एगो राजा था. ऊ जंगल
में एक रोज सिकार खेलने गया. साथ में सेनापति, मंत्री अऊर एगो नौकर भी था. जंगल
में राजा को एगो हिरन देखाई दिया. पीछा करते-करते राजा अपना
सब लोग से अलग हो गया. एही नहीं, सेनापति, मंत्री अऊर नौकर भी रस्ता भुलाकर जंगल
में भटक गया सब.
रास्ता खोजते-खोजते नौकर
को एगो कुटिया देखाई दिया, जिसके बाहर एगो साधु बाबा भगवान का नाम जप रहे थे. ऊ
नौकर उनके पास गया अऊर बोला, “ओ अन्धे! अभी तूने इधर से किसी को जाते हुए देखा
है?”
“मैं तो अन्धा हूँ.
मुझे कहाँ कुछ दिखाई देता है!”
थोड़ा देर के बाद
राजा का सेनापति भी ओही कुटिया के पास आया अऊर साधु से पूछने लगा, “ओ साधु! तुमने किसी
को इधर से जाते हुए देखा है?”
“मैं तो अन्धा हूँ.
मुझे कहाँ कुछ दिखाई देता है!”
सेनापति चला गया, तब भटकते हुए मंत्री जी भी ओहीं पर पधार
गए. ऊ हो साधु से पूछ लिए, “हे साधु महाराज!
आपने किसी को इधर से जाते हुए देखा है क्या?”
“मैं तो अन्धा हूँ. मुझे कहाँ कुछ दिखाई देता है!”
आखिर में राजा जी भी रास्ता खोजते-खोजते ओही कुटिया के पास
पहुँचे. साधु को ध्यान लगाये देख पूछ बैठे, “प्रणाम ऋषिवर! क्या आपने किसी को यहाँ से जाते हुए तो नहीं देखा?”
“महाराज की जय हो! मैं तो अन्धा हूँ. मुझे कहाँ कुछ दिखाई देता है! किंतु थोड़ी देर पहले आपका सेवक आपको खोजता हुआ इधर आया था, उसके पश्चात आपके
सेनापति और फिर महामंत्री. वे सब लगता है आप ही को ढूँढ रहे थे. अब अंत में आप
उन्हें खोजते हुए पधारे हैं!”
राजा घोर अचरज में पड़ गया कि ई आदमी अन्धा है त इसको कइसे
पता चला कि हमको खोजने वाला हमरा नौकर, सेनापति अऊर मंत्री था. अऊर हम महाराज हैं.
ऊ साधु से पूछिए लिया, “मुनिवर! आप नेत्रहीन
हैं. फिर आपने मुझे ढूँढने वालों को कैसे पहचाना?”
ऊ साधु हँसकर बोला, “महाराज! बहुत आसान
है. आदमी बातचीत से पहचाना जाता है. आपके नौकर ने मुझे ओ अन्धे कहकर पुकारा, आपके
सेनापति ने ओ साधु कहकर और आपके मंत्री ने हे साधु महाराज कहा. अंत में जब आप आए
तो आपने मुझे प्रणाम ऋषिवर कहकर सम्बोधित किया! यह सम्बोधन ही तो किसी व्यक्ति की
पहचान हैं!”
सायद छट्ठा सातवाँ किलास में ई कहानी पढे होंगे. बाकी अभी
तक दिमाग में ताजा है. एतने नहीं, नौकरी भी अइसा मिला है कि जगह-जगह घूमकर समाज के
हर तबका के अदमी के साथ दिन-रात उठना बइठना हो गया है. अब त बातचीत से पता चल जाता
है कि कऊन जगह का अदमी का, का बिसेसता है अऊर बात करने वाला कम्पनी में कोन ओहदा
पर काम कर रहा है. राजा वाला खिस्सा के जइसा बड़ा कम्पनी का डायरेक्टर जेतना
सालीनता से बतियाता है, ओतने अकड़कर कम्पनी का चपरासी बात करता है. मगर अपबाद भी
बहुत देखने को मिला है. अब का करें, हमलोग त सेवा छेत्र में हैं, इसलिए अपना
आपा घरे रखकर आते हैं. न रहेगा “मैं” न होगा झंझट-तकलीफ.
अभी कुछ टाइम पहिले, बड़े भाई सतीस सक्सेना जी हमरे
एगो कमेण्ट के जवाब में बोले -
शुक्रिया सलिल भाई,
बिना पढे टिप्पणी देने वाले ब्लॉगरों में सलिल
जैसे (एहाँ पर जो सब्द लिखा था ऊ लिखना हम जरूरी नहीं समझते हैं) भी मुझे पढते
हैं मेरे लिए यह कम गौरवशाली नहीं. आपके शब्द मुझे याद हैं और वे यकीनन
प्रेरणादायक हैं.
आभार भाई!!
ई बात सतीस जी केतना बार कहे हैं अलग-अलग जगह पर. अऊर बात
सच भी है. ऊ कहानी के हिसाब से आपके पोस्ट पर जेतना कमेण्ट आता है ना, ऊ कमेण्टवा
सबको ध्यान से पढ़िये. आपको अपने बुझा जाएगा कि कऊन अदमी आपका
पोस्ट पढने के बाद कमेण्ट किया है अऊर कऊन बिना पढे; किसको आपका कबिता समझ में आया
है, किसको नहीं; कऊन आपका असली परसंसक है, कऊन नहीं.
बहुत सा लोग का कमेण्ट का लम्बाइये से आपको बुझा जाता है कि
पूरा पढने के बाद आपका कहा हुआ हर बात के साथ सहमत चाहे असहमत होते हुए अपना बात
लिख रहे हैं. अऊर का मजाल है कि उनका कहा हुआ कोनो बात का बुरा लग जाए. अइसा लोग
का कमेण्ट अच्छा लिखने का प्रेरना के साथ-साथ, खुद का आकलन करने का मौका भी देता
है. एही नहीं ब्लॉग जगत का एगो मोहावरा “आत्ममुग्ध होना” भी लिखने वाला के साथ
नहीं चिपकता है.
ई त सोचने वाल बात है कि हर अदमी का लिखा हुआ सब पोस्ट आपको
पसन्द आए, उसमें कहा हुआ हर बात से आप सहमत हों अऊर कोनो पोस्ट में कोई कमी नहीं
देखाई दे. अइसा हालत में अच्छा लिखा है त खुलकर तारीफ कीजिए, बाकी कहीं कमी नजर आए
त ऊ भी बताइये जरूर. बिगाड़ के डर से ईमान का बात न कहने से बहुत नोकसान हुआ है
समाज में.
अंत में एगो अऊर छोटा सा कहानी ऊ लड़िका का, जो हर आने-जाने
वाला राहगीर को पत्थर मारकर लुका जाता था. एक रोज एगो अदमी उधर से गुजरा त उसको भी
ढेला मारा ऊ लड़िका. ऊ अदमी गुसियाया नहीं, बल्कि उसको बोलाकर चार आना का सिक्का धरा
दिया. एतना सानदार ईनाम पाकर अगिला अदमी को बड़का पत्थर फेंककर मारा. ई अदमी उसको
पकड़कर पीट दिया. इसलिये आप अपना कमेण्ट का चवन्नी देकर कहीं ऊ बच्चा का नोकसान त
नहीं न कर रहे हैं. ज़रा सोचिये. जो अच्छा नहीं लगा उसको खुलकर बताइये. गदहा को
गदहा कहिए, वैशाखनन्दन कहकर काहे हमारा इज्जत बढाते हैं. अपने मुनव्वर राना
साहब भी कहते हैं कि
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए
आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिए!