अभी कल्हे-परसो
टीवी पर देख रहे थे प्रोग्राम “मूभर्स एंड सेखर”... अरे ओही अपना सेखर
सुमन का प्रोग्राम. एगो पाकिस्तानी हिरोइन को बोलाए हुए था, जिसके बारे में
बहुत सा खिस्सा पहिलहीं से मशहूर है, नाम बीना मलिक. जब ऊ बोलने लगी त
बताईं कि भारत में उनका बहुत सा लोग के साथ प्रेम सम्बन्ध बना अऊर सबके साथ ब्रेकप
हो गया. अब ई ब्रेकप का माने होता है मन भर जाना, चाहे भिखमंगा के जैसा दोसरा
दरवाजा देखना. हमको संतोस हुआ कि इसमें दिल टूटने जैसा कोनो बात नहीं है. बस
भेकेंसी हो जाने वाला बात है कि अब जगह खाली है. बीना मलिक खुदे बोलीं कि अब हमको
कोई सच्चा दोस्त का तलास है.
सिनेमा का दुनिया
में ई सब टाइप का खिस्सा पहले बनाया जाता है, फिर उसको फैलाया जाता है अऊर बाद में
उससे इनकार कर दिया जाता है, चाहे अफवाह बता दिया जाता है. ऊ एगो कहावत है न कि लक्ष्य पा लेने के बाद त
कोनो आनंद नहीं है, असली आनंद त जात्रा में है. आमिर खान जब अपना बीवी को छोडकर
दोसरा औरत से बिआह (?) कर लिए त बात खतम हो गया, करीना कपूर जब होटल में साहिद
कपूर के साथ धरा गयी थीं, त बड़ी हंगामा हुआ, मगर जब साहिद कपूर को छोड़ दी त कोनो
बात नहीं, सैफ अली, जब सादी के इतना साल बाद, अमृता सिंह को छोड़ दिए त बबाल मच
गया, मगर जब करीना के साथ खुल्ले आम घूमने लगे त बात खतम. अब ऊ बिआह करें कि
साले-साल बिआह पोस्टपोन करें, कोनो आदमी के पेट में दरद नहीं होता है. जब तक ऊ लोग
ई खबर को अफवाह बताता रहा, लोग मजा लिया; जिस दिन कन्फर्म हो गया, बात खतम.
देवयानी चौबल उर्फ देवी
(खाली ‘उर्फ’ लगा देने से खूंखारियत चौगुना हो जाता है) अइसने एगो पत्रकार
थीं – गॉसिप पत्रकार. जब हम लोग इस्कूल/कॉलेज में पढते थे, तब सोचते थे कि
कहाँ-कहाँ का खबर निकालकर लाती है. अभी हाल में जब “द डर्टी पिक्चर” देखे,
त अंजू महेन्द्रू (इनका गैरी सोबर्स के साथ, बाद में राजेस खन्ना के साथ खूब कहानी
चला था) को देवयानी चौबल के रूप में देखकर पुराना टाइम याद आ गया. भगवान उनके
आत्मा को सांति दे, मगर कमाल की गॉसिप पत्रकार थी. बताता है लोग कि राजेस खन्ना को
ऊपर चढाने में देवी का बड़ा हाथ था.
जाने दीजिए,
सिनेमा का दुनिया त आभासी दुनिया से भी जादा आभासी है. ब्लॉग का आभासी दुनिया भी
गॉसिप से अछूता नहीं है. आज ओही बताने के लिए हम इतना बात बताए हैं. हमरा ब्लॉग
पढ़ने वाला में बहुत सा लोग अइसा भी है जो लोग सामाजिक/व्यावसायिक दुनिया से हमसे
जुड़ा है. ऊ लोग कमेन्ट नहीं करता है, मगर ब्लॉग पढता है जरूर. ई बात इसलिए कहे कि
ऊ लोग का नाम बताने से भी आपलोग नहीं पहिचान पायेंगे. ऊ लोग से गाहे-बगाहे भेंट
होता रहता है. कुछ रोज पहिले एगो फंक्सन में हम गए. बिस्वास कीजिये, जेतना लोग
हमसे मिला, सब लोग एक्के बात पूछ रहा था. तनी आप भी सुनिए बातचीत:
“क्या बात है सलिल भाई! चैतन्य जी से कोई झगड़ा हुआ है क्या?”
“क्या बात है सलिल भाई! चैतन्य जी से कोई झगड़ा हुआ है क्या?”
“नहीं तो!!! आपसे
किसने कहा?”
“छोडिये, जाने
दीजिए! हम भी खबर रखते हैं!” मुस्कुराते हुए अइसे बोले जैसे एजेण्ड बिनोद हों.
“अच्छा! ज़रा मुझे
भी बताइये, क्या खबर है हमारे बारे में?”
