पिछला दू एपिसोड के बाद त हमहीं एतना सेंटीमेंटल हो गए कि पहिला बार लगा कि केतना बड़ा परिवार बना लिए हैं हम. अऊर सीरियसली, ई फैमिली में से कोनो एगो आदमी दू चारो दिन के लिए लापता होता है त हमको खबर लग जाता है. दिव्या बहिनअऊर सुलभ सतरंगी गायबे हैं. सुलभ बाबू त बता दिए कि ब्यस्त हैं, लेकिन दिव्या बहिन लगता है सास के सेवा में लगी है. केतना भुलायल लोग भेंटा गए, अजय झा जी, अबिनास बाचस्पति जी अऊर सानु सुक्ला जी. एही असली बात है, परिवार का लोग केतनो दूर चला जाए, प्यार से बोलाइएगा त खिंचाएल चला आता है. आइए मिलते है कुछ अऊर फैमिली मेम्बर सेः
अभिसेक पटना का बुतरू है. घरेलू, सुसील अऊर गृहकार्य में दक्ष लड़िका है. लिखता है त सब ग्रामर भुला जाता है, काहे कि ऊ प्यार का ग्रामर पढकर लिखता है... दिल से, बिना बनावट के. गाना का सौखीन है अऊर कबिता का भी. क़ैफी आज़मी, गुलज़ार साहब जनाब के फेवरेट हैं. रफ्तार के प्यार में अंगरेजी गाड़ी सब के पीछे लगा रहता है. दोस्ती किसको कहते हैं इसका साच्छात प्रमान. बेंगलुरू में रहने पर भी पटना जिंदा है, इसके मन में अऊर मित्र मण्डली में. तनी मनी पागल है हमरे जईसन.
शैलेंद्र झा हमसे अभी हाल से जुड़े हैं. चंडीगढ में रहा रहे हैं. फोन किए त अईसे बतिया रहे हों जईसे हमरे साईड से आवाज आ रहा हो कि जी मैं अमिताभ बच्चन बोल रहा हूँ कौन बनेगा करोड़पति से. जब बात उनके मुँह से निकला त बताए कि ऊ हमरा सभे पोस्ट पढ गए हैं सुरू से अंत तक. झा जी, एतना पेसेंस कहाँ से ले आए भाई.
नीलेस माथुर रेगिस्तान में कबिता का फूल खिलाते हैं.मन में गहरा दर्द छिपाए हैं अऊर ई दर्द को रहस्य में लपेटकर रखे हैं. कुछ है जिसको सबके सात बाँटना नहीं चाहते हैं, बस कबिता के माध्यम से निकल जाने देते हैं. हमको बड़ा भाई मानते हैं अऊर एक बार हमरा किया हुआ टिप्पणी को अपने ब्लॉग का सर्वश्रेष्ठ टिप्पणी बता दिए. इनका प्रेम है, नहीं त अईसा कोई बात नहीं लिखेथे हम.
पंकज मिश्र पत्रकार हैं. खबर के अंदर से खबर निकाल कर सजाते हैं. घाट घाट का पानी पिए हैं,मगर अब सुस्ता रहे हैं, एक जगह रुककर आरम से लेखन को स्मय दे रहे हैं.
त्यागी जी वरिष्ठ है हमरे. सिक्षक हैं अऊर भारत का दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेस से हैं. इनके ब्यंग लेखन का धार गजब का है. दिन भर का थकान इनका एगो पोस्ट पढकर दूर हो जाता है. आजकल देखाई नहीं दे रहे हैं.
मुकेस कुमार सिन्हा बैजनाथधाम के बासिंदा हैं… फिलहाल दिल्ली में अपना परिवार अऊर दूगो बच्चा के साथ रहते हैं. दिल्ली को हादसा का सहर बोलते हैं. कबिता बहुत समझदारी का करते हैं... बीच बीच में गायब हो जाते हैं.
अनामिका जी का सदा त पूरा ब्लॉग दुनिया में गूँज रहा है. दिल्ली के पास फरीदाबाद से हैं. इनको हमसे सिकायतहै अऊर हमको इनसे. लेकिन मजबूरी है कि हम दूनो भाई बहन एक दूसरा का सिकायत दूर नहीं कर सकते हैं. इनका उदास कबिता हमको कस्ट पहुँचाता है अऊर हमरा बोली से ई तबाह रहती हैं. न ई खुसी वाला कबिता लिखती हैं, न हम अपना बोली बदल सकते हैं. का करें,एही बोलिए त आत्मा है ई ब्लॉग का, इसके बिना त सरीर चोला माटी का रे!
