मंगलवार, 5 अगस्त 2014

एकलव्य

टेक्नोलॉजी का जमाना में तरक्की एतना फास्ट होने लगा है कि कभी-कभी टेक्नोलॉजिये पीछे रह जाता है. अब देखिये ना एगो अदमी रोड पर भागा जा रहा था कि उसका एगो दोस्त भेंटा गया. बदहवास भागते हुए देखकर पूछा, “कहाँ भागे जा रहे हो यार?”
“कुछ मत पूछो, बाद में बात करूँगा!”
”सब ठीक तो है ना?”
”सब ठीक है. मगर बहुत जल्दी में हूँ, फिर मिलकर बात करूँगा!”
”मैं भी साथ चलूँ. शायद ज़रूरत पड़ जाए मेरी?”
”ये ठीक रहेगा. मेरे पास बिल्कुल टाइम नहीं है. दरसल मैंने नया टीवी ख़रीदा है!”
”अच्छा! तो इसी खुशी में उड़े जा रहे हो!”
”खुशी में नहीं यार, डर से भागा जा रहा हूँ!”
”डर कैसा? चोरी की है क्या?”
”नगद देकर ख़रीदा है! डर तो इस बात का है कि घर पहुँचते-पहुँचते कहीं मॉडल पुराना न हो जाए!”

त बात साफ है कि तरक्की के लिये टेक्नोलॉजी अऊर टेक्नोलॉजी के लिये इस्पीड जरूरी है. अब मोबाइल फोन ले लीजिये. एक से एक अंगूठा छाप के हाथ में लेटेस्ट इस्मार्ट-फोन देखाई दे जाता है. एतने नहीं, उसके मुँह से एण्ड्रॉयड, जेली बीन, क्वाड-प्रो, मेगापिक्सेल, रैम, मेमोरी, ऐप्प अऊर डाउनलोड जइसा सब्द सुनकर आपको बिस्वासे नहीं होगा कि मोबाइल के कैस-मेमो पर ऊ महासय दस्खत के जगह अंगूठा लगाकर आ रहे हैं.

असल में मोबाइल त पढ़ा-लिखा आदमी को अंगूठा छाप बना दिया है. मेसेज करना है त अंगूठा, पढना है त अंगूठा, फेसबुक पर कमेण्ट करना है त अंगूठा अऊर ब्लॉग पढना है त पेज ऊपर-नीचे करने के लिये अंगूठा. माने सारा पढ़ाई खतम करने के बाद भी अंगूठा छाप.

मामला खाली मोबाइले तक रहता त कोनो बात नहीं था. ऑफिसे में देख लीजिये... पहिले हाजिरी बनाने के लिये हाजिरी रजिस्टर पर साइन करना पड़ता था. अब अंगूठा लगाना पड़ता है. मजाक नहीं कर रहे हैं... इसमें मजाक का कोनो बाते नहीं है, न कोनो बुझौवल बुझा रहे हैं हम. एकदम बाइ गॉड का कसम खाकर सच कह रहे हैं. अभी कुछ महीना पहिले ऑफिस में भी एगो नया टेक्नोलॉजी आया है हमारे... एगो मसीन. अब जबतक ऊ मसीन के ऊपर अपना अंगूठा छाप नहीं दीजियेगा, तबतक आपको ऑफिस में कोनो काम करने का परमिसन नहीं मिलेगा. बताइये त भला, गजब अन्धेरगर्दी है. जऊन आदमी का दस्तखत पर भारत देस के कोनो-कोना में, चाहे दुनिया के बहुत सा जगह में आसानी से पइसा का लेन-देन हो जाता है, ऊ अदमी को उसी के ऑफिस में अंगूठा छाप बनकर अपना पहचान बताना पड़ रहा है!! हे धरती माई, बस आप फट जाइये अऊर हम समा जाएँ. हमरा बाप-माय लोग का सोचेगा कि बेटा को एतना पढ़ा-लिखाकर साहेब बनाए अऊर ऊ अंगूठा छाप बना हुआ है.

सी.आई.डी. के डॉ. साळुंके के जइसा ऑफिस पहुँचकर मसीन में अंगूठा लगाते हैं अऊर इंतजार करते हैं. मसीन का जवाब आता है कि फिंगर-प्रिंट मेल नहीं खा रहा है. हई देखिये, अब दोसरा अंगुली का छाप दीजिये, पहचान होने के बादे काम सुरू हो पाता है.

हमरे एगो संगी-साथी को ई सब से बहुत परेसानी हो गया. असल में उनका आदत है तनी देरी से सोकर उठने का. अब देरी से उठते हैं, त ऑफिसो देरिये से पहुँचते हैं. अब कम्प्यूटर के जमाना में एक-एक मिनट का हिसाब दर्ज होता रहता है. ई हालत में डेली देरी से ऑफिस जाना, माने सीरियस बात. ऊ का करते हैं कि अपना पासवर्ड एगो इस्टाफ को बताकर रखे हुये हैं. ऊ इस्टाफ बेचारा उनके बदला में उनका हाजिरी लगा दिया करता है.

अब अंगूठा छाप मसीन हो जाने के बाद, बिना अंगूठा पहचाने, हाजिरी लगबे नहीं करेगा. ऊ भाई जी एकदम असमान माथा पर उठाए हुए थे अऊर बेवस्था को जमकर गरिया रहे थे. एहाँ तक कि देस का तकनीकी बिकास का ऐसी-तैसी करने में लगे हुये थे. कुल मिलाकर भाई जी का बिरोध एही बात पर था कि उनका भोरे का नींद हराम हो रहा है. ई जानते हुए भी कि इसका कोनो इलाज नहीं है, ऊ हमसे पूछ बैठे, “यार! अब तुम ही बताओ कि इससे कैसे निपटा जाए!”
हम बोले, “हिन्दू हो?”
”अब ये क्या सवाल हो गया!”
“शास्त्रों में विश्वास है ना?”
”हाँ भाई हाँ!!”
”तो उस बेचारे ने जिसने आजतक तुम्हारे पासवर्ड से तुम्हारी सुबह की हाज़िरी लगाई है उसे अपना गुरू मानो और ऐड्वांस में गुरुदक्षिणा के तौर पर अपना अंगूठा काटकर दे दो. रोज़ सुबह वो तुम्हारा अंगूठा लगाकर हाज़िरी बनाता रहेगा!”

कूँ कूँ कूँ के आवाज के साथ फोन डिस-कनेक्ट हो चुका था.

(एकलव्य का अंगूठा गुरु द्रोण ने गुरुदक्षिणा में माँग लिया था, लेकिन वाण चलाने के लिये धनुष पर वाण को रखकर तर्जनी और मध्यमा की सहायता से प्रत्यंचा पर शर-सन्धान किया जाता है. इसमें अंगूठे का कोई योगदान नहीं होता)