शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

बधाई!!


दू गो ब्लोगर आपस में जुटेगा त का बतियाएगा? आप सोचियेगा कि सिकायत छोडकर अउर कोनो बात बतियाइये नहीं सकता है. मगर इसका अपबाद भी होता है, अर्चना के साथ बतियाने में नया गाना सुनने को मिलता है अउर परिबार का बात करने में एकदम घरेलू बातचीत. हमरी बेटी त जबसे फेसबुक पर दोस्त बनी है, तब से रोज एगो खिस्सा सुनाती है कि आज अर्चना बुआ ने ये कहा और आज वो.
बस अभी ओही सब चल रहा था कि हम अचानक १२ बजे तनी देर के लिए गायब हो गए. जब लौटे त ऊ पूछी कि कहाँ चले गए थे. “मैं डिस्टर्ब तो नहीं कर रही आपको?” हम बोले कि नहीं रे भाई! ऊ अपने मनोज जी हैं न, उनका ब्लॉग का सालगिरह है, दू साल हो गया उनके ब्लॉग का. बस उनको बधाई देने चले गए थे. मनोज जी त बत्ती बुताकर बइठे हुए थे. चैट में बधाई दिए त झट से उठकर बइठ गए. पूछे, “जगले हैं का?” अउर हमरा जवाब सुनला के पहिलहीं अंतर्धान.
अर्चना बोली कि मैं भी बधाई देना चाह रही हूँ. हम बोले कि एही मौक़ा है. मनोज जी बहुत सेवा करते हैं ब्लॉग जगत का. तुम उनका एगो पोस्ट का पॉडकास्ट बनाओ. बोली कि बिना उनके अनुमति के कइसे बनाएँ. हम बोले कि हम हैं न, छोट भाई हैं अब हम राम नहीं हैं त का हुआ, ऊ त लछमन हैं ना. हम अपना ब्लॉग पर लगा देंगे. छांटकर एगो पोस्ट का लिंक पकड़ाए ऊर एगो अनोखा तोहफा का तैयारी में जुट गए. 

त बस दस मिनट में बना हुआ ई पोस्ट/पॉडकास्ट एगो ब्लॉगर का, दोसरे ब्लॉगर के साथ मिलकर, तीसरे ब्लॉगर को उपहार है. मनोज जी, ब्लॉग जगत में नया नाम नहीं हैं. दू साल के सफर में ई अपना परिचय अपने आप हैं. इनके साथ उनके ब्लॉग में सामिल सभी लोगों को हमारे तरफ से बधाई अउर सुभकामना!!

हाजिर  है ई पॉडकास्ट.. "मनोज" ब्लॉग को समर्पित:

रविवार, 11 सितंबर 2011

इनसे मिलिए!!


इधर कुछ ब्यस्त रहे, कुछ परेसान रहे अउर कुछ... बस का मालूम काहे अस्थिर से बइठकर कुछ लिखने का मने नहीं किया. आज मनोज भारती जी से बात होने लगा त हर बार के तरह बात सुरू करते हुए ऊ पूछे कि अगला पोस्ट में हम का लिखने जा रहे हैं. कुछ तय नहीं था त हम भी कहे कि देखते हैं. तब ऊ जिद करने लगे कि अभी आप अपना इंटरव्यू के बारे में लिखे हैं, मगर एगो इंटरव्यू पहिलहीं से पेंडिंग है. ओही काहे नहीं पोस्ट कर देते हैं. तब खेयाल हुआ कि हमारा एगो पोस्ट पर आप लोग हमसे हमारा बेटी जो इंटरव्यू ली थी, ऊ छापने के लिए बोले थे. बेटी के इस्कूल में का हुआ मालूम नहीं, लेकिन इहाँ बहुत सहमकर, डरते-डरते हम ई पोस्ट कर रहे हैं.