जय कुमार झा जी का नाम त ऑनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी हो गया है. बहुत ऊँचा ऊँचा पद पर काम किए हैं. फिर भी लोकतंत्र का असली मूल्य के लिए समर्पित हैं. जब ई गायब हो जाएँ त समझ लीजिए कि कोनो मिसन पर हैं. सभे ब्लॉग पढते हैं अऊर टिप्पणी देते हैं. बहुत सुलझा हुआ इंसान हैं.
बबली का नाम सुनते के साथ मिष्टि दोई याद आ जाता है. ऊर्मि चक्रबॉर्ती, ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में रहती है. इसका कबिता चाहे सायरी पढने के बाद हमको बचपन का याद आ जाता है. जेतना निश्छल लिखती है, ओतने गहरा भाव छिपा रहता है.
भोले बाबा के नगरी कासी के सदस्य हैं हमरे देवेंद्र जी. बेचैन आत्मा के नाम से जादा मसहूर हैं. इनका कबिता में अनुभव झलकता है. बहुत सांत सोभाव के आदमी हैं.
दिगम्बर नासवा जी के साथ त अजीब लुका छिपी वाला रिस्ता बन गया. जब तक हम दुबई में थे, तब तक उनसे भेंटे नहीं था अऊर जब परिचय हुआ त हमरा दुबई छूट गया. लेकिन बिदेस में बसे हुए ई कबि के मन में भी बहुत कोमल सम्बेदना छिपा है.
राज कुमार सोनी पत्रकार हैं. जबर्दस्त लिखते हैं, चाहे पद हो चाहे गद्य. बहुत पारखी नजर है इनका. आस पास फैला हुआ कोई भी घटना इनका नज़र से नहीं बच सकता है. जो भी बोलते हैं बिगुल बजाकर. आजकल अपना पुस्तक का बिमोचन के सिलसिला में राजधानी में ब्यस्त हैं, इसिलिए एहाँ पर लिखना बंद है.
करण समस्तीपुरी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. कबि हैं, समीक्षक हैं, साहित्यकार हैं अऊर इनका कलम का अऊर सब्द जाल का लोहा भले दुनिया मानता हो, हम त सोना मानते हैं. इनका देसिल बयना पढने के बाद त हम इनका जबर्दस्त ए.सी. हो गए (दुनिया फैन हो जाता है). सबसे बड़ा खासियत त एही है कि इनका एक बिधा का असर दोसरा बिधा पर देखाई नहीं पड़ता है.
अविनास चंद्र बहुत सच्चा कबि हैं. इनका एक एक सब्द माणिक के तरह कबिता में जड़ा रहता है. कबिता का अर्थ का गहराई समाधि का अनुभव कराता है. बाबा भोले के तिर्सूल पर बसे हैं कासी नगरिया में. अपने बारे में कहते हैं कि पूरी तरह से बासी हैं लेकिन फिर भी ताजा हैं. भीड़ में से एक चेहरा है, लेकिन अभिमान है कि इनका चेहरा अपना है.
डॉ. दिव्या... बिदेस में डॉक्टरी कर रही हैं. हमरी बहन हैं. एतना गहरा गहरा बात लिखती है कि कह नहीं सकते कुछ. हमरा ज्ञान चुक जाता है. एही से हम कमेंट नहीं करते थे. पट से सिकायत कर दीं कि खाली राखी बाँधने से भाई बहन का रिस्ता होता है. बहन के ब्लॉग पर कमेंटकाहे नहीं करते हो. अब दोसर कोई हो तो बर्दास्त कर लीजिए, बहिन का गोस्सा बर्दास्त करना असम्भव.
