बिहार राज्य पथ परिवहन निगम का हालत पहिले एतना खराब नहीं था. पटना के आस पास के बाहरी इलाका के लिए कॉलेज, युनिवर्सिटी के छात्र अऊर राज्य सरकार के कर्मचारी के लिए इस्पेसल बस सेवा हुआ करता था. एकदम समय का पाबंदी के साथ. टाइम का खयाल बस का ड्राइवर अऊर कण्डक्टर साहब रखते थे, अऊर उनका ‘खयाल’ यात्री लोग.
ई बात तब का है जब हम दानापुर में पोस्टेड थे. पटना से दसेक किलोमीटर पच्छिम. एगो बस रोज सबेरे ऑफिस टाइम में लेकर जाता था अऊर साम को ले आता था हम लोग को. यात्री लोग थे ओहाँ के राज्य सरकार के ऑफिस के लोग अऊर केंद्र सरकार में रक्षा बिभाग का लोग. बहुत दोस्ताना माहौल था. 60 लोग का बस, सुबह साढे नौ बजे गाँधी मैदान डिपो से निकलता था अऊर साम को ठीक साढे पाँच बजे दानापुर से छूटता.
सब ठीके चल रहा था कि केंद्र सरकार के ऑफिस का टाइम बदल गया, सुबह 10 बजे से साम 6 बजे तक. ऊ लोग जाकर बस डिपो में टाइम कीपर को बता दिया कि बस अब से सुबह 9 बजे निकलेगा अऊर साम को साढे छौ बजे. टाइम बदलने से सबको असुबिधा हुआ, काहे कि उसमें बहुत सा गृहिनी लोग थी जिनको घरे जाकर भी काम करना होता था. लेकिन जो बात सबको खराब लगा ऊ ई था कि बस में इस बारे में कोनो चर्चा नहीं हुआ, जइसा कि होता था. बस के सेक्रेटरी का चुनाव या अऊर कोनो फैसला सब लोग चलते बस में चाहे एक जगह मैदान में रोक कर कर लेते थे. लेकिन ई परिबर्तन किसी के राय से नहीं हुआ था, बस मनमाना था.
अब केंद्र सरकार और राज्य सरकार के कर्मचारी लोग के बीच ठन गया. तत्काल चुनाव किया गया अऊर हमको नया सचिब चुन लिया गया. बस पुराना टाइम से चलने लगा. लेकिन दोसरा दिन से घेराओ चालू. दोसरा दल का लोग सुबह टाइम कीपर को धमका कर बस को अपना टाइम पर ले गया. हम भी उधर से लौटने के टाइम पर ऊ लोग को छोड़कर अपना आदमी के साथ चले आए.
अगिला दिन फिर ऊ लोग जबर्दस्ती ड्राइवर को घेर कर बईठ गया कि बस उनका टाइम से चलेगा. हम भी जोस में थे ही, रोड पर सो गए बस के आगे कि अब बस हमरे देह के ऊपर से जाएगा त जाएगा, नहीं त नहीं जाएगा. हम लेटे रहे रोड पर, अऊर बस को रात आठ बजे तक नहीं चलने दिए.
अगिला दिन राज्य परिवहन निगम के अध्यक्ष श्री जिया लाल आर्य, आई.ए.एस. के पास सिकायत गया अऊर दुनो दल का पेसी हुआ. बात होता रहा अऊर हम अपना पक्ष पर अडिग रहे. हम बोले, “सर! इन लोगों ने अपने मन से सारा टाइम बदल दिया है. और यही हमारा विरोध है.”
“अरे भाई! आप लोग सबको साथ लेकर चलिए. ऐसा क्यों करते हैं कि किसी को असुविधा हो.”
“सर! ये बस राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए है और उनके समय में कोई बदलाव नहीं हुआ है. इसलिए ये केंद्र सरकार के लोग अपने मन से कैसे बदल सकते हैं समय!”
“लेकिन इनके बिना तो आपकी संख्या भी पूरी नहीं होती. इन्हें हटाने से तो आपकी बस ही बंद हो जाएगी.”
