एगो बहुत पुराना कहावत है कि हर आदमी को अपना बच्चा अऊर दोसरा का जोरू हमेसा सुन्दर लगता है. एगो दोसरा कहावत भी बीच में चला था कि मोबाइल फोन अऊर मेहरारू के बारे में हर आदमी एही सोचता है कि तनी दिन रुक जाते त बढ़िया मॉडल मिल जाता. अब ई सब कहावत में केतना सचाई है अऊर केतना मजाक, बताना बहुत मोसकिल है. ई बहस में पड़ने का कोनो फायदा भी नहीं है, काहे कि दुनो कहावत का आधा हिस्सा त सहिये है. रहा बात दोसरा हिस्सा का, त ऊ बेक्तिगत अनुभव का बात है.
खैर, अपना बच्चा सब माँ-बाप को सुन्दर लगता है, ई बात को दोसरा तरीका से सोचकर देखिये तो तनी! बच्चा के नजर में भी का एही बात लागू होता है?? सायद नहीं. एगो बच्चा अपना माँ के साथ पुराना फोटो का एल्बम देख रहा था. अचानक उसका नजर पड़ा एगो फोटो पर, जिसमें उसकी माँ अऊर बाप का फोटो था. बच्चा माँ को पहिचान गया मगर बाप में एतना बदलाव आ गया था कि बेचारा को संदेह होने लगा.
ऊ अपना माँ से पूछा, “माँ! इस फोटो में आपके साथ ये स्मार्ट से आदमी कौन है?”
माँ बोली, “पहचाना नहीं! ये तेरे पापा हैं!”
बच्चा आश्चर्यचकित हो गया, बोला, “कमाल है! इतने स्मार्ट!! तो फिर ये गंजा सा आदमी कौन है जो हमारे घर में रहता है और हम जिसे पापा कहकर बुलाते हैं?”
अब देखिये, ऊ बचवा इस्मार्ट आदमी को अपना पापा मानने के लिए तैयार था, मगर पापा को गंजा होने पर भी इस्मार्ट मानने के लिए तैयार नहीं.
हमरी एकलौती बहिन विनी जब इस्कूल में पढ़ती थी, तब उसकी एगो सहेली थी बहुत पक्की, नाम था प्रिया. उसके घर विनी का आना-जाना भी था. मगर संजोग से प्रिया हमरे घर कभी नहीं आई थी. इसलिए हमरे परिबार में हमरी बहिन को छोडकर उसका किसी से परिचय नहीं था. बहिन को संकोच भी था कि हमरा घर कच्चा अऊर खपरैल है, जबकि प्रिया का घर बहुत बड़ा, पक्का अऊर फिलिम इस्टार सतरोहन सिन्हा के घर के बगल में.
एक रोज का मालूम कईसे उसकी सहेली का हमरे घर आने का प्रोग्राम बन गया. दिन, तारीख, समय सब तय हो गया. बहिन जी का घर भर को आदेस हो गया कि किसको का-का करना है. मगर एगो बात में पर्फेक्सन नहीं आ पा रहा था. बहिन जी को लगा कि हमरी माता जी “खूबसूरत” नहीं हैं या कहिये कि प्रेजेंटेबुल नहीं हैं. बस ओही मुद्दा पर संदेह का इस्थिति बना हुआ था. इहाँ बता दें कि हमरी माता जी के सुंदरता में भी कोनो कमी नहीं था, मगर घर के काम काज में ब्यस्त रहने के कारन साज-सिंगार पर ध्यान तनी कम्मे रहता था.
खैर, घर में माता जी को छोडकर सब चीज परफेक्ट हो गया. पूरा इत्मिनान कि सहेली के सामने नाक नहीं कटे. बहुत सा प्लान पर बिचार किया गया. मम्मी को गैरहाजिर भी नहीं किया जा सकता था. ऐसा करने से खेल बिगड़ जाता, काहे कि प्रिया अपनी मम्मी के साथ आने वाली थी. अंत में विनी ने ई समस्या का भी समाधान कर दिया अऊर हम सब लोग भी हंसकर मान लिए.
हमरी चाची विनी के नजर में प्रिया की मम्मी के टक्कर की ख़ूबसूरत थीं. फैसला हुआ कि चाची को बुला लेंगे अऊर कह देंगे कि यही मेरी मम्मी हैं. मम्मी से त ऊ लोग कभी मिला है नहीं, इसलिए पहिचानने का त सवाले पैदा नहीं होता है. अऊर दोबारा ऊ लोग आएगा भी नहीं. वैसे भी बाद का बाद में देखा जाएगा.
इस्टेज सेट हो गया. ठीक समय पर प्रिया अपनी माँ के साथ हमारे घर पर आई. विनी आगे बढकर स्वागत कीं. ऊ लोग को पुर्बारा (पूर्वी) घर में बैठाया गया. बातचीत सुरू करने के पहिले ही सहेली की मम्मी बोलीं, “विनी! तुम्हारी मम्मी कहाँ हैं? बुलाओ उनको!” अऊर स्क्रिप्ट के मोताबिक हमारी चाची कमरा में एंट्री मारीं. चाची को देखते ही ऊ खुसी से खड़ी हो गयी अऊर बोलीं, “अरे! नीलिमा तुम!! कितने दिनों के बाद मिले हैं हम! मगर तुम यहाँ कैसे?”
“विनी मेरी जेठानी की बेटी है.”
बगल वाले कमरा में हमरी माता जी अऊर हमलोग का हँसी रोके नहीं रुक रहा था. बास्तव में हमरी चाची अऊर सहेली की माँ दुनो कॉलेज की दोस्त थीं, बहुत पक्की. इसलिए चाची को झूठ बोलने का नौबत नहीं आया. बाद में माताजी भी आईं. पूरा नाटक के अऊर नाटक में हुआ परिबर्तन के बीच विनी चुप-चाप रही. पता नहीं बुजुर्ग लोग में नाटक के ओरिजिनल स्क्रिप्ट का चर्चा हुआ कि नहीं.
हमलोग जब कोनो नाटक का स्क्रिप्ट लिखते हैं, त समझते हैं कि हमसे सानदार त सलीम-जावेद भी नहीं लिख सकते. मगर हमलोग भुला जाते हैं कि हमलोग से बढ़िया नाटक लिखने वाला कोई और है, जो हम-सब लोग का रोल लिखता है. देखिये ज़रा, दुस्सासन जब चीर-हरण कर रहा था, तब उसको भी कहाँ मालूम था कि अचानक द्रौपदी के सखा का अदृस्य एंट्री हो जाएगा. अऊर दुर्योधन को भी कहाँ पता था कि महाभारत के स्क्रिप्ट में अचानक अर्जुन का सारथी महानायक बन जाएगा.