अब लगता है कि बसुधैव कुटुम्बकम का मंत्र पूरा हुआ. एसिया से युरोप तक अऊर ऑस्ट्रेलिया से अमेरिका तक फैल गया है परिवार. ई परिवार में अऊर भी केतना लोग हैं. लोकेन्द्र सिंह राजपूत, सुज्ञ यानि एच. राज जी, राधा रमण, मनीश छाबड़ा, देवेश प्रताप, वाणीगीत, डॉ. अमर, मृदुला जी, अहमद खान अकेला जी अऊर भी बहुत सा लोग. हमरा कोसिस रहा है कि ई पूरा परिवार को समेटकर एक साथ एक जगह लोग से मिलवाएँ. लेकिन जहाँ दू गो बरतन होता है ओहाँ सोर त होबे करता है. हमरा गलती से अगर किसी को भुला गए हों, त जोर से चिल्ला कर याद करा दीजिएगा. हम माफी माँग लेंगे. परिवार को बनाए रहिए, तबे एगो संजुक्त परिवार बन पाएगा.
अब जाकर लग रहा है कि मन हल्का हुआ है. बड़ा लोग से एक बार फिर से आसिर्बाद माँगते हैं चरन स्पर्स करके. हमहूँ अजीबे एमोसनल फूल हैं… आप का समझे अंगरेजी वाला फूल माने बुड़बक..दुर! एमोसनल फूल माने ऊ फूल जिसका इमोसन का महँक सारा दुनिया में फैलता है.
(क्रमशः)
अपार खुशी मिली,सलिल ज़ी परिवार में हमारा भी गुजारा हो गया।
जवाब देंहटाएंदो एपीसोड से सोच रहे थे कि हम पर नज़र ना करेंगे।
कह नहिं सकते उस गौरव को,शब्दो में।
सलिल भाई, मुबारक हो आपको यह परिवार। उम्मीद है यह तो बढ़ता ही रहेगा। आपने दिव्या जी के लापता होने की बात कही। मुझे भी लग रहा था कि वे संभव है सासू मां की सेवा में व्यस्त हों । पर सलिल जी मेरी जानकारी में वे थाईलैंड में हैं और हाल ही में मैंने किसी ब्लाग पर ऐसी खबरें देखीं हैं,जिनसे पता चलता है कि थाईलैंड में राजनैतिक हालत अच्छे नहीं हैं। सेना को सामने आना पड़ा है। हो सकता है दिव्या भी इन सब परिस्थितियों के कारण एक अलग ही मानसिक उलझन में हों। जो भी हो हम तो यही चाहेंगे कि थाईलैंड के हालत जल्द से जल्द सामान्य हो जाएं। दिव्या भी अपने ब्लाग पर नजर आएं। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआज तो आपसे झगरिये लेते.... लेकिन अब पलिवारे में सामिल कर लिए तो का कहे.... ! नहीं तो हम पछिले हफ्ता से सोच रहे थे कि हमरा नाम कब आएगा ! खैर आपका सिनेह पाकर हिरदय गदगद हो गया... ! इहे तरह दया-दिरिष्टि बनाए रखियेगा. अब बूझिये कि देसिल बयना आपही के लिए लिखते हैं. मगर कुछ हो जाए...... आपको धनबाद तो नाहीये देंगे !!!
जवाब देंहटाएंsabhee ka parichay paa accha laga..........
जवाब देंहटाएंAabhar.
अब ये आपका परिवार नहीं है...हमरा भी परिवार है और हमें इस परिवार पर गर्व है...
जवाब देंहटाएंनीरज
aap apne parivaar ke saath sukhmaya jeevan vyateey kare aur ham bhi atithi ki tarah aate jaate rahe yahii shubhakaamnaa hai merii
जवाब देंहटाएंसलिल जी,
जवाब देंहटाएंमैं और मेरे शब्द, नेह से मुखरित हुए :)
और कुछ कहना आपके अपनेपन को कम करना होगा, बस ये स्नेह आत्मसात कर रहा हूँ.
वरदहस्त बना रहे!
अविनाश
सब परिवार ऐसे ही मिल जुल कर जाने पहचाने...तबहि अच्छा है.
जवाब देंहटाएंइसको अंतिम भाग न कहें...यह परिवार तो बढ़ता जाना है..इसे तो जब भी लिखें..अंत में क्रमशः जरुर ल्गायें.
आज सुबह से आपकी इस पोस्ट का इंतज़ार था बहुत ही बड़ा और भरा पूरा परिवार है आपका और अब मेरा भी आपके इस परिवार का सदस्य बन कर बड़ी ख़ुशी हुई aur sab se milkar bhi .......aaj net main problem hai isliye aaj ka comment aise hi swikaar kare......