“सर! लोग यहाँ टिकट के दुगुने पैसे देने को तैयार हैं. हम एक एक आदमी को दो दो टिकट दे देंगे. आपको तो बस पास की ही गिनती करनी है.”
“क्या मिलेगा आपको इससे?”
“सर! वही तो मैं कहता हूँ. क्या मिलेगा हमें यह करके! मैं अपना समय बर्बाद करके लोगों से पैसे इकट्ठा करता हूँ, उनके टिकट बनवाता हूँ, सुबह टाइम कीपर से मिलकर अच्छी बस का इंतज़ाम करताहूँ, अपने जानने वाले ड्राइवर की ड्यूटी लगवाता हूँ. इतनी परेशानियों के बीच मुझे क्या मिल रहा है, जो मैं ये सब करता फिरूँ. इतनी मुश्किलें अलग और पैसे कभी कम पड़ जाएँ तो अपनी जेब से भरना. क्या फ़ायदा है मुझे?”
वे मुस्कुराए. बोले, “आपकी उम्र कितनी है?”
“चौबीस साल.”
“और आपके बस में चलने वाले लोगों की औसत उम्र क्या होगी?”
“जी, चालीस से पैंतालीस के बीच.”
“वर्मा जी! चौबीस साल की उम्र में, ख़ुद से दुगुने उम्र के लोगों की जमात पर हुक़ूमत या लीडरी करने का नशा क्या कम नज़र आता है आपको! ये बहुत बड़ा नशा है. इंसान को ज़रा सा शिखर पर पहुँचा दो, बस उस पर बने रहने का जुनून उससे बहुत कुछ करवाता रहता है. आप जवान हैं, सोचिए जब ये जज़्बा है आपके अंदर, तो बाँटते क्यों हैं. जोड़कर चलने का नशा, बाँटने से भी ज़्यादा होता है.”
हमको लगा कि हमरे गाल पर एक जबर्दस्त तमाचा लगा है. एक बहुत सीनियर आई.ए.एस. के मुँह से ई बात सुनकर हम अबाक रह गए. बाद में पता चला कि ऊ बहुत अच्छा साहित्तकार भी थे. अगिला दिन से बस नया टाइम से चलने लगा. तनी ऊ लोग ऐड्जस्ट किया तनी हम लोग किए. किसी को कोई तकलीफ नहीं हुआ.
लेकिन उनका बात हमरे मन पर गोदना का जइसा गोदा गया. जब किसी को टॉप पर होने का नसा में देखते हैं, त एही सोचते हैं कि केतना अकेला है ई आदमी. कभी नीचे देखता होगा त डर नहीं लगता होगा उसको! बकौल मुनव्वर रानाः
बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है.
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है.
एक और अभिभूत करने वाले आपके अनुभव से दो चार हुए! सही कहा सलिल भाई "बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है!"
जवाब देंहटाएंएक बात और, "मृत्यु" मार्क्स और लेनिन से भी बड़ी समाजवादी है, देर सबेर सब को लेबल में कर देती है.
इस जीवन में हमारी दृष्टि ही सब कुछ निर्धारित करती है. "सफलता नहीं सुफलता" सूत्र है शायद!
वाकई सुंदर सीख दे देता अनुभव।
जवाब देंहटाएंसलील जी, हमेशा की तरह सुखद संस्मरण!
fir bhi bulandi ko paane ki tamanna har sakhs me hoti hai na ........bihari babu!! beshak uske liye kiya gaya paryatn sahi nahi hota........isliye koi aage badh jata hai, to koi peechhe rah jta hai.......:)
जवाब देंहटाएंbahut khub!!
शानदार प्रेरक प्रस्तुती...
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरक संस्मरण।
जवाब देंहटाएंअपने-अपने साख की, सबही लीनी मान।
हरि की बातें दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान॥
कुछ सीखने योग्य अनुभव।
जवाब देंहटाएंसृष्टि में सब कुछ परस्पर निर्भर है। सामूहिक हित में अहं के शमन से ही ग्लोबल विलेज कायम होगा।
जवाब देंहटाएं"बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है,
जवाब देंहटाएंबहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है|"
बहुत बड़ी सीख दे दी आज आपने ! आभार !
