ईमानदरी से कहें त हम कभी सोचबो नहीं किए थे कि कोनो आदमी के ब्यक्तिगत याद में किसी को दिलचस्पी हो सकता है. लेकिन जब एतना सारा लोग परिबार के जईसा भेंटा गया त लगा कि हर आदमी का याद में से लोग अपना कहानी खोज लेता है अऊर ओही आदमी को आदमी से जोड़ता है. इसीलिए हमरे गुरू डॉ.राही मासूम रज़ा कहते हैं कि याद बादलों की तरह कोई हल्की फुल्की चीज़ नहीं कि आहिस्ता से गुज़र जाए. याद एक पूरा ज़माना होती है और ज़माना कभी हल्का नहीं होता.
अब जमाना त दुइये तरह का याद रहता है सबको, चाहे त गुलाम अली के तरह आसिकी का वो जमाना हो, चाहे कॉलेज में मस्ती का जमाना. कॉलेज में पढाई के टाइम पर पढाई त ठीक है, लेकिन मस्ती का कोनो टाइम नहीं.खाली क्लास में गंगा किनारे अंताक्षरी,चाहे क्लास के अंदर प्रोफेसर बनकर उनका केरिकेचर करना.सदियों से ई परम्परा चला आ रहा है मस्ती का, त हम कोनो अपबाद त नहिंए थे.
बोर्ड पर कार्टून बनाने में हमरा कोनो जवाब नहीं था. लेकिन एक बात था कि हम कभी सालीनता के सीमा से बाहर नहीं गए. बाकी कार्टून त कार्टून होता है. कभी कभी प्रोफेसर को बुरा भी लगता था, लेकिन उनके लिए ई पता लगाना कि बोर्ड पर कार्टून कौन बनाया है, मोस्किल ही नहीं, नामुमकिन होता था. सच पूछिए त हमरे क्लास में हर नया प्रोफेसर का स्वागत उनका कार्टून से किया जाता था. अगर उस समय मोबाइल कैमेरा से भी फोटो खींच कर रखे होते त का मालूम केतना प्रोफेसर का पोर्टरेट बन गया होता अऊर आज उनको ऊ कार्टून भेंट करके आसिर्बाद ले लेते.
एक रोज पता चला कि अल्जेब्रा पढाने के लिए नया प्रोफेसर असित दासगुप्ता आने वाले हैं.बस हमरा डिऊटी लग गया. दरवाजा बंद करके, जल्दी से चॉक उठाए अऊर एगो सानदार कार्टून तैयार. चस्मा लगाए हुए, प्रोफेसर साहब,एक हाथ में डस्टर लिए दोसरा हाथ में चॉक से पूरा बाइनोमिअल थ्योरम लिख रहे थे. कार्टून पूरा हुआ, दरवाजा खोल दिया गया अऊर प्रोफेसर साहब का इंतजार सुरू.
बंगाली भद्रलोक चाहे केतना भी ऊपर चले जाएँ, अपना जड़ नहीं भूलते हैं. अमर्त्य सेन साइकिल चलाते हैं अऊर ज्योति बाबू को बंगाल क्लब में घुसने से मना कर दिया जाता है (तब ऊ मुख्य मंत्री थे), खाली इसीलिए कि ऊ धोती पहिने थे और क्लब का ड्रेस कोड के खिलाफ था ई बात. खैर, हमरे दासगुप्ता साहब भी आए, जाड़ा का दिन था इसलिए शॉल ओढे हुए (सूट पहिनते उनको कभी नहीं देखे हम).
क्लास एकदम सांत. दासगुप्ता सर हाथ में डस्टर उठाकर, जईसे बोर्ड साफ करने चले कि उनका नजर कार्टून पर पड़ गया. ऊ तुरत मुड़े अऊर क्लास से बोले, “ किसने बनाया है ये चित्र?”
पूरा क्लास खामोस, एक दम मँजा हुआ खिलाड़ी था सब लोग. ऊ दू बार पूछे, मगर जवाब नहीं मिलने पर क्लास से बोले, “ इन फैक्ट, इसमें छोटा सा मिस्टेक है. कौन बनाया है बताने से हम उसको पर्सनली बता सकते थे.”
क्लास फिर चुप्पे रहा. अबकि ऊ डस्टर लेकर बोर्ड के तरफ बढे और बोले, “चलिए, जो कोई भी है वो तो क्लास में ही है न. इसलिए गलती बता देते हैं.” एतना बोलने के बाद ऊ डस्टर से कार्टून में बना हुआ डस्टर वाला हाथ आधा मिटा दिए.
“ये गलत बनाया है जिसने भी बनाया है.” ऊ बोले अऊर फिर पूरा क्लास के सामने शॉल हटाकर ऊ देखाए कि उनका एक हाथ आधा कटा हुआ था.
क्लास अभी भी सांत था. मगर सांति जरूरत से ज्यादा हो गया था. हमरे अंदर भयंकर सोर मचा हुआ था. जईसे पचास मिनट का क्लास खतम हुआ, हम अपने दोस्त लोग से भी नजर नहीं मिला पाए, सीधा टीचर्स रूम जाकर दासगुप्ता सर के सामने खड़े हो गए. हमको बताने का जरूरत भी नहीं पड़ा हम काहे आए हैं. ऊ हमरे आँख में आँसू देखे अऊर हमरे कंधा पर हाथ रखकर बोले, “कोई बात नहीं.”