प्रतीक्षा प्रिया: आपको ब्लॉग लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
सलिल वर्मा: इस प्रश्न का उत्तर मैं पहली बार आपको बता रहा हूँ. दरअसल मुझे ब्लॉग लिखने की प्रेरणा अमिताभ बच्चन और विवेक शर्मा के ब्लॉग से मिली. अमित जी के ब्लॉग पर कई बार मैं यह लिख के आया कि आपकी एक अंग्रेज़ी कविता, जिसका हिन्दी अनुवाद आपके पिताजी ने किया था, प्रकाशित करें. लेकिन उन्होंने उत्तर नहीं दिया और कविता भी नहीं छापी. मुझे ये एकतरफा संवाद पसंद नहीं आया. क्योंकि दूसरी ओर विवेक शर्मा के ब्लॉग पर की गई हर प्रतिक्रया वो ऐक्नोलेज करते. तब मैंने अपने मित्र चैतन्य आलोक जी के साथ मिलकर संवेदना के स्वर ब्लॉग शुरू किया. चला बिहारी तो बहुत बाद में आया.

प्र. प्रि.:  आपने ब्लॉग लेखन के लिए यह भाषा क्यों चुनी?
स.व.: मेरे ब्लॉग की भाषा हिन्दी ही है. बिहार के अधिकतर लोग हिन्दी इसी तरह बोलते हैं. कई लोगों ने मुझसे कहा भी कि आप भोजपुरी में क्यों नहीं लिखते. उसका कारण भी यही है कि भोजपुरी मेरी भाषा नहीं है. बिहार में मैथिली भाषा के साथ-साथ भोजपुरी, मागधी और वज्जिका बोलियां बोली जाती हैं. मैं मगध से हूँ इसलिए मेरी बोली मागधी है. आज भी घर पर कुछ सम्बन्धियों के साथ इसी बोली में बतियाता हूँ. मेरी माताजी भोजपुरी अंचल से आती हैं. लेकिन अब तो वो भी नहीं बोल पातीं. इस बोली में ब्लॉग लिखने का कारण मात्र इतना है कि मैं इसमें अपनी आत्मा महसूस करता हूँ. कई लोगों ने शिकायत की कि पढ़ने में तकलीफ होती है, हिन्दी में लिखें. लेकिन मेरा उत्तर यही रहा है कि फिर तो इस ब्लॉग की आत्मा समाप्त हो जाएगी.

प्र. प्रि.: आप अपनी लेखन शैली के विषय में क्या कहना चाहेंगे?
स.व.: बस इतना कि मैं कोइ साहित्यकार नहीं हूँ और न ही साहित्य का विद्यार्थी रहा हूँ. हाँ, अच्छे साहित्य की समझ भर है मुझमें. मुझसे अच्छा लिखने वाले कई लोग ब्लॉग जगत में हैं और उनके ज्ञान और भाषा-शैली की बराबरी मैं कभी नहीं कर सकता. इसलिए मैंने बात करने की शैली अपनाई. मेरी हर पोस्ट पाठक से बात करती हुई मालूम होती है. वैसे सही शब्द होता बतियाती हुई होती है. मेरी कोशिश यही रहती है कि हर पढ़ने वाले के साथ पोस्ट के माध्यम से एक जुड़ाव पैदा कर सकूं. कितना सफल हुआ यह तो मेरे पाठक ही बता सकते हैं.

प्र. प्रि.: आपके पसंदीदा ब्लॉग कौन-कौन से हैं?
स.व.: कोइ टिप्पणी नहीं. वो सारे ब्लॉग जिन्हें मैं पढता हूँ, जिनपर अपनी बात कहता हूँ, वो सब मेरे पसंदीदा ब्लॉग हैं.


प्र. प्रि.: आप अपने लेखन के लिए विषय कैसे चुनते हैं?
स.व.: यह बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है. आधी ज़िंदगी गुज़ारने के बाद (माँ ने सौ साल जीने की दुआ दी थी) सोचा मैंने कि जीवन में कई घटनाएं मेरे साथ घटीं या शायद परमात्मा ने उन घटनाओं के एक पात्र के रूप में मुझे चुना. उन घटनाओं को सम्मान देने, उससे जुडे लोगों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मैंने उन घटनाओं को अपनी पोस्ट का विषय बनाया. मेरी चेष्टा यही रही कि इन घटनाओं के बहाने मेरे पाठकों को अपने जीवन की ऐसी ही किसी घटना को पुनः जीने का अवसर मिले.