जवाब देंहटाएंआज सुबह ही आपकी याद आई थी, ऐसे ही ऑफिस में बैठे बैठे..तो आपको वो मेसेज किया था..[मिला न आपको :)]
जवाब देंहटाएंऔर अभी वापस आकार नेट लोगिन किया तो ये पोस्ट..अब मैं क्या कहूँ? बस आपका ये प्यार और आशीर्वाद ऐसे ही बना रहे.. :)
और उ ग्रामर को औरो सुधारने का कोशिश कर रहे हैं :)
बाकी सब से मिल कर बहुत अच्छा लगा...कम से कम सबका परिचय तो जाना न हमने :)
इस परिवार से मिल कर बहुत अच्छा लगा ....यूँ ही सबका स्नेह बना रहे ....शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंभैया प्रणाम, अपना ये भरा पूरा परिवार हमेशा सुखी रहे, भैया आपकी ये मुहीम वाकई काबिले तारीफ़ है, आप ब्लॉगजगत में जो सुखद माहौल बना रहे हैं मैं उससे अभिभूत हूँ!
जवाब देंहटाएंआपका अनुज!
भैया अपना फोन न. हमें मेल कीजियेगा, आपसे एक बार बतियाने का मन है, और एक पोस्ट लिखे हैं पढने आइयेगा!
जवाब देंहटाएंस्तुति से नेट पर gtalk पे जब पहली बार मिला तो मिलते ही बोली क्या हाल है भैया ??
जवाब देंहटाएंफिर बोली आप को देखते ही अपने आप मुह से भैया निकल गया ............आज समझे यह रिश्ते तो आपने बना के दिए है हम लोगो को ! बहुत बहुत धन्यवाद हमको हमारे ही परिवार से मिलवाने के लिए ! आपको और पूरे परिवार को प्रणाम !
आप सब मेरे लिए इतने अपने हो गए हैं की अब इंडिया जब भी आये तो छुट्टी और भी लम्बी लेनी पड़ेगी. शायद बहुत लोग इस रिश्ते को नहीं समझ पायें...लेकिन दिल से जो ये रिश्ता जुड़ गया है, वो सच में बहुत प्यारा है!
जवाब देंहटाएंलव यू पा!
बहुत अच्छा लगा सबसे मिल बतिया लिए। मुड़ही पियजुआ हाथ में धरले रह रह गया, हम त मुंह बाए आपका बात सुनते रहे। और आप हैं कि किस्सा लपेटने के मूड में आ गये। ऐसे थोरे हि चटाई समेट लेंगे .. और सुनेगे।
जवाब देंहटाएंसलिल जी, अभी कुछ ही दिन हुए इस कुटुम्ब का हिस्सा बने हुए, पर प्रतीत होता है, जैसे बहुत समय से सभी को जान रहें हैं । आज के पोस्ट पर अपना ज़िक्र देखकर गौरन्वित महसूस कर रहा हूं । लगा था शायद परिवार के नये सदस्यों पर दृष्टि नहीं पडी अभी, पर बहुत बारीक नज़र रखें हैं आप सभी पर । ये परिवार ऎसे ही बढता रहे, ये कामना है ।
जवाब देंहटाएंएशिया, यूरोप, आस्ट्रेलिया सब घुमा दिया आपने. और मेरे बारे में जो लिखा...पढ़ पढ़ कर हंसी नहीं रुक रही थी. अरे हमका कोनू सिकायत ना हें. एक बार समझ नहीं आएगा तो का हुआ..दूसरी बाद पढ़ लेंगे..(हा.हा.हा.) और इ इमोसनल फूल तो सब को खुशी के फूल बाँट गए. सबके बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंऔर हाँ हम भी चटाई अभी नहीं समेटेंगे...और सुनेंगे.
@ ana
जवाब देंहटाएंई अतिथि का बला है!! शरद जोशी जी कहते हैं अतिथि कब जाओगे, अऊर हम त बुलाने वाला में से हैं... इसलिए परिवार बनकर आ जाइए... हमरा पता नोट कर लीजिए, सुदर्सन फाक़िर साहब लिखवाए थे हमकोः
मेरे घर का सीधा सा इतना पता है
ये घर जो है चारों तरफ़ से खुला है
न दस्तक ज़रूरी, ना आवाज़ देना
मेरे घर का दरवाज़ा कोई नहीं है
हैं दीवारें गुम और छत भी नहीं है
बड़ी धूप है दोस्त
खड़ी धूप है दोस्त
तेरे आंचल का साया चुरा के जीना है जीना
जीना ज़िंदगी, ज़िंदगी
....
