हम त
रेडियो के जमाना में पैदा हुए,
इसलिए रेडियो पर नाटक करते थे, बचपने से. आकासबानी पटना के तरफ से हर साल होने वाला इस्टेज
प्रोग्राम में, पहिला
बार आठ साल का उमर में इस्टेज पर नाटक करने का मौका मिला. नाटक बच्चा लोग का था, इसलिए हमरा मुख्य रोल था.
साथ में थे स्व. प्यारे मोहन सहाय (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सुरू के बैच के
इस्नातक, सई
परांजपे से सीनियर, 'मुंगेरीलाल
के हसीन सपने' अऊर
परकास झा के फिल्म 'दामुल' के मुख्य कलाकार) अऊर सिराज दानापुरी.
प्यारे चचा के बारे में फिर कभी,
आज का बात सिराज चचा के बारे में है.
देखिए त
ई बहुत मामूली सा घटना है, लेकिन
कला का व्यावसायिकता अऊर कलाकार का बिबसता का बहुत सच्चा उदाहरन है. सिराज चचा एक
मामूली परिबार से आते थे, अऊर उनका
जीबिका का एकमात्र साधन इस्टेज पर कॉमेडी सो करना था. इस्टैंड-अप कॉमेडी के नाम पर
आज टीवी में जेतना गंदगी फैला है,
उससे कहीं हटकर. स्वाभाविक अऊर सहज हास्य उनका खूबी था. खुद को कभी
कलाकार नहीं कहते थे, हमेसा
मजदूर कहते थे. बोलते थे, “एही
मजूरी करके दुनो सिरा मिलाने का कोसिस करते हैं."
रेडियो
नाटक का रेकॉर्डिंग के समय, रिहर्सल
के बीच में जब भी टाईम मिलता था, ऊ सब बड़ा अऊर बच्चा लोग को
इस्टुडियो के एक कोना में ले जाकर, अपना कॉमेडी प्रोग्राम सुरू कर देते थे. सबका मनोरंजन भी होता था, अऊर रिहर्सल बोझ भी
नहीं लगता था. सिराज चचा सीनियर कलाकार थे, इसलिए उनको आकासबानी से 150 रुपया मिलता था, अऊर हम
बच्चा लोग को 25 रुपया.
एक बार
रिहर्सल के बीच पुष्पा दी (प्रोग्राम प्रोड्यूसर अऊर हमरी दूसरी माँ, जिनका बात हम अपना परिचय
में कहे हैं) सिराज चचा को उनका रोल के लिए एगो खास तरह का हँसी निकालने के लिए
बोलीं. ऊ बिना पर्फेक्सन के किसी को नहीं छोड़ती थीं. पहिला बार ऊ सिराज चचा से
झल्ला गईं. बोलीं, “सिराज
भाई! क्या हो गया है आपको. कुछ जम नहीं रहा.” सिराज चचा ने हँसी का बहुत सा सैम्पल दिखाया. लेकिन पुष्पा दी को कोई
भी मन से पसंद नहीं आया. आखिर बेमन से रिहर्सल हुआ अऊर रेकॉर्डिंग का टाईम आया.
सिराज
चचा, बीच में
अपना चुटकुला लेकर सुरू हो गए. ओही घड़ी एगो लतीफा पर सब लोग हँसने लगा, अऊर सिराज चचा भी अजीब तरह
का हँसी निकाल कर हँसने लगे. माइक ऑन था, इसलिए आवाज कंट्रोल रूम में पुष्पा दी को भी सुनाई दिया. ऊ भाग कर
इस्टुडियो में आईं, अऊर
बोलीं, “सिराज
भाई! यही वाली हँसी चाहिए मुझे."
लेकिन
इसके बाद जो बात सिराज चचा बोले,
ऊ सुनकर पूरा इस्टुडियो में सन्नाटा छा गया, दू कारन से. पहिला कि
पुष्पा दी को कोई अईसा जवाब देने का हिम्मत नहीं कर सकता था अऊर दुसरा, एगो मजाकिया आदमी से
अईसा जवाब का कोई उम्मीद भी नहीं किया था. सिराज चचा जवाब दिए, “दीदी! आप उसी हँसी से काम
चलाइए. क्योंकि यह हँसी डेढ़ सौ रुपए में नहीं मिलती है, इसकी क़ीमत पाँच से छः सौ
रुपए है." एतना पईसा ऊ अपना इस्टेज
प्रोग्राम का लेते रहे होंगे उस समय.
रेकॉर्डिंग
हुआ, अऊर
सिराज चचा ने अपना ओही डेढ़ सौ रुपया वाला हँसी बेचा. एगो कलाकार का कला दिल से
निकलता है, लेकिन
पहिला बार महसूस हुआ कि पेट, दिल के
ऊपर भारी पड़ जाता है.
एक बार
हम दुनो भाई रात को रिहर्सल के बाद घर लौट रहे थे. हमलोग के साथ सिराज चचा भी थे. हमलोग
पैदल चल रहे थे, ओही समय एगो आदमी साइकिल पर पीछे से आता हुआ आगे निकल गया. आझो
याद है हमको कि ऊ आदमी सिगरेट पी रहा था अऊर जोर-जोर से कुछ बड़बड़ाता जा रहा था. हम
दुनो भाई हंसने लगे. मगर सिराज चचा बहुत सीरियसली बोले कि हँसो मत, वो ‘पैदायशी
आर्टिस्ट’ है. और कमाल का बात ई है कि कोनो अपने आप से बात करने वाला आदमी को
देखकर आझो हमारे परिबार में ई मुहावरा सबलोग बोलता है.
जब पटना
में दानापुर हमारा पोस्टिंग हुआ त पता चला कि उनका अकाउंट हमारे बैंक में है अऊर
जब ऊ हमको देखे तो उनको बिस्वास नहीं हुआ कि जो बच्चा उनके साथ एक्टिंग करता था, आज
एतना बड़ा हो गया है. पहिला बार जब मिले तो बहुत दुआ दिए.
आज से छौ
साल पहिले ई पोस्ट का पहिला हिस्सा हम लिखे थे अपना ब्लॉग पर, तब सायद अपना बहुत
सा याद में से कुछ याद सेयर करते हुए. जहाँ तक याद आता है हम अपना कोई भी पुराना
पोस्ट नहीं दोहराए होंगे, लेकिन ई पोस्ट को दोहराने का कारन एही रहा कि आज सिराज
चचा हमारे बीच नहीं रहे. व्हाट्स ऐप्प पर पटना से एगो अखबार का क्लिपिंग मिला
जिसमें उनके मौत का खबर था. सिनेमा के तरह बहुत सा टाइम जो उनके साथ बिताए थे, याद
आ गया. परमात्मा उनको जन्नत बख्से!