प्र. प्रि.: इस पूरी ब्लॉग-यात्रा में आप किसी व्यक्ति विशेष का नाम लेना चाहेंगे?
स.व.: निस्संदेह ऐसा व्यक्ति तो बस एक ही हो सकता है. मेरे मित्र चैतन्य आलोक. जिन्होंने मेरे व्यक्तित्व को एक नया आयाम दिया, मेरे ज्ञान को एक नया विस्तार दिया और मुझे दुबारा लिखने को प्रोत्साहित किया. मेरी हर पोस्ट के वे पहले श्रोता हैं और अगर किसी कारणवश वो पोस्ट उनको न सुनाई जा सकी तो पोस्ट टाल दी है मैंने, मगर सुनाना नहीं टला.

प्र. प्रि.: अंत में एक व्यक्तिगत प्रश्न... क्या आपके परिवार के लोग आपका ब्लॉग पढते हैं? उनकी क्या राय है आपके ब्लॉग के विषय में?
स.व.: मेरी पत्नी बिलकुल नहीं पढ़तीं. कभी-कभार अपनी कोइ पोस्ट पढकर ज़बरदस्ती सुना देता हूँ उनको, तो सुन लेती हैं. यह पूछने पर कि कैसी लगी, उनका एक ही उत्तर होता है कि आपने लिखी है तो बुरी हो ही नहीं सकती. पटना में मेरा पुत्र, मेरा भाई, उसकी पत्नी और मेरी माँ बहुत पसंद करते हैं. विशेष तौर पर वे पोस्ट जिनमे उनसे जुडी यादें सिमटी हों.

प्र. प्रि.: बहुत अच्छा लगा आपसे बातें करके. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

