परिवार परिचय का पिछलका एपिसोड में जो प्रतिक्रिया मिला,उसमें कुछ सुधार भी था,कुछ अपनापन भी था, कुछ मन को छूने वाला बात भी था, कुछ नया जानकारी भी था. ई हमरे मन का बात है जिसको हम जईसा महसूस किए,लिख दिए.जिसके बारे में लिखे ऊ भी ओतना ही आत्मीयता से महसूस करेगा, अईसा हमरा सोचना है.
श्री मनोज भारती. हमपेसा हैं, फरक एतना है कि हम पैसा का हिसाब करते हैं, मनोज बाबू राजभासा का. हमसे पहले से ई दुनिया में रह रहे हैं अऊर समय समय पर अच्छा अच्छा ब्लॉग से परिचय भी करवाते रहे हैं.हमरे साथ राजनीति सिनेमा का समीक्षा भी किए थे. हमरा पोस्ट जरूर पढते हैं. उनका टिप्पनी बहुत महत्वपूर्ण होता है. मन से कबि, ओशो गंगा में आकण्ठ डूबे हुए, ब्लॉग साहित्य के यायावर हैं. हमरे इस ब्लॉग को सँवारने में उनका भी बहुत बड़ा हाथ है. एगो रहस्य का बत त रहिए गया. ई जो फोटो देख रहे हैं इनका, ई एक्सक्लूसिभ है हमरे ब्लॉग पर, इनकाअपना ब्लॉग पर भी नहीं मिलेगा.
इनसे मिलिए. ई हैं मैनपुरी के श्री शिवम् मिश्र. जनता के ऊपर बीमा का छतरी लगाए हैं. बहुत आत्मीय आदमी हैं, बहुत पढाकू, बहुत सम्बेदनसील, सच्चा देसभक्त. कहते हैं सम्बेदनसीलता को छिपाने के लिए भेस बदल लेते हैं (मतलब दाढी, करिया चस्मा). तनी मनी ऊँचनीच कह दीजिए त तुरते बाँह चढाकर तैयार (अब ई बात पर मत गुसिआइएगा, पहिलहीं बोल देते हैं). एक बार हम कुछ कहे, त तुरते अपना नम्बर देकर बोलिन की बतिया लीजिए हमसे. हम त एतना डरा गए कि पटना जाते जाते नई दिल्ली टेसन से गाड़ी का हल्ला में बतियाकर बात किलियर किए. जानकारी का भंडार है इनके ब्लॉग पर. इनसे सुरू से जुड़े हैं. आजकल ई चर्चा भी करते हैं अऊर हमको भी कभी कभी स्थान मिल जाता है इनका चर्चा पर. जेतना अच्छा लिखते हैं, ओतना अच्छा इंसान हैं.
हमरे बाबा भारती, राजेश उत्साही जी. अपना जाति लेखक अऊर गोत्र सम्पादक बताते हैं. टिप्पणी के साहंसाह हैं. जितने गुनी इंसान हैं, ओतने गुनग्राही भी हैं. नारी का सम्मान एतना कि अपनी अर्द्धांगिनी (हमको तो पूर्णांगिनी लगती हैं) के छिपा हुआ ब्यक्तित्व को दुनिया के सामने परकट किए अऊर मन का मलाल भी दुनिया से बाँटे. हमरे जईसा साधारन छमता वाले आदमी को एतना सम्मान दिए कि हम सचमुच उसके जोग्य नहीं हैं. लोग पेटी में खजाना रखता है, ई गुल्लक में खजाना रखते हैं. देखिए! बिना देखे बिस्वास करना मोस्किल है.
नीरज गोस्वामी जी. मुम्बई नगरिया के गजलकार. इनके दूगो पोस्ट के बीच का अंतराल का कारन, इनका ग़ज़ल पढने के बाद चलता है. पढेंगे तब बुझाएगा कि ई अंतराल, गजल को दिल में उतारने का साधना के कारन है. लोग सब्द बैठाकर गजल लिख देते हैं, लेकिन गोस्वामी जी, गजल को जीते हैं. सेर पढने के बाद आप ‘बाह’ कहने पर मजबूर नहीं होंगे, अबाक् रह जाएंगे. अऊर जेतना प्यारा इनका गजल होता है,ओतना अच्छा गजल का किताब का समीक्षा लिखते हैं.