बहुत प्रेरणादायक प्रसंग ....
जवाब देंहटाएंबाबूजी आपकी ज़्यादातर पोस्ट में एक सीख होती है जो पढ़ कर अच्छी लगती है और इसमें भी आपने आखिर में जो दो लाइन लिखी वो बहुत कुछ सिखाती है !
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत संस्मरण है, जिसमे से सीखने को बहुत कुछ है ...और मुनव्वर साहब कि तो कही किसी भी बात के लिए फ़िदा.......
जवाब देंहटाएंबुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है.
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है.
बहुत अच्छा लगा इसे फिर से पढना कई दिनों बाद.
सरकार बहुत ही बढिय़ा यात्रा रही होगी पढ़कर समझ गए। वैसे आप ही अकेले लेटे बस के आगे का? वैसे आपने सही किया बापू गांधी का रास्ता अपनाकर अपनी मांगे मनवा लीं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर, शानदार, लाजवाब और प्रेरक संस्मरण प्रस्तुत किया है आपने! हर इंसान की यही ख्वाइश होती है कि वो पहाड़ की ऊंचाई के सामान अपनी बुलंदी को छुएं चाहे कितनी भी कठिनाइयों का सामना क्यूँ न करना परे!
जवाब देंहटाएं"इंसान को ज़रा सा शिखर पर पहुँचा दो, बस उस पर बने रहने का जुनून उससे बहुत कुछ करवाता रहता है. "
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन संस्मरण.... बहुत कुछ सीखने को मिला....
kal kahin ek galat post par samay vyarth gaya.......yoon 2.5 saal ke
जवाब देंहटाएंblog reading men kai jaljala dekha
kintu .... kal ..... jo kuch hua o
nakabile vardasht.
ye man ki baat hai apke blog par ka
raha hoon....apna samajh kar.
aap adhik se adhik bloggeron ko abhi tak blogger aur commentor ki ginti aati hai sayed aap log pathak ki astitwa ginti ke layak nahi samajhte.
'samaj ka har accha-bura pahlu samne hai.....dimag apne khopri me
hai....phir bhi khud se kapatpurn
vybhar koi kar raha hai....to o kaisa gyani hai'.
bhaijee agar ye galat lage to modrate kar dena
hardik pranam.
पढ़े और गहराई से समझे भी...
जवाब देंहटाएंabhi likhne ki sthiti me nahi hun.
सोचिए जब ये जज़्बा है आपके अंदर, तो बाँटते क्यों हैं. जोड़कर चलने का नशा, बाँटने से भी ज़्यादा होता है.”
जवाब देंहटाएंवाह दिल जीतने वाली कह गए हैं आ इ एस महोदय...प्रेरक पोस्ट.
नीरज
बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है.
जवाब देंहटाएंबहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है.
वाह...वाह... ! प्रेरणादायी संस्मरण के बाद ई शे'र... ! जबरदस है चचा !!
पढ़ तो हमने भी लिया,पर कहने को कुछ नहीं है।
जवाब देंहटाएं@Shailendra:
जवाब देंहटाएंमॉडरेटर हम लगाए नहीं हैं...अऊर टिप्पनी छप जने के बाद मॉडरेटर का फायदा नहीं...आपका बात समझ नहीं आ रहा है...स्पस्ट कहिए,बिना झिझक कहिए..ताकि हम जवाब दे सकें!!!
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंसीख देता वर्तांत.
जवाब देंहटाएंऔर शेर लाजवाब.
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत ही ज्ञानोपयोगी संस्मरण।
जवाब देंहटाएंऊँचाई का डर...एक उच्च सोच को दर्शाता सुंदर संस्मरण ।
जवाब देंहटाएंaise blog par dena mere liye to asambhav hai.
