सीर्सक देखकर आप लोग को बुझायेगा कि हमसे गलती से इस्पेलिंग मिस्टेक हो गया है. ईहो सोच सकते हैं आपलोग कि बिहारी त बिहारीये रहेगा. कुछ लोग, जिनके मन में हमरा कुछ इज्जत बचा हुआ है, उनको लगेगा कि ई भी हमरा कोइ इस्पेलिंग ईस्टंट है. मगर तनी डीपली घुस के सोचिये. एतना बोलने के बाद त आपका ध्यान सीर्सकवा से हट गया होगा, मगर सोचते होइएगा कि इधर त कोनो ब्लॉकबस्टर सिनेमा भी नहीं आया. ले दे के चर्चा में रॉकस्टार था अऊर रा-वन. उसके बारे में भी एतना देरी से लिखने के लिए कुछ बचा नहीं है.
तनी रुककर लौटते हैं सीर्सक पर. अपने पंडित जी, डॉ. अरविन्द मिसिर जी के ब्लॉग पर एगो कमेन्ट करने वाला/वाली आता/आती था/थी (बहुत कस्ट हो रहा हो इसलिए आगे ऊ कमेन्ट करने वाले का चर्चा में हम पुल्लिंग रूप प्रयोग करेंगे जिसे बिना कोनो भेद-भाव के, अगर ऊ महिला हों तो महिला-बाचक भी माना जाए). उनका नाम था “गोस्टबस्टर”. मगर पंडित जी कभी भी उनके कमेन्ट का जवाब में ई नाम नहीं इस्तेमाल किये. ऊ कहा करते थे भूतभंजक. ई नाम का सब्दानुबाद एतना पसंद आया हमको, जेतना ओरिजिनल भूतभंजक महोदय को नहीं आया होगा. कम से कम डेढ़ दर्जन लोग को हम ई नाम बताए! अऊर आज जब कुछ लिखने का फुर्सत मिला अऊर पिछला दस-पन्द्रह दिन का घटना देखे त लगा कि एही सीर्सक सूट करेगा.
अभी हाले में ब्लॉग गायब होना, कमेन्ट हवा में बिला जाना (विलीन होना), मेल उड़ जाना जैसा घटना से लगभग हर टॉप के ब्लॉगर को परेसान होना पडा. हमरे साथ त लास्ट ईयर… सॉरी पार-साल हुआ था. दू-चार लोग से बेचैनी में पूछे तब पता चला कि आग उधर भी बराबर लगा हुआ है. जब अपना बारे में पता चला था त हम बहुत परेसान थे, मगर जब अऊर लोग का बारे में सुने त तनी इत्मीनान हुआ. आदमी का सोभाव है- चलो दोसरा भी दुखी है, त अपना दुःख तनी हल्का हो जाता है.
ई बार त बिस्तार से पाबला जी के पोस्ट पर पढ़े पूरा गूगल-पाबला जुद्ध परकरण तब समझ में आया कि केतना भयानक समस्या था. पिछला आक्रमण के बाद से हम अपना पोस्ट का ड्राफ्ट बाहरी हार्ड-डिस्क में रखने लगे. अब हमरे पास त बचाने के लिए न कोनो बिग्यान है, न इतिहास है, न साहित्य, न आध्यात्म.. ले देकर कुछ पुराना याद है, जो खाली बच्चा लोग को दे जाने के लिए लिख रहे हैं. कहीं भुला गया, त दोबारा लिखने में जिन्गी खल्लास हो जाएगा.
खैर, ई बार जब हम बच गए (अभी तक त बचले हैं), तब बुझाया कि अटैक खाली टॉप के ब्लॉगर लोग पर था. हम त अपना आँख से देखे तब पता चला. संजय@ मो सम कौन का कमेन्ट हमको मेल में देखाई दिया, मगर पोस्ट पर नहीं. हम कमेन्ट त साट दिए पोस्ट पर, बाकी उनको मेल करके आगाह किए. उनका जवाब आया कि अली साहब के पोस्ट पर भी उनका कमेन्ट ओही गति को प्राप्त हो गया है.
हमारा नया पोस्ट बहुत से लोगो के ब्लॉग-फीड में बहुत दिन से अपडेट नहीं हो रहा है. एही बात पर केतना लोग से हम सीत-जुद्ध भी छेड़ दिए. का करें एक तो आदमी, उसपर ब्लॉगर. अब बुरा त लगबे करता है. देवेंदर पांडे जी मन लगाकर मस्त बनारसी गीत लिखे अऊर कमेन्ट नदारद. पता चला कि सब स्पैम नामक सुरसा के पेट में जा रहा है. एकदम परेसानी का माहौल बना हुआ है.
ब्लॉग-बस्टर का आतंक फ़ैल चुका था. फेस-बुक पर भी लोग खुलकर अन्ना के माफिक इस ब्लॉग-बस्टर से लड़ाई का मंत्र बता रहे थे. पंडित जी भी एगो पोस्ट लिखकर अपना कस्ट बयान किये. ऊ त मान भी बैठे थे कि “क्वचिदन्यतोsपि” के जगह “सुबहे बनारस” के नाम से नया ब्लॉग सुरू करना पडेगा. मगर भला हो उनके जय और वीरू का, तीनों बच गए. अनुराग जी भी अमेरिका में बैठकर ओहाँ से लोग को मंत्र बता रहे थे. हर कोइ मंत्र का पर्ची छपवाकर बाँट रहा था, जैसे एक टाइम पर लोग संतोषी माता का पोस्टकार्ड भेजता था. फेसबुक पर भी ओही हाल था. लोग उपाय बताते थे और कहते थे कि सेयर कीजिये. पाबला जी के ताजा पोस्ट के मुताबिक़ अटल जी का बात याद आता है कि “अब चलने की वेला आई!”
अभी तक सबसे अच्छा बात ई हुआ कि ब्लॉग-बस्टर के आक्रमण से अभी तक किसी ब्लॉग के सहीद होने का कोनो खबर सुनने को नहीं मिला.
निसांत मिसिर जी का बात कहें तो
“प्रचंड तूफ़ान जब धरती से टकराता है तब वायु और वर्षा प्रलय मचाती हैं. वृक्ष जड़ों से उखड़ जाते हैं, नदियां मार्ग बदल लेती हैं, यहाँ तक कि बड़े-बड़े पर्वत भी बिखरने लगते हैं. फिर भी ऐसे प्रकोप एक-दो दिन से अधिक नहीं ठहरते. सर्वनाश की शक्ति लेकर धावा बोलनेवाले तूफानों को भी अपना डेरा-डंडा समेटना पड़ता है.”
नोट: इस आलेख में किसी भी व्यक्ति, पोस्ट अथवा ब्लॉग का लिंक नहीं दिया गया है. ये सभी इतने स्थापित लोग हैं कि उन्हें परिचय की आवश्यकता नहीं)