“यही कि आप लोगों
में लिखने को लेकर झगड़ा हो गया है. वैसे एक बात बताऊँ सलिल जी, मैं शुरू से जानता
था कि ये ज़्यादा दिन तक नहीं चलने वाला था. इगो क्लैश, यू नो!”
“मित्रवर! इगो का
परित्याग करके ही हम दोनों एक हुए थे. फिर हमारे मध्य इगो की दीवार कहाँ से आयी!”
“हा हा हा! अब तो
आप ये कहेंगे ही! खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे. प्लीज़ बुरा मत मानियेगा!”
“बुरा तो हमें
किसी बात का नहीं लगता, मगर आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे आपने घोड़े के मुँह से ही
सुन रखा हो ये सब. चैतन्य जी ने आपको फोन किया था या आप चंडीगढ गए हुए थे उनके
पास?”
“अरे हम तो मजमून
भांप लेते हैं लिफाफा देखकर!” (फिर से एजेंट विनोद) “चलिए मान लिया आपकी बात सच
है, तो फिर ‘संवेदना के स्वर’ पर कुछ भी नया क्यों लिखा आप लोगों ने?
बताइये-बताइये! जबकि ‘चला बिहारी..’ पर आप लगातार लिख रहे हैं!”
त ई बात है!!! हम
चुप रहे, हम हंस दिए... अब ऊ लोग को हम का बताएं कि सायदे कोनो दिन अइसा होता होगा
जब चैतन्य आलोक अऊर हम नहीं बतियाते होंगे, बल्कि दिन भर में बीस बार. कोनो
मुद्दा ऑफिसियल या अन्-ऑफिसियल, हम दुनो सेयर करते हैं, बहस करते हैं और
सलाह-मसबिरा करते हैं. हम दुनो को अफ़सोस है कि उनके साथ काम का बोझ एतना आ गया है अऊर
ऑफिस का माहौल इतना अजीब हो गया है कि पहिले जेतना टाइम भी नहीं है अऊर टेंसन भी
बहुत है! हमरा भी ओही हाल है, मगर हम उनके बिना ‘संवेदना के स्वर’ का
कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. इहाँ तक कि ई ब्लॉग पर भी कोनो पोस्ट अइसा नहीं है,
जो उनको बिना सुनाये हुए हम पोस्ट किये हों. एही नहीं, ब्लॉग जगत का कोनो गतिबिधि
उनसे छूटा हुआ नहीं है. ऊ ब्लॉग जगत से दूर हैं, मगर सब खबर पूछते रहते हैं हम से.
आज हमरे ब्लॉग का दोसरा सालगिरह है. मगर ई दू साल के सफर में हम दू आदमी को कभी
नहीं भुला सकते हैं. एगो हैं मनोज भारती... हमेसा हमको लिखने के लिए
प्रेरित करते रहे. हमारा पोस्ट जेतना मन लगाकर ई पढते हैं, बहुत कम लोग पढता होगा.
सच पूछिए त जेतना सीरियसली हम लिखते नहीं हैं, ओतना सीरियसली मनोज भारती जी
पढते हैं हमारा पोस्ट.
अऊर चैतन्य बाबू
का त बाते अलग है. मनोज जी अगर प्रेरना हैं त चैतन्य जी आत्मा हैं. आज अगर हम
ब्लॉग जगत में दू साल पूरा कर रहे हैं त उस जात्रा में एक कदम हमरा है अऊर दोसरा
कदम चैतन्य जी का. बहुत दिन हो गया उनसे मिले हुए. एक दिन फोन किये कि बस आपके साथ
आमने-सामने बैठकर बात करने का मन कर रहा है. हम भी सोचे कि पता नहीं कब हमरे
ट्रांसफर का चिट्ठी आ जाए अऊर हम उनसे एतना दूर हो जाएँ कि आसानी से मिलना भी नहीं
हो पाए. हम भी बोले कि बस आपको छूकर देखना चाहते हैं. आज पता नहीं कहाँ से पाओलो
कोएल्हो का कहा हुआ एगो संबाद याद आ रहा है:
मैंने गौर से कारवाँ को रेगिस्तान पार करते देखा. इन दोनों की भाषा एक ही है. इसीलिए रेगिस्तान कारवाँ को अपने ऊपर से गुजरने देता है. वह कारवाँ के हर कदम को बड़े ध्यान से देखता-परखता है कि वह समय के साथ है कि नहीं. यदि है, तो फिर वह हमें नखलिस्तान पहुँचाने से नहीं रोकता!
सचमुच ऊ
नखलिस्तान हमरे सामने है, हम दुनो ‘सखा’ के साथ-साथ चलने का नतीजा, हमरे ब्लॉग का
दूसरा सालगिरह!