बस एही दोस्ती का आँचल का छाया में, प्यार बना रहे अऊर का चाहिए!
@मनोज बाबू अऊर अनामिका बहन घबराइए मत, अबकि आप लोग के घरे आकर धमकेंगे... अऊर तब पता चलेगा कि हजरते सलिल जहाँ बईठ गए, बईठ गए. सुन रहे हैं न मनोज बाबू!!
आदरणीय बिहारी जी, पा-लागीं, राउर भासा त खड़ी हिन्दी आ भोजपुरी के मेक्चर बुझाता। ई आधा फागुन आधा जून के मिलावट गजबए रंग ले आवता। जमौले रहीं। हमहूँ घूमि-फीरि के आइल करब। भोजपुरिए इलाका के हँई। आजकल बर्धा में टिकल बानी... :)
जवाब देंहटाएंअरे अच्छा याद दिलाया आपने डॉ दिव्या का ,बेचारी लगता है कूंच कर गयी --ब्लॉग लेखन के. लिए बड़ा जिगरा चाहिए -खत्म हुआ एक उपन्यास !
जवाब देंहटाएंपरिवार को बनाए रहिए, तबे एगो संजुक्त परिवार बन पाएगा.
जवाब देंहटाएंबहुते बढ़िया आग्रह किये हैं ऐसा होगा तबे कोई बदलाव आएगा इस देश और समाज में ...
एमोसनल फूल माने ऊ फूल जिसका इमोसन का महँक सारा दुनिया में फैलता है.
एकदमे सच्ची बात कह दिए आप, इमोसन माने की इंसान और इंसान माने की सुगंध ..जो दुर्गन्ध को मिटाये....
जमाये रहिये झमाझम!
जवाब देंहटाएंमेरे घर का सीधा सा इतना पता है
जवाब देंहटाएंये घर जो है चारों तरफ़ से खुला है
न दस्तक ज़रूरी, ना आवाज़ देना
मेरे घर का दरवाज़ा कोई नहीं है
हैं दीवारें गुम और छत भी नहीं है
बड़ी धूप है दोस्त
खड़ी धूप है दोस्त
तेरे आंचल का साया चुरा के जीना है जीना
जीना ज़िंदगी, ज़िंदगी
....
je ghar aisa hai tabhiye na itna .... aur is se bhi jada sadasy
....jo ban ne wala hai...samayega.
apna nam is ghar ke sadasya ke roop men dekh kar khush hua aur
apki bhawna se man gad-gad ho gaya.
pranam.
रिश्ते ही रिश्ते.
जवाब देंहटाएंमिल तो लें सलिल बाबू के ब्लोग से.
भई,मज़ा आ गया.
अपना भरा पूरा परिवार देखकर !
@ अरविन्द मिश्रा जी ने अगर इस पोस्ट पर आई टिप्पणियां ध्यान से पढ़ी होतीं तो शायद यह टिप्पणी नहीं करते। न भी पढ़ीं तो कोई बात नहीं, पर उन्हें ऐसी टिप्पणी तो नहीं करनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंbhawbhini baaten bahut achchi lagin .
जवाब देंहटाएंसूझ नहीं रहा क्या लिखूं... इस वक़्त मन में इतना कुछ उमड़ रहे है, लेकिन कुछ भी बाहर नहीं निकल प् रहा है... अपने जो भरे चौमासे में प्रेम वर्षा की है... उसकी जितनी तारीफ की जाये कम है... आपका ये प्रयास सबके लिए अनुकरणीय है....
जवाब देंहटाएंबढ़िया अच्छा लगा, चलने दीजिये
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंआदरनीय दद्दा
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
एक हमहि का भुलाए दिए ?
केतना हमरे दिल में दर्द हुआ , मालुम ?
हम भी तो हैं आपके संजुक्त परिवार में !
लेकिन …
न हमको जोर से चिल्लाए का , न आपको माफी मांगने का जरुरत ।
बस… अबके जल्दी से हमरे ब्लॉग शस्वरं पर आशीर्वाद देने के वास्ते आ जाओ ,
अऊर जो पोस्ट ना देखी हो , देख तो लो कम से कम !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
Arre Bihari Babu!! dil jeetna to koi aapse seekhe..........uff!! kaise ek dumme se aap hamko apne parwaar me shamil kar liye.......kuchh lamho ka safar, aur fir itni karibi.........ye byan karti hai......aap lajabab ho!!