रविवार, 4 सितंबर 2011

शिक्षक-दिवस, केमिस्ट्री और कार्बन


आज की यह पोस्ट समर्पित है उन सभी शिक्षकों को जिन्होंने इस माटी के माधो को एक इंसान बनाया.
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बहुत पहिले राज कपूर से पूछा गया कि आपको अपना बनाया हुआ सब सिनेमा में से कउन सबसे प्यारा है. ऊ बोले कि मेरा नाम जोकर. ई कहने पर कि ऊ फिलिम तो चलबे नहीं किया था, राज कपूर का कहना था कि अपना बच्चा अगर बिकलांग भी हो जाए त प्यारा लगता है. तब से लेकर आज तक का मालूम केतना आदमी अपना कोनों कमजोर रचना के लिए एही बात बोलता है.
हम त केमिस्ट्री के इस्टूडेंट रहे हैं. इसलिए हमरा प्यार कार्बन के लिए बहुत जादा है. प्यार काहे, सम्मान कहिये. जेतना इज्जत हम कार्बन का करते हैं, ओतने इज्जत हम अपने पुर्बज लोग का करते हैं. कार्बन का नाम सुनते ही सबसे पाहिले कोयला ध्यान में आता है. मगर हमारे लिए त कोयला अउर हीरा दुनो कार्बन है. पेन्सिल का लोखने वाला नोंक भी त ग्रेफाईट माने कार्बन का बना हुआ होता है. अब काला अउर बदसूरत होने से हमरा प्यार कम थोडो न हो जाएगा!
कार्बन का अनोखा गुन है कि ई लोगों के साथ मिलकर रहता है. खाली बाहर के लोग के साथ नहीं, अपने परिबार से भी मेल मिलाप से रहता है. परिबार का जंजीर एतना लंबा होता है कि पहिला बार देखकर लोग घबरा जाता है. मगर एही बात हमरे पुर्बज सिखाते आये हैं हमलोग को कि आपस में मिलकर रहो और समाज में भी प्यार अउर भाईचारा बनाए रखो. इनके प्यार का एरोमा एतना फैलता है कि का कहा जाए. सबसे मिलकर रहते हैं, खाली इसलिए कि न्यूट्रल हैं. ना पोजिटिभ ना निगेटिभ. जैसी बहे बयार, पीठ तब तैसी कीजे. ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर. हमको लगता है कि इसी सोभाव के कारन जब दू आदमी के बीच बढ़िया सम्बन्ध बना रहता है तो कहते हैं कि दुनो का केमिस्ट्री बहुत अच्छा है!
जब हम एम्.बी.ए. में एडमिसन के लिए इंटरव्यू देने गए, त हमसे जो सवाल जवाब हुआ उसका बानगी देखिए:
आपने केमिस्ट्री में एम्.एस-सी. किया है. साधारण भाषा में बताइये कि ऑर्गनिक केमिस्ट्री और इनऑर्गनिक केमिस्ट्री में क्या अन्तर है?
कार्बन का स्वभाव है कि अन्य तत्वों के साथ-साथ स्वयं अपने आप के साथ भी संयोग कर यौगिक का निर्माण करता है. इसके प्रतिक्रया करने के स्वभाव अलग होते हैं और यौगिकों की संख्या असीमित. इसलिए इनका एक अलग शाखा के रूप में अध्ययन करते हैं जो ऑर्गनिक केमिस्ट्री कहलाती है.
अच्छा! मतलब ये कि इनऑर्गनिक केमिस्ट्री में कार्बन का अध्ययन नहीं करते!
करते हैं. मगर यहाँ कार्बन का अलग से अध्ययन नहीं जाता, अन्य तत्वों की तरह ही इनकी भी स्टडी करते हैं
कमाल है! केमिस्ट्री तो बड़ा फन्नी सब्जेक्ट है. कार्बन तो एक है, मगर सिर्फ इसके कारन दो अलग अलग ब्रांच बना दी.
सर! वास्तव में एक जगह कार्बन का रोल माइनर है और दूसरी जगह मेजर है. जबकि और कोइ भी तत्व ऐसा नहीं है.
इससे क्या हुआ. केमिस्ट्री इज अ फन्नी सब्जेक्ट!! ये अलग अलग रोल क्या होते हैं. अजीब फन्नी सब्जेक्ट है!!
एतना बार फन्नी सब्जेक्ट सुनकर हमरे मन में भी गुस्सा भर गया था. अउर केमिस्ट्री से तो हम मोहब्बत करते थे, ई बात सब लोग जानता था हमरे क्लास में. हमरी महबूबा को कोइ फन्नी बोले ई बर्दास्त होने वाला बाते नहीं था. सोचे कि अब एडमिसन हो चाहे नहीं हो, जवाब त देना ही होगा.
सर! इट्स नॉट फन्नी! इट्स वेरी सिंपल, जस्ट लाइक यू एंड मी. आप अपने बच्चों के लिए पिता हैं, पत्नी के लिए पति, हमारे लिए शिक्षक और दूसरे प्रोफ़ेसर के लिए दोस्त या सहकर्मी. सबके साथ एक जैसा रोल तो नहीं निभा सकते आप. बस वैसे ही कार्बन है, जबतक इनऑर्गनिक केमिस्ट्री में रहता है, अकेला चुपचाप सबके साथ खडा होता है और जब ऑर्गनिक केमिस्ट्री में आता है तो पूरे परिवार और समाज के साथ.
थैंक्स! यू मे गो नाऊ!
हम समझ गए थे कि रिजल्ट का होने वाला है. जो हो, एडमिसन पाने के लिए हम अपनी महबूबा को फन्नी कहलाते हुए नहीं देख सकते थे. मगर कमाल देखिये, हमरे मोहब्बत में भी असर था, लिस्ट आया तो हमरा नाम भी सफलता सूची में था. हमको लगा कि ऊ प्रोफ़ेसर साहब अउर हमरे बीच कोइ केमिस्ट्री जरूर रहा होगा, नहीं त दूसरा कोई हमरा जवाब सुनने के बाद हमको यूनिवर्सिटी के गेट के बाहर फेंक देता!