाने वाला गुरू भी मिल जाता है. जो भी मिलता है, जाते-जाते कुछ न कुछ सिखा के जाता है. नहीं कुछ, त अनुभव त देइये जाता है.
एक बार का बात है. हम लोग ट्रेन से कलकत्ता से पटना जा रहे थे. गाड़ी में एगो सज्जन चिनिया बादाम (मूँगफली) खा रहे थे, अऊर छिलका ओहीं जमीन पर गिराते जा रहे थे. हम लोग का आदत है कि सब छिलका एगो अखबार में लपेट कर बाहर फेंक देते हैं. ऊ भाई जी मान के बईठे थे कि रेलवे उनका सम्पत्ति है (ई भुला गए थे कि उसमें हमनियो का सेयर है). दू चार बार उनके तरफ देखने से भी उनको बुझा नहीं रहा था. हमरी बिटिया बहुत छोटी थी उस समय. अचानके बोली, “डैडी! छिलका जमीन पर गिराना गंदी बात होती है ना!” एतना सुनने के बाद ऊ भाई जी को समझाने का जरूरत नहीं पड़ा. ऊ चुपचाप सब छिलका जमीन पर से उठाए अऊर बाहर फेंक कर आए. अब बताइए ऊ सज्जन सोचबो नहीं किए होंगे कि एगो बच्चा मास्टर बन जाएगा उनका.
परिवार में पहिला गुरू माँ बाप होता है. लेकिन हमरे स्वर्गीय पिता जी हमलोग से पढाई लिखाई का बात बहुते कम किया करते थे. बाकि सिनेमा, कहानी, उपन्यास, कबिता, संगीत का बात त जहाँ बईठे ओहीं सुरू. “मैं पिया तोरी, तू माने या न माने” – ई गाना में जो बाँसुरी सुनाई दे रहा है, ऊ पन्ना लाल घोष का बजाया हुआ है, “नाचे मन मोरा मगन” – इसमें गोदई महाराज तबला बजाए हैं, ऐसहीं न मालूम केतना जानकारी ऊ खेल खेल में दे देते थे. फिलिम के बारे में उनका जानकारी एतना जबर्दस्त था कि ग्रुप डांस में तीसरा लाईन में डांस करने वाली लड़की को देखकर बता देते थे कि ई मास्टर सत्यनारायण की असिस्टेंट है. फिलिम तकनीक का बहुत सा बारीकी उनसे सीखे हैं हम, आज से केतना साल पहिले.
आप कभी सोचे हैं कि जऊन कागज में मूँगफली लपेट कर रोड के किनारे बेचता है, ऊ भी देता है ज्ञान हमको. हमरे एगो अंगरेजी के मास्टर थे, ओही बताए थे एक बार. बोले कि मूँगफली खाने के बाद कागज को फेंकना नहीं चाहिए. कागज अगर अंगरेजी के अखबार का है, त एक बार उसको पढो. हो सकता है कि उसमें लिखा हुआ सब सब्द तुमको मालूम होगा. इससे कोनो नोकसान नहीं है, दोबारा पढने से तुमरा जानकारी दोहरा जाएगा. ईहो हो सकता है कि कुछ सब्द का नया प्रयोग भी तुमको पता चले. लेकिन अगर सब्द नया हुआ त उसको नोट करो, घरे जाकर डिक्सनरी में देखो अऊर ऊ मूँगफली वाला को धन्यवाद दो कि ऊ अनपढ आदमी, अनजाने में तुमको नया सब्द सिखा गया.
अंत में एक बार फिर अपने पिताजी का एगो सीख बता दें. ई त अईसा सीख है कि हम बुढ़ापा तक उसका पालन कर रहे हैं. पिताजी बताते थे कि अगर कोई तुमसे पूछे कि कैट माने का होता है अऊर तुमको नहीं मालूम है, त बिना सोचे तुरत बोल दो कि नहीं मालूम. ई बोलने से तुमरा एक नम्बर कटेगा, लेकिन कभी गलतियो से कैट माने कुत्ता मत बोलना, नहीं त तुमरा चार नम्बर कट जाएगा. जानते हो कईसे... कैट माने कुत्ता बोलने का मतलब है कि तुमको, कैट का हिंदी, बिल्ली का अंगरेजी, कुत्ता का अंगरेजी अऊर डॉग का हिंदी भी नहीं मालूम. एगो गलत जवाब दिए अऊर चार नम्बर साफ.
सुनने में ई चुटकुला लगता है, लेकिन जिन्नगी का बहुत बड़ा सीख है. हमलोग हमेसा झिझकते हैं ई बोलने में कि हम नहीं जानते हैं, खासकर अपना बच्चा, चाहे अपने से छोटा से. उसका छोटा होने का नाजायज फायदा उठाकर, हम उसको गलत जवाब देकर, अपना अज्ञानता छिपाते हैं. लेकिन ई सीख मिलने के बाद महसूस हुआ कि एगो गलत जवाब देकर, हम ऊ बच्चा के नजर में गिरें चाहे नहीं गिरें, अपना नजर में चार गुना नीचे गिर जाते हैं.
जय हो महाराज ..............आज तो बातों बातों में बहुत कुछ सिखा गए आप !
जवाब देंहटाएंबाबु जी को प्रणाम !