संगीता स्वरूप जीः दीदी कहते हैं इनको हम.ई जो परिवार वाला बात हम लिखे हैं,ऊ तो हमसे भी पहिले से बनाए बैठी हैं.स्वप्निल इनको 'ममा' कहता है अऊर ई उसको 'बेटू'. बाकी सारी महिलागन इनको दीदी बोलती हैं. कोलकाता से इनका भी सम्बंध रहा है, इसलिए हमहूँ संगीता दी बोलने लगे, सहज भाव से. इनका कबिता, सब्द के किफायत अऊर अर्थ के बहुतायत का संगम है. एक बार इनका कबिता का गलत भूल बताने पर इनसे डाँट (मज़ाक) सुन चुके थे, लेकिन दोबारा जब दोसरा कबिता में गलती बोले त मानते हुए तुरत पूरा लाइन बदल दीं. हर पोस्ट को पढना, बिचार पर्गट करना, चर्चा करना, इनका समर्पित ब्यक्तित्व बताता है. एक बात इनसे सीखे हैं हम कि यह जगत अच्छा है, लेकिन हमरा बास्तविक जगत का भी हक है हमरे ऊपर. उसको नहीं भूलना चाहिए.
बिना समीर लाल जी के उड़न तश्तरी का बात किए त हमरा चर्चा अधूरा रहेगा. हमरा नासमझी के दिन में, बिचार का उड़ान के दौरान, हम समीर बाबू के उड़न तश्तरी से टकरा गए. लेकिन ऊ टक्कर बहुत कुछ सिखा गया हमको अऊर उनका मुरीद बना गया. ई कवि हैं, लेखक हैं, संसमरनकार हैं. लेकिन हमको लगता है कि ई बास्तव में ऐक्टर भी हैं (छमा याचना सहित). बम्बई (अब मुम्बई) में सी.ए. का पढाई करने के बाद यह भी लगता है कि ऐक्टिंग बस गया है इनके अंदर. इनके ब्लॉग पर लगा हुआ इनका फोटो देखने अऊर इनके गीत का तरन्नुम में भिडियो सुनने के बाद आपको लगेगा कि ई सनदी लेखाकार कहाँ ओशो की नगरी से सात समुंदर पार चला गया.'मुझको पहचान लो' कहने पर भी मुम्बई नगरिया पहचान नहीं पाया इनको. ई उड़न तश्तरी कम, छतरी जादा हैं, जिसके अंदर न जाने केतना ब्लॉगर को समेट रखे हैं अऊर इनसे हिंदी ब्लॉगर को असीम प्रेरना मिलता है.
प्रान जईसा महान कलाकार का आत्मकथा का सीर्सक है “And Pran”. सिनेमा का पर्दा पर सब हीरो लोग का नाम देखाने के बाद इनका नाम देखाया जाता था “ऐण्ड प्राण” लिखकर, इसलिए ऊ अपना आत्म-कथा का नाम भी ओही रखे. इसलिए हमरा आज का एपिसोड खतम करने से पहिले कहत हैं “ऐण्ड अनूप शुक्ल”. सब पढते हैं अऊर गुनते हैं, तौल के टिपियाते हैं. हमरा पहलौठी का कबिता पर ऊ जो कमेंट दिये थे ऊ हम भुलाईये नहीं सकते हैं. सत्यनारायण के कथा के जईसा साधु वनिक के नाव में का है बिना बताए भाँप जाने वाले अकेला आदमी.ओही समझ पाए थे ऊ कबिता का ब्याख्या. जमीन से जुड़े हुए मानुस. पिछला पोस्ट पर भोरे भोरे फोन करके बधाई दिए. भीष्मपितामह हैं ब्लॉग जगत के. हमको जेतना महीना लिखते हुआ है, ओतना महीना त पंडित जी ब्लॉगिंग में मौन रहे होंगे. अपने आप में संस्थान हैं. कहते हैं किसी के लेखन को जानना हो तो उसका अंतिम वाला पोस्ट नहीं, पहिला से अंतिम तक का पोस्ट पढो. इनका लेखन के बारे में एही बोल सकते हैं कि जिन डूबा तिन पाइयाँ.
अब का बताएँ,एतना बड़ा परिवार है अऊर जगह कम. चलिए, जईसे एतना बर्दास्त किए हैं, एक एपिसोड अऊर बर्दास्त कीजिए. अंतिम भाग सोमवार को.