शायद सम्वेदनाओं की अनुभुति का आपका पहला अवसर था।
जवाब देंहटाएंदासगुप्ता सर एक सुन्दर पाठ पढा गये।
वह फ़िलींग्स सदा आपके व्यक्तित्व का हिस्सा रहेगी।
हम का कहें...हम भी बहुत ज्यादा शांत हैं अभी
जवाब देंहटाएंहम्म होता है ऐसा भी कभी कभी ...
जवाब देंहटाएंदासगुप्ता साहब के बाइनोमिअल थ्योरम में गलती नहीं होती थी न, स्नेह से एक्सपैंड करने वालों के थ्योरम गलत नहीं होते, डस्टर की जरुरत भी नहीं होती...बाकी कुछ कहना, न कहने जैसा है. मौन शोर बहुत करता है.
जवाब देंहटाएंहे भगवान्!
जवाब देंहटाएंअसल में जिन्दगी में हर याद,हर घटना कोई न कोई सबक दे के ही जाती है।
जवाब देंहटाएंजिंदगी की मौज मस्ती में कई बार अनजाने में ऐसा कुछ हो जाता है जो जिंदगी भर सबक का काम करता है, व्यक्तित्व परिवर्तन करता है और कभी भुलाये नहीं भूलता. ये भी उन में से एक है. संवेदनशील.
जवाब देंहटाएंसंभवतः,प्रोफेसर के मन में आपके ठीक विपरीत प्रतिक्रिया हुई होगी। आख़िर,ज्ञान का संबल और छात्र की शिष्टता ही शिक्षक के हाथ होते हैं।
जवाब देंहटाएंशायद ही किसी ने कभी सोचा होगा किसी कार्टून के दर्द के बारे में !!
जवाब देंहटाएंनमन आपको और गुरु दासगुप्ता जी को !
@कुमार राधारमणः
जवाब देंहटाएंआपका ई प्रतिक्रिया हमरे मन का बरसों पुराना बोझ तनी कम किया...आपके भावना को प्रणाम!!
यह अध्यापक का गुण है कि बच्चों कि शरारत को भी शालीनता से लिया जाये ...और उसमें भी रचनात्मकता देखी जाये .... ऐसी घटनाओं से ही मन कीसंवेदनशीलता पता चलती है ...
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
कार्टून बनाना, शरारतें करना, आपस में तकरार...ये सब शायद क्लास रूम 'सर्वाइवल इंस्टिंक्ट' हैं. बहरहाल आपने कार्टून बनाते-बनाते शब्द चित्र बनाने में महारथ हासिल कर ली. यही कहूँगा...एक जादू सा बिखेर देते हैं आप लफ़्ज़ों से!!
जवाब देंहटाएंशरारती बच्चा भी संवेनशील हो सकता है । जिंदगी का एक ओर पाठ पढ़ता प्रेरक संस्मरण ! आभार !!!
जवाब देंहटाएंगज़ब का लिखा है आपने! हम रोजाना इतना कार्टून देखते हैं पर उसके दर्द को समझने की कभी कोशिश नहीं की! बहुत ही संवेदनशील और उम्दा संस्मरण रहा!
जवाब देंहटाएंare bhai rulaoge hi kya???
जवाब देंहटाएंएक साधारण सी घटना की असाधारण प्रस्तुति....ये आपका अद्भुत लेखन ही बार बार हमें आपके ब्लॉग पर घसीट लाता है...वाह...
जवाब देंहटाएंनीरज
भैया, बहुत ही संवेदनशील घटना है, धटना क्या कहानी ही बन गयी है
जवाब देंहटाएंउफ़... बहुत ही मार्मिक संस्मरण है !
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील और रोचक संस्मरण है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंयह घटना आप कभी नहीं भूल पाएंगे, शायद जब कभी का कार्टून बनाने का प्रयत्न करेंगे दासगुप्ता का चेहरा सामने होगा ! बेहद मार्मिक प्रकरण ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपके संवेदनशील व्यक्तित्व को !
वाह! वाह! क्या बात है। मतलब आप खूब शरारती रहे हैं.........
जवाब देंहटाएंवैसे पत्रकारिता की पढ़ाई करते समय हमने भी खूब मस्ती की। लेकिन दो शिक्षकों से बहुत डर लगता था। वे बहुत गंभीर थे। एक से फिर भी हंसी-मजाक हो जाता था तो उनकी नकल करके बताते थे। वे खूब हंसते थे।
सज्जनता की परीक्षा आपके व्यवहार से होती है।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना।
अंजाने ही ऐसा बहुत कुछ होता है जीवन में जो हमेशा याद रहता है ताज़ा रहता है ... आपके संवेदनशेल हृदय की मिसाल है ये भी ...
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंअसीम स्नेह , प्यार और जिजीविषा |
सादर