जिन्दगी हर पल कुछ सिखाती है, सच है........... मेरी एक मैडम थी "श्रीमती कुसुम भारद्वाज" वो हमें अक्सर कहती थी की बेटा जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है जितना सीख सकते हो सीख लो क्योकि जिन्दगी में कुछ भी सीखा हुआ कभी बेकार नहीं जाता वो कहीं ना कहीं हमेशा काम आता है ! बस तब से आज तक सीख रही हूँ और ये भी बिलकुल सही है की जब हमें किसी सवाल का जवाब नहीं पता हो हमें साफ़ माना कर देना चाहिए ! इस पर भी एक बात कहना चाहूंगी जब में कॉलेज में अपना फर्स्ट ईअर कर रही थी तब हमारे इंग्लिश के प्रोफ़ेसर ने एक बात कही थी ........." बेटा अगर कभी किसी question का answer नहीं पता हो तो मत देना और उस question का answer देने के लिए नक़ल भी मत करना क्योकि एक बार तो नक़ल लगा कर पास हो जाओगे लेकिन अगर किसी ने बाहर तुमसे उस प्रश्न का जवाब माँगा और तुमने नहीं दिया तब तुम्हे शर्मिंदा होना पड़ेगा !" बस उनकी सीख का ही नतीजा है आज अपने हर सवाल का जवाब याद है !
जवाब देंहटाएंpratiksha rahtee hai aapkee post kee anjane hee aap apne anubhav v sansmaran hum sabhee se baat kar marg darshan kar rahe hai..........Aabhar .
जवाब देंहटाएं24 ko baahar jaa rahee hoo aniymitta rahegee blogs dekhane me.........do mahine lagata hai bahut kuch chootega............. vaapsee me aakar hee comments de paungee........Aap sub bus bhooliyega nahee .
Bitiya ko aasheesh .
पिताजी की सीख को नमन...कितना अच्छा बात हंसी हंसी में बता गए हैं...धन्य हैं...येही अपनी भी आदत है कोई चीज़ नहीं मालूम तो नहीं मालूम...ख़तम...आपका पोस्ट से केतना सीख मिलता है...का बताएं?
जवाब देंहटाएंनीरज
सीख की बात आपने कही। सही है। जीवन में हम छोटी छोटी बातों से ही सीखते हैं। अन्यथा न लें,चलती ट्रेन से बाहर कचरा फेंकना भी अच्छी बात नहीं है। बेहतर होगा कि उसे आप अपने साथ रखें और स्टेशन आने पर कचरे के डिब्बे में डालें।
जवाब देंहटाएं@राजेश उत्साहीः
जवाब देंहटाएंबाबा भारती जी, गाड़ी से बाहर माने गाड़ी में वास बेसिन के नीचे कचरा फेंकने का जगह होता है, ओहीं फेंकने के बारे में कहे हैं. आप एतना बारीकी से पढ़े इसके लिए धन्यवाद. अन्यथा नहीं लेने वाला बाते हम अन्यथा लेने लगे थे.
ye wakai me chutkula nahi hai, bahut badi seekh hai.
जवाब देंहटाएंsach me, dhanyawad ise punh preshit karne ke liye..aur wo char number wali baat to naman karne, anukaran karne yogya hai.
sadhuwad
कई-कई गुरुओं से एक साथ रूबरू करा दिया आज आपने- बिटिया, माँ जी , पिताजी, मास्टर जी, खुद और सभी गुरुओं की गुरु, 'जिंदगी'। आपके लेखन के मुरीदों में से एक हैं हम! बारम्बार आभार।
जवाब देंहटाएंनिश्छल मन कई बार बहुत कुछ सिखा देता है ! पिताजी की बात बहुत बढ़िया लगी ...याद रखूंगा !
जवाब देंहटाएंसीख तो अच्छी है ही लेकिन मुझे आपके कहने का अन्दाज और भी शानदार लगता है
जवाब देंहटाएंलगता है कि मैं किसी अपने पारिवारिक और एकदम निकटतम सदस्य के साथ घर पर बातचीत कर रहा हूं
मजा आ गया.
बाबूजी को मेरा नमन.
आपने ब्लाग पर जो दो लिंक दिए हैं उन पर थोड़ी देर में जाता हूं. नेट की समस्या चल रही है.
जवाब देंहटाएंअच्छा बात कहे हैं चाचा आप :)
जवाब देंहटाएंमूँगफली वाला कागज़ को पढ़ने का हमारा भी आदत रहा है :) ऐसे ही पढ़ लिया करते हैं...अभी कल ही ऑफिस से आते वक्त मूँगफली खाए थे :)
It is true that we quite often try to hide our ignorance.
जवाब देंहटाएंBut we must learn to accept our ignorance and ready to learn from our younger generation.
They know a lot many things which I never came across in my life. I enjoy talking with kids and learning new things.
Nice post !...quite realistic !
maza aur kuchh gyan dono agya
जवाब देंहटाएंbahut si baato ki seekh de gaya apka lekh.
जवाब देंहटाएंaabhar.
bahut achchi-achchi baaten likh bheji hai aapne.thank you.
जवाब देंहटाएंbahut khoob... zindgi sab shikha deti hai...
जवाब देंहटाएंbachpan main jo bhi akhbaar ka lifafa hota khol kar padhti jaroor thi ab to yeh sukh bhoole bhatke hi milta hai kyunki moongfaliwala bhi ab to polythin bag hi deta hai isliye moonfali khaane ka maza bhi adhoora hi rahta hai.
जवाब देंहटाएंये बहुत अच्छी सीख है आपकी .... जवाब नही आता तो देना नही चाहिए .... ग़लत तो कभी भी नही देना चाहिए ....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
बहुत अच्छी सीख हैं |
जवाब देंहटाएंएक उदाहरण देता हूँ -
हम होस्टल में रहता हैं , एक दिन सुबह सो कर उठा , फर्श पर पानी पड़ा था , हम फिसल गये और चोट आयी , लेकिन उसका नतीजा ये हुआ कि अगली बार से जो भी वहाँ से निकलता था संभाल के निकलता था , हम अंजाने ही उन सबके गुरु बन चुके थे |
सादर