जवाब देंहटाएंdhanyawad!!
waise main picchle dino ghar gaya tha, isliye blog se dur tha.......generally aisa hoga nahi!!:)
आपके टच में तो रहे किन्तु वो घर का कम्पूटरवा बैठ गया और कालेज के कंप्यूटर पर इतनी सहूलियतें नहीं हैं और न ही ज्यादा देर बैठने का वक़्त, सो आपको खबर नहीं हो पाई. अपनी नई पोस्ट लिखने में भी यही अड़चन रही. आपके बड़े परिवार से आपका बड़प्पन झलकता है. सभी सदस्यों से मुलाकात कर मजा आ गया.
जवाब देंहटाएंबड़ा भरा-पूरा परिवार है आपका....बधाई.
जवाब देंहटाएंकभी 'डाकिया डाक लाया' पर भी आयें...
..पर इस परिवार में बच्चा-पार्टी तो नहीं दिख रही. ....'पाखी की दुनिया' में भी घूमने आइयेगा.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंहमको जन-बनिहार में रखीए न भाई..
ई पलिवार वाला बात बड़ा मोस्कील है ।
कोनो जेखनि अऊँठा देखाता है, तऽ बड़ा तक़लीफ़ होता है, नू ?
पलिवार टुटने का स~म्ताप तऽ आप जनबे नहिं कीए हैं ।
ईहाँ कोनो सम्बन्ध परमामिन्ट होकर ठहरा है, कभी ?
ई सब कबीरई छाँटने का हक हमको दीये रहीए, बकिया जो है सब ठीके है ।
अऽ हमरा एगो असीरबाद लेंगे, खुस रहीए ।
सलिलजी
जवाब देंहटाएंमैं राजकुमार आपको सैल्यूट करता हूं
ग्रेट....
ग्रेट....
ग्रेट.....
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.
एक बात और..
जवाब देंहटाएंथोड़ा लेट हुआ इसलिए क्षमा भी मांगता हूं
सलिल जी !!!ब्लॉग परिवार के सदस्यों का यह संवेदनात्मक परिचय अच्छा लगा । आपके शब्द-शब्द में भावना की खुश्बू भरी पड़ी है जो वसुंधरा को पल्लवित कर रही है और अपनी खुश्बू लूटा रही है बिना किसी मोल के...धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसम्पूर्ण परिचय किसी सहृदय की भांति दिया गया है। जिनका नाम इसमें शामिल नहीं है,वे भी इसमें कहीं कोई छल-कपट नहीं ढूंढ पाएँगे। यही आपके परिचय का मूल्य है।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंसलिल भाई ,
रिश्ते या तो बनाती नहीं , बनाती हूँ तो निभाती भी हूँ ! आप जैसे भाई का मिलना , मेरा सौभाग्य है ! इज्ज़त करती हूँ आपकी, प्यार करती हूँ आपसे बेहद।
विमान हादसे में शायद इसीलिए बच गए , क्यूंकि एक भाई की शुभकामनाएं , और प्यार मेरे साथ था ।
माँ को मेरा नमस्ते कहियेगा !
रक्षा- बंधन के इस पावन पर्व पर मेरी तरफ से शुभकामनाएं और मिठाइयाँ ।
.
.
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द मिश्र -
आपकी टिप्पणि पढ़कर दुःख हुआ। मुझे खेद है की मेरे जीवित रहने और वापस आने से आपको निराशा हुई होगी लेकिन यकीन मानिए मेरी उम्र ज्यादा नहीं है। जल्द ही ये उपन्यास समाप्त होगा।
.
.
जवाब देंहटाएंभाई सलिल,
परिवार के सभी सदस्यों से मिलकर बहुत अच्छा लगा । इस परिवार का हिस्सा होने का गर्व है। आपको धन्वाद ।
.
अल्लाह करे ई इमोसनल फूल का महक सगरी दुनिया मा फैले |
जवाब देंहटाएंआमीन
-आकाश
सारी चचा , उपरवा वाले कमेन्ट में सादर लिखना भूल गए थे , अचानक याद आया , सोचे कि कहीं आप दिल पे ले के हमसे दूरी बना लिए तो हम एक अपने से लगने वाले चचा को खो देंगे |
जवाब देंहटाएंअतः
सादर :)