पन्द्रह अगस्त अउर छब्बीस जनवरी का राष्ट्रीय त्यौहार हमरे अपार्टमेंट में बहुत जोस के साथ मनाया जाता है. सुबह झंडा फहराना, फिर बच्चा लोग का कबिता, गाना अउर भासन, दिन भर खेल कूद का परतिजोगिता अउर रात में कल्चरल प्रोग्राम. तब चैतन्य जी भी हमरे साथ रहते थे. हम दुनो मिलकर प्रोग्राम का रूपरेखा बनाते, पोस्टर लगाते, रिहर्सल देखते, गाना सुनते अउर इसके अलावा नौकरी भी कर लेते थे.
ऊ साल चैतन्य जी डिसाइड किये कि रियलिटी शो के जईसा हम लोग भी तीन ठो जज रखेंगे इस्टेज पर. एगो नया आइटम भी हो जाएगा अउर जब तक जज लोग का कमेन्ट अउर मजाक चलेगा, तब तक अगिला प्रोग्राम का बच्चा लोग तैयार हो जाएगा. हो गया फाइनल, तीन जज में से हम, चैतन्य अउर हमरे एगो साथी की पत्नी, रचना भाभी का नाम फाइनल हो गया. स्क्रिप्ट पर काम चलने लगा. तब अचानक एक रोज बातचीत करते करते हम बिहारी भासा में कुछ मजाक में बोले. बस चैतन्य जी उठकर खडा हो गए, बोले, “मिल गया मुझे तीनों जजों का कैरेक्टर.”
उनका कहना था कि हमलोग अपने असली रूप में नहीं रहेंगे. जब मजाक करना है त दोसरा कैरेक्टर में बनकर हमलोग मजाक करेंगे, “आपका कैरेक्टर फाइनल है लालू यादव का और आपका नाम रहेगा आलू यादव. मैं किशोर कुमार और मेरा नाम शोर कुमार. भाभी जी बनेगी ऋतू बेरी और कहलाएंगी फेंकू बेरी, क्योंकि इनसे लंबी-लंबी फेंकने वाली औरत के डायलाग बुलवाने हैं.”
बस सबकुछ तय हो गया. अपार्टमेंट में पोस्टर लगा दिया गया कि तीन मसहूर मेहमान हमारे प्रोग्राम में पधार रहे हैं, वही जज होंगे प्रोग्राम के. नाम नहीं बताया गया था. बस कहा गया कि कुछ ख़ास कारन से उनका नाम अभी गुप्त रखा गया है. अपार्टमेंट में कानाफूसी सुरू हो गया. कहीं भी कोइ मिल जाता तो धीरे से पूछता था कि बर्मा जी किसको बोला रहे हैं. औरत मंडली हमलोगों के धरमपत्नी को टटोलने में लगा हुआ था. मगर सस्पेंस जो बहाल हुआ सो आख़िरी टाइम तक नहीं टूटा.
प्रोग्राम सुरू होने के पहले मंच पर कोना में टेबुल अउर तीन ठो कुर्सी लाकर रख दिया गया. टेबुल पर गुलदस्ता सजा दिया गया. अभी भी सस्पेंस बाकी था. चैतन्य जी अउर रचना भाभी का मेकप लगभग ओरिजिनल था. माने उनका चेहरा हर रोज के जईसा था. हमको कहा गया गया था तनी इस्पेसल मेकप करने के लिए. साथ में हिदायत भी कि हमको बाद में आना है. चैतन्य जी का आदेस था कि हम मोटर साइकिल पर, दुनो तरफ अपने अपार्टमेंट के दू गो गार्ड के साथ (नकली) बन्दूक के सिकोरिटी में दरसक लोग के बीच से आयेंगे. आने के पहले तीन चार बार घोसना किया जा चुका था कि बस अब हमारे अतिथि आ चले हैं.
हम मेकप करके घर में बंद थे. सबलोग प्रोग्राम अउर चीफ गेस्ट के इंतज़ार में था, इसलिए हमरे तरफ किसी का ध्याने नहीं गया कि हम देखाई नहीं दे रहे हैं. चैतन्य जी धीरे से हमलोग के एगो सहकर्मी ससांक को इसारा किये कि जाकर बर्मा जी को बुला लाओ. नीचे गार्ड रूम में मोटर साइकिल रेडी था. ऊपर चौथा मंजिल पर हमरे फ़्लैट में ससांक घंटी बजाया. किचेन से झांककर देखे कि ससांक है, त हम दरवाजा खोले.
ससांक हमको देखकर बोला, “प्रणाम चाचा जी! वर्मा सर अंदर हैं? ज़रा बुला दीजिए.”
हमको लगा कि मेकप एकदम पक्का है. हंसकर हम बोले, “ अरे शशांक बाबू, हम ही हैं. चलिए.” ससांक का लजाया हुआ चेहरा देखने लायक था. अउर जब हमरा एंट्री हुआ त दरसक लोग भी सुरू में सोच में पड़ गया कि ई कौन है.
प्रोग्राम बहुत अच्छा रहा. हम तीनों का कैरेक्टर एस्टैब्लिश हो गया. आज भी ओही प्रोग्राम का तस्वीर हमरा ब्लॉग का प्रोफाइल फोटो है. हमरा फोटो को लेकर केतना लोग के अंदर कन्फ्यूजन बना हुआ था. अभी भी हो सकता है पता नहीं. केतना लोग नाराज हो गए “संवेदना के स्वर” पर हमरा फोटो देखकर अउर इहाँ पर वाला फोटो देखकर. ऊ लोग का कहना था कि हम धोखा दिए हैं. बहुत समझाने के बाद ऊ लोग माने.
अउर अब तो ई फोटो हमरा ट्रेड मार्क हो गया है.