जवाब देंहटाएंआप की रचना 03 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/2010/09/266.html
आभार
अनामिका
ऐसा ही मिलता जुलता एगो कहानी हमको हमारे केमिस्ट्री के सर सुनाये थे जब हम इंजीनियरिंग का तयारी कर रहे थे :)
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंबहुत देर तक बुलंदी पर रहने में मज़ा क्या है ?
बुलंदी तक पुहुंचने की ख्वाहिश , हर शख्स में रहती है...
.
सलिल जी सादर नमस्कार, बहुत दिन हुए ब्लॉग जगत से दूर था आज आप का पोस्ट पढ़ा और अपने अकेलेपन का सटीक उत्तर पा गया. टॉप पर होने की चाहत रखने वाला कितना अकेला होता है आज जाना. ज्यादा नहीं लिख पा रहा हूँ , बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसलिल जी सादर नमस्कार, बहुत दिन हुए ब्लॉग जगत से दूर था आज आप का पोस्ट पढ़ा और अपने अकेलेपन का सटीक उत्तर पा गया. टॉप पर होने की चाहत रखने वाला कितना अकेला होता है आज जाना. ज्यादा नहीं लिख पा रहा हूँ , बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंपटना में कभी इतनी व्यवस्थित बसें भी चलती थीं..नई जानकारी है मेरे लिए.
जवाब देंहटाएंऔर जीवन भर की सीख दे गए वे आई.ए.एस. साहब...
बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है.
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है.
कमाल की पंक्तियाँ हैं.
सलिल सर, देर से आया हूँ लेकिन पक्का है कि दुरस्त आया हूँ। कुछ वो बदलें कुछ हम बदलें, ये मन्त्र अगर सभी मान लें तो जीवन कितना सहज हो जाये।
जवाब देंहटाएंकोई विज्ञापन सुना था रेडियो पर बहुत छोटे रहते, किसी कंपनी की तरफ़ से कहा जाता है कि ’we are feeling very lonely for last ...... years, it is really very lonely at the top, ठीक कहते थे, टाप पर तो अकेलापन ही है।
अपने ऐसे और भी अनुभव बांटिये, सीख लेंगे कुछ।
आभार।
शानदार सीख दे डाली ये तो ...शानदार प्रेरक प्रसंग.
जवाब देंहटाएंबुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है.
जवाब देंहटाएंबहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है.
सफलता को मापने की हर किसी की परिभाषा भिन्न भिन्न है .....
हम ही सकचे हैं ये ज़रूरी तो नही .... बहुत देर तक सोचने को विवश करती है आपकी पोस्ट .... और ये शेर ....
Hum raur blog bahut din se padatani sab lekh ek se ek ba. Hamara likhe na aawela ehi se khali padeni, tipanni likhe ke sahas, aauru rauaa jaisan likhe wala par naikhe hamara pass.
जवाब देंहटाएंphir bhi raaur e lekh pad ke kuch likhe ke man kailas ha,likhe me kawno galti bha gail hokhe t shama kareb.
बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है.
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है.
Hum raur blog bahut din se padatani sab lekh ek se ek ba. Hamara likhe na aawela ehi se khali padeni, tipanni likhe ke sahas, aauru rauaa jaisan likhe wala par naikhe hamara pass.
जवाब देंहटाएंphir bhi raaur e lekh pad ke kuch likhe ke man kailas ha,likhe me kawno galti bha gail hokhe t shama kareb.
बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है.
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है.
Hum raur blog bahut din se padatani sab lekh ek se ek ba. Hamara likhe na aawela ehi se khali padeni, tipanni likhe ke sahas, aauru rauaa jaisan likhe wala par naikhe hamara pass.
जवाब देंहटाएंphir bhi raaur e lekh pad ke kuch likhe ke man kailas ha,likhe me kawno galti bha gail hokhe t shama kareb.
बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है.
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है.
जोड़कर चलने का नशा , बांटने से ज्यादा होता है |
जवाब देंहटाएंअच्छी शिक्षा |
सादर